तालाबों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले - taalaabon par supreem kort ke phaisale

सामाजिक संस्था प्रयास ने पिछले दिनों जोगी तालाब को पाटे जाने के विरोध में मुख्य सचिव के नाम का ज्ञापन एसडीएम को सौंपा था। संस्था ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की वेबसाइट पर जाकर तालाबों के संरक्षण के लिए फोटो सहित गुहार लगाई और पिछले कुछ वर्षों में पाटे गए तालाबों का उल्लेख किया। जिस पर संज्ञान लेते हुए कलेक्टर ने जांच के लिए कलेक्टर को प्रतिवेदन भेजा है। प्रयास संस्था ने नगर में बढ़ रहे पानी संकट को लेकर तालाबों के संरक्षण का मुद्दा उठाया था। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन न होना व प्रशासन की मनमानी की बात रखी गई थी।

तालाब की जगह नपा ने बनवा दिया भवन
नपा द्वारा दो डबरी में भवन बनाने के बाद जोगी तालाब के पार में दुकानें बनाने के साथ शौचालय और कार्यालय भी तालाब के कुछ हिस्से को पाटकर बनाए जाने की बात सामने आई। किन तालाबों और डबरियों को पाटा गया। ओड़ियापारा स्थित डबरी का खसरा नंबर 680 और रकबा .97 एकड़ है, इसमें सामाजिक भवन बना दिया गया है। झिलमिला वार्ड पेट्रोल पंप के सामने स्थित एक डबरी में पालिका द्वारा पाटकर टाउनहाल बनाया गया है। जोगी तालाब का खसरा नंबर 197 तथा रकबा 17.75 एकड़ है। इसे पाटकर कुछ हिस्से में नपा कार्यालय तथा सड़क की ओर पाटकर दुकानों के साथ सार्वजनिक शौचालय भी तालाब पार में बनाया गया है। सीएमओ राजेश गुप्ता ने बताया कि हाईकोर्ट द्वारा जांच के आदेश मिले हैं उनका जवाब तैयार किया जा रहा है।

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उत्तरप्रदेश हाऊसिंग बोर्ड, उप्र के मुख्य सचिव, नगर निगमों और अन्य अधिकारियों को यह निर्देशित किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों के मुताबिक सभी जलस्रोतों का संचालन और संधारण अपने खर्चे से किया जाये। इस निर्णय में हिंचलाल तिवारी (2001) तथा बिट्टू सहगल (2001) केस के निर्णय और दिशानिर्देशों का अनुपालन किया जाना अपेक्षित है। हिंचलाल बनाम कमला देवी और अन्य के विवाद में अदालत ने फैसला देते हुए कहा, “तालाब, पोखर, गढ़ही, नदी, नहर, पर्वत, जंगल और पहाड़ियां आदि सभी जल स्रोत पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं इसलिए पारिस्थितिकीय संकटों से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिए इन प्राकृतिक देनों की सुरक्षा करना आवश्यक है। ताकि सभी संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिए गए अधिकारों का आनंद ले सकें।“

इतना ही नहीं अदालत ने राज्य सरकार को प्रत्येक गांव में एक विशेष जांच दल नियुक्त करने का भी आदेश दिया। जलस्रोतों पर हुए अतिक्रमण हटाने का भी निर्देश हाइकोर्ट ने दिया, साथ ही निर्णय में यह भी कहा गया है कि प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक स्थानों पर अन्यत्र प्लॉट आबंटित कर दिया जाये।

माननीय न्यायालय ने कहा कि सभी प्रकार के शहरी नियोजन प्लान एवं नक्शे आदि जिनकी स्वीकृति मिल चुकी है, या उन पर काम शुरु हो चुका है, उसमें इस प्रकार से बदलाव किये जायें कि प्राकृतिक जलस्रोतों को कोई नुकसान न पहुँचने पाये। प्रत्येक झील, तालाब या अन्य जल स्रोत के आसपास किसी भी प्रकार के सरकारी या निजी निर्माण कार्य की अनुमति तब तक नहीं दी जाये, जब तक कि यह सुनिश्चित न हो जाये कि वे निर्माण जलस्रोतों पर अतिक्रमण नहीं करते।

जलस्रोतों पर हुए अतिक्रमणों को चिन्हित करने और उन्हें हटाने के लिये जिला और राज्य स्तर पर एक समिति गठित करने का भी सुझाव दिया गया है। इस समिति के अध्यक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शैलेन्द्र सक्सेना होंगे। सभी निजी मकानों, निजी कॉलोनाइजरों और ऊँची इमारतों में “वाटर हार्वेस्टिंग” को अनिवार्य करने का भी निर्देश दिया गया है।

भविष्य की चिंता जाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि “सन् 2050 की सम्भावित 180 करोड़ से अधिक की जनसंख्या को देखते हुए उस वक्त प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1000 क्यूबिक मीटर हो जायेगी जो कि 2001 में प्रति व्यक्ति 1800 क्यूबिक मीटर थी। भारत इस समय उपयोग हेतु तथा पेयजल की कमीं महसूस कर रहा है, कहीं सन् 2050 तक शायद पानी एक “दुर्लभ” वस्तु न बन जाये। जस्टिस सिंह ने लखनऊ विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि शहर की कठौता झील और उससे लगने वाले छोटे-बड़े तालाबों की जिस भूमि का आबंटन कर दिया गया है उसे रद्द करें और सभी आबंटितों को अन्यत्र प्लॉट उपलब्ध करवायें ताकि यह मुख्य जलस्रोत बचाया जा सके।

यह सभी निर्णय लखनऊ के निवासी राजेन्द्र द्वारा दायर याचिका पर दिये गये।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश  भर के तालाबों को अतिक्रमण से मुक्त कराकर बहाल करने को लेकर कड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में 1951-52 के राजस्व अभिलेखों में दर्ज तालाबों से अतिक्रमण हटाकर उन पर दिए गए पट्टे समाप्त किए जाएं और तालाबों को पूर्व की स्थिति में बहाल किया जाए।

कोर्ट ने मुख्य सचिव को राजस्व परिषद के चेयरमैन के परमर्श से एक माॅनिटरिंग कमेटी गठित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि मुख्य सचिव प्रदेश के हर जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) को आदेश दें कि वह तालाबों की एक सूची तैयार करें और उन पर हुए अतिक्रमण का भी खाका तैयार करें तथा तालाबों से अतिक्रमण हटाकर बहाली रिपोर्ट पेश करें। सपोर्ट इंडिया सोसाइटी आगरा की जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ ने सभी जिलाधिकारियों को तालाबों से अतिक्रमण हटा कर पुनर्बहाली का आदेश दिया है। कार्रवाई रिपोर्ट मुख्य सचिव द्वारा गठित माॅनिटरिंगकमेटी को हर छह माह में देनी होगी। कोर्ट ने कमेटी को भी तीन या चार माह में अवश्य बैठक करने तथा तालाबों की बहाली की रिपोर्ट पर विचार करने का आदेश दिया है। माॅनिटरिंग कमेटी में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रामसूरत राम मौर्या को भी आमंत्रित करने का निर्देश दिया है।

नाराजगीः अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों के पालन में घोर लापरवाही बरती, करें कार्रवाई

कोर्ट ने कहा कि राज्य के अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के आदेशों के पालन में घोर लापरवाही बरती है। अब यदि लापरवाही बरती जाती है, तो उनके खिलाफ संबंधित नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 18 साल बीत जाने के बाद भी उनका पालन नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने जिलाधिकारी आगरा को तालाब को बहाल कर अपनी रिपोर्ट तीन माह के भीतर महानिबंधक के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है। आगरा के राजपुर गांव के प्लाट संख्या 253 व 254 स्थित तालाब को लेकर यह जनहित याचिका दाखिल की गई थी। कोर्ट ने कहा है कि किसी तालाब पर पट्टे दिए गए हैं तो जिलाधिकारी कानूनी कार्रवाई करें और अवैध कब्जे हटा कर उसे पुनर्बहाल किया जाए।

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