नवाब साहब खीरा को सूंघकर खिड़की के बाहर क्यों फेका होगा? - navaab saahab kheera ko soonghakar khidakee ke baahar kyon pheka hoga?

Solution : नवाब साहब में नवाबी और अमीरी दिखाने की प्रवृति थी। वह अकेले रेल के डिब्बे में बैठकर खीरा खाने की तैयारी कर रहे थे। वह लेखक को यह नवाबी दिखाना चाहते थे। इसीलिए खीरा को बड़े यत्न से काटा, नमक मिर्च बुरका, और अन्ततः सुँघकर ही खिड़की से बाहर प्रत्येक टुकड़े को फेकते गए।

नवाबों की आदत है अपनी शान-शौकत का प्रदर्शन करना । उन्होंने प्रदर्शन करने के लिए ही खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका अतत: सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। वास्तव में वे अपनी नवाबी का प्रदर्शन करने के लिए ही उन्होंने खीरे को सूंघकर बाहर फेंक दिया। उनके अनुसार खीरा जैसी तुच्छ वस्तु खाकर अपना तौहीन नहीं करवाना चाहते थे। खीरा खाकर पेट भरना आम लोगों की बात है। उनका ऐसा करना नवाबी झाड़ना अर्थात् अमीरी का प्रदर्शन करने की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 12-3: बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर 12-3: अपने इस कथन के द्वारा लेखक ने नई कहानी के दौर के लेखकों पर व्यंग किया है। किसी भी कहानी की रचना उसके आवश्यक तत्वों - कथावस्तु, घटना, पात्र आदि के बिना संभव नहीं होती। घटना तथा कथावस्तु कहानी को आगे बढ़ाते हैं, पात्रों द्वारा संवाद कहे जाते हैं। ये कहानी के लिए आवश्यक तत्व हैं।

प्रश्न 12-4: आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?

उत्तर 12-4: इस कहानी का नाम 'झूठी शान' भी रखा जा सकता है क्योंकि नवाब ने अपनी झूठी शान-शौकत को बरकरार रखने के उद्देश्य से अपनी इच्छा को नष्ट कर दिया।

नवाब साहब ने बहुत नजाकत और सलीके से खीरा काटा, उन पर नमक-मिर्च लगाया। उन नमक-मिर्च लगी खीरे की फाँकों को खाया नहीं अपितु सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया था। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्‌य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे। लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।

नवाब साहब के ऐसा करने से ऐसा लगता है कि वे दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं। वे दिखावा पसंद इंसान थे। उनके इसी प्रकार के स्वभाव ने लेखक को देखकर खीरा खाना अपमान समझा।

गुड -शक्कर, मूँगफली, तिल, चाय, कॉफी आदि का प्रयोग किया जाता है। बरसात में कई लोग कढ़ी खाना अच्छा नहीं समझते। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी को चावल नहीं खाने चाहिए।

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया। खीरे को खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने के कश्मकश में नवाब ने खीरे को काटकर खाने की सोची तथा फिर अन्तत: जीत नवाब के दिखावे की हुई। अत: इसी इरादे से उसने खीरे को फेंक दिया।

नवाब साहब का कैसा भाव परिवर्तन लेखक को अच्छा नहीं लगा और क्यों लखनवी अंदाज़ पाठ के आधार पर लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंउत्तरः लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब ने असंतोष, संकोच तथा बेरुखी दिखाई, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें अभिवादन कर खीरा खाने के लिए आमंत्रित किया। लेखक को उनका यही भाव परिवर्तन अच्छा न लगा, क्योकि अभिवादन सदा मिलते ही होता है। पहले अरुचि का प्रदर्शन और कुछ समय बाद अभिवादन, कोई औचित्य नहीं।

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नवाब साहब ने खीरे के गुण अवगुण के बारे में कौन सी बात नहीँ कही?

इसे सुनेंरोकेंउनका यह स्वभाव उनके दिखावटी स्वभाव को प्रकट करता है। नवाब साहब ने लेखक के सामने खीरा काटा और फिर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। शायद वह अपनी झूठी आन-बान के एक के सामने खीरा खाने से शर्मा रहे हों। वह खीरे को एक साधारण वस्तु समझते थे और खीरे जैसी आम वस्तु को खाकर वह अपनी श्रेष्ठता को कम नहीं करना चाहते।

लेखक ने क्या क्या अनुमान लगाया?

इसे सुनेंरोकेंलेखक ने उनकी असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब यह नहीं चाहते होंगे कि कोई उन्हें सेकंड क्लास में यात्रा करते देखें। यह उनकी रईसी के विरुद्ध था। नवाब साहब ने आम लोगों द्वारा खाए जाने वाले खीरे खरीद रखे थे। अब उन खीरों को लेखक के सामने खाने में संकोच आ रहा था।

लखनवी अंदाज पाठ में नवाब साहब द्वारा अपने नवाबी अंदाज को दिखाना क्या इंगित करता है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर- नवाब के व्यवहार को देखकर लेखक के मन में नवाब के नवाबी सनक संबंधी तरह-तरह के विचार आए। जैसे कि नवाब साहब ट्रेन में अकेले यात्रा करना चाहते थे। दूसरी बात वह किसी से बातचीत नहीं करना चाहते थे । इस तरह से लेखक को नवाब के व्यवहार में खानदानी तहजीब, नवाबी तरीका, नजाकत और नफासत के भाव पूरी तरह फरे हुए दिखाई दिए।

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खीरा खाने की इच्छा होने पर लखनवी अंदाज़ पाठ के लेखक ने मना क्यों किया?

इसे सुनेंरोकेंलेखक ने खीरा खाने से मना इसलिए कर दिया है क्योंकि जिस तरह नवाब साहब ने उनसे खीरा खाने के लिए पुछा था उससे साफ-साफ पता लगता है कि नवाब साहब बिल्कुल भी इछुक नहीं थे उन्हें खीरा देने में तो लेखक उनका यही व्यवहार देखकर खीरा खाने से मना कर दिया होगा।

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: नवाब साहब द्वारा दिए गए खीरा खाने के प्रस्ताव को लेखक ने अस्वीकृत कर दिया। खीरे को खाने की इच्छा तथा सामने वाले यात्री के सामने अपनी झूठी साख बनाए रखने के कश्मकश में नवाब ने खीरे को काटकर खाने की सोची तथा फिर अन्तत: जीत नवाब के दिखावे की हुई। अत: इसी इरादे से उसने खीरे को फेंक दिया।

नबाब साहब का कौन सा अनुमान गलत सिद्ध हुआ?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिल्कुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास को टिकट खरीद लिया हो और अब गवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मँझले दर्जे में सफर करता देखे। ….

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लेखक िे ििाब सािब से खीरा ि खािे का कारण क्या बताया?

इसे सुनेंरोकें✔ (ग) इच्छा नही है। ✎… ‘लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक ने नवाब साहब से खीरा ना खाने का यह कारण बताया कि उसे इच्छा नहीं है। जब नवाब साहब ने लेखक से कहा कि ‘वल्लाह शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है। ‘ तब लेखक ने अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए नवाब साहब को उत्तर दिया, ‘शुक्रिया!

नवाब साहब ने खीरे की फाँकों को कैसे देखा?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फांकों की ओर देखा । खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया । खीरे की एक फाँक उठाकर होंठों तक ले गए । फाँक को सूंघा ।

नवाब साहब ने खिड़की के बाहर देख क र दीर्घ निःश्वास क्यों लिया?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ विश्वास क्यों लिया? नवाब साहब खिड़की के बाहर देखकर लंबी सांस इसलिए ले रहे हैं क्योंकि वे खीरा खाना चाहकर भी खा नहीं पा रहे और इसी खिड़की के रास्ते से उन्होंने खीरे की कटी हुई फाँकें बाहर फेंकनी हैं।

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लेखक ने नवाब साहब को खीरा खाने के लिए पूछने पर क्या उत्तर दिया?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर- नवाब साहब ने लेखक से जब पहली बार खीरा खाने के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया। नवाब साहब जब दोबारा खीरा खाने के लिए पूछते हैं तो लेखक के मुँह में पानी आ जाता है लेकिन वह अपने स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए खीरा खाने से मना कर देता है।

नवाब साहब द्वारा खीरा खाने के लिए पूछने पर लेखक ने क्या जवाब दिया?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का जिसे देखकर लेखक ललचाया पर उसने खीरे खाने का प्रस्ताव अस्वीकृत क्यों कर दिया? नवाब साहब ने करीने से सजी खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़ककर लेखक से खाने के लिए आग्रह किया तो लेखक ने साफ़ मना कर दिया। जबकि लेखक खीरे खाना चाहता था।

लेखक द्वारा खीरा खाने से इंकार करने पर नवाब साहब ने अपनी झेंप कैसे मिटाई?

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इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने बहुत नजाकत और सलीके से खीरा काटा, उन पर नमक-मिर्च लगाया। उनकी इस हरकत का यह कारण होगा कि वे एक नवाब थे, जो दूसरों के सामने खीरे जैसी आम खाद्‌य वस्तु खाने में शर्म भव करते थे। लेखक को अपने डिब्बे में देखकर नवाब को अपनी रईसी याद आने लगी। इसीलिए उन्होंने खीरे को मात्र सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया।

नवाब साहब ने खीरे के गुण अवगुण के बारे में कौन सी बात नहीँ कही?

इसे सुनेंरोकेंउनका यह स्वभाव उनके दिखावटी स्वभाव को प्रकट करता है। नवाब साहब ने लेखक के सामने खीरा काटा और फिर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया। शायद वह अपनी झूठी आन-बान के एक के सामने खीरा खाने से शर्मा रहे हों। वह खीरे को एक साधारण वस्तु समझते थे और खीरे जैसी आम वस्तु को खाकर वह अपनी श्रेष्ठता को कम नहीं करना चाहते।