पर्यावरण की कार्यप्रणाली प्राकतिक संसाधनों से संचालित होती है तथा पर्यावरण के तत्त्वों में पार्थिव एकता का विद्यमान है। पर्यावरण हमारी पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जो न केवल मानव अपितु विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के उद्भव, विकास एवं अस्तित्व का आधार है। सभ्यता के विकास से वर्तमान युग तक मानव ने जो प्रगति की है, उसमें पर्यावरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। Show
पर्यावरण से तात्पर्यजीवधारियों एवं वनस्पतियों के चारों ओर जो आवरण है, वह पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Environ से हुई है, जिसका अर्थ है- आवृत्त या घिरा हुआ। पर्यावरण जैविक (Biotic) तथा अजैविक (Abiotic) अवयवों का सम्मिश्रण है, जो जीवों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। पर्यावरण के कुछ कारक संसाधन के रूप में कार्य करते है. जबकि दूसरे कारक नियन्त्रक का कार्य करते है। कुछ विद्वानों ने पर्यावरण को मिल्यू (Milieu) से भी सम्बोधित किया है, जिसका अर्थ चारों ओर के वातावरण का समूह होता है। पर्यावरण को विभिन्न विषयों में इकोसफियर (Ecosphere), प्राकृतिक वास (Habitat), जीवमण्डल (Geosphere) जैसी शब्दावली से भी जाना जाता है। साधारण अर्थों में, “पर्यावरण उन परिस्थितियों तथा दशाओं (भौतिक दशाओं) को प्रदर्शित करता है, जो किसी एकल जीव या जीव समह को चारों ओर से आवृत्त (Cover) करती हैं तथा उसे प्रभावित करती है।” पर्यावरण की मुख्य विशेषताएँपर्यावरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
पर्यावरण के प्रकारपर्यावरण एक जैविक एवं भौतिक संकल्पना है इसलिए इसके अन्तर्गत केवल प्राकृतिक वातावरण को ही नहीं बल्कि मानवजनित पर्यावरण जैसे-सामाजिक व सांस्कृतिक पर्यावरण को भी शामिल किया जाता है। (i) प्राकृतिक पर्यावरणप्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment) के अन्तर्गत वे सभी जैविक (Organic) एवं अजैविक (Inorganic) तत्त्व शामिल है, जो पथ्वी पर प्राकतिक रूप में पाए जाते हैं। इसी आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण को जैविक एवं अजैविक भागों में बाँटा जाता है। जैविक तत्वों में सक्ष्म जीव, पौधे एवं जन्तु शामिल ह तथा अजैविक तत्त्वों के अन्तर्गत ऊर्जा, उत्सर्जन, तापमान, ऊष्मा प्रवाह, जल, वायुमण्डलीय गैसें, वायु, अग्नि, गुरुत्वाकर्षण, उच्चावच एवं मृदा शामिल है। (ii) मानव निर्मित पर्यावरणमानव निर्मित पर्यावरण (Man-Made Environment) के अन्तर्गत वे सभी स्थान सम्मिलित हैं, जो मानव ने कृत्रिम (Artificial) रूप से निर्मित किए हैं। अत: कृषि क्षेत्र, औद्योगिक शहर, वायुपत्तन, अन्तरिक्ष स्टेशन आदि मानव निर्मित पर्यावरण के उदाहरण हैं। जनसंख्या वृद्धि एवं आर्थिक विकास के कारण मानव निर्मित पर्यावरण का क्षेत्र एवं प्रभाव बढ़ता जा रहा है। (iii) सामाजिक पर्यावरणसामाजिक पर्यावरण (Social Environment) में सांस्कृतिक मूल्य एवं मान्यताओं को सम्मिलित किया जाता है। पृथ्वी पर भाषायी, धार्मिक रीति-रिवाजों, जीवन-शैली आदि के आधार पर सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment) का निर्माण होता है। राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक संस्थाएँ या संगठन, सामाजिक पर्यावरण का हिस्सा होने के साथ-साथ यह निर्धारित करते हैं कि पर्यावरणीय संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाएगा और किन लाभों के लिए किया जाएगा। पर्यावरण की संरचनापृथ्वी पर पाए जाने वाले पर्यावरण की संरचना का निर्माण निम्नलिखित चार वर्गों से मिलकर होता है-(i) स्थलमण्डलपृथ्वी का लगभग 29%
भाग स्थलमण्डल (Lithosphere) है, जो अधिकांश, जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों का सार है। इसमें पठार, मृदा, खनिज, पहाड़, चट्टानें आदि शामिल हैं। जीवों को स्थलमण्डल दो प्रकार से सहायता करता है। एक तरफ वे इन जीवों को आवास उपलब्ध कराते है, तो दूसरी तरफ जीव चाहे स्थलीय हो या जलीय, उसके लिए खनिज का स्रोत स्थलमण्डल ही होता है। (ii) जलमण्डलजलमण्डल (Hydrosphere) पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण घटक है, क्योंकि यह पृथ्वी पर स्थलीय व जलीय जीवन को सम्भव बनाने वाला प्रमुख कारण है। जलमण्डल के अन्तर्गत धरातलीय व भूमिगत जल को सम्मिलित किया गया। पृथ्वी पर स्थित जल अनेक रूपों में पाया जाता है. जैसे- महासागर (Ocean), झीलें (Lakes), बांध (Dam), नदियां (Rivers), हिमनद (Glacier), स्थल के नीचे स्थित भू-गार्भिक जल (Surface Water)। जीव जल को अपनी विभिन्न उपापचय (Metabolism) प्रक्रियाओं के लिए प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त जीवद्रव्य (Protoplasm) का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटक जल ही है। जलमण्डल पर अधिकांश लवणीय जल है, जोकि सागरों व महासागरों में स्थित है और मानव के लिए प्रत्यक्ष रूप से उपयोगी नहीं है। अलवणीय/स्वच्छ जल का संग्रहण (Storage) मुख्यत: नदियां, हिमनदियों व भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है। पथ्वी पर उपयोग हेतु उपलब्ध अलवण जल कुल जल का मात्रा का 1% से भी कम है। (iii) वायुमण्डलवायुमण्डल (Atmosphere) जीवन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक है, इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें पाई जाती है जिसमें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाई-ऑक्साइड महत्त्वपूर्ण हैं। वायुमण्डल (Atmosphere) को निम्न भागों में विभाजित किया जाता है-क्षोभमण्डलक्षोभमण्टल (Tronosphere) वायुमण्डल की सबसे निचला पत होती है, जो ध्रवों पर 8 किमी तथा विषवत रेखा पर 18 किमी की ऊँचाई तक पाई जाती है। इस मण्डल में तापमान क गिरने की दर 165 मी की ऊचाई पर 1°C तथा किमी की ऊँचाई पर 6.4°C होती है। क्षोभमण्डल में वायु मण्डल की कुल राशि का 90% भाग पाया जाता है। आँधी, बादल, वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाएँ मण्डल में घटित होती हैं। धरातलीय जीवों का सम्बन्ध इसी मण्डल से होता है। इसी के अन्तर्गत भारी गैसों, जलवाष्प तथा धूलिकणों का अधिकतम भाग रहता है। इस मण्डल की ऊँचाई सर्दी की अपेक्षा गर्मी में अधिक हो जाती है। इस मण्डल की ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा (Tropopause) भी कहते हैं। समतापमण्डलसमतापमण्डल (Stratosphere) वायुमण्डल में क्षोभमण्डल के ऊपर पाया जाता है। इसकी ऊँचाई विषवत रेखा पर 18 किमी से लेकर 50 किमी तक पाई जाती है। इस मण्डल में ओजोन (Ozone) परत पाई जाती है, इसलिए इसे ओजोनोस्फीयर (Ozonosphere) भी कहा जाता है। मध्यमण्डलमध्यमण्डल (Mesosphere) की ऊँचाई 50 से 80 किमी तक होती है तथा यहाँ तापमान में एकाएक गिरावट जाती है। मध्यमण्डल में ऊँचाई के साथ तापमान में ह्रास होता जाता है। इसकी ऊपरी सीमा -90°C द्वारा निर्धारित होती है, जिसको मेसोपाज (Mesopause) कहते हैं। तापमण्डलमध्यमण्डल (80 किमी.) के ऊपर वाला वायुमण्डलीय भाग (अनिश्चित ऊंचाई तक) तापमण्डल (Thermosphere कहलाता है। इसमें ऊँचाई के साथ तेजी से तापमान बढ़ता जाता है। इस मण्डल का तापमान अत्यधिक होने के बावजूद गर्मी महसूस नहीं होती है, क्योंकि इस ऊँचाई पर गैसें अत्यधिक विरल (Dispersed) हो जाती है और बहुत कम ऊष्मा को ही रख पाती हैं। इस मण्डल के दो भाग है:-
(iv) जैवमण्डलजैवमण्डल (Biosphere) पृथ्वी का वह हिस्सा है जहाँ जीवन सम्भव है। इसके अन्तर्गत निचला वायुमण्डल, स्थलमण्डल एवं जलमण्डल, जहाँ जीवित जीव पाए जाते हैं को शामिल किया जाता है अर्थात जैवमण्डल ऐसा क्षेत्र होता है जहाँ वायुमण्डल, स्थलमण्डल एवं जलमण्डल आपस में मिलते हैं। जैवमण्डल में समुद्र तल से 200 मीटर नीचे तक एवं 6000 मीटर की ऊँचाई तक जीवन सम्भव है। उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों तथा ऊँचे पर्वतों एवं गहरे महासागरों में पाई जाने वाली विषम जलवायु जीवन को सम्भव नहीं होने देती है। अत: इन क्षेत्रों में जैवमण्डल अनुपस्थित होता है। जैवमण्डल में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जीवन को सम्भव बनाती है, जबकि जीवों की पोषकों की आपूर्ति वायु जल एवं मृदा से होती है। जैवमण्डल में जीवों का वितरण समान नहीं है, क्योकि ध्रुवीय क्षेत्रों में कुछ ही जीव पाए जाते हैं, जबकि विषुवतीय वर्षा वनों में अत्यधिक जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पर्यावरण के संघटकपर्यावरण अनेक तत्त्वों का समूह है तथा प्रत्येक
तत्त्व का इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्व ही पारिस्थितिकी के भी तत्त्व हैं, क्योंकि पारिस्थितिकी का एक मूल घटक पर्यावरण है।
1. जैविक घटकपर्यावरण के जैविक घटकों के अंतर्गत पौधों, प्राणियों (मानव, जंतु, परजीवी, सूक्ष्मजीव आदि) एवं अवघटकों (Decomposer) को शामिल किया जाता है। पारितंत्र के जैविकीय घटक अजैविक पृष्ठभूमि में परस्पर क्रिया करते हैं और इनमें प्राथमिक उत्पादक (स्वपोषी) एवं उपभोक्ता (परपोषी) आते हैं। प्राथमिक उत्पादक (Primary Producers) या स्वपोषी (Autotroph)प्राथमिक उत्पादक जीव, आधारभूत रूप में हरे पौधे, कुछ खास जीवाणु एवं शैवाल (Algae), जो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में सरल अजैविक पदार्थों से अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं। वे स्वपोषी (Autotroph) अथवा प्राथमिक उत्पादक (Primary Producers) कहलाते हैं। उपभोक्ता (Consumers) या परपोषी (Heterotrophs)उपभोक्ता वे जीव जो स्वयं अपना भोजन नहीं बना सकते एवं अन्य जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं, उन्हें परपोषी (Heterotrophs) अथवा उपभोक्ता (Consumers) कहते हैं। इनके पुनः तीन उपवर्ग होते हैं
वियोजक या अपघटक (Decomposers)वियोजक/अपघटक (Decomposers) ये सक्ष्मजीव होते हैं, जो मृत पौधों जन्तुओं तथा जैविक पदार्थों को वियोजित (सड़ाना-गलाना) करते हैं। इस क्रिया के दौरान ये अपना भोजन भी निर्मित करते हैं तथा जटिल कार्बनिक (जैविक) पदाथा का एक-दूसर से पृथक कर उन्हें सामान्य बनाते हैं जिनका स्वपोषित, प्राथमिक उत्पादक हरे पौधे पनः उपयोग करते हैं। इनमें से अधिकांश जीव सुक्ष्म बैक्टीरिया तथा कवक (Fungi) के रूप म मृदा में रहते हैं। 2. अजैविक घटकपर्यावरण के अजैविक घटकों में प्रकाश, वर्षण, तापमान, आर्द्रता एवं जल, अक्षांश, ऊँचाई, उच्चावच आदि शामिल होते है। पर्यावरण के प्रमुख अजैविक घटक इस प्रकार हैं:-
पर्वत पर एवं मैदान में भी विस्तार, ऊंचाई, संरचना आदि की क्षेत्रीय विविधता होती है तथा अपरदन एवं अपक्षय क्रियाओं से अनेक भू-रूपों या स्थलाकृतियों का जन्म हो जाता है; जैसे-कहीं मरुस्थलीय स्थलाकृति है, तो कहीं चूना प्रदेश की और यदि एक और हिमानीकृत है, तो दूसरी ओर नदियों द्वारा निर्मित मैदानी डेल्टाई प्रदेश। पर्यावरणीय अध्ययन (Environment Study)पर्यावरण के अध्ययन को पर्यावरणीय अध्ययन कहा जाता है। पर्यावरणीय अध्ययन एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, जीव विज्ञान, कृषि, जन-स्वास्थ्य आदि अध्ययन की अनेकों शाखाएँ शामिल हैं। पर्यावरणीय अध्ययन के कारणपर्यावरणीय अध्ययन निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है:-
पर्यावरणीय अध्ययन के विषय क्षेत्रवर्तमान समय में पर्यावरण के सम्बन्ध में निम्नलिखित विषयों का विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है:-
मानव एवं पर्यावरणभूगोल में प्राय: मानव तथा पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। अमेरिका के प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता एलेन सी-सेम्पल के अनुसार, “मानव अपने पर्यावरण की उत्पत्ति है।” (Man is the product of Earth or his Environment.) भूगोलविदों द्वारा मानव एवं पर्यावरण के सम्बन्ध में कई विचारधाराओं/अवधारणाओं का प्रतिपादन किया गया है, जो इस प्रकार हैं:-
मानव पर पर्यावरण का प्रभावविश्वका प्रामाण तथा नगरीय जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भौतिक पर्यावरण से प्रभावित होटी है। पर्यावरण का भौतिक तत्त्व में सबसे अधिक प्रभाव जलवायु का मानव समाज और उनकी जीवन-शैली पर पड़ता है। इसके अन्तर्गत मध्य एशियायी क्षेत्रों तथा अफ्रीका एवं अन्य विषम जलवाय वाले क्षेत्रों में वहाँ का पर्यावरण वहाँ निवास करने वाले लोगों के जीवन स्पष्ट तौर पर प्रभावित करता है। जैसे- मध्य एशियायी क्षेत्रों के लोग पशु-चारण के द्वारा तथा कालाहारी तथा कांगो बेसिन के लोग शिकार तथा पारम्परिक कृषि एवं ध्रुवीय क्षेत्रों के लोग बर्फ के घरों (इग्लू) में रहने के साथ ही उन क्षेत्र में पाए जाने वाले जन्तुओं जीवों के सहारे जीवन-यापन करते हैं। इसके अतिरिक्त जलवायु का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से प्रजातियों (Reces) के रंगरूप, आँख, नाक, शरीर की बनावट, बाल, ठोढी, कपाल तथा चेहरे की आकृति पर पड़ता है। पर्यावरण पर मानव का प्रभावपर्यावरण पर मानव के प्रभाव को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है— प्रत्यक्ष प्रभाव और अप्रत्यक्ष प्रभाव। प्रत्यक्ष प्रभावप्रत्यक्ष प्रभाव के अन्तर्गत सुनियोजित तथा संकल्पित प्रकार के प्रभाव सम्मिलित होते हैं, क्योंकि मनुष्य किए जाने वाले कार्यों के परिणामों से अवगत रहता है। उदाहरण- भूमि उपयोग में परिवर्तन, नाभिकीय कार्यक्रम, मौसम रूपान्तर कार्यक्रम, निर्माण तथा उत्खनन आदि। प्रत्यक्ष प्रभाव अल्पकाल में परिलक्षित हो जाते हैं तथा दीर्घकाल तक पर्यावरण को प्रभावित करते रहते हैं। ये परिवर्तनीय (Reversible) भी होते हैं। अप्रत्यक्ष प्रभावइसके अन्तर्गत वे प्रभाव आते हैं, जो पहले से सोचे अथवा नियाजित (Planned) नहीं होते है। उदाहरण के लिए औद्योगिक विकास हेतु किए जाने वाले कार्यो के प्रभाव। शीघ्र परिलक्षित नहीं होते। इनमें से अधिकांश प्रदूषण तथा पर्यावरण अवनयन (Environment Degradation) से सम्बान्धत होते हैं। ये पारिस्थितिक तन्त्र में ऐसे परिवर्तन ले आते हैं, जो मानव के लिए घातक होते हैं।
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं इसके महत्व बताइए?पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत एक इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। पर्यावरण वह है जो कि प्रत्येक जीव के साथ जुड़ा हुआ है हमारे चारों तरफ़ वह हमेशा व्याप्त होता है।
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं परिभाषित कीजिए?वह सभी कुछ जो हम अपने चारों ओर देखते हैं, अनुभव करते हैं, जिनके साथ अंतःक्रिया करते हैं तथा जिन पर हमारा तथा अन्य जीवों का जीवन निर्भर करता है, पर्यावरण कहलाता है । आइए, विचार करें कि मानव भौतिक व प्राकृतिक पर्यावरण से किस प्रकार अंतःक्रिया करता है तथा उसका जीवन किस प्रकार पर्यावरण से प्रभावित होता है।
पर्यावरण की परिभाषा तथा पर्यावरण का हमारे जीवन में क्या महत्व है समझाइए?पर्यावरण शब्द 'परि' एवं 'आवरण' से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारों ओर व आवरण का अर्थ घेरा होता है अर्थात् हमारे चारों ओर जो कुछ भी दृश्यमान एवं अदृश्य वस्तुएँ हैं, वही पर्यावरण है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि हमारे आस-पास जो भी पेड़-पौधें, जीव-जन्तु, वायु, जल, प्रकाश, मिट्टी आदि तत्व हैं वही हमारा पर्यावरण है।
पर्यावरण से आप क्या समझते हैं इसके प्रकार बताइए?पर्यावरण से तात्पर्य
जीवधारियों एवं वनस्पतियों के चारों ओर जो आवरण है, वह पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Environ से हुई है, जिसका अर्थ है- आवृत्त या घिरा हुआ। पर्यावरण जैविक (Biotic) तथा अजैविक (Abiotic) अवयवों का सम्मिश्रण है, जो जीवों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है।
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