रोमन साम्राज्य कितने महाद्वीपों में फैला हुआ है? - roman saamraajy kitane mahaadveepon mein phaila hua hai?

 अध्याय 2.1 

 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 'सेंटीमोनोटियस' का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर - लैट्रिन जाती ने 7 गांवों को मिलाकर एक संघ की स्थापना की थी, जिसे के सेंटीमोनोटियस ( League of Seven Hills ) नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2.सेंटीमोनोटियस को किसने भांग और किस प्रकार के राज्य की स्थापना की? 

उत्तर - सातवीं शताब्दी ई. पू. में एट्रेस्कन ( Etruscan ) जाति के लोगों ने इस संघ को भंग करके रोम को एक नगर का रूप प्रदान किया।

प्रश्न 3. रोम में गणतंत्र की स्थापना कैसे और कब हुई? 

उत्तर - लगभग 500 ई. पू. में राजतंत्रीय या शासन के विरुद्ध एक क्रांति हुई, जिसके परिणाम स्वरूप राजतंत्र का अंत हो गया और उसके स्थान पर गणतंत्रीय शासन की स्थापना हुई।

प्रश्न 4. रोम के गणतंत्र शासन की दो विशेषताएं लिखिए।

उत्तर  - ( 1 ) शासन के संचालन का उत्तरदायित्व 'कौंसल' होता था।

( 2 ) एक सीनेट की भी स्थापना की गई। इसका मुख्य काम कौंसल को सलाह देना और उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करना था।

प्रश्न 5. जुलियस सीजर कौन था?

उत्तर - जुलियस सीजर है रोम का शक्तिशाली तथा महत्वकांक्षी महान सम्राट था। उसे तीन वर्ष तक एशिया अफ्रीका तथा स्पेन के साथ संघर्ष करना पड़ा। अंत में उसे सफलता मिली और 46 ई. पू. में वह रोम का अधिनायक बन गया।

प्रश्न 6. "ऑगस्टस के शासनकाल को रोम की शांति का युग कहा जाता है।" स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - ऑगस्टस 37 ई. पू.रोम का शासक बना। उसने अपने शासन में रोम साम्राज्य में शांतिपूर्ण शासन की स्थापना करने का काम किया। इसी कारण उसके शासन को पैक्स रोमान ( रोम की शांति ) कहा जाता है।

प्रश्न 7. रोम के सम्राट कॉन्स्टैनटाईन की महत्वपूर्ण उपलब्धि क्या है?

उत्तर - रोम के सम्राट की महत्वपूर्ण उपलब्धि कस्तून्तनिया को अपनी राजधानी बनाया था।

प्रश्न 8. राजनीतिक क्षेत्र में रूम की कोई दो देनों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर -  ( 1 ) नगर पालिकाओं द्वारा नगरों की शासन प्रणाली को चलाना एवं कार्यकारिणी व असेंबली को एक दूसरे से पृथक रखना।

( 2 ) मुंसिपल, डिक्टेटर, कैंडिडेट, इलेक्शन तथा सिटीजन शब्द रोम सभ्यता की देन है।

प्रश्न 9. भाषा के क्षेत्र में रोम की देन है?

उत्तर - रोम के निवासियों ने यूनानी यों से जो वर्णमाला सीखी थी, उसके आधार पर उन्होंने अपनी वर्णमाला का विकास किया, जिसे लेटिन भाषा के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 10. रोम की विज्ञान के क्षेत्र में क्या दिन थी? कोई दो देन लिखिए।

उत्तर - ( 1 ) विश्व को अस्पताल का ज्ञान रोम की देन है।

( 2 ) निर्धन रोगियों को मुफ्त औषधि देने की व्यवस्था की।

प्रश्न 11. प्यूनिक युद्ध क्या था ? 

उत्तर - रोम वासियों के कार्थेज के साथ युद्ध हुए, जो 264 ई. पू. से 146 ई. पू. तक के चलते रहे। इन युद्धों को प्यूनिकयुद्ध के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 12. ऑगस्टस के उत्तराधिकारियों में से चार के नाम लिखिए।

उत्तर - ( 1) टिबेरियस 

( 2 ) त्राजान

( 3 ) गैलेनस

( 4 ) डायोक्लीशियन।

प्रश्न 13. "दास प्रथा रोमन साम्राज्य के पतन का कारण बनी।" इस कथन से आप कहां तक सहमत हैं?

उत्तर -  रोमन साम्राज्य में दास प्रथा का प्रचलन था। यहां दांतों के साथ अत्याचार किया जाता था, जिसके परिणाम स्वरूप दासों ने अनेक विद्रोह किए, जो रोमन साम्राज्य के पतन के कारण बने।

प्रश्न 14. रोम साम्राज्य के अंतर्गत अपनी उर्वरता के लिए कौन से क्षेत्र प्रसिद्ध थे। चार के नाम लिखिए।

उत्तर - ( 1 ) कैंपेनिया  ( इटली ), ( 2 ) सिसली, ( 3 ) मिस्त्र में फैरयुम, गैलिली, ( 4 ) नाइजैकीयम ( ट्यूनीशिया ) ।

प्रश्न 15. रोम साम्राज्य में पानी की शक्ति का प्रयोग किसमें किया गया था ? 

उत्तर - रोम साम्राज्य में पानी की शक्ति से मिलें चलाई जाती थीं। स्पेन की सोने चांदी की खानों में जल शक्ति से खुदाई की जाती थी और पहली तथा दूसरी शताब्दी में बड़े पैमाने पर खानों से खनिज निकाली जाते थे। 

प्रश्न 16. रोम साम्राज्य की सेना की कोई दो विशेषताएं  लोखिये।

उत्तर - ( 1 ) रोम की सेना एक व्यवसायिक सेना थी, जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था।

( 2 ) प्रत्येक सैनिक को कम से कम 25 वर्ष तक सेना में सेवा करनी होती थी।

प्रश्न 17. दीनारियास क्या था? हैरॉड के राजा से रोम को कितनी की आय होती थी?

उत्तर - रोम का चांदी का सिक्का था, जिसमें 4.5 ग्राम शुद्ध चांदी होती थी। दीनारियास के राज्य से रूम को प्रतिवर्ष 54 लाख दीनारियासकी आय होती थी।

प्रश्न 18. रोमन साम्राज्य में बड़े शहरों का क्या महत्व था? रोम के 3 बड़े शहरों के नाम लिखिए।

उत्तर - शहरों का महत्व - रोमन साम्राज्य में बड़े शहर शासन प्रणाली के मुख्य केंद्र थे। शहरों के माध्यम से सरकार ग्रामीण क्षेत्र में कर लगाती थी और उनको वसूल करती थी।

बड़े शहरों के नाम - ( 1 ) कार्थेज, ( 2 ) सिकन्दरिया तथा  ( 3 ) एन्टीऑक।

प्रश्न 19 - सम्राट गैलीनस सत्ता को सीनेटरों के हाथ में जाने से रोकने के लिए क्या उपाय किये?

उत्तर - ( 1 )प्रांतीय शासक वर्ग को मजबूत बनाया। 

( 2 ) उसने सीनेटरों को सेना की कमान से हटा दिया और उनके द्वारा सेना में सेवा करने पर रोक लगा दी।

प्रश्न 20. सम्राट डायोक्लीशियन द्वारा किए गए कोई दो प्रशासनिक सुधार लिखिए।

उत्तर - ( 1 ) उसने सैनिक तथा असैनिक कार्यों को अलग अलग कर दिया।

( 2 ) सेनापतियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. रोम के गणतंत्रीय शासन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर - लगभग 500 ई. पू. राजतंत्रीय शासन के विरुद्ध एक क्रांति हुई, जिसके फलस्वरूप राजतंत्र का अंत हो गया और उसके स्थान पर वहां गणतंत्र शासन की स्थापना हुई और यह लंबे समय तक चलता रहा। इस अवधि में शासन का संचालन दो प्रमुख अधिकारियों द्वारा किया जाता था जिन्हें 'कौंसल' कहते थे। उनका चुनाव 1 वर्ष के लिए किया जाता था। वे गणतंत्र के महान शासक, सेनापति एवं पुरोहित के रूप में कार्य करते थे। कानून का पालन कराने का उत्तरदायित्व उन्हीं पर था, किंतु उन्हें अपने कार्यों में सीनेट की सलाह लेनी पड़ती थी। सीनेट का मुख्य कार्य कौंसल को महत्वपूर्ण विषयों पर सलाह देना था। इसी के द्वारा सेना की भी नियुक्ति की जाती थी। युद्ध एवं संधि का निर्णय, उच्च अधिकारियों की नियुक्ति सभा के कर्तव्यों में सम्मिलित थे। कानून पारित करने के लिए एक अन्य सभा की व्यवस्था थी। संकट के समय में डिक्टेटर की नियुक्ति होती थी, जिसका कार्यकाल 6 महीने होता था।

प्रश्न 2. रोम के इतिहास में ऑगस्टस का नाम क्यों प्रसिद्ध है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - रूम में बहुत समय से गणतंत्रीय शासन प्रणाली चली आ रही थी। इस प्रणाली में अनेक दोष आ गए थे। चारों और भ्रष्टाचार फैला हुआ था। ऐसी स्थिति में प्रथम शताब्दी ई. पू. के मध्य में ऑक्टेवियन नामक व्यक्ति ने साम्राज्य की शक्ति पर अधिकार कर लिया और अपने को सम्राट घोषित कर दिया और निरंकुश शासन की स्थापना कर ली। रोम साम्राज्य गणतंत्र कहलाया जाता रहा, किंतु उसकी समस्त शक्तियां सम्राट ने अपने हाथों में ले लीं। जनसभा सर्वोच्च पदों के लिए स्वयं ऑक्टेवियन को या उसके आदमियों को ही चुनती थी। कौंसल तथा ट्रिब्यूनल सम्राट की हर आज्ञा का पालन करते थे। ऑक्टेवियन ने सीनेट से अपने सभी विरोधियों को निकाल दिया और उनके स्थान पर अपने समर्थक नियुक्त करवाए। सीनेट में सबसे पहले वही अपनी राय जाहिर करता था और सीनेटर इशारा समझकर उसकी इच्छा के अनुकूल निर्णय लेते थे। उन्होंने उसे ऑगस्टस अर्थात महामहिम की सम्मानित उपाधि से विभूषित किया। ऑक्टेवियन ने 30 ई. पू. से तक 14 ई. पू. तक शासन किया।

प्रश्न 3. कानून के क्षेत्र में रूम का क्या योगदान था?

अथवा

"रोम को कानून की जन्म भूमि कहा जाता है।" स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - कानून तथा शासन व्यवस्था में प्राचीन रोमवासियों का महान योगदान था। ग्राम वासियों ने सबसे पहले 12 पट्टीयों पर कानून संहिता तैयार करके उसका जनता में प्रचार किया। इसके परिणाम स्वरूप अधिकारियों की मनमानी पर अंकुश लगा और साधारण लोगों को भी न्याय मिलने लगा। रोम में न्याय प्रणाली सुव्यवस्थित तिथि और निष्पक्ष रुप से न्याय किया जाता था। रूम में कानून का संग्रह किया गया जो विश्व की महान उपलब्धि थी। इससे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के विकास में महत्वपूर्ण सहायता मिली। इसी कारण रोमन कानून प्रसिद्ध है।

प्रश्न 4. रोम की शासन व्यवस्था की विवेचना कीजिए।

अथवा

"संसार को रोम वासियों की मौलिक देना उनकी शासन व्यवस्था है।" स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - संपूर्ण रोम पर किसी एक राजा अथवा सरकार का शासन नहीं था। देश अनेक नगर राज्यों में बंटा हुआ था। हर नगर की अपनी स्वतंत्र सरकार होती थी। मैंने नगरों में आपस में युद्ध होते रहते थे। रोम के कुछ नगर राज्यों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की। इन लोकतांत्रिक राज्यों में रोम का स्थान सर्वोपरि था। राज्य के पूरे नागरिकों की एक सभा होती थी। यह सभा राज्य के लिए कानून बनाती तथा राज्य के बड़े-बड़े अधिकारी व सेनानायकों का चयन करती थी। इसलिए यूरोप के लोग रूम को ही लोकतंत्र की जननी मानते हैं।

 रोम के शासन का संचालन दो प्रमुख अधिकारियों द्वारा किया जाता था जिन्हें 'कौंसल' कहते थे। उनका चुनाव 1 वर्ष के लिए किया जाता था। वे लोकतंत्र के महान शासक, सेनापति तथा पुरोहित के रूप में काम करते थे। कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी उन्हीं की होती थी। किंतु उनको कार्यों में सीनेट की सलाह लेनी पड़ती थी। सीनेट का मुख्य काम कौंसल को महत्वपूर्ण विषयों में सलाह देना था।इसी के द्वारा सेना की नियुक्ति की जाती थी। युद्ध की घोषणा करने तथा संधि करने का भी इसी को अधिकार था। संकट के समय एक अधिनायक की नियुक्ति की जाती थी, जिसका कार्यालय 6 महीने होता था। 248 ई. में रोम में गणतंत्रीय शासन प्रणाली का अंत हो गया था और निरंकुश शासन प्रणाली की स्थापना हो गई थी।

प्रश्न 5. प्यूनिक युद्ध का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर - लगभग समस्त इटली पर अधिकार करने के बाद रोम एक शक्तिशाली राज्य बन गया था। अतः रोमवासी अपने साम्राज्य का और अधिक विस्तार करने के लिए प्रयत्नशील थे। इसी क्रम में रोमवासियों ने कार्थेज के साथ युद्ध  हुए, जो 264 ई. पू. से 146 ई. पू. तक चलते रहे। इन युद्धों को  'प्यूनिक युद्ध' के नाम से जाना जाता है। कार्थेज नगर अफ्रीका के उत्तरी पूर्वी किनारे पर स्थित था, जो कि एक व्यापारिक नगर था। कार्थेज नगर तीसरी ई. पू. शताब्दी तक आते-आते अत्यंत शक्तिशाली हो गया और निरंतर विस्तार कर रहा था। कार्थेज की इस बढ़ती हुई शक्ति व साम्राज्य विस्तार की नीति से रोम को स्वयं के लिए खतरा दिखाई देने लगा। अतः उन्होंने कार्थेज पर आक्रमण कर दिया। रोम व कार्थेज के मध्य तीन युद्ध हुए। प्रथम युद्ध 264 ई. पू. से 241 ई. पू. के मध्य, द्वितीय युद्ध 218 ई. पू. से 201 ई. पू. के मध्य और तीसरा युद्ध 149 ई. पू. से 146 ई. पू. के मध्य हुआ था। इन तीनों ही युद्धों में कार्थेज की पराजय हुई। तीसरे युद्ध में भी रोम विजयी हुए व रोम की सेना ने ने कार्थेज में अत्याधिक अत्याचार किए। विद्वान लेखक बर्न्स ने लिखा है, " विश्व में शायद ही इतना नृशंस, क्रूर एवं बर्बर युद्ध हुआ होगा। घर-घर की तलाशी लेकर रोम के सैनिकों ने कार्थेजों का कत्ल किया।" कार्थेज को जलाकर राख कर दिया गया व बड़ी संख्या में के कार्थेज निवासियों को दास बना लिया गया। इस विजय से रोम भूमध्य सागर के क्षेत्र की सर्वमुख शक्ति बन गया। इसके पश्चात रोम ने यूनान, एशिया माइनर व मिस्र आदि पर भी अधिकार कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया

प्रश्न 6. जुलियस सीजर पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर - जुलियस सीजर का जन्म 100 ई. पू. में हुआ था। वह एक धनी कुल में उत्पन्न हुआ था। वह एक अच्छा योद्धा व महत्वकांक्षी व्यक्ति था। वह एक अच्छा सेनानायक भी था। 58 ई. पू. से 50 ई. पू. तक उसने कई गौरवपूर्ण विजय प्राप्त कीं। इन विजयों के कारण वह रोम में विख्यात हो गया और वह 46 ई. पू. में रोम का 'अधिनायक' बन गया। अधिनायक बनते ही उसने संपूर्ण शक्ति अपने हाथों में केंद्रित कर ली। वह महान दूरदर्शी व्यक्ति था। हालांकि उसने रोम के समस्त शासन को अपने हाथ में केंद्रित कर लिया था फिर भी उसने रोम के गणतंत्र के स्वरूप को नष्ट नहीं किया। उसने गणतंत्र के समस्त प्रशासनिक अंगों को पूर्व की भांति ही रखा। लेकिन गणतंत्र के सभी विभाग उसके इशारे पर काम करते थे। 

     जुलियस सीजर शासन की बुराइयों से भली-भांति परिचित था, अतः उसने उन्हें दूर करने का भरसक प्रयास किया। उसने रोम की आर्थिक दशा सुधारने के लिए भी महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिए। उसने राज्य की जनगणना कार्रवाई तथा रोम के आसपास कई बस्तियां भी बसाईं। उसने रोम को सुंदर बनाने की योजना भी तैयार करवाई। उसने सेना में इटली के बाहर के व्यक्तियों को भी स्थान दिया तथा सेनानायकों को सीधे अपने प्रति उत्तरदाई बनाया। इससे स्पष्ट होता है कि जूलियस सीजर कच्चा प्रबंधक था। एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ वह एक अच्छा लेखक भी था।

    नि:संदेह जुलियस सीजर अल्पकाल में ही शक्तिशाली व प्रभावशाली व्यक्ति बन गया था, परंतु उसकी ख्याति ही उसके लिए अनेक शत्रु उत्पन्न करने का कारण बन गई। रोम के गणतंत्रवादी उसके एकतंत्रीय शासन से अप्रसन्न थे। सीनेट का एक बार कभी उससे अप्रसन्न था। इस कारण सीनेटरों ने एक संयंत्र रचा। उनका नेता ब्रूटस (Brutus) था, वह एक धनी एवं संभ्रांत व्यक्ति था, इसके साथ ही वह जूलियस सीजर का मित्र भी माना जाता था।

प्रश्न 7. ऑगस्टस के उत्तराधिकारियों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर - ऑगस्टस के उत्तराधिकारी अयोग्य सिद्ध हुए। उसके उत्तराधिकारी टिबेरियस, त्राजान, गैलीनस तथा डायोक्लिशियन आदि थे। कालांतर में 285 ई. में डायोक्लिशियन रोम का शासक बना, जिसने रोम में अधिनायकवाद (Dictatorship) की स्थापना की। डायोक्लिशियन के उत्तराधिकारियों में चौथी शताब्दी में कॉन्स्टैनटाइन नामक व्यक्ति रोम का प्रसिद्ध सम्राट हुआ, जिसने 306 ई. से 337 ई.तक शासन किया। उसके शासनकाल की उल्लेखनीय बात, उसके द्वारा कुस्तुनतुनिया नाम की राजधानी बनाना था। 364 ई. में कॉन्स्टैनटाइन के उत्तराधिकारी ने समस्त रोम साम्राज्य को पूर्वी और पश्चिमी दो भागों में विभक्त कर दिया। इस विभाजन ने रोम साम्राज्य को और अधिक सक्षम बना दिया। पूर्वी भाग को विजैण्टाइनसाम्राज्य कहा गया, जिसकी राजधानी कुस्तुनतुनिया थी और पश्चिमी भाग शीघ्र ही छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया। 476 ई. हुणों ने रोम पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया और कभी शक्तिशाली रह चुके रोम साम्राज्य का पतन हो गया।

प्रश्न 8. रोम साम्राज्य में सेना की भूमिका की विवेचना कीजिए।

उत्तर - सेना शासन का महत्वपूर्ण अंग थी। रोम साम्राज्य की सेना व्यवसायिक थी। सैनिकों को नियमित वेतन मिलता था। सेना सबसे बड़ी एकल संगठित संस्था थी। प्रत्येक सैनिक को 25 वर्ष तक सेना की सेवा करनी होती थी। चौथी शताब्दी तक रोम की सेना में 6,00,000 सैनिक थे। साम्राज्य को सुरक्षित रखना, आक्रमणो से रक्षा करना, साम्राज्य का विस्तार करना सेना का ही काम था। सेना के पास सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति थी। सैनिक अच्छी वेतन और अच्छी सेवा शर्तों के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे। कभी-कभी यह आंदोलन सैनिक विद्रोह में बदल जाता था। सीनेट सेना से घृणा करती थी और उससे डरती थी। इसका कारण यह था कि सेना हिंसा का स्त्रोत थी। सम्राट की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि सेना पर कितना नियंत्रण रहता है, कभी-कभी सैनिकों के कारण गृह युद्ध भी हो जाते थे।

प्रश्न 9. रोमन साम्राज्य में प्रांतीय तथा स्थानीय शासन का क्या महत्व था ? 

उत्तर - रोमन साम्राज्य में अनेक प्रांत थे। इटली को छोड़कर साम्राज्य के सभी क्षेत्र प्रांतों में बंटे हुए थे। केंद्रीय शासन उनसे कर वसूलता था। अनेक सम्राटों ने प्रांतों को सुदृढ़ बनाने का भी प्रयास किया था। रोमन साम्राज्य की सफलता इस बात पर निर्भर थी कि सम्राट को प्रांतों का कितना सहयोग प्राप्त होता है। संपूर्ण साम्राज्य में अनेक नगर स्थापित किए गए थे। इनके माध्यम से समस्त साम्राज्य पर नियंत्रण रखा जाता था। भूमध्य सागर के तटों पर स्थित बड़े शहरी केंद्र साम्राज्य की शासन प्रणाली के मूल आधार थे। शहरों के माध्यम से सरकार ग्रामीण क्षेत्रों पर कर लगाती थी और उसे वसूल करती थी। नगरों में अनेक अधिकारी होते थे, जो शासन में सरकार की मदद करते थे।

प्रश्न 10. रोमन साम्राज्य में शहरी जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर - ( 1 ) शहरों में खाद्यान्नों की कोई कमी नहीं थी।

( 2 ) अकाल के दिनों में भी शहरों में नागरिकों को अपने आवश्यकता की सभी वस्तुएं उपलब्ध हो जाती थीं। 

( 3 ) शहरों में सभी नागरिकों को उच्च स्तर के मनोरंजन के साधन उपलब्ध हो जाते थे। वर्ष में कम से कम 174 दिन कोई ना कोई मनोरंजन के कार्यक्रम का प्रदर्शन अवश्य होता था।

( 4 ) शहर प्रशासन की एक इकाई के रूप में काम करते थे।

( 5 ) शहरी जीवन स्थानीय संस्थाओं द्वारा संचालित होता था।

प्रश्न 11. रोम संस्कृति की दार्शनिक क्षेत्र में क्या देन थी ? 

उत्तर -  दर्शन के चित्र में देन के लिए दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6 देखें।

प्रश्न 12. रोम साम्राज्य के अंतर्गत कला के विकास की विवेचना कीजिए।       

उत्तर - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 6

प्रश्न 13. रोम की दास प्रथा का वर्णन कीजिए।

अथवा 

रोमन साम्राज्य में दासों की स्थिति पर प्रकाश डालिये।

उत्तर - रोमन साम्राज्य में दास प्रथा का भी प्रचलन था। रूम की अर्थव्यवस्था में अधिकांश श्रम दासों द्वारा किया जाता था। ऑगस्टस के शासनकाल में 75 लाख की आबादी में 30 लाख दास थे। उस समय दासों को पूंजी निवेश की दृष्टि से देखा जाता था। सम्राटों ने दासों में अधिक प्रजनन को प्रोत्साहन दिया। जिससे अधिक से अधिक दास मिल सकें। एक प्रसिद्ध विद्वान प्लिनी ने दास प्रथा की आलोचना करते हुए उसे उत्पादन आयोजित करने का सबसे खराब तरीका बताया है, क्योंकि इस प्रकार अलग समूह में काम करने वाले दासों को आमतौर पर जंजीर डालकर एक साथ रखा जाता था। प्लिनी ने कारखानों में काम करने वाले दासों के विषय में लिखा है, "कामगारों के एप्रेंनों पर सील लगा दी जाती थी, उनको अपने सर पर एक गहरी जाली वाला मास्क या नेट पहनना पड़ता था और उन्हें कारखानों से बाहर जाने के लिए अपने सभी कपड़े उतारने पड़ते थे।" गुलाम अत्याचारों से तंग आकर विद्रोह भी कर दिया करते थे। दास प्रथा रोमन साम्राज्य के पतन का एक कारण बनी।

प्रश्न 14. रोमन साम्राज्य की धार्मिक दशा की विवेचना कीजिए।

उत्तर - रोमन साम्राज्य के अंतर्गत है पारंपरिक रूप से यूनान और रोम के लोग बहूदेववादी थे। यह लोग अपने पंथों एवं उपासना पद्धतियों में विश्वास करते थे। यह लोग जुपिटर, जूनो, मिनर्वा और मार्स जैसे अनेक रोमन, इतालवी देवो और यूनानी तथा पूर्वी देवी देवताओं की पूजा किया करते थे। इसके लिए उन्होंने संपूर्ण साम्राज्य में हजारों मंदिर, मठ और देवालय बना रखे थे। बहूदेववादी लोग स्वयं को किसी एक नाम से नहीं पुकारते थे।

यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा महत्वपूर्ण धर्म था। यहूदी धर्म भी एकाश्म अर्थात विविधता हीन नहीं था। रोमन साम्राज्य के परवर्ती पुराकाल में यहूदी धर्म में अनेक विषमताएं विद्वान थी।

रोम साम्राज्य में तीसरी शताब्दी में ईसाई धर्म लोकप्रिय होने लगा था, लेकिन रोमन सम्राटों ने राजनीतिक कारणों से ईसाइयों को तंग व दंडित करना प्रारंभ कर दिया था। रोमन सम्राटों के अत्याचारों से ईसाई भयभीत नहीं हुए, अभी तो रोमन साम्राज्य के जनसामान्य में ईसाई धर्म की लोकप्रियता और अधिक बढ़ने लगी और बड़ी संख्या में लोग ईसा मशीह के अनुयायी बनने लगे। रोमन सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने स्थिति को समझते हुए सहषणुता की नीति अपनाई, उसने 312 ई. में ईसाई धर्म अपना लिया। कालांतर में 392 ई. में सम्राट थियाडोशिअस ने एक आदेश जारी करके ईसाई धर्म को साम्राज्य का राज्य धर्म घोषित कर दिया। यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि चौथी तथा पांचवी शताब्दी में साम्राज्य का ईसाईकरण सफलतापूर्वक नहीं हुआ, बल्कि इस दौरान ईसाईकरण की प्रक्रिया क्रमिक एवं जटिल थी। यही कारण था कि बहूदेववादी विशेष रूप से पश्चिमी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक तुरंत समाप्त नहीं हुआ। जन-सामान्य के उत्साह ने ईसाई धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. रोमन साम्राज्य की जानकारी के स्त्रोतों की विवेचना कीजिए।

उत्तर - रोमन साम्राज्य की जानकारी की सामग्री इतिहासकारों के पास भरी पड़ी है। ऐसे जानकारी के स्त्रोतों को हम तीन भागों में बांट सकते हैं -

( 1 ) पाठ्य सामग्री - पाठ्य सामग्री में समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया, उस काल का इतिहास है जिसमें वर्ष वृतांत ( Annals ) कहा जाता था, क्योंकि वे वृतांत प्रतिवर्ष लिखे जाते थे। पत्र, व्याख्यान, प्रवचन, कानून आदि लिखित रूप में उपलब्ध हैं।

( 2 ) प्रलेख या दस्तावेज - दस्तावेजी स्त्रोत मुख्य रूप से उत्कीर्ण अभिलेखों या पैपाईरस पेड़ के के पत्तों आदि पर लिखी गई पांडुलिपियों के रूप में मिली है। उत्कीर्ण अभिलेख आमतौर पर पत्थर की शिलाओं पर खोदे जाते थे। इसलिए वे नष्ट नहीं हुए हैं और बहुत बड़ी मात्रा में यूनानी व लातिनी में पाए गए हैं। पैपाईरस एक सरकंडा जैसा पौधा था जो मिस्र की नील नदी के किनारे पाया जाता था और उसी से लेखन सामग्री तैयार की जाती थी। हजारों की संख्या में संविदा,  पत्र, लेख, संवाद पत्र और सरकारी दस्तावेज आज भी 'पैपाईरस' पत्र पर लिखे हुए पाए गए हैं और पैपाईरस शास्त्रियों द्वारा उनको प्रकाशित किया गया है, जो उसे समय के इतिहास की जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत है।

( 3 ) भौतिक अवशेष - भौतिक अवशेषों में अनेक प्रकार की विशेषताएं सम्मिलित हैं, जो मुख्य रूप से पुरातत्व वेदों द्वारा खुदाई में मिली है। उदाहरण के लिए इमारतें, स्मारक और अन्य प्रकार की संरचनाएं, मिट्टी के बर्तन, सिक्के, पच्चीकारी का सामान आदि खुदाई में मिले हैं। इनमें से प्रत्येक के स्रोत हमें अतीत के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी देता है। 

उपरोक्त स्रोतों का इतिहासकारों ने विश्लेषण करके रोमन साम्राज्य के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है।

प्रश्न 2. रोमन गणतंत्र में प्रशासनिक व्यवस्था वर्णन कीजिए।

उत्तर - रोम के इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू.का विशेष महत्व है। इस शताब्दी के अंत में रोम में गणतंत्र की स्थापना हुई। इस घटना से रोम में एक नवीन युग का प्रारंभ ही नहीं हुआ, अपितु रोम के साम्राज्य विस्तार में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई। इस कॉल में रोम का इटली के शेष भूभाग पर भी अधिकार हो गया था। रोम में गणतंत्र की स्थापना ने जहां गणतंत्रात्मक प्रशासनिक संस्थाओं का विकास किया, वहीं समानता के सिद्धांत के आधार पर अपनी न्याय व्यवस्था स्थापित की। इस काल में शासन हेतु सीनेट, सभा ( असेंबली ) व दो कौंसल होते थे।

सीनेट ( Senate ) - प्रोफेसर ब्रेस्टर्ड के शब्दों में, " सीनेट रोमन शासकों की सबसे बड़ी सभा होती थी, जो संभवत: प्राचीन काल में उत्पन्न हुई।" सीनेट के सदस्यों की संख्या 300 होती थी तथा यह अत्यंत शक्तिशाली संस्था थी। इसके सभी सदस्य उच्च वर्ग अर्थात धनी वर्ग के ही होते थे। यह लोग निम्न वर्ग के की ओर ध्यान नहीं देते थे। इस कारण तत्कालीन रोमन साम्राज्य के दोनों वर्गों उच्च वर्ग अर्थात 'पेट्रिशियन'  ( Patrician ) एवं निम्न वर्ग अर्थात 'प्लीबियन' ( Plebian ) में बहुधा संघर्ष चलता रहता था। इस ग्रह कलह का अंत 450 ई. पू. में हुआ जबकि एक अधिनियम द्वारा दोनों वर्गों में समानता स्थापित कर दी गई। देश की शासन सत्ता सही मायनों में इसी संस्था के हाथ में निहित थी। इसकी बिना स्वीकृति के कोई भी कानून पारित नहीं हो सकता था। उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करना, विदेशों के साथ संधि करना या उनके विरुद्ध युद्ध की घोषणा करना आदि सीनेट के अधिकार में ही था। सीनेट की प्रशंसा करते हुए कॉल्डबैक ने लिखा है, "गणतंत्रकालीन रोम में जितनी योग्यता से सीनेट ने शासन किया, इतनी योग्यता से कभी भी पाश्चात्य देशों में से कोई भी जनसमिति शासन नहीं कर पाई थी।"

असेंबली ( Assembly ) - गणतंत्र की इस प्रशासनिक के संस्था की सदस्यता समाज के दोनों वर्गों अर्थात 'पेट्रिशियन' और 'प्लीबियन' दोनों के लिए खुली थी। इसी संस्था द्वारा दोनों कौंसिल की नियुक्ति की जाती थी। यह संस्था सर्वोच्च न्यायालय के रूप में भी कार्य करती थी।

कौंसल ( Consul ) - कौंसल, वे दो अधिकारी कहलाती थे, जो शासन संचालन का कार्य करते थे। इनकी नियुक्ति चुनाव के माध्यम से असेंबली द्वारा की जाती। इनका कार्यकाल 1 वर्ष का होता था। इन दोनों के अधिकार समान होते थे और यह देश के सर्वोच्च सेनापति भी होते थे।

गणतंत्रकालीन रोम में 454 ई. पू. में एक 'विधि संहिता' तैयार की गई थी। इस विधि संहिता को लकड़ी की तख्तियों पर लिखा गया था, जिन्हें 'बारह तख्तियों के कानून'          ( Twelve Tables ) कहा जाता था। इस कानूनी संहिता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें उच्च वर्ग व निम्न भर के लिए समान न्याय व्यवस्था पर बल दिया गया था।

प्रश्न 3. रोम के प्रारंभिक इतिहास का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर - सर्वप्रथम रोम में नगर राज्य की स्थापना हुई। राज्य का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था, जिसकी नियुक्ति चुनाव द्वारा होती थी। राजा ही प्रधान सेनापति तथा प्रधान पुरोहित समझा जाता था। उसकी सहायता के लिए 2 सभाएं थी -      ( 1 ) लोकसभा, ( 2 ) सीनेट।

लोकसभा के सदस्य सभी वयस्क पुरुष नागरिक हो सकते थे तथा प्रतिनिधि चुनाव द्वारा नियुक्त होते थे। सीनेटस सामन्तों अथवा उच्च वर्ग की सभा थी। राजा महत्वपूर्ण विषयों पर सीनेट की सलाह लेता था। युद्ध घोषणा तथा संधि निर्धारण में राजा को इस समिति की अनुमति लेनी पड़ती थी।

गणतंत्र काल ( 500 - 133 ई. पू. ) 

लगभग 500 ई. पू. में राजस्थान प्रशासन के विरुद्ध एक क्रांति हुई, जिसके फलस्वरूप राजतंत्र का अंत हो गया और उसके स्थान पर वहां गणतंत्र शासन की स्थापना हुई और यह एक लंबे समय तक चलता रहा। ऐसे अवधि में शासन का संचालन दो प्रमुख अधिकारियों द्वारा किया जाता था, जिन्हें 'कौंसल' कहते थे। उनका चुनाव 1 वर्ष के लिए किया जाता था। वे गणतंत्र के महान शासक सेनापति व पुरोहित के रूप में कार्य करते थे। कानून का पालन कराने का उत्तरदायित्व उन्हीं पर रखा गया था, किंतु उन्हें अपने कार्यों में सीनेट की सलाह लेनी पड़ती थी। सीनेट तथा सभा का प्रभाव इस काल में भी बना रहा। सीनेटर का मुख्य कार्य सीनेट को महत्वपूर्ण विषयों पर सलाह देना था। इसी के द्वारा सेना की नियुक्ति भी की जाती थी। युद्ध  एवं संधि का निर्णय, उच्च अधिकारियों की नियुक्ति सभा के कर्तव्यों में सम्मिलित थे। कानून पारित करने के लिए एक अन्य सभा की व्यवस्था थी। संकट के समय में एक 'डिक्टेटर' की नियुक्ति होती थी, जिसका कार्यकाल 6 महीने होता था।

साम्राज्य विस्तार

 रोम की सैनिक शक्ति अधिक प्रबल हो चुकी थी। गणतंत्र काल में रोमन साम्राज्य का अधिक विस्तार हुआ। सर्वप्रथम रोम ने समस्त इटली पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात उसके उत्तरी अफ्रीका में स्तिथ कार्थेज के साथ अनेक युद्ध हुए जिसको प्यूनिक युद्ध कहते हैं। यह युद्ध लंबे समय तक चलते रहे, जिसके उपरांत रूम का कार्थेज पर अधिकार हो गया। कालांतर में रोम उत्तरी अफ्रीका, एशिया तथा यूरोप के अनेक देशों पर प्रभुत्व स्थापित हो गया। रोम का यह साम्राज्य विश्व के अनेक विस्तृत साम्राज्यों से भी अधिक विशाल माना जाता है।

प्रश्न 4. रोमन साम्राज्य के उत्कर्ष की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

 रोम में जुलियस सीजर द्वारा सत्ता पर अधिकार

( 1 ) रोम में सेनानायकों के प्रभाव में वृद्धि - इस काल में सेनानायकों के प्रभाव में वृद्धि हुई। युद्ध चलाने के लिए सीनेट की स्वीकृति मिलने पर सेनानायक अपने लिए सेना खुद ही जुटाते थे। सैनिकों को उनसे वेतन और लूट के माल का हिस्सा मिलता था। सैनिक अपने सेनानायकों के ही आदेश का पालन करते थे। जूलियस सीज़र रोम की सत्ता पर अधिकार करने का प्रयास करने लगा। वह 58 ई. पू. में गाल प्रदेश का गवर्नर नियुक्त हुआ।

( 2 ) गाल प्रदेश की विजय - गाल लोग पो नदी की घाटी और आधुनिक फ्रांस के क्षेत्र में रहते थे। सीजर के गाल का गवर्नर नियुक्त होने तक केवल पो नदी की घाटी और भूमध्य सागर का तटीय भाग ही रोम के अधिकार में था। सीजर ने संपूर्ण गाल प्रदेश पर कब्जा करने के लिए युद्ध छेड़ दिया। युद्ध 8 वर्ष तक चलता रहा। गाल अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए बड़ी वीरता से लड़े किंतु सीजर की सेना के सामने नहीं टिक सके। सीजर ने संपूर्ण गाल प्रदेश पर अधिकार कर लिया।

( 3 ) रोम में सत्ता पर अधिकार के लिए युद्ध - गाल प्रदेश की विजय के बाद सीजर के पास शक्तिशाली और वफादार सेना, महान सेनानायक की प्रतिष्ठा और अपार संपदा थी। उसने रोम पर अधिकार के लिए आक्रमण कर दिया। रोम की सीनेट की सेना का नेतृत्व पांपी कर रहा था। वह सीजर की शक्तिशाली सेना का सामना नहीं कर सका और रोम छोड़कर बाल्कन में शरण ली। सीजर का रोम पर अधिकार हो गया और उसके बाद संपूर्ण इटली पर भी उसने अधिकार कर लिया। सीजर की सेना ने बाल्कन में भी पांपी पीछा किया, वहाँ से भी भागकर उसने मिस्त्र की शरण ली, किंतु वहां उसकी हत्या कर दी गई। सीजर को 3 वर्ष तक एशिया, अफ्रीका और स्पेन में अपने प्रतिद्वंद्वियों से लड़ना पड़ा। अंत में सीजर को सफलता मिली।

( 4 ) सीजर का रोम का महाधिपति बनना - अपने प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर वह लौट आया और रोम का महाधिपति बन गया। अब उसे असीमित सत्ता प्राप्त हो गया। सीनेट और कौंसल चुपचाप उसका आदेश पालन करने लगे। उसने अपने को इंपरेटर ( आदेशदाता ) घोषित किया। रोम में इस नाम से सेनानायकों को संबोधित किया जाता था। सीजर ने उसे अस्थाई तौर पर नहीं, स्थाई तौर पर धारण कर लिया। वह रोम का सर्वशक्तिमान अधिनायक बन गया।

  उसके निरंकुश शासन से अभिजात वर्ग के लोग असंतुष्ट रहने लगे। उन्होंने सीजर के विरुद्ध षड्यंत्र रचा। ब्रूटस नामक व्यक्ति ने सीजर धोखे से हमला कर दिया और घायल कर दिया। 44 ई. पू. में उसकी मृत्यु हो गई।

ऑक्टेवियन ऑगस्टस तथा उसके उत्तराधिकारीयों के काल में रोमन साम्राज्य का उत्कर्ष

( 1 ) गणतंत्रवादियों की पराजय -  सीजर के सैनिकों ने षड्यंत्रकारियों को सजा देनी चाही, किंतु वे रोम छोड़कर भाग गए। मकदूनिया में गणतंत्रवादियो ने सेना जुटाई और इटली पर चढ़ाई की तैयारियां करने लगे। रोमन में रोम पुनः ग्रह युद्ध छिड़ गया। सीजर का भूतपूर्व सहायक एंटोनी और युवा ऑक्टेवियन, जो सीजर का दत्तक पुत्र वा भाई का पौत्र था, सेनानायक बने। इन दोनों में आपस में कोई मेल नहीं था, किंतु आतंकवादियों से लड़ने के लिए एक थे। उन्होंने रोम में प्रवेश कर रहे अपने हजारों विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया और फिलिप्पी नगर के निकट उन्होंने गणतंत्रवादियों को पराजित किया।

( 2 ) सत्ता के लिए एंटोनी और ऑक्टेवियन में संघर्ष -  एंटोनी और ऑक्टेवियन ने इस रोमन साम्राज्य के शासन को आपस में बांट लिया। एंटोनी पूर्वी प्रांतों का तथा ऑक्टेवियन पश्चिमी प्रांतों का शासन चलाते थे। किंतु दोनों ही एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां कर रहे थे। 31 ई. पू. में यूनान में एक्टियम अंतरीप के पास दोनों के बीच युद्ध हुआ। इसमें ऑक्टेवियन की विजय हुई। एंटोनी की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। एंटोनी अपनी सेना छोड़कर सिकंदरिया वापस चला आया। 30 ई. पू. में ऑक्टेवियन में सिकंदरिया पर आक्रमण कर दिया। एंटोनी ने आत्महत्या कर ली। मिस्र को रोमन साम्राज्य का प्रांत बना दिया गया।

( 3 ) ऑक्टेवियन का शासन - एंटोनी पर विजय पाने के बाद ऑक्टेवियन समस्त रोमन सेना का सेनापति और इंपेरेटर बन गया। 

रोम साम्राज्य कितने महाद्वीपों में फैला हुआ था?

इस कालक्रम के केंद्र बिंदु राज्य और साम्राज्य हैं। इनमें से कुछ, जैसे कि रोमन साम्राज्य, बहुत बड़े थे और तीन महाद्वीपों में फैले हुए थे।

रोमन साम्राज्य ने किन 3 महाद्वीपों पर कब्जा किया था?

रोमन साम्राज्य, अपने सबसे बड़े रूप में, यूरोप, अफ्रीका और एशिया में फैला हुआ था। टाइबर नदी से विस्तार करते हुए, रोमन साम्राज्य ग्रीस, इटली, मैसेडोनिया, स्पेन, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे आधुनिक देशों में फैल गया। यह अफ्रीका के उत्तरी क्षेत्रों में फैला हुआ है, जिसमें आधुनिक मिस्र के कुछ हिस्से भी शामिल हैं।

रोमन साम्राज्य का विस्तार कितना दूर हुआ?

200 ईसा पूर्व तक, रोमन गणराज्य ने इटली पर विजय प्राप्त कर ली थी, और निम्नलिखित दो शताब्दियों में इसने ग्रीस और स्पेन, उत्तरी अफ्रीकी तट, मध्य पूर्व के अधिकांश भाग, आधुनिक फ्रांस और यहां तक ​​कि ब्रिटेन के दूरस्थ द्वीप पर भी विजय प्राप्त कर ली थी।