पवन अपरदन से आप क्या समझते हैं? - pavan aparadan se aap kya samajhate hain?

उत्तर :

भूमिका में:


मृदा अपरदन की परिभाषा देते हुए उत्तर आरंभ करें-

मृदा अपरदन प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली एक भौतिक प्रक्रिया है जिसमें मुख्यत: जल एवं वायु जैसे प्राकृतिक भौतिक बलों द्वारा भूमि की ऊपरी मृदा के कणों को अलग कर बहा ले जाना सम्मिलित है। यह सभी प्रकार की भू-आकृतियों को प्रभावित करता है।

विषय-वस्तु में:


विषय-वस्तु के पहले भाग में मृदा अपरदन के बारे में थोड़ा और विस्तार पूर्वक बताते हुए उसके प्रकारों को बताएँ-

मृदा के अधिकांश पोषक तत्त्वों, कार्बनिक पदार्थों एवं कीटनाशकों को ऊपरी मृदा सम्मिलित किये हुए है। पृथ्वी की आधी ऊपरी मृदा पिछले 150 सालों मेें खत्म हो चुकी है। मानव क्रियाकलापों द्वारा मृदा अपरदन में तेज़ी से वृद्धि हुई हैै। एक तरफ जहाँ जल अपरदन नम क्षेत्रों के ढालनुमा एवं पहाड़ी भू-भागों की समस्या है, वहीं वायु अपरदन शुष्क, तूफानी क्षेत्रों के चिकने एवं समतल भू-भागों की समस्या है। मृदा अपरदन की क्रियाविधि में मिट्टी के कणों का ढीला होना और उनका विलगाव तथा अलग की गई मिट्टी का परिवहन शामिल होता है।

मृदा अपरदन के दो प्रकार होते हैं- जल अपरदन एवं पवन अपरदन

1. जल अपरदन: जल के द्वारा मृदा का ह्रास जल अपरदन कहलाता है।

  • वर्षा जल अपरदन: वर्षा जल की बूँदों के सीधे सतह से टकराने के कारण मृदा कण पृथक होकर स्थानांतरित हो जाते हैं जिसे वर्षा जल अपरदन कहते हैं।
  • परत अपरदन: वर्षा जल की बूंदों एवं जल बहाव के कारण ऊपरी मृदा से एकसमान रूप से पतली परतों के रूप में मृदा का कटाव एवं अलगाव परत अपरदन कहलाता है।
  • रिल अपरदन: तीव्र वर्षा के कारण जब जल पतली-पतली नालियों से होकर प्रवाहित होने लगता है तो अपरदन द्वारा कम गहरी नालियों का निर्माण ही रिल अपरदन कहलाता है।
  • बड़ी अवनलिका अपरदन: अत्यधिक सतही जल प्रवाह के कारण गहरी नालियों का निर्माण होता है जिसे बड़ी अवनलिका या गली कहते हैं। ऐसा अपरदन गली अपरदन कहलाता है।
  • धारा तट अपरदन: धाराएँ एवं नदियाँ एक किनारे को काटकर तथा दूसरे किनारे पर गाद भार को निक्षेपित करके अपने प्रवाह मार्ग को बदलती रहती हैं। यह धारा तट अपरदन कहलाता है।

2. पवन अपरदन: इस प्रकार का अपरदन वहाँ होता है जहाँ की भूमि मुख्यत: समतल, अनावृत्त, शुष्क एवं रेतीली तथा मृदा ढीली, शुष्क एवं बारीक दानेदार होती है। साथ ही वहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक (यथा-रेगिस्तानी क्षेत्र) हो।

विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम मृदा अपरदन हेतु उत्तरदायी कारकों पर चर्चा करेंगे-

जलवायु: वर्षा जल की मात्रा, तीव्रता, तापमान एवं पवनें मृदा अपरदन के स्वरूप एवं दर को प्रभावित करती हैं।

भू-स्थलाकृतिक कारक: इसके अंतर्गत सापेक्षिक उच्चावच, प्रवणता, ढाल इत्यादि आते हैं जो भौमिकीय अपरदन को अधिक प्रभावित करते हैं।

मानवीय कारक: वर्तमान में मानव मृदा अपरदन दर में बढ़ोतरी का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक हो गया है। भूमि उपयोग में परिवर्तन, निर्माण कार्य, त्रुटिपूर्ण कृषि पद्धतियाँ, अत्यधिक चराई आदि इसमें शामिल हैं।

निष्कर्ष


अंत में संतुलित, सारगर्भित एवं संक्षिप्त निष्कर्ष लिखें-

पवन अपरदन से आप क्या समझते हैं? - pavan aparadan se aap kya samajhate hain?

गेहूँ के एक खेत में अत्यधिक भूक्षरण का दृष्य

पवन अपरदन से आप क्या समझते हैं? - pavan aparadan se aap kya samajhate hain?

अपरदन (Erosion) वह प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानों का विखंडन और परिणामस्वरूप निकले ढीले पदार्थों का जल, पवन, इत्यादि प्रक्रमों द्वारा स्थानांतरण होता है। अपरदन के प्रक्रमों में वायु, जल तथा हिमनद और सागरीय लहरें प्रमुख हैं।[1]

परिचय[संपादित करें]

समुद्रतट पर लहरों और ज्वारभाटा की क्रिया के कारण पृथ्वी के भाग टूटकर समुद्र में विलीन होते जाते हैं। मिट्टी अथवा कोमल चट्टानों के अलावा कड़ी चट्टानों का भी इन क्रियाओं से धीरे धीरे अपक्षय होता रहता है। वर्षा और तुषार भी इस क्रिया में सहायक होते हैं। वर्षा के जल में घुली हुई गैसों की रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप, कड़ी चट्टानों का अपक्षय होता है। ऐसा जल भूमि में घुसकर अधिक विलेय पदार्थों के कुछ अंश को भी घुला लेता है और इस प्रकार अलग्न हुए पदार्थों को बहा ले जाता है।

वर्षा, पिघली हुई ठोस बर्फ और तुषार निरंतर भूमि का क्षरण करते हैं। इस प्रकार टूटे हुए अंश नालों या छोटी नदियों से बड़ी नदियों में और इनसे समुद्र में पहुँचते रहते हैं।

नदियों का अथवा अन्य बहता हुआ जल किनारों तथा जल की भूमि को काटकर, मिट्टी को ऊँचे स्थानों से नीचे की ओर बहा ले जाता है। ऐसी मिट्टी बहुत बड़े परिणाम में समुद्र तक पहुँच जाती है और समुद्र पाटने का काम करती है। समुद्र में गिरनेवाले जल में मिट्टी के सिवाय विभिन्न प्रकार के घुले हुए लवण भी होते हैं।

शुष्क प्रांतों में, जहाँ वनस्पति से ढंकी नहीं होती, वायु अपार बालुकाराशि एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाती है। इस प्रकार सहारा मरुभूमि की रेत, एक ओर सागर पार सिसिली द्वीप तक और दूसरी ओर नाइजीरिया के समुद्र तट तक, पहुँच जाती है। वायु द्वारा उड़ाया हुआ बालू ढूहों अथवा ऊँची चट्टानों के कोमल भागों को काटकर उनकी आकृति में परिवर्तन कर देता है। जल में बहा हुआ पदार्थ सदा ऊँचे स्थान से नीचे को ही जाता है, किंतु वायु द्वारा उड़ाई हुई मिट्टी नीचे स्थान से ऊँचे स्थानों को भी जा सकती है।

गतिशील हिम जिन चट्टानों पर से होकर जाता है उनका क्षरण करता है और इस प्रकार मुक्त हुए पदार्थ को अपने साथ लिए जाता है। वायु तथा नदियों के कार्य की तुलना में, ध्रुव प्रदेश को छोड़कर पृथ्वी के अन्य भागों में, हिम की क्रिया अल्प होती है।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • The Soil Erosion Site
  • International Erosion Control Association
  • International Soil Conservation Organization

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Erosion". Encyclopædia Britannica. 2015-12-03.

पवन अपरदन क्या है समझाइए?

Solution : पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की - प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।

वायु अपरदन क्या है in Hindi?

जब हवा मिट्टी को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाती है, तो इसे पवन अपरदन कहा जाता है।

पवन अपरदन वाले क्षेत्र में कृषि की कौन कौन सी पद्धति उपयोगी मानी जाती है?

पवन अपरदन वाले क्षेत्रों में पट्टिका कृषि श्रेयस्कर है, जो फसलों के बीच घास की पट्टियाँ विकसित कर की जाती हैं।

पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति को क्या कहते हैं?

पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति में बरखान विशेष उल्लेखनीय है जिसका तात्पर्य नव चन्द्राकार एवं चापाकार बालुका स्तूप से है जो पवन प्रवाह की दिशा से अनुप्रस्थीय दिशा में स्थित होता है और इसके शृंग उस दिशा की ओर अनुगमन करते हैं जिसमें पवन बहती है, क्योंकि स्तूप के सिरों पर प्रवाहित किए जाने के लिए थोड़ी रेत की मात्रा होती है ...