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जालपा की चारित्रिक विशेषताओं को हम निम्न शीर्षकों में स्पष्ट कर सकते हैं- आभूषणों के प्रति तीव्र लालसा-
जालपा को बचपन से ही आभूषणों से बेहद लगाव था। उसका मनोवैज्ञानिक कारण है कि आरंभ से ही वह जिस वातावरण में पली बढ़ी वहाँ आभूषणों की ही चर्चा अधिक होती है। माँ उसे अक्सर आभूषण दिलवाती, विसाती से बिल्लौरी चंद्रहार दिलवा देती है उसे पाकर उसके आनंद की कोई सीमा नहीं रहती, सारे गाँव में वह इन गहनों को पहनकर घूमती रहती उसकी बाल संपत्ति भी यह आभूषण ही थे जिसमें वह बिल्लौरी चंद्रहार सबसे प्रिय था। जालपा की आभूषण प्रियता को प्रेमचंद कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं- उपन्यास से आप क्या समझते हैं? इसका मूल्यांकन औपन्यासिक तत्वों के आधार पर कीजिए।
विवाह पर आए आभूषणों में जालपा की निगाह चंद्रहार को ही खोजती है और जब उसे चंद्रहार कहीं नजर नहीं आता, परिणाम स्वरूप उसके कलेजे पर चोट सी लग गई। मालूम हुआ देह में रक्त की एक बूंद भी नहीं है। मानो उसे मूर्छा आ जाएगी। वह उन्माद की सी दशा में अपने कमरे में आई और फूट-फूटकर रोने लगी। ” यद्यपि आभूषण के प्रति इतना प्रेम होना उचित नहीं, किन्तु प्रस्तुत उपन्यास में इसे प्रेमचंद ने सकारात्मकता की ओर मोड़ दिया जैसे-जालपा को आभूषण दिलाने हेतु रमानाथ का नौकरी करना। आत्म सम्मान की भावना-जालपा में आत्म सम्मान और आत्म गौरव की बेहद ललक है। चंद्रहार न होना उसके लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया जिससे वह घर से बाहर नहीं निकलती, मुहल्ले में किसी से मेल-जोल नहीं रखती क्योंकि उसके पास आभूषण नहीं है। आभूषण, अच्छे कपड़े मिलते ही वह मुहल्ले की स्त्रियों की सिरमौर बन जाती है। इतना ही नहीं वह एडवोकेट इन्द्रभूषण की पत्नी रतन से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करती है, उसे घर चाय पर निमंत्रित करती है। आभूषण की लालसा होते हुए भी वह माता के द्वारा दिया चंद्रहार अस्वीकार कर देती है। सोचती है- “आत्मा जी इसे खुशी से नहीं दे रही हैं। बहुत संभव है कि इसे भेजते समय वह रोई भी हो और इसमें कोई संदेह नहीं कि इसे वापस पाकर सच्चा आनंद होगा। देने वाले का हृदय देखना चाहिए। प्रेम से यदि वह मुझे एक छल्ला भी दे दें तो मैं दोनों हाथों से ले लूंगी, दान भिखारियों को दिया जाता है। मैं किसी का दान न लूंगी चाहे वह माता ही का क्यों न हो।” इसके अतिरिक्त रमानाथ उधार आभूषण खरीदने की बात कहता है। इस पर जालपा सगर्व उत्तर देते हुए कहती है-
उपरोक्त कथन जालपा के आत्मसम्मान व आत्मगौरव को प्रदर्शित करते हैं। आदर्श पत्नीरमानाथ ने जो बड़प्पन का आवरण जालपा पर डाला था उसने ही उसके विवेक को ढँक लिया था। सही परिस्थितियों से परिचित होकर वह पश्चाताप करती है और स्वयं को दोष देती है। यह उसके चरित्र की उज्जवलता है कि वह अपने आभूषणों को बेचकर गबन किया हुआ रुपया म्यूनिचिस्पैिलिटी में जमा कर आती है, सर्राफा का ऋण भी चुका देती है। यहीं से उसके जीवन की नई यात्रा आरंभ होती है। जालपा के चरित्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि वह अपने दोषों को स्वीकार करती है। वह रमानाथ से अटूट प्रेम करती है, उसके लिए परिस्थितियों से समझौता करने को तैयार है। हिन्दी उपन्यास के स्वरूप एवं महत्व की विवेचना। आदर्श भारतीय नारी-कलकत्ता में रमानाथ की गवाही से सजा पाने वालों में एक दिनेश भी था जिसके घर में उसके अलावा देखभाल करने वाला कोई न था, जालपा रोज उसके घर जाती, उसके बच्चों की देखभाल करती और उन्हें सांत्वना देती। रमानाथ जब जालपा से मिलने का प्रयास करता है तो वह उससे मिलने से इंकार कर देती है। इसी बीच जब रमानाथ जोहरा को जालपा के पास भेजता है तो जोहरा जालपा की पवित्रता और सात्विकता से बहुत प्रभावित होती है फलतः अपना जीवन ही बदल लेती है। अंत में जालपा के चरित्र की शक्ति के प्रभाव में आकर रमानाथ जज से सच्चा हाल कह डालता है। इसी प्रकार जालपा उन आदर्श भारतीय रमणियों में से एक है जिनके प्रभाव से अनेक व्यक्तियों का उद्धार होता है। बुद्धिमता, भावुक नारी-जालपा भावुक किन्तु बुद्धिमान नारी है। उसमें भाव प्रवणता का अतिरेक है। वह सच्चे हृदय से पति की सेवा करती है। रमानाथ की जेब से एक पत्र उसके हाथ आता है, जिससे वह सारी स्थिति समझ जाती है। इसके पश्चात जब रमानाथ उसे दिखाई नहीं पड़ता तो वह शंकित हो जाती है और उसकी खोज में म्यूनिस्पैलिटी पहुँचती है। वहाँ आभूषण बेचकर रुपया जमा करती सर्राफ का कर्जा भी चुका देती है। समस्त विषम परिस्थितियों का एक साहसिक नारी की तरह सामना करती हुई देखी जाती है। रमानाथ का पता लगाने के लिये वह जिस प्रक्रिया को अपनाती है, उससे उसके बुद्धि कौशल का परिचय मिलता है। वह शतरंज के खेल का नक्शा पुरस्कार हेतु प्रकाशित कराकर रमानाथ का पता लगा लेती है। चरित्र का क्रमिक विकास और चरमोत्कर्ष-आरंभ में प्रेमचंद ने जालपा का परिचय एक आम भारतीय नारी के रूप में कराया फिर उसके चरित्र का क्रमिक विकास हुआ है। कलकत्ता की घटना उसके चरित्र को उत्कर्ष पर पहुँचाती है वहाँ खटिक देवीदीन जिसने उसके पति को आश्रय दिया था वह उसकी एहसानमंद थी इसलिए वह खटिक होकर भी उसके लिए ब्राह्मण के बराबर था। उसकी पत्नी जग्गो को वह माता के समान मानती है। अपने प्रयासों से वह रमानाथ को भी सही राह पर ले आती है। रमानाथ उसके त्याग और साधना से प्रभावित होकर कहता है:-
दिनेश की माँ भी जालपा के उपकारों की प्रशंसा करते हुए कहती है—
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि जालपा उपन्यास की प्रमुख नायिका है। संपूर्ण कथानक उसी को केन्द्र बनाकर रखा गया है। You may also likeAbout the authorPradeep Patelजलपा में आभूषण प्रियता कैसे उत्पन्न हुई?आभूषण प्रियता : जालपा को बचपन से ही आभूषण बहुत प्रिय थे। उसके खिलौने आभूषण ही थे। उसके आभूषण अति प्रिय होने का कारण उसके घर का वातावरण था क्योंकि उसकी मां भी सारा दिन आभूषणों की चर्चा करती रहती। उसकी मां उसे भी आभूषण दिलवाती , जिनमे से बिल्लौरी चंद्रहार उसका सबसे प्रिय था।
जालपा की सखी का नाम क्या था?लडकी का नाम जालपा था, माता का मानकी। महाशय दिीनदियाल प्रयाग के छोट - से गांव में रहते थ।
जालपा को कैसे प्रेम था?जालपा के चरित्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि वह अपने दोषों को स्वीकार करती है। वह रमानाथ से अटूट प्रेम करती है, उसके लिए परिस्थितियों से समझौता करने को तैयार है।
जालपा ने रमानाथ का पता लगाने क्या किया?5 जालपा में आत्म-सम्मान और आत्मगौरव की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है। चलता है कि वह अपने माता द्वारा भेजा हुआ चन्द्रहार वापस लौटा देती है। जब रमानाथ उधार आभूषण लेने की बात करता है तब जालपा बिल्कुल इनकार कर देती है क्योंकि उसे कर्ज लेकर आभूषण । से पता चलता है कि जालपा किए गए उपकारों को मानने * वाली नारी है।
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