Show राष्ट्रीय आन्दोलन का अंतिम चरण (1919-1947) प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात् राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर विभिन्न शक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ । युद्धोपरांत भारत में राष्ट्रवादी गतिविधियां पुनः प्रारंभ हो गयीं , लेकिन एशिया एवं अफ्रीका के अन्य उपनिवेश भी युद्ध के प्रभाव से अछूते नहीं रहे और इन उपनिवेशों में भी साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियां सिर उठाने लगीं । ब्रिटिश शासन के खिलाफ चल रहे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने इस समय एक निर्णायक मोड़ लिया । इसका सबसे प्रमुख कारण था - भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर महात्मा गांधी का अभ्युदय । राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी के प्रवेश के बाद इसके जनाधार एवं लोकप्रियता में अपार वृद्धि हुई तथा यह सम्पूर्ण भारतीय जनमानस का आंदोलन बन गया । गांधीवादी चरण
गांधी : सामान्य परिचय
गांधीजी का भारत आगमन
भारत में गांधीजी के प्रारंभिक सत्याग्रह चंपारण सत्याग्रह , 1917
अहमदाबाद मिल मजदूरों का आंदोलन(प्रथम भूख हड़ताल )1918
खेड़ा सत्याग्रह ( प्रथम असहयोग आंदोलन ) 1918
रौलेट एक्ट ( 1919 )
जलियाँवाला बाग हत्याकांड ( 13 अप्रैल , 1919 )
खिलाफत आंदोलन
असहयोग आंदोलन (1920-21)
दूसरे निर्णय के द्वारा कांग्रेस ने रचनात्मक कार्यक्रमों की एक सूची तैयार की जो इस प्रकार था- 1 . सभी वयस्कों को कांग्रेस का सदस्य बनाना । 2 . तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का गठन 3 . भाषायी आधार पर प्रांतीय कांग्रेस समितियों का पुनर्गठन । 4 . स्वदेशी मुख्यतः हाथ की कताई - बुनाई को प्रोत्साहन । 5 . यथासंभव हिन्दी का प्रयोग आदि ।
रचनात्मक कार्यक्रमों में शमिल था-
नकारात्मक कार्यक्रमों में मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार थे-
असहयोग आंदोलन की शुरूआत के समय ही कांग्रेस को तिलक की मृत्यु का एक बड़ा सदमा झेलना पड़ा । बाल गंगाधर तिलक की 1 अगस्त, 1920 को हुई मृत्यु के बाद उनकी अर्थी को महात्मा गांधी के साथ मौलाना शौकत अली तथा डाॅ. सैफुद्दीन किचलू ने उठाया था। मौलाना हसरत मोहानी ने उस समय शोक गीत पढ़ा था। कांग्रेस ने असहयोग के कार्यक्रम में 31 मार्च 1921 को विजयवाड़ा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में तिलक स्मारक के लिए स्वराज कोष के रूप में एक करोड़ रूपये एकत्र करना तथा समूचे भारत में करीब 20 लाख चरखे बंटवाने का कार्यक्रम भी शमिल कर लिया ।
मूल्यांकन
स्वराज पार्टी
गांधी दास पैक्ट ( 1924 )
क्रांतिकारी आतंकवादी आंदोलन का द्वितीय चरण ( 1924 - 34)
एच . आर . ए . के उद्देश्य ( i ) संगठित सशस्त्र क्रांति के द्वारा ब्रिटिश सत्ता को समाप्त कर एक ' संघीय गणतंत्र ' की स्थापना की जाये जिसे ' संयुक्त राज्य भारत ' कहा जाय । ( ii ) आंदोलन की सफलता के लिये शस्त्र और धन एकत्र करने के लिए राजनैतिक डकैतियों सहित राजनैतिक अपहरण । ( iii ) एच . आर . ए . की अनेक शाखायें स्थापित करना ।
बंगाल में क्रांतिकारी आंदोलन
क्रांतिकारी आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी महत्वपूर्ण समाचार पत्र , पत्रिका तथा पुस्तकें
साइमन कमीशन (1927-28)
नेहरू रिपोर्ट (1928)
रिपोर्ट में की गई सिफारिशें इस प्रकार थीं- • भारत को डोमेनियन (अधिराज्य) का दर्जा। • भारत एक संघ होगा, जिसके नियंत्रण में केंद्र में द्विसदनीय विधानमंडल होगा, मंत्रिमंडल सदन के प्रति उत्तरदायी होगा। • केंद्र और प्रांतों में संघीय आधार पर शक्तियों का विभाजन किया जाए, किंतु अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र को दी जाए। • सिंध को बंबई से पृथक् कर एक पृथक् प्रांत बनाया जाए। • उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत को ब्रिटिश भारत के अन्य प्रांतों के समान वैधानिक स्तर प्रदान किया जाए।
मुस्लिम तथा हिंदू सांप्रदायिक प्रतिक्रिया
जिन्ना की चौदह सूत्रीय माँगें
कॉन्ग्रेस का लाहौर अधिवेशन (पूर्ण स्वराज), 1929
गांधीजी द्वारा प्रस्तुत 11 सूत्रीय मांगें (31 जनवरी, 1930 )
1. सेना के व्यय तथा सिविल सेवा के वेतनों में 50 प्रतिशत की कटौती। 2. डाक आरक्षण बिल पास किया जाए। 3. पूर्ण शराब बंदी। 4. राजनीतिक बंदियों की रिहाई। 5. आपराधिक गुप्तचर विभाग में सुधार। 6. हथियार कानून में सुधार करके आत्मरक्षा हेतु भारतीयों को बंदूकों इत्यादि के लाइसेंस की स्वीकृति प्रदान की जाए। 7. रुपया- स्टर्लिंग के विनिमय अनुपात को घटाकर 1 शिलिंग 4 पेंस करना। 8. वस्त्र उद्योग को संरक्षण प्रदान करना। 9. भारतीय समुद्र तट केवल भारतीयों के लिये आरक्षित करना। 10. भूमिकर में कटौती हो तथा उस पर काउंसिल का नियंत्रण हो। 11. नमक कर व नमक पर सरकारी एकाधिकार समाप्त करना।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
वायसराय इरविन के समक्ष गांधी जी द्वारा प्रस्तुत 11 सूची मांग पत्र में प्रमुख मांगे इस प्रकार थीं- 1. सेना का खर्च तथा सिविल सेवा के वेतनों में पचास प्रतिशत कटौती। 2. पूर्ण शराब बन्दी। 3. राजनैतिक कैदियों की रिहाई । 4. भारतीयों को आत्मरक्षार्थ हथियार रखने का लाइसेंस। 5. रूपये का विनिमय दर एक सीलिंग चार पेन्स के बराबर किया जाय। 6. लगान में 50 प्रतिशत की कटौ। 7. नमक पर सरकारी इजारेदारी तथा नमक कर को समाप्त करना। 8. नशीली वस्तुओं के क्रय विक्रय पर प्रतिबन्ध। आन्दोलन की शुरूआत
आन्दोलन का कार्यक्रम 1. नमक कानून तथा ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन। 2. कानूनी अदालतों, सरकारी विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं सरकारी समारोहों का बहिष्कार । 3. भूराजस्व, लगान तथा अन्य करों की अदायगी पर रोक। 4. शराब तथा अन्य मादक पदार्थों का विक्रय करने वाली दुकानों पर शातिपूर्ण धरना। 5. विदेशी वस्तुए एवं कपड़ों का बहिष्कार। 6. सरकारी नैकरियों से त्याग पत्र। प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवंबर , 1930 से 19 जनवरी , 1931)
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन का आयोजन 7 सितम्बर, 1931 ई. को किया गया था। इस सम्मेलन की सबसे ख़ास बात यह रही कि इसमें महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। सम्मेलन में मुख्य रूप से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के आधार पर सीटों के बँटवारे के जटिल प्रश्न पर विचार-विनिमय होता रहा, किन्तु इस प्रश्न पर परस्पर मतैक्य न हो सका। क्योंकि मुस्लिम प्रतिनिधियों को ऐसा विश्वास हो गया था कि हिन्दुओं से समझौता करने की अपेक्षा अंग्रेज़ों से उन्हें अधिक सीटें प्राप्त हो सकेंगी। इस गतिरोध का लाभ उठाकर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने 'साम्प्रदायिक निर्णय' की घोषणा कर दी। 'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' के समय ब्रिटेन के सर्वदलीय मंत्रिमण्डल में अनुदारवादियों का बहुमत था। अनुदारवादियों ने सैमुअल होर को भारतमंत्री एवं लॉर्ड विलिंगडन को भारत का वायसराय बनाया। 7 सितम्बर, 1931 ई. को सम्मेलन शुरू हुआ। गाँधी जी 12 सितम्बर को 'एस.एस. राजपूताना' नामक जहाज़ से इंग्लैण्ड पहुँचे। इस सम्मेलन में वे कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि थे। एनी बेसेन्ट एवं मदन मोहन मालवीय व्यक्तिगत रूप से इंग्लैण्ड गये थे। एनी बेसेन्ट ने सम्मेलन में शामिल होकर भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया। द्वितीय गोलमेल सम्मेलन में कुल 21 लोगों ने भाग लिया था। साम्प्रदायिक समस्या इस गोलमेज़ सम्मेलन में राजनीतिज्ञों की कुटिल चाल के कारण साम्प्रादायिक समस्या उभर कर सामने आयी। मुस्लिमों एवं सिक्खों के साथ अनुसूचित जाति के लोगों के लिए भी राजनीतिज्ञों ने भाग लिया। महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधियों में भीमराव अम्बेडकर ने पृथक् निर्वाचन की मांग की। गाँधी जी इससे बड़े दुःखी हुए। सम्मेलन में भारतीय संघ की रूपरेखा पर विचार-विमर्श हुआ। भारत में एक संघीय न्यायालय की स्थापना की बात की गयी। अनेक प्रतिनिधयों ने केंद्र में 'द्वैध शासन' अपनाने की बात की। हिन्दुओं तथा मुस्लिमों के गतिरोध का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री रैम्ज़े मैकडोनल्ड ने साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा कर दी, जिसमें केवल मान्य अल्पसख्यकों को ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के दलित वर्ग को भी अलग प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था थी। महात्मा गांधी ने इसका तीव्र विरोध किया और आमरण अनशन आरम्भ कर दिया, जिसके फलस्वरूप कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार में एक समझौता हुआ, जो 'पूना समझौता' के नाम से विख्यात है। यद्यपि इस समझौते से साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की समस्या का कोई संतोषजनक समाधान नहीं हुआ, तथापि इससे अच्छा कोई दूसरा हल न मिलने के कारण सभी दलों ने इसे मान लिया। 1 दिसम्बर, 1931 ई. को 'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' बिना किसी ठोस निर्णय के समाप्त हो गया। 28 दिसम्बर को भारत पहुँचने पर स्वागत के लिए आयी हुई भीड़ को सम्बोधित करते हुए गाँधी जी ने कहा "मैं ख़ाली हाथ लौटा हूँ, परन्तु देश की इज्जत को मैंने बट्टा नहीं लगने दिया।" 'द्वितीय गोलमेल सम्मेलन' के समय फ़्रेंक मोरेस ने गाँधी जी के बारे में कहा "अर्ध नंगे फ़कीर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता हेतु सेण्ट जेम्स पैलेस की सीढ़ियाँ चढ़ने का दृश्य अपने आप में अनोखा एवं दिव्य प्रभाव उत्पन्न करने वाला था।" द्वितीय सविनय अवज्ञा आंदोलन ( 1932 से 1934 तक )
साम्प्रदायिक पंचाट और पूना समझौता ( 1932 )
तृतीय गोलमेज सम्मेलन ( 1932 )
कॉन्ग्रेस समाजवादी पार्टी
प्रांतीय चुनाव तथा मंत्रिमंडलों का गठन ( 1937 )
कॉन्ग्रेस का त्रिपुरी संकट ( 1939 )
अगस्त प्रस्ताव ( 8 अगस्त , 1940 )
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग
व्यक्तिगत सत्याग्रह ( 1940 )
क्रिप्स प्रस्ताव ( 1942 )
स्टैफर्ड क्रिप्स ने 22 मार्च , 1942 को भारत पहुंच कर एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसकी मुख्य शर्ते इस प्रकार थी- 1 . युद्ध के बाद एक भारत को ' डोमेनियन स्टेट ' का दर्जा दिया जायेगा जो । किसी घरेलू या बाहरी सत्ता के अधीन नहीं होगा और यदि वह चाहेगा तो ब्रिटिश राष्ट्र मंडल से सम्बन्ध विच्छेद कर सकेगा । 2 . युद्ध के बाद एक संविधान निर्मात्री परिषद बनेगी जिसमें ब्रिटिश भारत और देशी रजवाड़ों , दोनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे , जिसमें कुछ सदस्यों को प्रांतीय विधायिकाओं द्वारा तथा कुछ को शासकों द्वारा मनोनीत किया जाना था । 3 . ब्रिटिश , भारत का कोई भी प्रांत यदि नये संविधान को स्वीकार करना न चाहे तो उसे वर्तमान सांविधानिक स्थिति बनाये रखने का अधिकार होगा , नये संविधान को स्वीकार न करने वाले प्रांतों को सम्राट की सरकार अलग से एक नया संविधान देने को तैयार थी । 4 . युद्ध के दौरान एक कार्यकारी परिषद का गठन किया जायेगा जिसमें । भारतीय जनता के मुख्य - मुख्य वर्गों के प्रतिनिधि शामिल होंगे , लेकिन ब्रिटिश - भारत की सरकार के पास ही रक्षा मंत्रालय होगा ।
भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधीः
जय प्रकाश नारायणः
चित्तू पांडेः
उषा मेहताः
जवाहर लाल नेहरूः
सुमति मोरारजीः
रास बिहारी बोसः
कैप्टन मोहन सिंह:
सुभाष चंद्र बोसः
सी . राजगोपालाचारी एवं भूलाभाई देसाईः
के . जी . मशरवालाः
के . टी . भाश्यमः
सतीश सामंतः
नाना पाटिलः इन्होंने सतारा में विद्रोहियों का नेतृत्व किया । मातंगिनी हाजराः
लक्ष्मण नायकः
अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी की बैठक ग्वालिया टैंक , बंबई ( 8 अगस्त , 1942 )
विभिन्न वर्गों को गांधीजी द्वारा निर्देश इन निर्देशों की घोषणा ग्वालिया टैंक में ही कर दी गई थी ।
आदोलन का प्रसार
समानांतर सरकार की स्थापना
आंदोलन में आम - जन की भागीदारी युवक : मुख्य रूप से स्कूल एवं कॉलेज के छात्रों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी । महिलाएँ : स्कूल , कॉलेज की छात्राओं ने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभायी । सुचेता कृपलानी , अरुणा आसफ अली तथा ऊषा मेहता के नाम इनमें प्रमुख हैं । किसानः पूरे आंदोलन में इनकी सक्रिय भागीदारी रही । बंगाल , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश , गुजरात , केरल तथा संयुक्त प्रांत किसानों की गतिविधियों के मुख्य केंद्र थे । सरकारी अधिकारी; विशेष रूप से प्रशासन एवं पुलिस के निचले तबके से संबद्ध अधिकारियों ने आंदोलन में सहयोग दिया , फलत : इस तबके के सरकारी अधिकारियों से सरकार का विश्वास समाप्त हो गया । कम्युनिस्टः यद्यपि इनका निर्णय आंदोलन का बहिष्कार करना था , फिर भी स्थानीय स्तर पर सैकड़ों कम्युनिस्टों ने आंदोलन में भाग लिया । देशी रियासतें : इनका सहयोग सामान्य था । मुस्लिम : इस आंदोलन में मुसलमानों का योगदान संदेहास्पद था , फिर भी मुस्लिम लीग के कुछ सदस्यों ने भूमिगत नेताओं को अपने घरों में पनाह दी । आज़ाद हिंद फौज व सुभाष चंद्र बोस
सी आर फार्मूला (चक्रवर्ती राजगोपालाचारी फार्मूला 10 जुलाई 1944)
सी आर फार्मूला के मुख्य प्रावधान
मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ मिलकर भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करे व अस्थाई सरकार के गठन में कांग्रेस के साथ सहयोगी की भूमिका अदा करे उपर्युक्त सभी शर्तें तभी मानी जा सकती हैं जब ब्रिटेन भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता प्रदान करें
लाल किले का मुकदमा- नवंबर 1945
लाल किले के मुकदमे की प्रतिक्रियाएं
लाल किले के मुकदमे का फैसला
महत्व
वेवल योजना तथा शिमला सम्मेलन ( 1945 )
भारत मे कैबिनेट मिशन का आगमन कैबिनेट मिशन क्लीमेंट एटली मंत्रिमण्डल द्वारा 1946 ई. में भारत भेजा गया था। इसका उद्देश्य भारतीय नेताओं से मिलकर उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना था कि सरकार संवैधानिक मामले पर शीघ्र ही समझौता करने को उत्सुक है। लेकिन ब्रिटिश सरकार और भारतीय राजनीतिक नेताओं के बीच निर्णायक चरण 24 मार्च, 1946 ई. में आया, जब मंत्रिमण्डल के तीन सदस्य लॉर्ड पेथिक लॉरेंस (भारत सचिव), सर स्टैफ़र्ड क्रिप्स (अध्यक्ष, बोर्ड ऑफ़ ट्रेड) और ए.वी. अलेक्ज़ेण्डर (नौसेना मंत्री) भारत आए। एटली की घोषणा ब्रिटेन में 26 जुलाई, 1945 ई. को क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में ब्रिटिश मंत्रिमण्डल ने सत्ता ग्रहण की। प्रधानमंत्री एटली ने 15 फ़रवरी, 1946 ई. को भारतीय संविधान सभा की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलन्त समस्याओं पर भारतीयों से विचार-विमर्श के लिए 'कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की। इस समय एटली ने कहा कि "ब्रिटिश सरकार भारत के पूर्ण स्वतन्त्रता के अधिकार को मान्यता प्रदान करती है तथा यह उसका अधिकार है कि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत रहे या नही।" इसी घोषणा के दौरान एक वाद-विवाद में अपना विचार व्यक्त करते हुए एटली ने कहा कि "हम अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति भली-भांति जागरुक हैं और चाहते हैं कि अल्पसंख्क बिना भय के रह सकें, परन्तु हम यह भी नहीं सहन करेंगे कि अल्पसंख्यक लोग बहुतसंख्यक लोगों की उन्नति में आड़े आयें।" कांग्रेस द्वारा विभाजन का विरोध एटली द्वारा भेजे गए इस मंत्रिमण्डल से कांग्रेस की ओर से बातचीत अबुल कलाम आज़ाद ने की। इस काम में जवाहर लाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल ने उनकी सहायता की। महात्मा गांधी से ये लोग सलाह लेते रहते थे। लेकिन इस मूल प्रश्न पर बातचीत में गतिरोध पैदा हो गया कि भारत की एकता बनी रहेगी अथवा मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग को पूरा करने के लिए देश का विभाजन होगा। कांग्रेस विभाजन का विरोध कर रही थी और विभि़न्न प्रांतों को जितनी भी अधिक-से-अधिक आर्थिक, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय स्वायत्तता दे सकना संभव था, देने को तैयार थी। शिमला में आयोजित एक सम्मेलन में कांग्रेस और लीग के मतभेद दूर नहीं हो सके। मिशन की सिफारिशें 16 मई, 1946 ई. को इस मिशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में कैबिनेट मिशन ने निम्नलिखित सिफारिशें की थीं-
मुस्लिम लीग की मांग महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 'कैबिनेट मिशन योजना' को स्वीकार कर लिया, किंतु अन्तरिम सरकार की योजना का मुस्लिम लीग ने विरोध कियां। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष कार्रवाई प्रारम्भ कर दी। 16 अगस्त, 1946 ई. को लीग ने सीधी कार्रवाई दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया। परिणामस्वरूप साम्प्रादायिक दंगे हुए। नेआखली दंगे का केन्द्र था। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद- "16 अगस्त भारत के इतिहास में काला दिन है, क्योंकि इस दिन सामूहिक हिंसा ने कलकत्ता की महानगरी को रक्तपात, हत्या और भय की बाढ़ में डुबो दिया। सैकड़ों जानें गयीं, हज़ारों लोग घायल हुए और करोड़ों रुपये की सम्पत्ति नष्ट हुई।" मिशन की असफलता मुस्लिम लीग ने ऊपर से तो इस योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन यह स्वीकृति वास्तविक न होकर दिखावा मात्र थी। मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग कौंसिल में भाषण देते हुए कहा- "मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि जब तक हम अपने सारे क्षेत्र को मिलाकर पूर्ण और प्रभुसत्ता सम्पन्न पाकिस्तान की स्थापना नहीं कर लेंगे, तब तक हम संतुष्ट होकर नहीं बैठेंगे।" लीग की इस विसंगति के कारण ही गाँधी जी और कांग्रेस में उनके साथी, 'प्रांतों के वर्गबंधन' की योजना के विषय में अशांत और आशंकित हो गए। लीग इस योजना को अनिवार्य करके इसे पाकिस्तान की स्थापना का साधन बनाना चाहती थी। इस बात पर मतभेद से कैबिनेट मिशन-योजना विफल हो गई। 29 जून, 1946 ई. को कैबिनेट मिशन इंग्लैण्ड वापस चला गया। संविधान सभा के लिए चुनाव कैबिनेट मिशन के बारे में गाँधी जी ने कहा कि "यह योजना उस समय की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सबसे उत्कृष्ट योजना थी, उसमें ऐसे बीज थे, जिससे दुःख की मारी भारत भूमि यातना से मुक्त हो सकती थी।" जुलाई, 1946 ई. में कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत संविधान सभा के लिए चुनाव हुआ। यह संविधान सभा प्रान्तीय विधानसभाओं द्वारा चुनी जानी थी, क्योंकि यदि वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी जाती तो समय अधिक लगता। अतः संविधान सभा के 296 स्थानों के लिए चुनाव सम्पन्न हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने 214 सामान्य स्थानों में से 201 स्थान प्राप्त कर लिये। साथ ही उसे चार सिक्ख सदस्यों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। दूसरी ओर मुस्लिम लीग को 78 मुस्लिम स्थानों में से 73 स्थान मिले। मुस्लिम लीग का विरोध मुस्लिम लीग यह सोचकर बौखला गयी कि 296 सदस्यीय संविधान सभा में उसकी केवल 24 प्रतिशत सीटें ही हैं। अतः उसने 29 जून, 1946 ई. को कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया। साथ ही लीग ने पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष कार्रवाई की धमकी भी दी। इस प्रकार लीग ने 16 अगस्त, 1946 ई. को 'प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस' के रूप में मनाया। इस दिन हुए ख़ूनी संघर्ष में बंगाल में लगभग 7,000 लोगों का कत्ल कर दिया गया। साथ ही बिहार, बंगाल में नोआखली, सिलहट, बम्बई, गढ़मुक्तेश्वर (उत्तर प्रदेश) आदि स्थानों पर भयानक साम्प्रदायिक दंगे हुए। एटली की घोषणा (पुनः) 2 सितम्बर, 1946 ई. को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 12 सदस्यीय अन्तरिम सरकार ने शपथ ग्रहण की। वेवेल के अनुरोध पर मुस्लिम लीग के पाँच सदस्य अन्तरिम सरकार में शामिल हुए, किन्तु उनका रुख़ हठधर्मिता का रहा। इसलिए किसी समझौते पर अन्तिम निर्णय नहीं हो सका। ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फ़रवरी, 1947 ई. को दो महत्त्वपूर्ण घोषणाऐं कीं। प्रथम घोषणा में उसने कहा कि ब्रिटिश सरकार जून, 1948 ई. से पूर्व भारतीयों को सत्ता सौंप देंगी। इस घोषणा के बाद मुस्लिम लीग ने भारत के बंटवारे को लेकर आन्दोलन तेज कर दिया। उसे असम, पंजाब और पश्चिमी सीमा प्रात में ख़ूनी संघर्ष करवाया। एटली ने दूसरी घोषणा यह की कि लॉर्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाकर भारत भेजा जाएगा। 2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल नेहरू और उनके सहकर्मियों ने वायसराय की काउंसिल के सदस्यों के रूप में शपथ ली। यह काउंसिल नेहरू के नेतृत्व में एक प्रकार से मंत्रिमंडल के रूप में काम करने लगी। नेहरू के नेतृत्व में काउंसिल के राष्ट्रसमर्थक कार्यों और कांग्रेस की शक्ति में वृद्धि को देखते हुये वायसराय लार्ड वैवेल ने घबराकर मुस्लिम लीग को काउंसिल में शामिल होने के लिये राजी कर लिया। मुस्लिम लीग को काउंसिल में शामिल करना इसलिये आपेक्षित था क्योंकि उसके बिना काउंसिल असंतुलित थी। मुस्लिम लीग ने अब भी संविधान सभा में शामिल होने से इनकार कर दिया था। लेकिन जवाहरलाल नेहरू को लार्ड वैवेल ने यह सूचना दी कि मुस्लिम लीग ने काउंसिल में शामिल होना स्वीकार कर लिया है। वैवेल के इस कार्य से मंत्रिमंडल (काउंसिल) में असहयोग का वातावरण उत्पन्न हो गया और लीग द्वारा यह घोषणा कर दिये जाने पर कि उसने संविधान सभा में शामिल होने का कोई वायदा नहीं किया था, वैवेल के लिये असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गयी। 9 दिसम्बर, 1946 को मुस्लिम लीग के सदस्यों की अनुपस्थिति में ही डा. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन कर दिया गया। मुस्लिम लीग ने इस संविधान सभा का विरोध किया और पृथक पाकिस्तान की मांग को और अधिक प्रखर रूप में सामने रखा। अंतरिम मंत्रिमंडल सदस्य संबंधित विभाग जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रमंडल संबंध तथा विदेशी मामले सरदार वल्लभभाई पटेल गृह , सूचना एवं प्रसारण बलदेव सिंह रक्षा जॉन मथाई उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति चक्रवर्ती राजगोपालाचारी शिक्षा एवं कला सी . एच . भाभा कार्य , खान तथा ऊर्जा डॉ . राजेंद्र प्रसाद खाद्य एवं कृषि आसफ अली रेलवे एवं परिवहन जगजीवन राम श्रम लीग के सदस्य संबंधित विभाग लियाकत अली खाँ वित्त आई . आई . चुंदरीगर वाणिज्य जोगेंद्रनाथ मंडल विधि गजाँफर अली खान स्वास्थ्य अब्दुर रब - निश्तर डाक एवं वायु मुस्लिम लीग की गतिरोध उत्पन्न करने की मानसिकता तथा भविष्य की रणनीति
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस 16 अगस्त, 1946
सरकार ने भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने के लिये तिथि निधारित क्यों की-
शाही नौसेना विद्रोह ( 18 - 23 फरवरी , 1946 )
माउंटबैटन योजना, 3 जून 1947 भारत विभाजन की ओर-
माउंटबैटन वायसराय के रूप में-
माउंटबैटन योजना, 3 जून 1947 लार्ड वैवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबैटन के वायसराय बन कर आने के पूर्व ही भारत में विभाजन के साथ स्वतंत्रता का फार्मूला भारतीय नेताओं द्वारा लगभग स्वीकार के लिया गया था। 3 जून को माउंटबैटन ने भारत के विभाजन के साथ सत्ता हस्तांतरण की एक योजना प्रस्तुत की। इसे माउंटबैटन योजना के साथ ही 3 जून योजना के नाम से भी जाना जाता है। मुख्य विन्दु माउंटबैटन योजना के मुख्य बिन्दु निम्नानुसार थे-
योजना में कांग्रेस की भारत की एकता की मांग को अधिक से अधिक पूरा करने की कोशिश की गयी। जैसे-
भारत ने डोमिनयन का दर्जा क्यों स्वीकार किया लाहौर अधिवेशन (1929) की भावना के विरुद्ध कांग्रेस ने डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा स्वीकार किया क्योंकि-
ब्रिटेन द्वारा सत्ता हस्तांतरण की तिथि (15 अगस्त 1947) समय से पूर्व ही तय कर लिये जाने का कारण
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ( 1947 ) माउंटबेटेन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई , 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 को पास किया । इस उपबन्ध द्वारा ही 15 अगस्त , 1947 को भारत का विभाजन हुआ । अधिनियम की मुख्य बातें – 1 . 15 अगस्त , 1947 से भारत में भारत और पाकिस्तान नामक से डोमीनियन की स्थापना हो जायेगी । 2 . भारत के राज्य क्षेत्र में उन क्षेत्रों को छोड़कर जो पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे , ब्रिटिश भारत के सीती प्रान्त सम्मिलित होंगे । 3 . पाकिस्तान के राज्य क्षेत्र में पूर्वी बंगाल , पश्चिमी पंजाब सिन्ध और उत्तर - पश्चिम सीमा प्रान्त सम्मिलित होंगे । पूर्वी बंगाल प्रान्त में असम का सिलहट जिला भी सम्मिलित होगा । 4 . देशी रजवाड़े दोनों में से भारत और पाकिस्तान किसी भी डोमेनियन (अधिराज्य) में सम्मिलित हो सकते हैं । 5 . प्रत्येक डोमेनियन के विधानमण्डल को अपने अधिराज्य के लिये कानून बनाने का पूरा अधिकार होगा । 15 अगस्त 1947 के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कोई भी अधिनियम किसी भी डोमेनियन में वैध नहीं होगा । 6 . दोनों डोमेनियनों तथा प्रान्तों का संचालन 1935 के अधिनियम के अनुसार ( जहां तक संभव हो सके ) उस समय तक चलाया जायगा जब तक कि सम्बन्धित संविधान सभा इसके लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं कर लेती ।
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस कब मनाया गया था?16 अगस्त 1946कलकत्ता दंगा / शुरू होने की तारीखnull
कार्यवाही दिवस का आवाहन क्यों किया गया?Notes: मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को "प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस" के रूप में मनाया। इसका उद्देश्य हिन्दू-मुस्लिम दंगे उत्पन्न करके यह सिद्ध करना था कि हिन्दू और मुस्लिम समुदाय एक साथ नहीं रह सकते।
कैबिनेट मिशन योजना से क्या समझते हैं?कैबिनेट मिशन योजना क्या थी Cabinet Mission Plan 1946 In Hindi: ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण के उपाय खोजने के लिए 19 फरवरी 1946 को कैबिनेट मिशन भारत भेजने की घोषणा की गई. कैबिनट मिशन 24 मार्च 1946 को भारत आया जिसके सदस्य पैथिक लोरेन्स, स्टैफोर्ड क्रिप्स तथा ए वी अलेक्जेंडर थे.
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस का आह्वान किसने कब तथा क्यों किया था?भारत की स्वतंत्रता के पूर्व मुस्लिम लीग द्वारा 'सीधी कार्यवाही' की घोषणा से १६ अगस्त सन् १९४६ को कोलकाता में भीषण दंगे शुरु हो गये। इसे कलकत्ता दंगा या कलकत्ता का भीषण हत्याकांड (Great Calcutta Killing) कहते हैं। 'सीधी कार्रवाई' मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग को तत्काल स्वीकार करने के लिए चलाया गया अभियान था।
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