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डूंगरपुर | जन्म के समय बेहद ही कमजोर एक किलो का बच्चा जिसका डेढ़ साल तक डॉक्टरों द्वारा इलाज करने और पोष्टिक आहार देने से वह अब पूरी तरह से ठीक है। जबकि स्वस्थ बच्चा 2.5 से 3.5 किलो का होना चाहिए। एक किलो के बच्चे का वजन बढ़कर अब 8 किलो हो गया है यानि डेढ़ साल में 7 किलो का वजन बढ़ा है। डॉक्टरों का मानना है कि ढाई किलो से कम वजन के बच्चों का मानसिक, शारीरिक विकास बहुत ही कम होता है, लेकिन बच्चों को अगर नियमित इलाज और पौष्टिक आहार दिया जाए तो उसकी इस कमजोरी को दूर किया जा सकता है। माथूगामड़ा नाल फला निवासी नाथूलाल की प|ी लीला ने डेढ़ साल पहले एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे का इलाज करने वाले एफबीएनसी के प्रभारी और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पेश जैन बताते है कि उस समय बच्चा इतना कमजोर था बचना मुश्किल था। बच्चे का वजन केवल 1 किलो था। उस समय जिले में यह सबसे कम वजनी बच्चे का जन्म था। उसी समय बच्चे को एफबीएनसी में भर्ती किया गया। बच्चें को स्वस्थ रखना सबसे बड़ी चुनौती था। कमजोर होने के कारण बच्चे को जन्म के बाद नली से दूध पिलाया गया। सांस की तकलीफ पर ऑक्सीजन दी गई। एक महीने बाद बच्चे को छुट्टी दी गई, लेकिन इसके बाद भी बच्चे का हर महीने नियमित चेकअप किया गया, बच्चे को पोष्टिक आहार के लिए भी माता-पिता को गाइड किया। इसके बाद बच्चे में सुधार होता गया। अब वह पूरे 18 महीने का समय हो गया है और बच्चे का वजन बढ़कर 8 किलो हो गया है जो डेढ़ साल की उम्र में एक सामान्य बच्चे का होता है। बच्चा अब पूरी तरह से ठीक है और पैरों पर चल-फिर भी सकता है। शिशु रोग विशेषज्ञों की पूरी टीम मॉनिटरिंग करती रही कमजोर नवजात पैदा होने की स्थिति में ऐसे बच्चों के इलाज और निगरानी के लिए अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञों की टीम उनकी लगातार मॉनिटरिंग करती है। शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. नीलेश गोठी, एफबीएनसी प्रभारी डॉ. कल्पेश जैन, डॉ. गौरव यादव और डॉ. बीएल भट्ट की टीम ऐसे बच्चों की निगरानी करते है। मॉनिटरिंग, नली से दूध पिलाने, साफ-सफाई और समय पर ऑक्सीजन देने के साथ ही पोष्टिक आहार दिए जाने से बच्चों में विकास जल्दी होता है। शिशु रोग विशेषज्ञ ने बच्चे को जांच के बाद पूरी तरह से स्वस्थ बताया, माथूगामड़ा नाल फला के रहने वाले है माता-पिता संक्रमण या मां
में खून की कमी होती है वजह हिंदी न्यूज़नवजात शिशु का वजन बढ़ाने में मदद करेंगी ये TIPS सेहतमंद बच्चे की चाहत हर पेरेंट्स को होती है। पर, कई बार समय से पूर्व प्रसव होने के कारण बच्चे की सेहत को लेकर चिंता बढ़ जाती है। अगर आपने या आपके किसी नजदीकी महिला ने प्री-मेच्योर बच्चे को जन्म दिया...लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 03 May 2017 10:49 PM सेहतमंद बच्चे की चाहत हर पेरेंट्स को होती है। पर, कई बार समय से पूर्व प्रसव होने के कारण बच्चे की सेहत को लेकर चिंता बढ़ जाती है। अगर आपने या आपके किसी नजदीकी महिला ने प्री-मेच्योर बच्चे को जन्म दिया है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। थोड़ी-सी सावधानी बरत कर और डॉक्टर के संपर्क में रहकर आप अपने बच्चे को भी सेहतमंद बना सकती हैं। आमतौर पर जन्म के समय सामान्य बच्चे का वजन ढाई किलो से लेकर साढ़े तीन किलो तक होता है, लेकिन प्री-मेच्योर बच्चे का वजन दो किलो या उससे कम भी हो सकता है। ऐसे बच्चे को डॉक्टर की निगरानी और विशेष देखभाल की जरूरत होती है। उन्हें जन्म के लगभग दो सप्ताह बाद ही अस्पताल से घर ले जाने की इजाजत मिलती है। डॉक्टरों की देख-रेख में बच्चा सेहतमंद हो जाता है। क्यों जरूरी है वजन का ठीक होना? कम वजन वाले बच्चे को कई तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शरीर में वसा की कमी के कारण ऐसे बच्चे के लिए अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखना मुश्किल होता है। जन्म के पहले वर्ष में ही कम वजन वाले बच्चों की अचानक मृत्यु का खतरा भी ज्यादा होता है। अगर ध्यान न दिया जाए तो 90 प्रतिशत ऐसे बच्चों की मृत्यु 6 महीने में ही हो जाती है। फेफड़ों का सही तरीके से विकास ना हो पाने के कारण प्री मेच्योर और कम वजन के बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। ऐसे बच्चों को संक्रमण का बहुत ज्यादा खतरा रहता है। ऐसे बच्चों को पेट से जुड़ी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। फेफड़ों का सही तरीके से विकास नहीं होने के कारण ऐसे बच्चों को दूध पीने में भी परेशानी होती है, जिसके कारण भी उनका वजन नहीं बढ़ पाता है। इन्हें चाहिए खास देखभाल कम वजन वाले बच्चे को खास देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि ऐसे बच्चे की रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत कम होती है। कमजोर रोग प्रतिरोधी क्षमता के कारण उन्हें अलग-अलग तरह की संक्रामक बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है। अगर बच्चा किसी संक्रामक बीमारी से ग्रसित हो जाये तो स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। इसी वजह से बच्चे को जन्म के बाद अतिरिक्त देखभाल के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है। अस्पताल में विशेषज्ञों द्वारा जरूरी टेस्ट किए जाते हैं, जिससे यह पता चल सके कि बच्चे को किसी किस्म का खतरा तो नहीं है। जब बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है और संक्रमण का खतरा कम हो जाता है, तभी उन्हें घर भेजा जाता है। मां का दूध है जरूरी बच्चे के समुचित विकास के लिए जन्म के 6 महीने तक मां का दूध बेहद जरूरी है, लेकिन कम वजन वाले बच्चे को मां का दूध पीने में परेशानी होती है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर आपके बच्चे का वजन डेढ़ किलो से ज्यादा है, तो आप कोशिश करें कि वह मां का दूध पिए। इसके लिए आपको थोड़ा धैर्य रखना होगा। बच्चे को बार-बार अपना दूध पिलाने की कोशिश करनी होगी। एक बार बच्चा जब दूध पीना सीख जाएगा तो वो आसानी से दूध पीने लगेगा। अगर बच्चा आपकी सारी कोशिशों के बावजूद ब्रेस्ट फीडिंग नहीं कर रहा है, तो मां के दूध को अच्छी तरह से साफ किए और उबले कप में निकालकर बच्चे को चम्मच या रुई की सहायता से पिलाएं। अगर चम्मच से दूध पिलाने में दिक्कत हो रही है, तो बच्चे को दूध पिलाने के लिए खासतौर से प्री मेच्योर बच्चों के लिए बनी फीडिंग बोतल का इस्तेमाल करें। जब तक बच्चे का वजन सामान्य न हो जाए, उसे हर दो घंटे में दूध पिलाती रहें। तापमान ऐसे रखें नियंत्रित कम वजन वाले बच्चे की देखभाल में सबसे बड़ी चुनौती आती है, उसके तापमान को नियंत्रित रखने की। अगर शरीर का तापमान नियंत्रित न हो तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि बच्चे के शरीर के तापमान को कृत्रिम तरीकों से संतुलित किया जाए: वजन बढ़ाने में ये भी हैं कारगर
करें कंगारू केयर अपने प्री-मेच्योर बच्चे की सेहत दुरुस्त करने के लिए आप कंगारू केयर अपना सकती हैं। इस तरीके में हर समय बच्चे का संपर्क मां की त्वचा से रहता है, जिसकी वजह से उसके शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है। देखभाल के इस तरीके में बच्चे को स्किन-टू-स्किन टच देना होता है। सोते वक्त बच्चे को अपने पेट के ऊपर सुलाएं। मां के अलावा परिवार का अन्य सदस्य भी इसमें मां की मदद कर सकता है। (तीरथ राम हॉस्पिटल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सुनील गुप्ता से बातचीत पर आधारित) नवजात शिशु को मोटा कैसे करें?बच्चे के पतलेपन से परेशान न हों, ये चीजें खिलाकर बढ़ाएं उसका वजन. केला पोटैशियम, विटामिन सी, विटामिनी बी6 और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है केला। ... . शकरकंद शकरकंद को उबालने के बाद मैश कर के बच्चे को खिलाएं। ... . दालें दालों में प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन, फाइबर और पोटैशियम होता है। ... . घी और रागी ... . अंडा और एवोकाडो. नवजात शिशु कमजोर होने पर क्या करें?मॉनिटरिंग, नली से दूध पिलाने, साफ-सफाई और समय पर ऑक्सीजन देने के साथ ही पोष्टिक आहार दिए जाने से बच्चों में विकास जल्दी होता है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पेश जैन ने बताया कि डूंगरपुर अस्पताल में जन्म लेने वाले करीब 30 प्रतिशत नवजात कमजोर होते हैं। जिनका 2.50 किलो से वजन कम होता है।
मां के दूध से नवजात शिशु का वजन कैसे बढ़ाएं?नवजात शिशु के लिए मां के दूध को पचाना आसाना होता है, इसलिए मां के दूध से शिशु को कब्ज, दस्त या पेट की अन्य परेशानी बेहद ही कम होती है। अगर आपका बच्चा पर्याप्त मात्रा में स्तनपान करता है, तो इससे उसका वजन बढ़ने में मदद मिलती है। मां का दूध ही बच्चे के लिए सही आहार माना जाता है।
कम वजन वाले नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें?उन्होंने बताया कि शिशु को हर समय सूखा रखें और गर्म कमरे में रखें, जन्म के कुछ दिनों बाद तक शिशु को नहलायें नहींं। शिशु को कपड़े की 2-3 परत में लपेटे और ध्यान रखें कि सिर और पैर ढके हुए हैं (टोपी और मोजे पहनाकर रखेंं), सर्दी के दौरान शिशु को गर्म कपड़े की अतिरिक्त परतों से लपेटें और कंबल भी उड़ाएं।
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