रसखान के सवैया में कौन सी भाषा प्रयुक्त हुई है? - rasakhaan ke savaiya mein kaun see bhaasha prayukt huee hai?

रसखान के सवैया में कौन सी भाषा प्रयुक्त हुई है? - rasakhaan ke savaiya mein kaun see bhaasha prayukt huee hai?
रसखान के सवैये कक्षा 9 /रसखान के सवैये की व्याख्या / Raskhan ke savyye class 9/ NCERT Solutions /क्षितिज भाग 1 हिन्दी 

रसखान के सवैये

 (1)

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “क्षितिज (भाग-1)” में संकलित सवैये से लिया गया है। इस के रचयिता प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि रसखान जी हैं। इस सवैये में कवि ने कृष्ण और ब्रज धाम के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए अपनी अभिलाषा व्यक्त की है कि यदि अगले जन्म में वह इस धरती पर जन्म ले तो उसे ब्रज क्षेत्र में ही स्थान प्राप्त हो ।

व्याख्या :-यहाँ पर रसखान ने ब्रज के प्रति अपनी श्रद्धा का वर्णन किया है। चाहे मनुष्य का शरीर हो या पशु का; हर हाल में ब्रज में ही निवास करने की उनकी इच्छा है। यदि मनुष्य हों तो गोकुल के ग्वालों के रूप में बसना चाहिए। यदि पशु हों तो नंद की गायों के साथ चरना चाहिए। यदि पत्थर हों तो उस गोवर्धन पहाड़ पर होना चाहिए जिसे कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। यदि पक्षी हों तो उन्हं यमुना नदी के किनारे कदम्ब की डाल पर बसेरा करना पसंद हैं।

 (2)

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “क्षितिज (भाग-1)” में संकलित सवैये से लिया गया है। इस के रचयिता प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि रसखान जी हैं। इस सवैये में कवि ने कृष्ण और ब्रजभूमि के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हुए श्री कृष्ण और ब्रज भूमि से संबंधित वस्तुओं के ऊपर तीनों लोकों, आठों सिद्धियां एवं नव निधियों को न्योछावर करने की बात कही है ।

व्याख्या:- ग्वालों की लाठी और कम्बल के लिए तीनों लोकों का राज भी त्यागना पड़े तो कवि उसके लिए तैयार हैं। नंद की गाय चराने का मौका मिल जाए तो आठों सिद्धि और नवों निधि के सुख वे भुला देंगे। अपनी आँखों से ब्रज के वन उपवन और तालाब को जीवन भर निहारते रहना चाहते हैं। यहाँ तक कि ब्रज की कांटेदार झाड़ियों के लिए भी वे सौ महलों को भी निछावर कर देंगे।

 (3)

मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।


ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी॥

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “क्षितिज (भाग-1)” में संकलित सवैये से लिया गया है। इस के रचयिता प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि रसखान जी हैं। इस सवैये में कवि ने गोपियों के श्री कृष्ण के प्रति प्रेम परंतु उनकी मुरली के प्रति उनकी "सौतिया डाह" की भावनाओं को अभिव्यक्त किया है ।

व्याख्या:- यहाँ पर गोपियों की कृष्ण का प्रेम पाने की इच्छा और कोशिश का वर्णन किया गया है। कृष्ण गोपियों को इतने रास आते हैं कि उनके लिए वे सारे स्वांग करने को तैयार हैं। वे मोर मुकुट पहनकर, गले में माला डालकर, पीले वस्त्र धारण कर और हाथ में लाठी लेकर पूरे दिन गायों और ग्वालों के साथ घूमने को तैयार हैं। लेकिन एक शर्त है और वह यह है कि मुरलीधर के होठों से लगी बांसुरी को वे अपने होठों से लगाने को तैयार नहीं हैं।

 (4)

काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।

मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै॥
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै॥

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक “क्षितिज (भाग-1)” में संकलित सवैये से लिया गया है। इस के रचयिता प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि रसखान जी हैं। इस सवैये में कवि ने ने श्री कृष्ण की बांसुरी की धुन, उसकी मोहनी तान एवं उनकी मनोहारी मुस्कान की प्रभावशीलता के अनंतर गोपियों की व्यवस्था का मार्मिक चित्रण किया है ।

व्याख्या :- यहाँ पर गोपियाँ कृष्ण को रिझाने की कोशिश कर रही हैं। वे कहती हैं कि जब कृष्ण की मुरली की मधुर धुन बजेगी तो उसमें मगन होकर हो सकता है गायें भी अटारी पर चढ़कर गाने लगें, लेकिन गोपियाँ अपने कानों पर उंगली रख लेंगी ताकि उन्हें वो मधुर संगीत ना सुनाई पड़े। लेकिन गोपियों को ये भी डर है और ब्रजवासी भी कह रहे हैं कि जब कृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी टेर सुनकर गोपियों के मुख की मुसकान सम्हाले नहीं सम्हलेगी। उस मुसकान से पता चल जाएगा कि वे कृष्ण के प्रेम में कितनी डूबी हुई हैं।

  रसखान के सवैये पाठ के अभ्यास के प्रश्न :-

प्रश्न :- 1: ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?

उत्तर: कवि ने ब्रजभूमि के प्रति अपने प्रेम को कई रूपों में अभिव्यक्त किया है। कवि की इच्छा है कि वे चाहे जिस रूप में जन्म लें, हर रूप में ब्रजभूमि में ही वाह करें। यदि मनुष्य हों तो गोकुल के ग्वालों के रूप में बसना चाहिए। यदि पशु हों तो नंद की गायों के साथ चरना चाहिए। यदि पत्थर हों तो उस गोवर्धन पहाड़ पर होना चाहिए जिसे कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। यदि पक्षी हों तो उन्हें यमुना नदी के किनार कदम्ब की डाल पर बसेरा करना पसंद हैं।

प्रश्न :- 2: कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?

उत्तर: कवि का कृष्ण के प्रति जो प्रेम है वह सभी सीमाओं से परे है। कवि को ब्रज की एक एक वस्तु में कृष्ण ही दिखाई देते हैं। इसलिए कवि ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारते रहना चाहता है।

प्रश्न :- 3: एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार हैं?

उत्तर: कवि हर वह काम करने को तैयार है जिससे वह कृष्ण के सान्निध्य में रह सके। इसलिए वह एक लकुटी और कम्बल पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है।

प्रश्न :- 4: सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।

उत्तर: सखी ने गोपी से कृष्ण का रूप धारण करने का आग्रह किया था। वे चाहती हैं कि गोपी मोर मुकुट पहनकर, गले में माला डालकर, पीले वस्त्र धारण कर और हाथ में लाठी लेकर पूरे दिन गायों और ग्वालों के साथ घूमने को तैयार हो जाये। इससे सखियों को हर समय कृष्ण के रूप के दर्शन होते रहेंगे।

प्रश्न :- 5: आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?

उत्तर: कवि कृष्ण से इतना प्रेम करता है कि अपना पूरा जीवन उनके समीप बिताना चाहता है। इसलिए वह जिस रूप में संभव हो उस रूप में ब्रजभूमि में रहना चाहता है। इसलिए कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न :- 6: चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?

उत्तर: कृष्ण की मुरली की धुन इतनी मोहक होती है कि उसे सुनने के बाद कोई भी अपना आपा खो देता है। गोपियाँ वह हर काम कर सकती हैं जिससे उनपर कृष्ण के पड़ने वाले प्रभाव को छुपा सकें। लेकिन उनका सारा प्रयास कृष्ण की मुरली की तान पर व्यर्थ हो जाता है। उसके बाद उनके तन मन की खुशी को छुपाना असंभव हो जाता है। इसलिए गोपियाँ अपने आप को विवश पाती हैं।

रसखान के सवैये पाठ का भाव सौंदर्य:

प्रश्न :- 7: भाव स्पष्ट कीजिए:

(क)  कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।

उत्तर: कृष्ण के प्रेम के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यहाँ तक कि ब्रज की कांटेदार झाड़ियों के लिए भी वे सौ महलों को भी निछावर कर देंगे।

(ख)माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।

उत्तर: लेकिन गोपियों को ये भी डर है और ब्रजवासी भी कह रहे हैं कि जब कृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी टेर सुनकर गोपियों के मुख की मुसकान सम्हाले नहीं सम्हलेगी। उस मुसकान से पता चल जाएगा कि वे कृष्ण के प्रेम में कितनी डूबी हुई हैं।

प्रश्न :- 8: ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन सा अलंकार है?

उत्तर: यहाँ पर ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है। इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

रसखान के सवैये पाठ का काव्य सौंदर्य

प्रश्न :- 9:

काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए: या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।

उत्तर: इस वाक्य में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग बड़ी दक्षता के साथ किया है। इस छोटी सी पंक्ति से कवि ने बहुत बड़ी बात व्यक्त की है। गोपियाँ कृष्ण का रूप धरने को तैयार हैं लेकिन उनकी मुरली को अपने होठों से लगाने को तैयार नहीं हैं। ऐसा इसलिए है कि वह मुरली गोपियों को किसी सौतन की तरह लगती है जो सदैव कृष्ण के अधरों से लगी रहती है।

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रसखान के सवैये की भाषा कौन सी है?

रसखान ने ब्रज भाषा में काव्य-रचना की। इनकी भाषा मधुर एवं सरस है। उसका स्वाभाविक प्रवाह ही इनके काव्य को आकर्षक बना देता है। इन्होंने कहीं-कहीं पर यमक तथा अनुप्रास आदि अलङ्कारों का प्रयोग किया है जिससे भाषा-सौन्दर्य के साथ भाव-सौन्दर्य की भी वृद्धि हुई है।

रसखान को काय भाषा क्या है?

रसखान की भाषा की विशेषता उसकी स्वाभाविकता है। उन्होंने ब्रजभाषा के साथ खिलवाड़ न कर उसके मधुर, सहज एवं स्वाभाविक रूप को अपनाया। साथ ही बोलचाल के शब्दों को साहित्यिक शब्दावली के निकट लाने का सफल प्रयास किया।

रसखान के सवैया में कौन सा रस है?

रस-शान्त एवं भक्ति। छन्द-सवैया। अलंकार-'कालिंदी-कुल कदंब की डारन' में अनुप्रास।

रसखान का दूसरा नाम क्या है?

रसखान अर्थात् रस के खान, परंतु उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था और उन्होंने अपना नाम केवल इस कारण रखा ताकि वे इसका प्रयोग अपनी रचनाओं पर कर सकें।