प्रयास और भूल के सिद्धांत से आप क्या समझते हैं? - prayaas aur bhool ke siddhaant se aap kya samajhate hain?


थार्नडाइक-अमेरिकी वैज्ञानिक(1874-1949


थार्नडाइक—- पशु मनोवैज्ञानिक


शिक्षा मनोविज्ञान के जनक

पुस्तक -एनीमल इंटेलीजेंस

सिद्धांत के अन्य नामसंबंध वाद का सिद्धांत

प्रयत्न भूल का सिद्धांत

प्रयास व त्रुटि का सिद्धांत

उद्दीपन अनुक्रिया का सिद्धांत

S-R सिद्धांत

आवृत्ति का सिद्धांत

संबंध वाद का सिद्धांत

बंध का सिद्धांत

चयन का सिद्धांत

प्रयोग

एक पिंजड़े में एक भूखी बिल्ली को बंद कर दिया जाता है बिल्ली कई बार पिंजड़े से निकलने के लिए प्रयास करती है अचानक लीवर पर पंजा लग जाता हैऔर लक्ष्य प्राप्त हो जाता है

अनुक्रिया के द्वारा उद्दीपन को प्राप्त करने की क्रिया को प्राणी सीख जाता है तो अनुबंधन कहलाता है

थार्नडाइक के नियम

  1. मुख्य नियम (तीन प्रकार)
  2. गौड नियम (पांच प्रकार)

मुख्य नियमअभ्यास का नियम

तत्परता का नियम

प्रभाव का नियम

अभ्यास का नियम

इस नियम के अनुसार किसी क्रिया को बार-बार करने या दोहराने से वह याद हो जाती है और छोड़ देने पर या ना दोहराने से वह भूल जाती है इस प्रकार यह नियम प्रयोग करने तथा प्रयोग न करने पर आधारित है उदाहरणार्थ कविता और पहाड़े याद करने के लिए उन्हें बार-बार दोहराना पड़ता है तथा अभ्यास के साथ-साथ उपयोग में भी लाना पड़ता है ऐसा ना करने पर सीखा हुआ कार्य भूलने लगता है उदाहरणार्थ याद की गई कविता को कभी ना सुनाया जाए तो वह धीरे धीरे भूलने लगते हैं यही बात साइकिल चलाना टाइप करना संगीत आदि

तत्परता का नियम

सीखने के इस नियम का अभिप्राय है जब प्राणी किसी कार्य को करने के लिए तैयार है तो उसमें उसे आनंद आता है और वह उसे शीघ्र सीख लेता है तथा जिस कार्य के लिए वह तैयार नहीं होता और उस कार्य को करने के लिए बाध्य किया जाता है तो वह जो भूल जाता है और उसे शीघ्र सीख भी नहीं पाता तत्परता में कार्य करने की इच्छा निहित होती है इच्छा ना होने पर प्राणी डर के मारे पढ़ने अवश्य बैठे जाएगा लेकिन वह कुछ सीख नहीं पाएगा तत्परता ही बालक के ध्यान को केंद्रित करने में सहायक होती है

प्रभाव का नियम

थार्नडाइक का यह नियम सीखने और अध्ययन का आधारभूत नियम है इस नियम को संतोष असंतोष का नियम भी कहते हैं इसके अनुसार जिस कार्य को करने से प्राणी को हितकर परिणाम प्राप्त होते हैं और जिसमें सुख और संतोष प्राप्त होता है उसी को व्यक्ति दोहराता है जिस कार्य को करने से कष्ट होता है और दुखद फल प्राप्त होता है उसे व्यक्ति नहीं दोहराता है इस प्रकार व्यक्ति उसी कार्य को सीखता है जिससे उसे लाभ मिलता है तथा संतोष प्राप्त होता है संक्षेप में जिस कार्य के करने से पुरस्कार मिलता है उसे सीखते हैं और जिस कार्य के करने से दंड मिलता है उसे नहीं सीखा जाता

गौण नियम

1बहु प्रतिक्रिया
2 मनो वृत्ति
3.आंशिक क्रिया
4.आत्मा किरण
5.साहचर्य क्रिया नियम

बहु प्रतिक्रिया का नियम

– इस नियम के अनुसार व्यक्ति के सामने जब नवीन समस्या आती है तो वह उसे समझने के लिए विविध प्रकार की क्रियाएं करता है और तब तक करता रहता है जब तक कि वह सही अनुक्रिया की खोज नहीं कर लेता ऐसा होने पर उसकी समस्या सुलझ जाती है और उसे संतोष मिलता है सफलता होने पर व्यक्ति को हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि एक के बाद एक उपाय पर अमल करते रहना चाहिए जब तक कि सफलता प्राप्त ना हो जाए यह नियम प्रयत्न एवं भूल पर आधारित है

मनो वृति का नियम

इस नियम को तत्परता या अभिवृत्ति का नियम भी कहते हैं इसके अनुसार यदि व्यक्ति मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार है तो नवीन क्रिया को आसानी से सीख लेगा और यदि वह मानसिक रूप से सीखने के लिए तैयार नहीं है तो उस कार्य को नहीं सीख सकेगा निद्रा सभ्यता थकावट आकांक्षाएं भावनाएं आदि सभी हमारी मनोवृत्ति को प्रभावित करती हैं उदाहरणार्थ मूर्ति को देख कर हिंदू हाथ जोड़ लेते हैं मूर्ति के सामने मस्तक टेकर संतुष्ट होते हैं तथा मूर्ति को चोट पहुंचाने से उन्हें भी चोट पहुंचती है

आंशिक क्रिया का नियम

– यह नियम इस बात पर बल देता है की कोई एक प्रक्रिया संपूर्ण स्थित के प्रति नहीं होती यह केवल संपूर्ण स्थित के कुछ पक्षों अथवा अंश के प्रति ही होती है जब हम किसी स्थित का एक ही अंश दोहराते हैं तो प्रतिक्रिया हो जाती है इस नियम में इस प्रकार अंश से पूर्व की ओर शिक्षण सूत्र का अनुसरण किया जाता है पाठ योजना को छोटी छोटी इकाइयों में विभक्त करके पढ़ाना इसी नियम पर आधारित है संक्षेप में व्यक्ति किसी समस्या के उपस्थित होने पर उनके अनावश्यक विस्तार को छोड़कर उनके मूल तत्व पर अपनी अनुक्रिया केंद्रित कर लेता है आंशिक क्रियाओं को करके समस्या का हल ढूंढ लेने को ही थार्नडाइक ने आंशिक क्रिया का नियम बताया है

समानता का नियम इस नियम

का आधार पूर्व ज्ञान या पूर्व अनुभव है किसी नवीन परिस्थिति या समस्या के उपस्थित होने पर व्यक्ति उससे मिलती-जुलती अन्य परिस्थिति या समस्या का स्मरण करता है जिससे वह पहले ही गुजर चुका है और ऐसी स्थित में वह वैसे ही अनुक्रिया करता है जैसी उसने पुरानी परिस्थिति में की थी इसके आधार पर नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से संबंध करके पढ़ने से सीखना सरल हो जाता है ज्ञात से अज्ञात की ओर शिक्षण सूत्र इसी नियम पर आधारित है

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मै साधारण और सरल स्वभाव का व्यक्ति हूँ मेरी लेखन के क्षेत्र में बचपन से रुचि है वर्तमान में मै कांम्पटीसन कोचिंग सेंटर चलाता हूँ ramkrishna garg द्वारा सभी पोस्ट देखें

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प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत क्या है?

किसी कार्य को हम एकदम से नहीं सीख पाते हैं। सीखने की प्रक्रिया में हम प्रयत्न करते हैं और बाधाओं के कारण भूलें भी होती हैं। लगातार प्रयत्न करने से सीखने में प्रगति होती है और भूलें कम होती जाती हैं। अत: किसी क्रिया के प्रति बार-बार प्रयास करने से भूलों का ह्रास होता है, तो इसको प्रयत्न और भूल का सिद्धान्त कहते हैं।

अधिगम के प्रयत्न एवं भूल सिद्धान्त के प्रणेता कौन थे?

इससे उसे संतोष मिलता है थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने का सिद्धान्त इसी नियम पर आधारित है। 2. मानसिक स्थिति या मनोवृत्ति का नियम - इस नियम के अनुसार जब आदमी सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहता है तो वह शीघ्र ही सीख लेता है।

प्रयास एवं भूल द्वारा सीखने के लिए क्या शिक्षक है?

( Prayas Evam Bhul Siddhant/ Vidhi ) इस सिद्धांत का प्रतिपादन थार्नडाइक ( Thorndike ) ने किया। उसके अनुसार मानव व जानवरों की सीखने की प्रक्रिया बहुत सीमा तक प्रयासों एवं भूलों पर निर्भर करती है। अपने इस सिद्धांत के पक्ष में उसने जानवरों पर कुछ प्रयोग किए जो विश्व प्रसिद्ध है

सीखने के प्रयत्न एवं भूल सिद्धान्त में कौन सा नियम महत्वपूर्ण है?

यदि हम किसी सीखे हुए कार्य का अभ्यास नहीं करते हैं, तो उसे हम भूल जाते हैं। अभ्यास से सीखना स्थायी होता है इसे थार्नडाइक ने उपयोग का नियम (Law of use) और बिना अभ्यास से ज्ञान विस्मृत हो जाता है, इसे अनुपयोग का नियम (Law of Disuse) कहा है।