रामायण व महाभारत होने के मुख्य कारण क्या थे? - raamaayan va mahaabhaarat hone ke mukhy kaaran kya the?

रामायण व महाभारत होने के मुख्य कारण क्या थे? - raamaayan va mahaabhaarat hone ke mukhy kaaran kya the?
रामायण और महाभारत काल

रामायण और महाभारत काल

1. रामायण:


रामायण किसने लिखी

रामायण ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई थी। और यह हिन्दू धर्म का सबसे प्रचलित महाकाव्य है। गोस्वामी तुलसीदास की रामायण भी सबने बहुत पसंद की गई हे।

रामायण व महाभारत होने के मुख्य कारण क्या थे? - raamaayan va mahaabhaarat hone ke mukhy kaaran kya the?

रामायण की कहानी भक्ति, कर्तव्य और संबंधो की एक सुंदर कथा है। श्री राम (भगवान विष्णु के अवतार) और देवी सीता (देवी लक्ष्मी का अवतार) इस कहानी के आदर्श है।

राम एक वीर,मर्यादापुरुषोत्तम ,कर्त्वयनिष्ठ और शक्तिशाली योद्धा थे। और माता सीता पति धर्म को पालन करने वाली आदर्श पत्नी के रूप में बताया गया हैं।

अयोध्या के राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम को अपनी गद्दी सौंपने की कामना की थी। लेकिन दशरथ द्वारा अपनी सौतेली मां कैकेयी को दिए गए वचन के कारण उन्हें अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष तक वन जाना पड़ा।

वहां वे साधु की तरह वन में भटक कर जीवन व्यतीत करने लगे। एक बार राक्षस रावण द्वारा देवी सीता का अपहरण होता है, और फिर वीर हनुमानजी द्वारा सीता माता को खोजा जाता है।

फिर वानर राज सुग्रीव की सहायता से लंका पे चढ़ाई होती है। फिर धमसान युद्ध होता है। अंत में प्रभु श्री राम द्वारा रावण की मृत्यु होती है। आखिर कार धर्म युद्ध की विजय होती है।

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रामायण और महाभारत काल

2. महाभारत:

महाभारत के रचिता कौन है ?

महाभारत दुनिया का सबसे लंबा ग्रंथ है, इसमें 1,00,000 छंद शामिल हैं। और इसे ऋषि वेद व्यास ने लिखा था। महाभारत का अर्थ है ‘भरतों की महान कहानी’ जैसे दो शाही परिवारों, पांडवों और कौरवों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष की कहानी है।

राजा भरत (भारत देश का नाम इन्हीं के नाम से रखा गया था ) के दो बेटे थे पांडु और धृतराष्ट्र। पांडु के पांच पुत्र थे जो धर्म के पथ का पालन करने वाले थे , जबकि धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे, जो आम तौर पर बुरे थे ,वे सदैव अधर्म के मार्ग पे ही चलते रहे।

दोनों परिवारों के बीच सत्ता संघर्ष की इस कहानी में कैसे सत्ता के लोभ के चलते युद्ध, साज़िश, कपट और  माया जाल के बारे में बताया गया है।

परंतु पांडवो ने सदैव धर्म का ही साथ दिया ,जिससे भगवन श्री कृष्ण उनके साथ रहे और उनकी रक्षा की इसीलिए अंत में विजय सत्य और धर्म की ही हुई।

रामायण और महाभारत काल की यह कहानी से हमें यह सिख मिलती है की जीवन में कभी धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। क्यूंकि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो पर अंत में जित धर्म की ही होती है।

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महाभारत का महत्व 

रामायण व महाभारत होने के मुख्य कारण क्या थे? - raamaayan va mahaabhaarat hone ke mukhy kaaran kya the?

महाभारत का भारतीय संस्कृति में एक विशिष्ट स्थान है। भारतीय सभ्यता तथा हिन्दू धर्म का जैसा सर्वाङ्गीण चित्रण यहाँ प्राप्त होता है वैसा अन्यत्र नहीं है। महाकाव्य अपने विषय में स्वयं कहता है-यन्न भारते तन्न भारते' अर्थात् जो महाभारत में नहीं है वह भारतवर्ष में ही नहीं हो सकता। आजकल यह भारतीयों का धर्मशास्त्र, आचारशास्त्र और नीतिशास्त्र बन गया है।

सत्य और धर्म ही इस महाकाव्य के मुख्य उद्देश्य हैं। महाभारत हमें जो कुछ युधिष्ठिर ने किया वह सब करने के लिए और जो कुछ दुर्योधन ने किया उससे बचने के लिए प्रेरित करता है। आनन्दवर्धन कहते हैं कि- महाभारत का मुख्य उद्देश्य सांसारिक वस्तुओं की निरर्थकता सिद्ध कर धर्म, वैराग्य, शान्ति व मोक्ष प्राप्ति ही है। The History of the Pāndavas is only the argument. The case is the greatness of Lord. Revel in love for Him and value not the worthless things of the world." पाण्डव धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसके विपरीत दुर्योधन और उसके भाई अधर्म का महाकाव्य की कथा धर्म और अधर्म के मध्य होने वाले संघर्ष की कथा है। भगवान् कृष्ण स्वयं, भीष्म पितामह, नीतिविद् विदुर, कुलगुरु द्रोणाचार्य आदि सभी दुर्योधन को धर्म की महत्ता बतलाते हुए उसे अनुचित कार्य करने से रोकते हैं परन्तु भाग्य के चक्कर में पड़ा हुआ वह इस बात पर ध्यान नहीं देता और अन्त विनाश को प्राप्त होता है। महर्षि व्यास स्वयं इस काव्य के अन्त में कहते हैं–

ऊर्ध्वबाहुः विरौम्येष न च कश्चिच्छुणोति माम्।धर्मादर्थश्च कामश्च स धर्म: किन्न सेव्यते॥

धर्म का यही संदेश एक सूत्र के समान इस काव्य के भिन्न-भिन्न भागों को परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित करता है।

अध्यात्म, धर्म और नीति का जितना विशद विवेचन महाभारत में हुआ है। वैसा अन्यत्र प्राप्त नहीं होता। शान्ति और अनुशासन पर्व में भीष्म मृत्यु शय्या पर लेटे हुए युधिष्ठिर को राजधर्म, वर्ण धर्म, आश्रम धर्म, दान धर्म, आपद् धर्म, मोक्ष धर्म, मन्त्रियों के गुण, करनीति, कूटनीति, दण्डनीति इत्यादि के विषय में बहुत ही सुन्दर और स्पष्ट उपदेश देते हैं जो सार्वकालिक और सार्वभौमिक है। नीति का उपदेश देते हुए भीष्म कहते हैं–

यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्यस्तस्मिंस्तथा वर्तिततव्यं स धर्मः।मायाचारो मायया वर्तितव्यः साध्वाचारः साधुना प्रत्युपेयः।(उद्योगपर्व 37.7)

महाभारत का महत्त्व गीतोपदेश के कारण और भी अधिक हो जाता है। यह युद्ध से विमुख अर्जुन को पुनः युद्ध के लिए प्रेरित करने के लिए। भगवान कृष्ण द्वारा स्वयं कही गई–

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता॥

इसमें कर्ममार्ग, भक्तिमार्ग और ज्ञानमार्ग तीनों का समन्वय स्थापित किया है। इसका महावाक्य है- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' अर्थात् कर्म करने में ही मनुष्य का अधिकार है, उसके फल में नहीं। गीता का केवल भारत में ही नहीं अपितु सतस्त संसार में विश्वव्यापी प्रचार हुआ। किसी पाश्चात्य विद्वान् ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा है - It is the most beautiful philosophical song existing in any language of the world.' यद्यपि गीतोपदेश अर्जुन को युद्ध के लिए पुनः प्रेरित करने के लिए दिया गया तथापि इस गीतापदेश में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन का पूर्ण दर्शन ज्ञान करवाया है। जीवनदर्शन का यह ज्ञान केवल अर्जुन से ही सम्बद्ध न होकर सम्पूर्ण मानव जाति के लिए शतशः सार्थक है।

यह तो प्रामाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता है कि कृष्ण एक काल्पनिक पात्र हैं अथवा वास्तविक परन्तु यह निश्चित है कि महर्षि व्यास अवश्य ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के पूर्ण ज्ञाता थे।

महाभारत ज्ञान का विशाल भण्डार है। भीष्मपर्व के जम्बूखण्ड और भूखण्ड नामक भाग भारत की भौगोलिक परिस्थितियों से अवगत करवाते हैं। यह तत्कालीन सामाजिक अवस्था का भी विशद विवेचन करता है। उस समय की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सभी अवस्थाओं पर तथा उस समय प्रचलित रीति-रिवाजों, अन्धविश्वासों आदि सभी पर प्रभूत प्रकाश डालता है।

महाभारत में कई उपाख्यान प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ प्राचीन ऋषियों तथा राजाओं के जीवन से सम्बन्धित होने के कारण घटना प्रधान हैं। कुछ ऐतिहासिक होने के कारण प्राचीन इतिहास की अमूल्य निधि हैं। कुछ तत्कालीन लोक कथाओं पर आधारित हैं। इनमें शकुन्तला, राम, मत्स्य, नल, सावित्री, गङ्गावर्तन, परशुराम, च्यवन, शिवि, ययाति इत्यादि के उपाख्यान काव्यात्मक सौन्दर्य से भरपूर हैं। कुछ आख्यान बौद्ध साहित्य से प्रभावित हैं। राजा शिवि की कथा कि एक पक्षी को बचाने के लिए वे अपना माँस भी दे देते हैं, आत्मत्याग का सुन्दर उदाहरण है। एक कबूतर शरण में आए हुए शिकारी के लिए भोजन का प्रबन्ध करने के लिए, जिसने उसकी प्रिया को पकड़ लिया है, किस प्रकार स्वयं को आग में जला देता है, अपने शत्रु के प्रति प्रेम एवं अतिथि सत्कार का एक ज्वलन्त उदाहरण है।

महर्षि व्यास का कूटनीति का ज्ञान भी विशाल और व्यापक था जो विदुर, कृष्ण और शकुनि के माध्यम से सम्पूर्ण ग्रन्थ में पग-पग पर दृष्टिगत है। यह ज्ञान केवल उन परिस्थितियों में ही नहीं अपितु वर्तमान में भी पूर्णतः सटीक है।

युद्ध कला में भी महर्षि व्यास की प्रवीणता अद्भुत ही रही होगी जैसा कि कुरुक्षेत्र युद्ध के वर्णन से स्पष्ट है। उन्होंने मानवीय मनोविज्ञान का भी कितना सूक्ष्म अध्ययन एवं विश्लेषण किया होगा कि इतने अधिक विविध पात्रों का चरित्र चित्रण इतने स्वाभाविक और यथार्थ रूप से कर पाए।

इस प्रकार महाभारत को 'पञ्चम वेद' या 'विश्वकोष' कहना पूर्णतः उचित है। मनुष्य जीवन के चारों पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सभी का वर्णन इस काव्य में हुआ है और जैसा कि महर्षि व्यास ने स्वयं कहा है।

𝐒𝐚𝐧𝐬𝐤𝐫𝐢𝐭 𝐒𝐚𝐡𝐢𝐭𝐲𝐚 𝐆𝐲𝐚𝐧💯

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रामायण व महाभारत होने के मुख्य कारण क्या थे? - raamaayan va mahaabhaarat hone ke mukhy kaaran kya the?


महाभारत होने का मुख्य कारण क्या था?

महाभारत युद्ध होने का मुख्य कारण कौरवों की उच्च महत्वाकांक्षाएँ और धृतराष्ट्र का पुत्र मोह था। कौरव और पाण्डव आपस में चचेरे भाई थे। वेदव्यास जी से नियोग के द्वारा विचित्रवीर्य की भार्या अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र और अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु उत्पन्न हुए।

रामायण और महाभारत में मुख्य अंतर क्या है?

रामायण में धर्म की प्रधानता है जबकि महाभारत में शौर्य और कर्म प्रधान हैं। रामायण में राम का रावण के साथ युद्ध करना एक नियति थी जबकि महाभारत में कौरवों व पाण्डवों का युद्ध पारस्परिक द्वेष और ईर्ष्या के कारण ही हुआ। रामायण में सदाचार और नैतिकता का प्राधान्य है। जबकि महाभारत में राजनीति और कूटनीति का प्रधान है।

पहले क्या हुआ रामायण या महाभारत?

भगवान श्री राम का अवतार त्रेता युग में हुआ था और भगवान श्रीकृष्ण का अवतार द्वापर युग में हुआ था , बाल्मिक रामायण की रचना बाल्मिक जी ने त्रेता युग में किया था और श्री वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना द्वापर युग में किया था । दोनों महाकाव्यों की तुलना करते हैं, तो हम अनुमान कर सकते हैं कि रामायण महाभारत से पहले लिखा गया।

कवि ने महाभारत के युद्ध का क्या कारण बताया है?

प्रश्न 4: कवि ने महाभारत के युद्ध का क्या कारण बताया है ? उत्तर: कवि ने महाभारत युद्ध का कारण कौरवों और (UPBoardSolutions.com) पांडवों के बीच आपसी फूट को बताया है।