सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का विश्व मार्क क्यों कहा गया है? - saradaar vallabh bhaee patel ko bhaarat ka vishv maark kyon kaha gaya hai?

जब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सैन्य कार्रवाई के ज़रिए हैदराबाद को भारत में मिलाया-विवेचना

  • रेहान फ़ज़ल
  • बीबीसी संवाददाता

31 अक्टूबर 2020

अपडेटेड 13 सितंबर 2021

सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का विश्व मार्क क्यों कहा गया है? - saradaar vallabh bhaee patel ko bhaarat ka vishv maark kyon kaha gaya hai?

इमेज स्रोत, NAWAB NAJAF ALI KHAN / BBC

इमेज कैप्शन,

हैदराबाद राज्य के सातवें शासक मीर उस्मान अली ने 37 वर्षों तक शासन किया

हमेशा से ही 82,698 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की हैदराबाद रियासत की गिनती भारत के प्रमुख राजघरानों में किया जाता रहा था.

इसका क्षेत्रफल ब्रिटेन और स्कॉटलैंड के क्षेत्र से भी अधिक था और आबादी (एक करोड़ 60 लाख) यूरोप के कई देशों से अधिक थी. शायद इसके विशेष दर्जे की वजह से ही उसे आज़ादी के बाद भारत में शामिल होने या न होने के लिए तीन महीने का अतिरिक्त समय दिया गया था.

उस समय भारत के गृह सचिव रहे एच वीआर आयंगर ने एक इंटरव्यू में कहा था, ''सरदार पटेल का शुरू से ही मानना था कि भारत के दिल में एक ऐसे क्षेत्र हैदराबाद का होना, जिसकी निष्ठा देश की सीमाओं के बाहर हो. भारत की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा ख़तरा था.'

नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी में रखे इस इंटरव्यू में आयंगर यहाँ तक कहते हैं कि पटेल की दिली इच्छा थी कि निज़ाम का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए. हालाँकि नेहरू और माउंटबेटेन की वजह से पटेल अपनी इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाए.

नेहरू पटेल को हमेशा याद दिलाते रहे कि हैदराबाद में बड़ी संख्या में मुस्लिम अल्पसंख्यक रहते हैं. निज़ाम से पिंड छुड़ाने के बाद होने वाले असर को संभाल पाना भारत के लिए मुश्किल होगा.

माउंटबेटन को ये ख़ुशफ़हमी थी कि वो नेहरू की मदद से निज़ाम को संभाल सकते हैं लेकिन पटेल ने इसका ये कहते हुए विरोध किया था कि 'आपका मुकाबला एक लोमड़ी से है. मुझे निज़ाम पर कतई विश्वास नहीं है. मेरा मानना है कि आपको निज़ाम से धोखा ही मिलेगा.'

पटेल की नज़र में उस समय का हैदराबाद 'भारत के पेट में कैंसर' की तरह था जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था.

सेना भेजने पर पटेल और नेहरू में मतभेद

शुरू में नेहरू हैदराबाद में सेना भेजने के पक्ष में नहीं थे. पटेल के जीवनीकार राजमोहन गांधी लिखते हैं, ''नेहरू का मानना था कि हैदराबाद में सेना भेजने से कश्मीर में भारतीय सैनिक ऑपरेशन को नुक्सान पहुंचेगा.''

एजी नूरानी अपनी किताब 'द डिसट्रक्शन ऑफ़ हैदराबाद' में लिखते हैं, ''हैदराबाद के मुद्दे पर कैबिनेट बैठक बुलाई गई थी जिसमें नेहरू और पटेल दोनों मौजूद थे. नेहरू सैध्दांतिक रूप से सैन्य कार्रवाई के ख़िलाफ़ नहीं थे, लेकिन वो इसे अंतिम विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते थे. वहीं, पटेल के लिए सैनिक कार्रवाई पहला विकल्प था. बातचीत के लिए उनके पास धैर्य नहीं था.''

''नेहरू निज़ाम की नीतियों के ख़िलाफ़ ज़रूर थे लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उनका उनसे कोई विरोध नहीं था. वो हैदराबाद की संस्कृति के प्रशंसक थे जिसका कि उनकी मित्र सरोजनी नायडू प्रतिनिधित्व करती थीं. लेकिन पटेल को व्यक्तिगत और वैचारिक दोनों तरह निज़ाम से नफ़रत थी.''

इस बैठक का एक और विवरण पटेल के करीबी और उस समय रिफ़ॉर्म्स कमिश्नर वीपी मेनन ने एच वी हॉडसन को 1964 में दिए गए इंटरव्यू में किया है.

मेनन के मुताबिक़, ''नेहरू ने बैठक की शुरुआत में ही मुझपर हमला बोला. असल में वो मेरे बहाने सरदार पटेल को निशाना बना रहे थे. पटेल थोड़ी देर तो चुप रहे लेकिन जब नेहरू ज़्यादा कटु हो गए तो वो बैठक से वॉक आउट कर गए. मैं भी उनके पीछे-पीछे बाहर आया क्योंकि मेरे मंत्री की अनुपस्थिति में वहाँ मेरे रहने का कोई तुक नहीं था.''

''इसके बाद राजा जी ने मुझसे संपर्क करके सरदार को मनाने के लिए कहा. फिर मैं और राजा जी सरदार पटेल के पास गए. वो बिस्तर पर लेटे हुए थे. उनका ब्लड प्रेशर बहुत हाई था. सरदार गुस्से में चिल्लाए-नेहरू अपनेआप को समझते क्या हैं? आज़ादी की लड़ाई दूसरे लोगों ने भी लड़ी है.''

सरदार का इरादा था कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुला कर नेहरू को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया जाए. लेकिन राजा जी ने सरदार को डिफ़ेंस कमेटी की बैठक में शामिल होने के लिए मना लिया.

इस बैठक में नेहरू शांत रहे और हैदराबाद पर हमला करने की योजना को मंज़ूरी मिल गई.

इमेज स्रोत, PRAKASH SINGH

इमेज कैप्शन,

हैदराबाद अपने हीरों की खानों के लिए भी प्रसिद्ध था

दुनिया के सबसे अमीर शख़्स-निज़ाम

कई सदियों से हैदराबाद की हीरे की खानों से दुनिया के एक से एक मशहूर हीरे निकलते आए थे. उनमें से एक कोहिनूर भी था. निज़ाम के पास दुनिया का सबसे बड़ा 185 कैरेट का जैकब हीरा था, जिसे वो पेपर वेट की तरह इस्तेमाल करते थे.

निज़ाम को 'हिज़ एक्ज़ाल्टेड हाईनेस' कहा जाता था और वो जहाँ भी जाते थे उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती थी.

टाइम पत्रिका ने 1937 में उन्हें दुनिया का सबसे अमीर शख़्स घोषित किया था लेकिन तब भी वो एक कंगाल की तरह फटी शेरवानी और पाजामा पहनते थे.

निज़ाम के सबसे करीबी थे सैयद कासिम रज़वी. उनका अपना राजनीतिक दल था मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लीमीन.

उन्होंने ही जूनागढ़ विवाद के बाद सरदार पटेल की चुटकी लेते हुए कहा था, ''सरदार से छोटा जूनागढ़ तो सँभल नहीं रहा, वो हैदराबाद के बारे में इतना गरज क्यों रहे हैं ?''

जब जूनागढ़ ने आत्मसमर्पण कर दिया तो सरदार पटेल ने रज़वी को जवाब देते हुए कहा था, 'अगर हैदराबाद ने दीवार पर लिखी इबारत नहीं पढ़ी तो उसका भी वही हश्र होगा जो जूनागढ़ का हुआ है.'

जब निज़ाम के प्रतिनिधि के तौर पर रज़वी सरदार पटेल से मिलने दिल्ली आए तो पटेल ने उनसे स्पष्ट कर दिया कि निज़ाम के पास सिर्फ़ दो विकल्प हैं. नंबर 1 भारत में विलय या फिर जनमत संग्रह. उस पर रज़वी की टिप्पणी थी कि 'हैदराबाद में जनमत संग्रह तो सिर्फ़ तलवार के बल पर ही कराया जा सकता है.'

पाकिस्तान को अपने साथ करने की कोशिश

सत्ता हस्तांतरण के दो दिन बाद यानी 17 अगस्त, 1947 को लंदन में भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन को पता चल गया था कि निज़ाम और चेकोस्लवाकिया को बीच एक गुप्त सैन्य समझौते की बात चल रही है और हैदराबाद के युद्ध मंत्री अली यावर जंग 30 लाख पाउंड की राइफ़लों, लाइट मशीन गन, रिवॉल्वरों और दूसरे उपकरणों की ख़रीदारी करने वाले हैं जिनका इस्तेमाल पुलिस नहीं बल्कि सेना के लिए किया जाएगा.

यही नहीं निज़ाम ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये का ऋण देने और कराची में एक व्यापार एजेंट नियुक्त करने की घोषणा भी कर दी.

पटेल को इस बात का अंदाज़ा था कि हैदराबाद पूरी तरह से पाकिस्तान के कहने में था.

यहाँ तक कि पाकिस्तान पुर्तगाल के साथ हैदराबाद का समझौता कराने की फ़िराक में था जिसके तहत हैदराबाद गोवा में बंदरगाह बनवाएगा और ज़रूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल कर सकेगा.

इंदर मल्होत्रा ने 31 मई को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपने लेख 'द हॉरसेज़ दैट लेड ऑप्रेशन पोलो' में लिखा था, ''निज़ाम ने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की भी इच्छा प्रकट की थी जिसे एटली सरकार ने ठुकरा दिया था. निज़ाम ने अमरीकी राष्ट्रपति से भी हस्तक्षेप करने की अपील की थी लेकिन उन्होंने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया था.''

11 सितंबर, 1948 को पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना का निधन हो गया. इसके साथ निज़ाम हैदराबाद का सबसे बड़ा समर्थक इस दुनिया से जाता रहा.

22 मई, 1948 को जब रज़ाकारों ने गंगापुर स्टेशन पर ट्रेन में सफ़र कर रहे हिंदुओं पर हमला बोला तो पूरे भारत में सरकार की आलोचना होने लगी कि वो निज़ाम के प्रति नर्म रुख़ अपना रही है.

भारतीय सेना के पूर्व उपसेना प्रमुख जनरल एसके सिन्हा अपनी आत्मकथा 'स्ट्रेट फ़्रॉम द हार्ट में' लिखते हैं, 'मैं जनरल करियप्पा के साथ कश्मीर में था कि उन्हें संदेश मिला कि सरदार पटेल उनसे तुरंत मिलना चाहते हैं. दिल्ली पहुंचने पर हम पालम हवाईअड्डे से सीधे पटेल के घर गए. मैं बरामदे में रहा जबकि करियप्पा उनसे मिलने अंदर गए और पाँच मिनट में बाहर आ गए.''

''बाद में उन्होंने मुझे बताया कि सरदार ने उनसे सीधा सवाल पूछा कि अगर हैदराबाद के मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो क्या वो बिना किसी अतिरिक्त मदद के हालात से निपट पाएंगे ?

करियप्पा ने एक शब्द का जवाब दिया, 'हाँ' और इसके बाद बैठक ख़त्म हो गई.'

इसके बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद के ख़िलाफ़ सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया. उन्होंने दक्षिणी कमान के प्रमुख राजेंद्र सिंह जी जडेजा को बुलवा भेजा और पूछा कि इस कार्रवाई के लिए आपको कितने दिन चाहिए?

राजेंद्रजी ने जवाब दिया ''सर, मेरे लिए एक हफ़्ता पर्याप्त होगा. लेकिन मानसून के दौरान ये एक्शन नहीं हो सकता. हमें मानसून के गुज़र जाने का इंतज़ार करना होगा.''

भारत के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल रॉबर्ट बूचर इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ थे. उनका कहना था कि पाकिस्तान की सेना इसके जवाब में अहमदाबाद ये बंबई में बम गिरा सकती है. लेकिन पटेल ने उनकी सलाह नहीं मानी.

इंदर मल्होत्रा अपने लेख में लिखते हैं, ''जैसे ही भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली ने अपनी डिफ़ेस काउंसिल की बैठक बुलाई और सवाल किया कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई एक्शन ले सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टेन एलवर्दी ने जो बाद में एयर चीफ़ मार्शल और ब्रिटेन के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेस स्टाफ़ बने कहा-नहीं.''

लियाकत ने फिर ज़ोर दे कर पूछा क्या हम दिल्ली पर बम नहीं गिरा सकते हैं ? एलवर्दी का जवाब था 'हाँ, ये संभव तो है लेकिन पाकिस्तान के पास कुल चार बमवर्षक हैं जिनमें से सिर्फ़ दो काम कर रहे हैं. इनमें से शायद एक दिल्ली पहुंच कर बम गिरा भी दे, लेकिन इनमें से कोई वापस नहीं आ पाएगा.'

इमेज कैप्शन,

हैदराबाद में भारतीय सेना

निज़ाम की सेना ने किया आत्मसमर्पण

13 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना मेजर जनरल जेएन चौधरी के नेतृत्व में हैदराबाद में घुसी. एचवी आर आयंगर बताते हैं कि 13 सितंबर को ही नेहरू ने सरदार पटेल को फ़ोन कर जगा दिया.

नेहरू ने कहा, ''जनरल बूचर ने मुझे फ़ोन कर इस हमले को रुकवाने का अनुरोध किया है. मुझे क्या करना चाहिए?''

पटेल का जवाब था, ''आप सोने जाइए. मैं भी यही करने जा रहा हूँ.'

भारतीय सेना की इस कार्रवाई को 'ऑपरेशन पोलो' का नाम दिया गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में विश्व में सबसे ज़्यादा 17 पोलो के मैदान थे.

108 घंटों तक चली इस कार्रवाई में 1,373 रज़ाकार मारे गए. हैदराबाद स्टेट के 807 जवानों की भी मौत हुई. भारतीय सेना ने अपने 66 जवान खोए जबकि 97 जवान घायल हुए.

इमेज स्रोत, NAWAB NAJAF ALI KHAN/BBC

इमेज कैप्शन,

हैदराबाद के पतन के बाद सरदार पटेल और मीर उस्मान अली ख़ान

निज़ाम ने सरदार का हैदराबाद में किया स्वागत

इस बीच हैदराबाद में भारत सरकार के एजेंट जनरल के एम मुंशी ने पटेल को एक गुप्त टेलीग्राम भेजा, ''निज़ाम ने अपना दूत भेत कर भारतीय सेना के सामने अपने सैनिकों को आत्मसमर्पण की पेशकश की है. मैं रेडियो संदेश में इस पेशकश का ऐलान करने जा रहा हूँ.''

सरदार पटेल को मुंशी की ये बात पसंद नहीं आई. उन्होंने आदेश दिया कि मुंशी से संपर्क कर उन्हें ये संदेश देने से रोका जाए. लेकिन जब तक मुंशी से संपर्क हो पाता वो रेडियो पर हैदराबाद की जनता को संबोधित कर चुके थे.

अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि अब भारतीय सैन्य कमांडरों की बैठक निज़ाम के बेटे और क्राउन प्रिंस से होनी चाहिए. पटेल बहुत नाराज़ हुए.

उन्होंने कहा, ''मुझे नहीं पता कि मुंशी ने अपने भाषण में ये बात क्यों कह ? ये चाय की पार्टी नहीं, आत्मसमर्पण है. मैं चाहता हूँ कि हैदराबाद की सेना भारतीय सेना के सामने औपचारिक रूप से अपने हथियार डाले.''

18 सितंबर को जब मुंशी ने सरदार को फ़ोन किया तो उन्होंने फ़ोन पर ही उन्हें तगड़ी डाँट पिलाई.

फ़रवरी 1949 को जब सरदार पटेल का विमान हैदराबाद के बेगमपट हवाईअड्डे पर उतरा तो निज़ाम हैदराबाद वहाँ मौजूद थे. इससे पहले जब सरदार ने अपने विमान की खिड़की से निज़ाम को देखा तो उन्होंने अपने सचिव वी शंकर से कहा, 'सो हिज़ एक्ज़ॉस्टेड हाईनेस इज़ हियर.'

लेकिन जब निज़ाम ने उनके सामने आकर अपना सिर झुका कर अपने हाथ जोड़े तो उन्होंने मुस्कराकर उनके अभिवादन का जवाब दिया.

(ये लेख मूल रूप से 2020 में प्रकाशित हुआ था)

सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का विश्व मार्क क्यों कहा जाता है?

सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क क्यों कहा जाता है ? Answer:उत्तर- सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने कठिन परिश्रम एवं सूझबूझ के साथ भौगोलिक, राजनीतिक तथा आर्थिक से भारत के एकीकरण को पूर्ण कर दिखाया यही कार्य जर्मनी में बिस्मार्क ने किया था इसलिये सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क कहा जाता है।

किसे भारत का विश्व मार्क कहा जाता है और क्यों?

भारत का बिस्मार्क उपनाम से सरदार वल्लभभाई पटेल को जाना जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल वो महान राजनेता हैं जो भारत के प्रथम गृह मंत्री रहे तथा भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री का पदभार जिन्होंने संभाला था।

प्र 13 किसे भारत का बिस्मार्क कहा जाता है और क्यों अथवा?

वल्लभभाई पटेल को भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है। महात्मा गांधी ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी। उन्हें भारत के बिस्मार्क के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने भारत को एकजुट करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी।

वल्लभ भाई पटेल ने क्या नारा दिया था?

"यहाँ तक कि यदि हम हज़ारों की दौलत गवां दें, और हमारा जीवन बलिदान हो जाए, हमें मुस्कुराते रहना चाहिए और ईश्वर एवं सत्य में विश्वास रखकर प्रसन्न रहना चाहिए।" "मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए। लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा।