पितृ दोष और कालसर्प दोष में अंतर - pitr dosh aur kaalasarp dosh mein antar

इसे सुनेंरोकें*ज्योतिषीयों अनुसार पितृदोष कई प्रकार का होता है। कुंडली की भिन्न स्थिति अनुसार जाना जाता है कि किसी जातक को पितृदोष हैं। * जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। * विद्वानों ने पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है।

पितरों की मुक्ति के लिए क्या करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंपितृ पक्ष में नियमित रूप से प्रतिदिन पीपल या बरगद के पेड़ पर जल और काला तिल चढ़ाने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ पक्ष में गया जाकर अपने पूर्वजों या पितरों के नाम श्राद्ध या पिण्ड दान करना चाहिए. इससे पितृ शांत होते है और पितृ दोष से मुक्ति भी मिलती है. पितृ पक्ष में पंचबली की श्राद्ध करनी चाहिए.

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पितृ दोष के क्या लक्षण है?

पितृ दोष के लक्षण

  • पितृ दोष होने पर व्‍यक्ति के जीवन में संतान का सुख नहीं मिल पाता है।
  • नौकरी और व्‍यवसाय में मेहनत करने के बावजूद भी हानि होती रहे।
  • परिवार में अक्‍सर कलह बने रहना या फिर एकता न होना।
  • परिवार में किसी न किसी व्‍यक्ति का सदैव अस्‍वस्‍थ बने रहना।
  • परिवार में विवाह योग्‍य लोगों का विवाह न हो पाना।

पितृ ऋण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंपितृ ऋण : यह ऋण हमारे पूर्वजों का माना गया है। स्वऋण या आत्म ऋण का अर्थ है कि जब जातक, पूर्व जन्म में नास्तिक और धर्म विरोधी काम करता है, तो अगले जन्म में, उस पर स्वऋण चढ़ता है। मातृ ऋण से कर्ज चढ़ता जाता है और घर की शांति भंग हो जाती है। भाई के ऋण से हर तरह की सफलता मिलने के बाद अचानक सब कुछ तबाह हो जाता है।

कालसर्प दोष और पितृ दोष में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में राहु और केतु के मध्य जब सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब नवम भाव में सूर्य, राहु या केतु विराजमान हो जाते हैं तो, पितृ दोष नाम का अशुभ योग बनता है।

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पितृ दोष की पूजा कहाँ होती है?

इसे सुनेंरोकें(1) पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . या पीपल का पेड़ किसी नदी के किनारे लगायें और पूजा करें, इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है .

पितृ दोष कैसे लगता है?

इसे सुनेंरोकेंपितृ दोष, राहु और केतु से बनता है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में जब नवम भाव में राहु या केतु विराजमान हो जाएं तो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित माना जाता है. पितृ दोष की स्थिति को इस लक्षणों के आधार पर भी समझा जा सकता है. पितृ दोष की स्थिति में कुंडली में होने पर घर में विवाद की स्थिति बनी रहती है.

नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है, यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं, लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, वह जीविका के लिये तरसता रहता है, वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।

अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।

"पितृ दोष के लिये उपाय" सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये, उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये, पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये, और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये, हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।

एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है, वे देखी रहते है, उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।

काल सर्प दोष कितनी उम्र तक रहता है?

यदि सभी ग्रह राहू या केतुके एक ओर स्थित हों तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। राहु- केतु की भावगत स्थिति के आधार पर अनन्तादि 12 प्रकार के कालसर्प योग निर्मित होते हैं। कालसर्प योग के कारण सूर्यादि सप्तग्रहों की शुभफल देने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इससे जातक को 42 साल की आयु तक परेशानियां झेलनी पड़ती है।

पितृ दोष और कालसर्प दोष में क्या अंतर है?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब नवम भाव में सूर्य, राहु या केतु विराजमान हो जाते हैं तो, पितृ दोष नाम का अशुभ योग बनता है। वहीं सूर्य और राहू जिस भी भाव में बैठते हैं तो इससे उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं और पितृ दोष की स्थिति बनती है।

पितृ दोष कैसे पता चलेगा?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब व्यक्ति की कुंडली में दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, नौंवे और दसवें भाव में सूर्य राहु या सूर्य शनि की युति हो रही है तो माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। लग्नेश यदि छठे आठवें बारहवें भाव में हो और लग्न में राहु हो तो भी पितृदोष बनता है।

कालसर्प दोष को हमेशा के लिए दूर कैसे करें?

कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए सोमवार के दिन शिव मंदिर में सवा लाख बार 'ओम नम: शिवाय' मंत्र का जप करें, इसके बाद शिवलिंग पर रूद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। साथ ही शिवलिंग पर चांदी के नाग-नागिन अर्पित करें। नाग स्तोत्र का पाठ करें