प्रोटेम स्पीकर का कार्य क्या है - protem speekar ka kaary kya hai

एक प्रोटेम स्पीकर (अल्पकालीन अध्यक्ष) का कार्य क्या है?

  1. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही का संचालन करना।
  2. अध्यक्ष के रूप में कार्य करना जब अध्यक्ष के चुने जाने की संभावना नहीं है।
  3. सदस्यों को शपथ दिलाना और एक नियमित अध्यक्ष चुने जाने तक कार्यभार संभालना।
  4. सदस्यों के चुनाव प्रमाण पत्रों की प्रामाणिकता की जाँच करना।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : सदस्यों को शपथ दिलाना और एक नियमित अध्यक्ष चुने जाने तक कार्यभार संभालना।

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Territorial Army Paper I - Full Mock Test

100 Questions 100 Marks 120 Mins

सही उत्तर सदस्यों को शपथ दिलाना और एक नियमित अध्यक्ष चुने जाने तक कार्यभार संभालना है।

प्रोटेम स्पीकर का कार्य क्या है - protem speekar ka kaary kya hai
Key Points

  • प्रोटेम स्पीकर
    • प्रोटेम एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है "फिलहाल/उतने समय के लिए" प्रोटेम स्पीकर एक सीमित अवधि के लिए नियुक्त एक अस्थायी अध्यक्ष होते हैं।
    • प्रोटेम स्पीकर की आवश्यकता: लोकसभा/विधान सभा का अध्यक्ष नवनिर्वाचित सदन की पहली बैठक से ठीक पहले कार्यालय खाली कर देते हैं।
    • राष्ट्रपति/राज्यपाल प्रोटेम स्पीकर को नवनिर्वाचित सदन की बैठकों की अध्यक्षता करने के लिएनियुक्त करता है। आमतौर पर सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है।
    • प्रोटेम स्पीकर के कर्तव्य:
    • प्रोटेम स्पीकर लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हैं, नव निर्वाचित सांसदों को पद की शपथ दिलाते हैं।
    • स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के लिए वोट का संचालन करना।
    • नए अध्यक्ष के चुनाव होने पर प्रोटेम स्पीकर का पद समाप्त हो जाता है।
    • वह फ्लोर टेस्ट भी करवाते हैं।
  • अतः, सही उत्तर विकल्प 3 है।

Latest Territorial Army Updates

Last updated on Sep 22, 2022

Territorial Army Re Exam Date Out! The re exam is tentatively scheduled on 18th December 2022. The Territorial Army had released the official notification for Territorial Army Exam 2022. Through this exam, Territorial Army Officers will be recruited to serve as the secondary defense force of the nation. The candidates must note that this is not a regular Indian Army job. This is a part-time commitment for serving the nation. The candidates must go through the Territorial Army Exam Preparation Tips which will help the candidates to make a better strategy to clear the exam.

राजनितिक विज्ञान December 26, 2021

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protem speaker in hindi meaning definition प्रोटेम स्पीकर किसे कहते हैं | प्रोटेम स्पीकर को कौन चुनता है का हिंदी अर्थ ?

अस्थायी (प्रोटम) अध्यक्ष
आम चुनाव के पश्चात जब लोक सभा पहली बार बैठक के लिए आमंत्रित की जाती है तो राष्ट्रपति लोक सभा के किसी सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करता है। सामान्यतया, वरिष्ठतम सदस्य को इस हेतु चुना जाता है । अस्थायी अध्यक्ष सदन की अध्यक्षता करता है जिससे कि नये सदस्य शपथ आदि ले सकें और अपना अध्यक्ष चुन सकें।
राष्ट्रपति का अभिभाषण नव निर्वाचित सदस्यों द्वारा शपथ लिए जाने या प्रतिज्ञान किए जाने और अध्यक्ष के चुन लिए जाने के पश्चात, राष्ट्रपति संसद भवन के सेंट्रल हाल में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण करता है। राष्ट्रपति प्रत्येक वर्ष के प्रथम अधिवेशन के प्रारंभ में भी एक साथ समवेत दोनों सदनों के समक्ष अभिभाषण करता है।
राष्ट्रपति का अभिभाषण बहुत महत्वपूर्ण अवसर होता है जो राज्याध्यक्ष की गरिमा के अनुकूल बड़ा भव्य होता है। राष्ट्रपति राजकीय बग्घी अथवा कार में संसद भवन पहुंचते हैं, जहां द्वार पर राज्य सभा के सभापति, लोक सभा के अध्यक्ष, संसदीय कार्य मंत्री और दोनों सदनों के महासचिव उनका स्वागत करते हैं। उसके बाद उन्हें समारोहपूर्ण जुलूस में लाल कालीन से सुसज्जित मार्गद्वाराऊंचे गुंबद वाले संसद भवन के सेंट्रल हाल में ले जाया जाता है। राष्ट्रगान के पश्चात, राष्ट्रपति अभिभाषण पढ़ते हैं। उस अभिभाषण में ऐसी नीतियों एवं कार्यक्रमों का विवरण होता है जिन्हें आगामी वर्ष में कार्यरूप देने का सरकार का विचार हो । साथ ही, पहले वर्ष की उसकी गतिविधियों और सफलताओं की समीक्षा भी दी जाती है। वह अभिभाषण चूंकि सरकार की नीति का विवरण होता है अतः वह सरकार द्वारा तैयार किया जाता है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण के आधा घंटा पश्चात दोनों सदन अपने अपने चैंबर में समवेत होते हैं जहां राष्ट्रपति के अभिभाषण की प्रतियां सदन के महासचिव द्वारा सभा पटल पर रखी जाती हैं । प्रत्येक सदन में किसी एक सदस्य द्वारा प्रस्तावित और दूसरे सदस्य द्वारा समर्थित धन्यवाद प्रस्ताव पर दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा होती है। अभिभाषण पर चर्चा बहुत व्यापक रूप से होती है और प्रशासन के किसी एक या सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है। सदस्य राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सब प्रकार की समस्याओं पर बोल सकते हैं। धन्यवाद प्रस्ताव के संशोधनों के द्वारा उन मामलों पर भी चर्चा हो सकती है जिन का अभिभाषण में विशेष रूप से उल्लेख न हो। चर्चा के दौरान सीमा केवल यही है कि सदस्य ऐसे मामलों का उल्लेख नहीं कर सकते जिनके लिए भारत सरकार प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी न हो और वाद विवाद के दौरान राष्ट्रपति के नाम का उल्लेख नहीं किया जा सकता। बाद वाले प्रतिबंध के पीछे विचार यह है कि अभिभाषण में जो कुछ कहा जाता है और जो नीति की बात होती है उसके लिए सरकार उत्तरदायी होती है न कि राष्ट्रपति ।
चर्चा के अंत में, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वाद विवाद का उत्तर सामान्यतया प्रधानमंत्री द्वारा दिया जाता है। प्रधानमंत्री के उत्तर के पश्चात, संशोधनों को निबटाया जाता है और धन्यवाद का प्रस्ताव सदन के मतदान के लिए रखा जाता है। प्रस्ताव पास हो जाने पर, उसकी सूचना अध्यक्ष द्वारा एक पत्र के माध्यम से राष्ट्रपति को दे दी जाती है।

अधिवेशन और बैठकें
संसद के दो सदन हैं, राज्य सभा और लोक सभा। इनमें से राज्य सभा स्थायी सदन है जिसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष की अवधि के पश्चात सेवानिवृत्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए सदस्य निर्वाचित किए जाते हैं । लोक सभा प्रत्येक आम चुनाव के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने पर गठित होती है। लोक सभा की प्रथम बैठक तब होती है जब इसके नव निर्वाचित सदस्य “भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने के लिए‘‘, ‘‘भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने के लिए‘‘ और ‘‘संसद सदस्य के कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करने के लिए” निर्धारित शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने के प्रयोजन से प्रथम बार समवेत होते हैं । संसद के प्रत्येक सदस्य के लिए यह आवश्यक है कि वह “अपना स्थान ग्रहण करने से पहले” उक्त शपथ ले या प्रतिज्ञान करे । जब तक वह शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने के पश्चात सदन में अपना स्थान ग्रहण नहीं कर लेता तब तक संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित कोई व्यक्ति उन उन्मुक्तियों तथा विशेषाधिकारों का अधिकारी नहीं होता जो सदस्यों के लिए उपलब्ध होते हैं, न ही मतदान करने और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार उसे प्राप्त होता है।

सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना
राष्ट्रपति समय समय पर संसद के प्रत्येक सदन को बैठक के लिए आमंत्रित करता है। प्रत्येक अधिवेशन की अंतिम तिथि के बाद राष्ट्रपति को छह मास के भीतर आगामी अधिवेशन के लिए सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करना होता है। यद्यपि सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है तथापि व्यवहार में इस आशय के प्रस्ताव की पहल सरकार द्वारा की जाती है। संसदीय कार्य विभाग अधिवेशन के प्रांरभ की प्रस्तावित तिथि की और उसकी अवधि की सूचना राज्य सभा और लोक सभा के महासचिवों को देता है।
राज्य सभा का सभापति और लोक सभा का अध्यक्ष जब उस प्रस्ताव पर सहमत हो जाते हैं तो दोनों सदनों के महासचिव उल्लिखित तिथि और समय पर सदनों को बैठक के लिए आमंत्रित करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश प्राप्त करते हैं। वे राष्ट्रपति के आदेश को असाधारण राजपत्र में अधिसूचित करते हैं और उस बारे में विज्ञप्ति जारी करते हैं। तत्पश्चात, महासचिव “आमंत्रण‘‘ प्रत्येक सदन को भेजते हैं।
संसद के अधिवेशन
सामान्यतया प्रतिवर्ष संसद के तीन अधिवेशन होते हैं यथा बजट अधिवेशन (फरवरी-मई), वर्षाकालीन अधिवेशन (जुलाई-सितंबर) और शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर) । किंतु, राज्य सभा के मामले में, बजट अधिवेशन को दो अधिवेशनों में विभाजित कर दिया जाता है। इन दो अधिवेशनों के बीच तीन से चार सप्ताह का अवकाश होता है। इस प्रकार राज्य सभा के एक वर्ष के चार अधिवेशन होते हैं।

अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का निर्वाचन
संविधान के अनुसार यह अपेक्षित है कि लोक सभा प्रथम बैठक के पश्चात, जितनी जल्दी हो सके, सदन के दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी। राष्ट्रपति, लोक सभा के महासचिव के द्वारा प्रधानमंत्री का सुझाव प्राप्त होने के पश्चात अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए तिथि का अनुमोदन करता है। तत्पश्चात महासचिव उस तिथि की सूचना उसके प्रत्येक सदस्य को भेजता है।
अध्यक्ष के निर्वाचन के लिए निर्धारित तिथि से एक दिन पूर्व, किसी समय, कोई भी सदस्य इस आशय के प्रस्ताव की सूचना दे सकता है कि किसी अन्य सदस्य को (अर्थात इस प्रकार सूचना देने वाले से भिन्न सदस्य को) सदन का अध्यक्ष चुना जाए। उस सूचना में जिस सदस्य के नाम का प्रस्ताव किया गया हो उस सदस्य का बयान सूचना के साथ भेजा जाना आवश्यक है कि निर्वाचित किए जाने पर वह अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। सामान्यतया, सत्ताधारी दल द्वारा चुने गये उम्मीदवार के निर्वाचन के लिए प्रस्ताव की सूचना प्रधानमंत्री द्वारा या संसदीय कार्य मंत्री द्वारा दी जाती है।
प्रस्ताव की नियमानुकूल पायी जाने वाली सभी सूचनाएं कार्यसूची में उसी क्रम में दर्ज कर दी जाती हैं जिसमें वे समयानुसार प्राप्त हुई हों।
निर्वाचन के लिए निर्धारित दिन को, जिस सदस्य के नाम में कार्यसूची में वह प्रस्ताव होता है उसे प्रस्ताव पेश करने के लिए कहा जाता है। वह चाहे तो प्रस्ताव को वापस भी ले सकता है। जो प्रस्ताव पेश किए जाते हैं और विधिवत समर्थित किए जाते हैं उन्हें उसी क्रम में जिसमें वे पेश किए गए हों, एक एक करके सदन के मतदान के लिए रखा जाता है। जैसे ही कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है, पीठासीन अधिकारी, अन्य प्रस्ताव मतदान के लिए रखे बिना, घोषणा करता है कि स्वीकृत प्रस्ताव में जिस सदस्य के नाम का प्रस्ताव किया गया है, उसे सदन का अध्यक्ष चुना गया है।
अध्यक्ष अपना पद रिक्त कर देगा: (क) यदि वह लोक सभा का सदस्य नहीं रहे; (ख) यदि वह अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को भेज दे; और (ग) यदि लोक-सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत द्वारा उसे पद से हटाने के लिए संकल्प पास कर दिया जाए।
अध्यक्ष सदन के भंग हो जाने के पश्चात भी, नये “सदन की प्रथम बैठक होने के ठीक पहले‘‘ तक अपने पद पर बना रहता है।

सदनों की बैठकें
किसी अधिवेशन के लिए ‘‘आमंत्रण‘‘ के साथ सदस्यों को ‘‘बैठकों का अस्थायी तिथि पत्रष् भेजा जाता है जिसमें दर्शाया जाता है कि बैठकें किस किस तिथि को होंगी, कौन कौन-सा कार्य किया जाएगा । प्रश्नों का चार्ट भी भेजा जाता है जिसमें यह जानकारी दी जाती है कि प्रश्नों के उत्तर के लिए विभिन्न मंत्रालयों के लिए कौन कौन-सी तिथियां नियत की गई है। अधिवेशन के प्रारंभ होने संबंधी विभिन्न मामलों पर अन्य जानकारी के साथ यह सूच में भी प्रकाशित की जाती है।
सदन की बैठकें, यदि अध्यक्ष अन्यथा निर्देश नहीं देता तो, सामान्यतया 11.00 बजे म.पू. आरंभ होती हैं और बैठकों का सामान्य समय 11.00 बजे म. पू. से 13.00 बजे म.प. और 14.00 बजे म.प. से 18.00 बजे म. प. तक होता है और 13.00 बजे म. प. से 14.00 बजे म.प. तक का समय मध्याह्न भोजन के लिए छोड़ दिया जाता है। परंतु ऐसे अनेक अवसर आते हैं जबकि सदन मध्याह्न भोजन के समय में भी कार्य करता है और देर तक भी बैठता है।
पहली से नवीं लोक सभा के कार्यकाल में लोक सभा की बैठकों की वर्षवार संख्या तथा समयावधि इस अध्याय के अंत में परिशिष्ट 5.1 में दी गई है।

कार्य का क्रम और कार्यसूची
संसदीय कार्य दो मुख्य शीर्षों में बांटा जा सकता है, अर्थात सरकारी कार्य और गैर-सरकारी कार्य 14 सरकारी कार्य को फिर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है, अर्थात (क) ऐसे कार्य जिनकी शुरुआत सरकार द्वारा की जाती है और (ख) ऐसे कार्य जिनकी शुरुआत गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा की जाती है परंतु जिन्हें सरकारी कार्य के समय में लिया जाता है।
दैनिक कार्य अध्यक्ष द्वारा दिए गए निर्देशों के निर्देश 2 में निर्धारित प्राथमिकताओं के अनसार इस क्रम में किया जाता हैः शपथ या प्रतिज्ञान, निधन संबंधी उल्लेख, प्रश्न, स्थगन प्रस्ताव पेश करने की अनुमति, विशेषाधिकार भंग के प्रश्न, सभा पटल पर रखे जाने वाले पत्र, राष्ट्रपति से प्राप्त संदेशों की सूचना, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, वक्तव्य और वैयक्तिक स्पष्टीकरण, समितियों के लिए निर्वाचन संबंधी प्रस्ताव, पेश किए जाने वाले विधेयक, नियम 377 के अधीन मामले, इत्यादि।
गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य, अर्थात विधेयकों और संकल्पों पर प्रत्येक शुक्रवार के दिन या किसी ऐसे दिन जो अध्यक्ष निर्धारित करे ढाई घंटे तक चर्चा की जाती है, उनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिनकी शुरुआत यद्यपि गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा की जाती है परंतु उनको सरकारी कार्य निबटाने के लिए नियत समय में निबटाया जाता है । किसी मंत्री द्वारा या अन्य सदस्य द्वारा दिए गए वक्तव्यों में गलतियां बताने वाले वक्तव्यों और सदस्यों द्वारा वैयक्तिक स्पष्टीकरणों के अतिरिक्त, इस श्रेणी में कुछ अन्य कार्य भी आते हैं जैसेः प्रश्न, स्थगन प्रस्ताव, अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों की ओर ध्यान दिलाना, विशेषाधिकार के प्रश्न, अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों पर अल्पावधि चर्चा, मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव, प्रश्नों के उत्तरों से उत्पन्न होने वाले मामलों पर आधे घंटे की चर्चाएं, नियम 377 के अधीन मामने, इत्यादि । सदन में किए जाने वाले विभिन्न कार्यों के लिए समय की सिफारिश सामान्यतया कार्य मंत्रणा समिति द्वारा की जाती है, जिसकी सामान्यतया सप्ताह में एक बैठक होती है।