पशु पक्षियों के लिए पेड़ क्यों आवश्यक है - pashu pakshiyon ke lie ped kyon aavashyak hai

पशु पक्षियों के लिए पेड़ क्यों आवश्यक है - pashu pakshiyon ke lie ped kyon aavashyak hai

पशु पक्षियों के लिए पेड़ क्यों आवश्यक है - pashu pakshiyon ke lie ped kyon aavashyak hai

अधिकाधिक पौधारोपण एवं संरक्षण की महती आवश्यकता

पशु पक्षियों के लिए पेड़ क्यों आवश्यक है - pashu pakshiyon ke lie ped kyon aavashyak hai

दुनिया में ऐसा कोई विरला ही व्यक्ति होगा जिसे प्रकृति का सानिध्य अच्छा नही लगता हो, प्रकृति से प्यार नही हो अर्थात् दुनियाा के हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में प्रकृति से प्यार है, मोहब्बत है । प्रकृति की खूबसूरती हर किसी को अपनी ओर अनायास ही खींच लेती है । प्रकृति के लाजवाब सौरभ, रम्यता आदि के लिए बेजोड़, अनुपम, अद्वितीय, बेनजीर आदि विशेषण बेहद सटीक व उपयुक्त बैठते है । इस प्रकृति में पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियां, झरने, पहाड़-पर्वत, रेतीले धोरे, मैदान आदि अपनी-अपनी जगह मनोरम व दर्शनीय है और कुदरत की खूबसूरती में चार चांद लगाते है । प्रकृति में इन सबमें पेड़-पौधों का कुछ विशेष महत्व है । ये पेड़-पौधे प्रकृति को बेहतर से बेहतरीन बनाते है ।

  नाना प्रकार के पेड़-पौधे नाना प्रकार के फलों, फूलों, कलियों आदि के साथ-साथ अपने तने व जड़ से भी सम्पूर्ण कायनात की अनमेाल सेवा करते नजर आते है । इन्हीें पेड़ों से हर सजीव का जीवन जुड़ा हुआ है । जीव-जन्तुओं के लिए पेड़-पौधों का महत्व व उपयोगी होना कोई नई बात नही है । सदियों से हमारे पूर्वज पेड़-पौधों के महत्व को समझते हुए उनकी पूजा करते आए है । पेड़-पौधों से हमे अनगिनत लाभ प्राप्त हो रहे है । पेड़-पौधे प्रकृति और पर्यावरण की सुंदरता को बनाये रखते है। इन पेड़-पौधों के सानिध्य में मन को सुकून और शान्ति मिलती है । पृथ्वी पर हरियाली को देखते ही हमारा मन गद््गद हो जाता है । और हमारे चेहरे पर प्रसन्नता झलकने लगती है । हम बेहद खुश होते है ।  इन पेड़-पौधों पर लगने वाले अनेक रंगों के मन को हरने वाले फूल हमारे जीवन बेहद खास हो गए है । इन्हीं फूलों के सहारे हम अपने दिल की भावनाएं जाहिर करते है ।

  परिवेश में मौजूद प्रदूषण को दूर करने के लिए भी पेड़-पौधों की उपस्थिति बेहद जरूरी है । पृथ्वी पर प्रदूषण निरंतर अपना विकराल व भीषण रूप धारण कर रहा है। परिवेश में जितने अधिक पेड़-पौधे होंगे ,वातावरण उतना ही शुद्ध और साफ़ रहेगा। मनुष्य स्वार्थ, लोभ और उन्नति की आड़ में पेड़ों को काटे जा रहा है । वनो को साफ़ करके कारखाने, मकान आदि बनाये जा रहे है । प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए पेड़-पौधों का अधिक से अधिक रोपण एवं संरक्षण ज़रूरी है। वनो को लगातार काटे जाने के कारण कई पशु-पक्षियों की प्रजातियां समाप्त हो रही है ।

  हमारी प्रकृति को सुरक्षित, सुन्दर व बेहद खूबसूरत बनाने के लिए हमें अधिकाधिक पौधारोपण करने के साथ-साथ पूर्व में लगे हुए पेड़-पौधों को संरक्षित करना बेहद जरूरी है । पर्यावरण और प्रकृति को बचाना हमारा नैतिक दायित्व है। पेड़-पौधे पर्यावरण का अहम हिस्सा है। कुदरत की अनमोल भेंट व खूबसूरती के पर्याय पेड़-पौधों को बचाये रखना बेहद आवश्यक है।

 स्वच्छ पर्यावरण के लिए कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग में घने वन होना जरूरी

कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत के साथ कालकूट विष भी जन्मा था। भगवान शिव ने इस विष को पीकर देवों और दानवों दोनों की रक्षा की थी। विज्ञान बताता है कि शिव ही की तरह वृक्ष भी कार्बन-डाई-ऑक्साइड रूपी कालकूट विष पीकर अमृततुल्य प्राणवायु का अनुदान वातावरण में फैला रहे हैं ताकि इस जैविक सृष्टि की रक्षा संभव हो सके।

भारतीय जीवविज्ञानियों (Indian biologist) के अनुसार प्राणी जगत के लिए यदि एक वृक्ष की उपयोगिता का मूल्यांकन (Evaluation of the usefulness of the tree) किया जाये तो उसे वृक्ष का मूल्य प्रदूषण नियंत्रण, ऑक्सीजन निर्माण, आर्द्रता नियंत्रण, मिट्टी संरक्षण, पशु-पक्षी संरक्षण, जैव प्रोटीन तथा जल क्रम निर्माण आदि में लगभग 15 लाख 70 हजार रुपये बैठता है।

पेड़ों का मानव जीवन में क्या महत्व है? | वृक्षों का मानव जीवन में क्या महत्व है? | पेड़ हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से पेड़ अत्यन्त उपयोगी है। पर्यावरण संतुलन में पेड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इतना ही नहीं पेड़ मानव को विभिन्न औषधियां प्रादन करते है। इसलिए पुरातनकला से पेड़ों की पूजा की जाती है।

पेड़ भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। भारतीय मनीषी पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) पर सदैव से जोर देते आये हैं। भारत में रीति-रिवाजों व तीज-त्यौहारों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के उपाय किये जाते रहे हैं। विभिन्न अवसरों पर पेड़ लगाना उनकी जीवन पद्धति में समाहित है। भारतीय संस्कृति में अनेक विविधताओं के बाद भी पेड़ों के संरक्षण और संवर्द्धन की परम्परा अविच्छिन्न रूप से विद्यमान है। जन्म से मृत्यु तक सभी संस्कारों में पेड़ किसी ने किसी रूप में काम आते हैं। इसीलिए भारत में पेड़ लगाने के पुण्य और पेड़ काटने को पाप का कार्य माना गया है।

वनस्पति से मानव रहित सभी प्राणियों का पोषण होता है। पेड़ प्रदूषण को सोखकर प्राणी जगत को प्राणवान वायु प्रदान करते हैं। एक अनुमान के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में सघन पेड़ एक वर्ष में लगभग साढ़े तीन टन दूषित कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखकर लगभग दो टन जीवन रक्षक आक्सीजन छोड़ते है। पेड़ रेगिस्तान को बढ़ने से रोकते हैं। पेड़ शोर प्रदूषण को भी कम करते हैं। पेड़ों की आकर्षक शक्ति बादलों से वर्षा कराती है। पेड़ों से भोजन ही नहीं ईधन और आवास के लिए लकड़ी भी प्राप्त् होती है। पेड़ थके-हारे पथिक को छाया देते हैं। पेड़ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराते हैं। लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए बांस, बेंत, मोम, शहद, लकड़ी, गोंद, रबड़, जड़ी बूटियां, कत्था, रेशम आदि की प्राप्ति वनों से ही होती है। पेड़ों की पत्तियों से कृषि के लिए खाद प्राप्त् होती है। वन उत्पादों के निर्यात से देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। वन औद्योगीकरण आदि से होने वाले प्रदूषण से प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं। पेड़ की अधिकता भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाती है। वास्तव में पेड़ मानव को ईश्वर की ऐसी देन है कि जिसके गुणों की कोई सीमा नहीं है। पेड़ की उपयोगिता (usefulness of tree) के कारण ही देश के विभिन्न अंचलों से पेड़ों को लेकर अलग-अलग परम्परायें प्रचलित है।

ऋग्वेद और अथर्ववेद में पेड़ों के महत्व पर अधिक बल दिया गया है। ऋग्वेद में सोम वृक्ष और अथर्ववेद में पलाश वृक्ष की पूजा का वर्णन मिलता है। पेड़ों में पानी देना पुण्य का कार्य माना जाता है। पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन (protection and promotion of trees) के लिए यह जरूरी भी है। हमारे ऋषि मनीषियों ने पेड़ों की पूजा का विधान बनाकर पेड़ों के संरक्षण और संवर्द्धन का मार्ग प्रशस्त किया। पेड़ों के विकास के लिए उन्होंने अनेक सामाजिक व धार्मिक मान्यताएं स्थपित की। पेड़ को पुत्र के समान बताया गया है।

प्राचीन ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि जो वृक्षों को काटता है वह धन व संतान से वंचित हो जाता है। पुरातन काल से पेड़ों के संरक्षण के लिए इस प्रकार का धार्मिक भय समाज में उत्पन्न किया गया था। केवल सूखे पेड़ काटे जाने को उचित माना गया था। हर पेड़ काटने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है। इसलिए हरे पेड़ों को काटा जाना सदा निषिद्ध रहा है।

वनों का भूमि, हवा और जल पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी वनों का प्रभाव जलवायु नियंत्रित करने वाले सभी कारकों से अधिक होता है। वनों द्वारा सूर्य के प्रकाश के सोख लिया जाता है। जिससे पर्यावरण के तापक्रम में कमी आती है किन्तु दुर्भाग्य यह है कि अज्ञानी मानव द्वारा विकास की अंधी दौड़ में अनजाने ही वनों का अंधाधुंध काटा जा रहा है। वनों का काटकर मनुष्य अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी चला रहा है। उसको ध्यान ही नहीं है कि जो उसका पोषक है, वह उसी को नष्ट कर रहा है।

वनों के बिना जीवन के अस्तित्व की कल्पना ही नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय वन योजना आयोग के अनुसार स्वच्छ पर्यावरण के लिए कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग में घने वन होना जरूरी है। भारत में प्रतिवर्ष बारह लाख हेक्टेयर वन काटे जा रहे हैं। यदि वन काटने की यही गति चलती रही तो शताब्दी के अंत तक केवल पाँच प्रतिशत भूभाग पर वन रह जायेंगे।

वनों के तीव्र गति से कटने के कारण पर्यावरण संतुलन में कमी आयी है। परिणाम स्वरूप कहीं बाढ़ का खतरा उत्पन्न हुआ है तो कही रेगिस्तान का विस्तार हुआ है।

अंग्रेज भू-वैज्ञानिक रिजी केण्डर की खोज के अनुसार, जहाँ अब रेगिस्तान है, वहाँ पहले कभी खेती होती थी, वन भी थे और नदियां भी बहती थीं, पर लोगों ने लकड़ी के लालच में पेड़ों को काट डाला। जिस कारण वन नष्ट हो गये और भूमि उर्वरता भी लुप्त हो गयी। नदियों का पानी भाप बनकर उड़ गया। अब बंजर रेगिस्तान है।

वैज्ञानिक ने चेतावनी दी है कि यदि वनों के विनाश को नहीं रोका गया तो राजस्थान के रेगिस्तान का विस्तार कोई नहीं रोक सकेगा।

फ्रांसीसी लेखक रेनेदेवातेब्रि ने रेगिस्तानों के लिए मानव को जिम्मेवार ठहराया है, उसका कहना है कि जंगल मनुष्य के जन्म से पहले थे, रेगिस्तान मनुष्य के कारण बने हैं। वन विनाश और असंतुलित औद्योगिक विकास के दिनों-दिन प्राकृतिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न हो रही है। कार्बन डाईआक्साइड को सोखने वाले पेड़ों के अभाव में वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड बढ़ती जा रही है। यह गैस धूप को पृथ्वी पर आने तो देती है वापस नहीं जाने देती, जिस कारण वायुमण्डल का ताप धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा इसी प्रकार बढ़ती रही तो अगले तीस चालीस वर्षो में धरती का ताप 3 से 5 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ जायेगा। परिणाम स्वरूप जहाँ रेगिस्तान बढ़ सकते हैं वही ध्रुवों की बर्फ पिघलने से सागरों का जलस्तर ऊँचा होने से दुनिया के अनेक नगर जलमग्न हो सकते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तर भारत में बाढ़ आने का प्रमुख कारण हिमालय क्षेत्र में वन विनाश है, जिससे नदियों की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फालतू पानी नदियों के किनारों को तोड़कर बहने लगता है, इसी से बाढ़ की रचना होती है।

कुछ वर्ष पहले डॉ. जेम्स हेनसेन ने अमरीका सीनेट में चेतावनी दी थी कि ग्रीन हाउस प्रभाव ने पृथ्वी की जलवायु को बदलना प्रारंभ कर दिया है, जिससे हिमशिखर पिघलेंगे, समुद्र की लहरें टापुओं और बस्तियों को जलमग्न कर देंगी, पृथ्वी पर केवल एक ही ऋतु होगी – गर्मी की, जिसमें मानव, जन्तु और पेड़-पौधे झुलसने लगेंगे। तब वायुमण्डल के बढ़ते तापमान मे हमारी स्थिति होगी प्रेशर कुकर में रखे बैंगन की तरह, असहाय और निरूपाय।

वन विनाश के दुष्परिणामों को देखते हुए स्कॉटलैंड के विज्ञान लेखक राबर्ट चेम्बर्स ने लिखा है कि वन नष्ट होते हैं, तो जल नष्ट होता है, पशु, पक्षी और जलचर नष्ट होते है। उर्वरता नष्ट होती है और बाढ़, सूखा, आग, अकाल एवं महामारी के प्रेत एक के पीछे एक प्रकट होने लगते हैं।

वन संरक्षण और सम्वर्द्धन के लिए प्रत्येक काल में व्यवस्थायें की गयी। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में वन संरक्षण हेतु वन अधीक्षक नियुक्त किये जाते थे, सम्राट अशोक के समय में सडक़ों के दोनों ओर वृक्षारोपण पर बल दिया जाता था। बादशाह अकबर ने अपने शासनकाल में राजमार्गो और शहरों के किनारे पेड़ लगवाने में गहरी दिलचस्पी ली थी।

वर्तमान समय में भी सरकार की ओर से वन संरक्षण और संवर्द्धन के लिए व्यापक प्रयास किये गये हैं। सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के अन्तर्गत घटते हुए वन क्षेत्र को बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है। नेशनल रिमोट सेन्सिंग एजेन्सी के अनुसार देश में वन कुल भूमि के लगभग ग्यारह प्रतिशत क्षेत्र में रह गये है जबकि यह 33 प्रतिशत होने चाहिए।

जल संकट का एक मात्र समाधान सघन वृक्षारोपण

आज भीषण जल संकट की समस्या सभी नगरों व देशों में उत्पन्न हो रही है वैज्ञानिकों ने जल संकट का कारण वृक्षों को अत्यधिक काटना ही बताया है। जल संकट से मनुष्यों का जीवन भी संकट में आ गया है। इस संकट का एक मात्र समाधान सघन वृक्षारोपण ही है। इसलिए मानव एवं जीव मात्र की रक्षा हेतु अधिकाधिक वृक्ष लगाये तथा उनका पोषण करिये।

कृष्णचंद टवाणी

(देशबन्धु में प्रकाशित एक पुराने लेख का संपादित रूप साभार)

पक्षियों के लिए पेड़ का क्या उपयोग है?

ये ऑक्सीजन छोड़ते हैं. और, वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड सोख कर हवा को शुद्ध बनाते हैं.

पेड़ की आवश्यकता क्यों है?

वातावरण को शुद्ध रखने और संतुलन बनाए रखने में पेड़-पौधे अहम भूमिका निभाते हैं। ये मिट्टी का कटाव रोकते हैं और नमी बनाए रखते हैं। जहां पेड़-पौधों की संख्या ज्यादा होती है वहां बरसात में अच्छी बारिश होती है।

पशु पक्षियों को बचाने के लिए आप क्या क्या कर सकते हैं लिखिए?

Pakshiyon Ko Bachane Ke Upay.
अपनी बिल्लियों को अंदर रखें। ... .
पक्षी-अनुकूल कॉफी तक जाग जाओ। ... .
अपने पौधे को मूल पौधों के साथ भरें ताकि पक्षियों की सहायता की जा सके जो देशी पौधों के बीज और जामुन खाने के लिए अनुकूल हैं। ... .
कम मांस खाएं। ... .
झाड़ियों और जमीन के कवर के साथ अपने यार्ड प्राकृतिक का एक अच्छा हिस्सा छोड़ दें।.

पशु पक्षियों को घर की आवश्यकता क्यों होती है?

पशु पक्षियों का आवास अभ्यास (क) पशु-पक्षियों के लिए घर क्यों आवश्यक है? उत्तर: पशु-पक्षियों के लिए उन्हें खुद की एवं उनके बच्चों की सुरक्षा के लिए घर आवश्यक है।