पौधे जड़ों द्वारा भूमि से पानी एवं पोषक तत्व, वायु से कार्बन डाई आक्साइड तथा सूर्य से प्रकाश ऊर्जा लेकर अपने विभिन्न भागों का निर्माण करते हैं. पेड़ पौधे भी इंसानों की तरह विकास करने के लिए पोषक तत्व का उपयोग करते हैं, पौधों को अपनी वृद्धि के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. पौधों को 17 तत्वों की आवश्यकता होती है Show
जिनके बिना पौधे की वृद्धि-विकास तथा प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं. इनमें से मुख्य तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है. इनमें से प्रथम तीन तत्व पौधे वायुमंडल से ग्रहण कर लेते हैं. पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है.मुख्य पोषक तत्व-नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश. गौण पोषक तत्व-कैल्सियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक. सूक्ष्म पोषक तत्व-लोहा, जिंक, कापर, मैग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान एवं क्लोरीन. पौधों में आवश्यक पोषक तत्व एवं उनके कार्य (Essential nutrients and their functions in plants) पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. इनमें से किसी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और भरपूर फसल नहीं मिलती . कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते है. नाइट्रोजन , फस्फोरस एवं पोटैशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते है. इनकी पौधों को काफी मात्रा में जरूरत रहती है. इन्हे प्रमुख पोषक तत्व कहते है. कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक को पौधे कम मात्रा में ग्रहण करते है. इन्हे गौड अथवा द्वितीयक पोषक तत्व कहते है. लोहा, जस्ता, मैगनीज, तांबा, बोरोन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन तत्वों की पौधों को काफी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है. इन्हे सूक्ष्म पोषक तत्व कहते है. पोषक तत्वों के कार्य (Nutritional functions)नाइट्रोजनसभी जीवित ऊतकों यानि जड़, तना, पत्ति की वृद्दि और विकास में सहायक है. क्लोरोफिल, प्रोटोप्लाज्मा प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्लों का एक महत्वपूर्ण अवयव है. पत्ती वाली सब्जियों और चारे की गुणवत्ता में सुधार करता है. फास्फोरसपौधों के वर्धनशील अग्रभाग, बीज और फलों के विकास हेतु आवश्यक है. पुष्प विकास में सहायक है. कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक है. जड़ों के विकास में सहायक होता है. न्यूक्लिक अम्लों, प्रोटीन, फास्फोलिपिड और सहविकारों का अवयव है. अमीनों अम्लों का अवयव है. पोटेशियमएंजाइमों की क्रियाशीलता बढाता है. ठण्डे और बादलयुक्त मौसम में पौधों द्वारा प्रकाश के उपयोग में वृद्धि करता है, जिससे पौधों में ठण्डक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है. कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण, प्रोटीन संश्लेषण और इनकी स्थिरता बनाये रखने में मदद करता है. पौधों की रोग प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि होती है. इसके उपयोग से दाने आकार में बड़े हो जाते है और फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है. कैल्शियमकोशिका भित्ति का एक प्रमुख अवयव है, जो कि सामान्य कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक होता है. कोशिका झिल्ली की स्थिरता बनाये रखने में सहायक होता है. एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है. पौधों में जैविक अम्लों को उदासीन बनाकर उनके विषाक्त प्रभाव को समाप्त करता है. कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद करता है. मैग्नीशियमक्लोरोफिल का प्रमुख तत्व है, जिसके बिना प्रकाश संश्लेषण (भोजन निर्माण) संभव नहीं है. कार्बोहाइट्रेड-उपापचय, न्यूक्लिक अम्लों के संश्लेषण आदि में भाग लेने वाले अनेक एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है. फास्फोरस के अवशोषण और स्थानांतरण में वृद्दि करता है. गंधकप्रोटीन संरचना को स्थिर रखने में सहायता करता है. तेल संश्लेषण और क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है. विटामिन के उपापचय क्रिया में योगदान करता है. जस्तापौधों द्वारा फास्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन-संश्लेषण में मदद करता है. हार्मोनों के जैव संश्लेषण में योगदान करता है. अनेक प्रकार के खनिज एंजाइमों का आवश्यक अंग है. तांबापौधों में विटामिन ‘ए’ के निर्माण में वृद्दि करता है. अनेक एंजाइमों का घटक है. लोहापौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण और रख रखाव के लिए आवश्यक होता है. न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में एक आवश्यक भूमिका निभाता है. अनेक एंजाइमों का आवश्यक अवयव है. मैगनीजप्रकाश और अन्धेरे की अवस्था में पादप कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं को नियंत्रित करता है. नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ा देता है. पौधों में होने वाली अनेक महत्वपूर्ण एंजाइमयुक्त और कोशिकीय प्रतिक्रियओं के संचालन में सहायक है. कार्बोहाइट्रेड के आक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन आक्साइड और जल का निर्माण करता है. बोरोनप्रोटीन-संश्लेषण के लिये आवश्यक है. कोशिका –विभाजन को प्रभावित करता है. कैल्शियम के अवशोषण और पौधों द्वारा उसके उपयोग को प्रभावित करता है. कोशिका झिल्ली की पारगम्यता बढ़ाता है, फलस्वरूप कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद मिलती है. एंजाइमों की क्रियाशीलता में परिवर्तन लाता है. मोलिब्डेनमकई एंजाइमों का अवयव है. नाइट्रोजन उपयोग और नाइट्रोजन यौगिकीकरण में मदद करता है. नाइट्रोजन यौगिकीकरण में राइजोबियम जीवाणु के लिए आवश्यक होता है. क्लोरीनक्लोरीन पादप हार्मोनों का अवयव है. बीजों में यह इण्डोलएसिटक एसिड का स्थान ग्रहण कर लेता है. एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है. कवकों और जीवाणुओं में पाये जाने वाले अनेक यौगिकों का अवयव है. पोषक तत्वों की कमी के लक्षण (Nutritional deficiency symptoms)नाइट्रोजनपौधों की बढवार रूक जाती है तथा तना छोट एवं पतला हो जाता है. पत्तियां नोक की तरफ से पीली पड़ने लगती है. यह प्रभाव पहले पुरानी पत्तियों पर पड़ता है, नई पत्तियाँ बाद में पीली पड़ती है. पौधों में टिलरिंग कम होती है. फूल कम या बिल्कुल नही लगते है. फूल और फल गिरना प्रारम्भ कर देते है. दाने कम बनते है. आलू का विकास घट जाता है. फास्फोरसपौधों की वृद्धि कम हो जाती है. जडों का विकास रूक जाता है. पत्तियों का रंग गहरा हरा तथा किनारे कहरदार हो जाते है. पुरानी पत्तियाँ सिरों की तरफ से सूखना शुरू करती है तथा उनका रंग तांबे जैसा या बैंगनी हरा हो जाता है. टिलरिंग घट जाती है. फल कम लगते है, दानो की संख्या भी घट जाती है. अधिक कमी होने पर तना गहरा पीला पड़ जाता है. पोटाशपौधों में ऊपर की कलियों की वृद्धि रूक जाती है. पत्तियाँ छोटी पतली व सिरों की तरफ सूखकर भूरी पड़ जाती है औरमुड़ जाती है. पुरानी पत्तियाँ किनारों और सिरों पर झुलसी हुई दिखाई पड़ती है तथा क्इनारे से सूखना प्रारम्भ कर देती है. किल्ले बहुत अधिक निकलते है. तने कमजोर हो जाते है. फल तथा बीज पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते तथा इनका आकार छोटा, सिकुड़ा हुआ एवं रंग हल्का हो जाता है. पौधों पर रोग लगने की सम्भावना अधिक हो जाती है. कैल्शियमनये पौधों की नयी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है. ये प्राय: कुरूप, छोटी और असामान्यता गहरे हरे रंग की हो जाती है. पत्तियों का अग्रभाग हुक के आकार का हो जाता है, जिसे देखकर इस तत्व की कमी बड़ी आसानी से पहचानी जा सकती है. जड़ो का विकास बुरी तरह प्रभावित होता है और जड़े सड़ने लगती है. अधिक कमी की दशा में पौधों की शीर्ष कलियां (वर्धनशील अग्रभाग) सूख जाती है. कलियां और पुष्प अपरिपक्व अवस्था में गिर जाती है. तने की संरचना कमजोर हो जाती है. मैग्नीशियमपुरानी पत्तियां किनारों से और शिराओं एवं मध्य भाग से पीली पड़ने लगती है तथा अधिक कमी की स्थिति से प्रभावित पत्तियां सूख जाती है और गिरने लगती है. पत्तियां आमतौर पर आकार में छोटी और अंतिम अवस्था में कड़ी हो जाती है और किनारों से अन्दर की ओर मुड़ जाती है. कुछ सब्जी वाली फसलों में नसों के बीच पीले धब्बे बनाया जाते है और अंत में संतरे के रंग के लाल और गुलाबी रंग के चमकीले धब्बे बनाया जाते है. टहनियां कमजोर होकर फफून्दीजनित रोग के प्रति सवेदनशील हो जाती है. साधाराणतया अपरिपक्व पत्तियां गिर जाती है. गन्धकनयी पत्तियां एक साथ पीले हरे रंग की हो जाती है. तने की वृद्दि रूक जाती है. तना सख्त, लकड़ी जैसा और पतला हो जाता है. जस्ताजस्ते की कमी के लक्षण मुख्यत: पौधों के ऊपरी भाग से दूसरी या तीसरी पूर्ण परिपक्व पत्तियों से प्रारम्भ होते है. मक्का में प्रारम्भ में हल्के पीले रंग की धारियां बनाया जाती है और बाद में चौड़े सफेद या पीले रंग के धब्बे बनाया जाते है. शिराओं का रंग लाल गुलाबी हो जाता है. ये लक्षण पत्तियों की मध्य शिरा और किनारों के बीच दृष्टिगोचर होटल है, जो कि मुख्यत: पत्ती के आधे भाग में ही सीमित रहते है. धान की रोपाई के 15-20 दिन बाद पुरानी पत्तियों पर छोटे-छोटे हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते है, जो कि बाद में आकार में बड़े होकर आपस में मिल जाते ह. पत्तियां (लोहे पर जंग की तरह) गहरे भूरे रंग की हो जाती है और एक महीने के अन्दर ही सूख जाती है. उपरोक्त सभी फसलों में वृद्दि रूक जाती है. मक्का में रेश और फूल देर से निकलते है और अन्य फसलों में भी बालें देर सेनिकलती है. तांबागेहूँ की ऊपरी या सबसे नयी पत्तियां पीली पड़ जाती है और पत्तियों का अग्रभाग मुड़ जाता है. नयी पत्तियां पीली हो जाती है. पत्तियों के किनारे कट-फट जाते हैं तने की गांठों के बीच का भाग छोटा हो जाता है. नीबूं के नये वर्धनशील अंग मर जाते है जिन्हें“एक्जैनथीमा” कहते है. छाल और लकड़ी के मध्य गोन्द की थैली सी बन जाती है और फलों से भूरे रंग का स्राव/रस निकलता रहता है. लोहामध्य शिरा के बीच और उसके पास हरा रंग उड़ने लगता है. नयी पत्तियां सबसे पहले प्रभावित होती है. पत्तियों के अग्रभाग और किनारे काफी समय तक आना हरा रंग बनाये रहते है. अधिक कमी की दिशा में, पूरी पत्ती, शिराएं और शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है. कभी कभी हरा रंग बिल्कुल उड़ जाता है. मैगनीजनयी पत्तियों के शिराओं के बीच का भाग पीला पड़ जाता है, बाद में प्रभावित पत्तियां मर जाती है. नयी पत्तियों के आधार के निकट का भाग धूसर रंग का हो जाता है, जो धीरे-धीरे पीला और बाद में पीला- नारंगी रंग का हो जाता है. अनाज वाली फसलों में“ग्रे स्प्रेक” खेत वाली मटर में “मार्श स्पाट” और गन्ने में “स्टीक रोग” आदि रोग लग जाते है. बोरोनपौधो के वर्धनशील अग्रभाग सूखने लगते है और मर जाते है. पत्तियों मोटे गठन की हो जाती है, जो कभी- कभी मुड़ जाती है और काफी सख्त हो जाती है. फूल नहीं बनाया पाते और जड़ों का विकास रूक जाता है. जड़ वाली फसलों में“ब्राउन हार्ट” नामक बीमारी हो जाती है, जिसमें जड़ के सबसे मोटे हिस्से में गहरे रंग के धब्बे बन जाते है. कभी-कभी जड़े मध्य से फट भी जाती है. सेब जैसे फलों में आंतरिक और बाह्य कार्क के लक्षण दिखायी देते है. मोलिब्डेनमइसकी कमी में नीचे की पतियों की शिराओं के मध्य भाग में पीले रंग के धब्बे दिखाई देते है. बाद में पत्तियों के किनारे सूखने लगते है और पत्तियां अन्दर की ओर मुड़ जाती ह फूल गोभी की पत्तियां कट-फट जाती है, जिससे केवल मध्य शिरा और पत्र दल के कुछ छोटे-छोटे टुकड़े ही शेष रह जाते है. इस प्रकार पत्तियां पूंछ के सामान दिखायी देने लगती है, जिसे “हिप टेल” कहते है. मोलिब्डेनम की कमी दलहनी फसलों में विशेष रूप से देखी जाती है. क्लोरीनपत्तियों का अग्रभाग मुरझा जाता है, जो अंत में लाल रंग का हो कर सूख जाता है. नोटपौधों के सर्वांगीण विकास एवं वृद्धि के लिये उपर्युक्त सभी पोषक तत्वों की उपलब्धता आवश्यक है. लेखकपुष्पेंद्र सिंह साहू(एम.एस.सी. एग्रीकल्चर),कीट विज्ञान विभाग,शुआट्स, इलाहाबाद, भारत डॉ. हादी हुसैन खान(शोध सहयोगी), कीट विज्ञान विभाग,क्षेत्रीयवनस्पति संगरोध केन्द्र,अमृतसर, पंजाब,भारत डॉ. हुम नाज़(शोध सहयोगी), पादप संगरोध विभाग, वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय,फरीदाबाद,हरियाणा,भारत English Summary: Article on Planr Deficiency Published on: 28 February 2018, 06:07 IST पौधे के लिए कितने पोषक तत्व चाहिए?मुख्य पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश। गौण पोषक तत्व- कैलशियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक। सूक्ष्म पोषक तत्व- लोहा, जिंक, कापर, मैग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान एवं क्लोरीन। पौधों में आवश्यक पोषक तत्व एवं उनके कार्य 👉🏻 पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
पौधों का मुख्य पोषक तत्व कौन सा है?इनमें से मुख्य तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है। नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश को पौधे अधिक मात्रा में लेते हैं, इन्हें खाद-उर्वरक के रूप में देना जरूरी है।
पौधों द्वारा सबसे अधिक मात्रा में आवश्यक तत्व कौन सा है?आवश्यक पोषक तत्वों के रूप व क्रियाएं निम्नानुसार हैं: 2022-23 Page 4 खनिज पोषण नाइट्रोजन: इस तत्व की अनिवार्यता पौधों में सर्वाधिक मात्रा में होती है।
पोटाश का उपयोग कब करना चाहिए?आमतौर पर पोटाश खाद का प्रयोग बुआई या रोपाई के समय करना चाहिए परन्तु हल्की अर्थात बलुई मिट्टी में पोटाश का विभाजित प्रयोग किया जा सकता है।
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