सिविल सेवा में ब्राह्मण का प्रतिशत - sivil seva mein braahman ka pratishat

1. मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी भी हो सकते हैं।

2. ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

3. श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।

4. अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।

5. भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।

6. ऋषिकल्प : जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

7. ऋषि : ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।

8. मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।

उपरोक्त में से अधिकतर 'मात्र'नामक ब्राह्मणों की संख्‍या ही अधिक है।

सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था। फिर प्रत्येक वेद को समझने के लिए ग्रन्थ लिखे गए उन्हें भी ब्रह्मण साहित्य कहा गया। ब्राह्मण का तब किसी जाति या समाज से नहीं था। 

समाज बनने के बाद अब देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है जैसे:- सरयूपारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया, मैथिल, मराठी, बंगाली, भार्गव, कश्मीरी, सनाढ्य, गौड़, महा-बामन और भी बहुत कुछ। इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल ) भी प्रचलित है। कैसे हुई इन उपनामों की उत्पत्ति जानते हैं उनमें से कुछ के बारे में।

*एक वेद को पढ़ने  वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया। 

*दो वेद पढ़ने वाले को द्विवेदी कहा गया, जो कालांतर में दुबे हो गया। 

*तीन वेद को पढ़ने वाले को त्रिवेदी कहा गया जिसे त्रिपाठी भी कहने लगे, जो कालांतर में तिवारी हो गया।

*चार वेदों को पढ़ने वाले चतुर्वेदी कहलाए, जो कालांतर में चौबे हो गए। 

*शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले शुक्ल या शुक्ला कहलाए।  

*चारो वेदों, पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया, जो आगे चलकर पाण्डेय, पांडे, पंडिया, पाध्याय हो गए। ये पाध्याय कालांतर में उपाध्याय हुआ।

*शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए।

*इनके अलावा प्रसिद्द ऋषियों के वंशजो ने अपने  ऋषिकुल या गोत्र के नाम को ही उपनाम की तरह अपना लिया, जैसे :- भगवन परसुराम भी भृगु कुल के थे। भृगु कुल के वंशज भार्गव कहलाए, इसी तरह गौतम, अग्निहोत्री, गर्ग, भरद्वाज आदि।

*बहुत से ब्राह्मणों को अनेक शासकों ने भी कई  तरह की उपाधियां दी, जिसे बाद में उनके वंशजों ने उपनाम की तरह उपयोग किया। इस तरह से ब्राह्मणों के उपनाम प्रचलन में आए। जैसे, राव, रावल, महारावल, कानूनगो, मांडलिक, जमींदार, चौधरी, पटवारी, देशमुख, चीटनीस, प्रधान, 

*बनर्जी, मुखर्जी, जोशीजी, शर्माजी, भट्टजी, विश्वकर्माजी, मैथलीजी, झा, धर, श्रीनिवास, मिश्रा, मेंदोला, आपटे आदि हजारों सरनेम है जिनका अपना अलग इतिहास है।

भारत की प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा में इस साल आज़ादी के बाद से सबसे ज़्यादा मुसलमान उम्मीदवार चुने गए हैं.

इस साल परीक्षा पास करने वाले कुल 1099 उम्मीदवारों में से क़रीब 50 मुसलमान हैं.

ये संख्या आज़ादी के बाद से सबसे ज़्यादा है. बीते साल सिविल सेवा परीक्षा में कुल 1078 उम्मीदवारों का चयन हुआ था जिनमें से 37 मुसलमान थे.

इस साल शीर्ष 100 उम्मीदवारों में से से 10 मुसलमान हैं जबकि बीते साल सिर्फ़ एक मुसलमान उम्मीदवार ही शीर्ष 100 में जगह बना पाया था.

इस साल कुल चयनित उम्मीदवारों में 4.54 प्रतिशत मुसलमान हैं. ये आंकड़ा आज़ादी के बाद से सबसे ज़्यादा है.

यही नहीं जम्मू-कश्मीर से भी इस बार कुल 14 लोग सिविल सेवा के लिए चुने गए हैं जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है.

इमेज स्रोत, Bilal Mohiuddin Bhat

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कश्मीर के बिलाल मोहिउद्दीन भट्ट इस साल दसवें नंबर पर आए हैं.

कश्मीर के बिलाल मोहिउद्दीन दसवें नंबर पर आए हैं.

2006 में भारतीय मुसलमानों के हालात पर आई जस्टिस सच्चर समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि सिविल सेवा में मुसलमान सिर्फ़ तीन प्रतिशत हैं जबकि पुलिस सेवा में ये संख्या चार प्रतिशत है.

इस साल की परीक्षा में मेवात के रहने वाले 28 वर्षीय अब्दुल जब्बार भी चयनित हुए हैं जो 822वें नंबर पर आए हैं. वे इस क्षेत्र से पहले मुसलमान सिविल सर्वेंट हैं.

पिछले कुछ सालों में सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले मुसलमानों की संख्या लगातार बढ़ी है -

परीक्षा वर्ष कुल चयन मुसलमान उम्मीदवार

इमेज स्रोत, Afroz Alam Sahil

2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में मुसलमानों की कुल आबादी 14.23 प्रतिशत है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिशत 8.57 है जबकि प्राइवेट नौकरियों का आंकड़ा नहीं रखा जाता है.

ऐसे में भले ही इस साल सिविल सेवा में मुसलमानों की कामयाबी को उम्मीद की किरण के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन बराबरी तक पहुंचने में अभी मुसलमानों को लंबा फ़ासला तय करना है.

आज भी मुसलमानों की बड़ी आबादी ग़रीबी में रहती है और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मुसलमानों की पहुंच से दूर हैं.

भारत में इस समय दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में प्रतिष्ठित सिविल सेवा में मुसलमानों का रिकॉर्ड प्रतिशत से पास होना लगातार हाशिए पर जाते दिख रहे इस समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण जैसी बात नज़र आती है.