निषेचन ना हो सकने वाले एक परिपक्व अंडाणु का क्या होता है? - nishechan na ho sakane vaale ek paripakv andaanu ka kya hota hai?

परिपक्व अंडाणु के साथ शुक्राणुओं के संलयन की प्रक्रिया कहलाती है:

  1. डिंबोत्सर्जन
  2. युग्मकजनन
  3. निषेचन
  4. इम्प्लांटेशन 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : निषेचन

अवधारणा:

  • निषेचन जनन प्रक्रम का पहला चरण शुक्राणु और अंडाणु का संलयन है।
  • जब शुक्राणु अंडे के संपर्क में आते हैं, तो उनमें से एक शुक्राणु अंडे के साथ संगलित हो सकता है। अंडे और शुक्राणु के इस तरह के संलयन को निषेचन कहा जाता है।
  • निषेचन के दौरान, शुक्राणु के केंद्रक और अंडे आपस में संगलित होकर एकल केंद्रक बनाते हैं। इसके परिणामस्वरूप एक निषेचित अंडे या युग्मज का निर्माण होता है।

निषेचन ना हो सकने वाले एक परिपक्व अंडाणु का क्या होता है? - nishechan na ho sakane vaale ek paripakv andaanu ka kya hota hai?
Key Points

  • निषेचन दो प्रकार का होता है - आंतरिक निषेचन और बाह्य निषेचन
  1. आंतरिक निषेचन - मादा शरीर के अंदर जो निषेचन होता है उसे आंतरिक निषेचन कहा जाता है। मानव, गायों, कुत्तों और मुर्गियों सहित कई जानवरों में आंतरिक निषेचन होता है।
  2. बाह्य निषेचन - मादा शरीर के बाहर होने वाले निषेचन को बाह्य निषेचन कहते हैं। यह जलीय जंतुओं जैसे मछली, तारामीन, मेंढक आदि में बहुत आम है।

Latest DSSSB Nursing Staff Updates

Last updated on Oct 1, 2022

The Delhi Subordinate Services Selection Board (DSSSB) is soon be going to release the official notification for the DSSSB Staff Nurse Recruitment 2022. A total of 1362 vacancies were released for the last recruitment cycle. It is expected that this year the vacancies count will be more. Candidates who passed Matriculation are eligible for the recruitment process. With an expected DSSSB Staff Nurse Salary of Rs. 9300 to Rs. 34800, this is a great opportunity for many job seekers.

सीमा

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मन्दिर में हर उम्र की महिला के अंदर जाने को हरी झंडी देकर फिर से माहवारी से जुड़ी मान्यताओं पर बहस को गरमा दिया है। अलग-अलग लोगों के तरह-तरह के बयान मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे। कुछ लोगों ने महसूस किया कि यह फैसला बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था तो कुछ अन्य लोगों का मानना था कि धर्म से जुड़े मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट को दखलंदाज़ी करने का कोई हक नहीं है। खैर, सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर चर्चा और कभी करेंगे। अभी इस लेख में हम बात करेंगे माहवारी और उससे जुड़ी सामाजिक मान्यताओं पर।

माहवारी महिलाओं के शरीर के अन्दर होने वाली एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। सवाल है कि फिर इसके साथ यह छुआछूत कैसे जुड़ गई? औरतें ज़िंदगी के 35-40 साल इस सोच/कुंठा के साथ गुज़ार देती हैं कि माहवारी का खून गंदा है, दूषित करने वाला है। प्राय: इस पर कोई सवाल भी नहीं उठाया जाता। जबकि हकीकत यह है कि माहवारी का खून न तो गंदा है और न ही दूषित करने वाला। इस सच्चाई का एहसास हम तब ही कर पाएंगे जब हम अपने शरीर को, माहवारी की प्रक्रिया को समझने की कोशिश करेंगे।

माहवारी वह प्रक्रिया है जिसमें महिला का शरीर एक बच्चे के ठहरने की तैयारी करता है। जब लड़की किशोरावस्था में कदम रखती है (आम तौर पर 9 से 14 वर्ष के बीच), तब माहवारी चक्र की शुरुआत होती है। एक बार माहवारी शुरू होने के बाद लगभग 45-50 वर्ष की उम्र तक महिलाओं को हर माह माहवारी आती है, सिर्फ उस समय को छोड़कर जब वे गर्भवती होती हैं।

एक महिला के शरीर में प्रजनन के लिए मुख्य अंग दो अंडाशय होते हैं। अंडाशय पेट के निचले क्षेत्र में यानी कूल्हे वाले हिस्से में दोनों ओर एक-एक होता है। प्रत्येक अंडाशय में लाखों अंड कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं में अंडाणु बनाने की क्षमता होती है। मज़ेदार बात यह है कि ये सारी कोशिकाएं जन्म के समय से ही महिला के शरीर में मौजूद होती हैं। मगर ये अपरिपक्व अवस्था में होती हैं। लगभग 9 से 14 वर्ष की उम्र तक ये अपरिपक्व अवस्था में ही बनी रहती हैं। इनके परिपक्व होने की शुरुआत अलग-अलग महिला में अलग-अलग उम्र में होती है। दोनों अंडाशयों के पास एक-एक नली होती है जिसे अंडवाहिनी कहते हैं। अंडाशय में से हर माह एक अंडाणु निकलता है और इस नली के मुंह में गिर जाता है। इस नली के फैलने-सिकुड़ने से ही अंडाणु आगे गर्भाशय की ओर बढ़ता है। गर्भाशय मुट्ठी के बराबर एक तिकोनी, चपटी थैली होती है।

अंडाशय में परिपक्व होने के साथ ही अंडाणु के आसपास गुब्बारे की तरह की थैली बनने लगती है जिसे पुटिका कहते हैं। उसी समय गर्भाशय की अंदरूनी परत मोटी होने लगती है। इसमें ढेर सारी छोटी-छोटी खून की नलियां बनने लगती हैं ताकि यदि बच्चा ठहरे तो उस तक खून पहुंच सके। अंडाशय में अंडाणु के आसपास बढ़ रही पुटिका इतनी बड़ी हो जाती है कि वह फूट जाती है। अंडाणु अंडाशय से बाहर निकल आता है। अंडाणु किसी एक अंडवाहिनी में प्रवेश करता है और गर्भाशय की तरफ बढ़ता है।

निषेचन ना हो सकने वाले एक परिपक्व अंडाणु का क्या होता है? - nishechan na ho sakane vaale ek paripakv andaanu ka kya hota hai?
मान लीजिए उस समय महिला और पुरुष के बीच संभोग होता है और पुरुष का वीर्य योनि में जाता है। वीर्य में लाखों की तादाद में शुक्राणु होते हैं। इनमें से कुछ योनि से गर्भाशय और वहां से अंडवाहिनियों में पहुंचते हैं जहां उनकी मुलाकात अंडाणु से हो सकती है। अगर शुक्राणु और अंडाणु में निषेचन हो गया तो निषेचित अंडाणु में कोशिका विभाजन शुरू हो जाता है और वह गर्भाशय की ओर बढ़ता रहता है।

निषेचन नहीं होने पर शरीर में शरीर में कुछ हार्मोन की मात्रा घट जाती है और गर्भाशय सिकुड़ने लगता है। गर्भाशय में बन रहा अंदरूनी मोटा अस्तर झड़ जाता है और अपने आप योनि से बाहर निकल आता है। इसी को माहवारी कहते हैं। पूरा अस्तर एक साथ नहीं निकल आता बल्कि दो से सात दिनों तक धीरे-धीरे बूंद-बूंद टपकता रहता है। माहवारी के स्राव में ज़्यादातर खून, ऊतक के छोटे टुकड़े व रक्त वाहिनियां पाई जाती हैं। यह खून न तो गंदा है, न ही रुका हुआ होता है।

माहवारी का स्राव बंद होने में कुछ दिन लग जाते हैं। उसी दौरान अंडाशय में कुछ और अंडाणु बढ़ने लगते हैं और झड़ती हुई परत के नीचे एक नई परत बनना शुरू हो जाती है। जल्द ही यह नया बढ़ता हुआ अंडाणु भी अंडाशय में से बाहर निकल आएगा। इस तरह यह चक्र दोबारा दोहराया जाएगा।

तो हमने देखा कि माहवारी स्त्री के शरीर में प्रजनन से जुड़ी एक सामान्य क्रिया है। मासिक स्राव के साथ जो खून रिसता है वह उन रक्त नलिकाओं का है जो गर्भ ठहरने पर बच्चे को ऑक्सीजन, पोषण तथा अन्य ज़रूरी तत्व मुहैया करवाने के लिए बनी थीं। एक मायने में यह नए जीवन को सहारा देने और संभव बनाने का साधन है।

अब हम बात करेंगे माहवारी से जुड़ी मान्यताओं पर। हमारे समाज में माहवारी के बारे में तरह-तरह की भ्रान्तियां फैली हुई हैं। मसलन, माहवारी के दौरान पेड़-पौधों को नहीं छूना चाहिए; पूजा या नमाज़ नहीं करनी चाहिए; देवी-देवताओं को नहीं छूना चाहिए; धार्मिक स्थल पर नहीं जाना चाहिए; रसोई में नहीं जाना चाहिए; खाने की चीज़ें, खास तौर से पापड़-अचार को नहीं छूना चाहिए; पुरुषों को देखना या छूना नहीं चाहिए; अलग बिस्तर पर सोना चाहिए वगैरह, वगैरह।

आखिर ऐसा क्या होता होगा कि माहवारी के दौरान महिला कुछ भी करेगी तो गड़बड़ ही होगा?
ये मान्यताएं हम सब के मन में इस तरह से पैठ बनाए हुए हैं कि हम इन पर सवाल करने से भी कतराते हैं और उनका जस का तस पालन करते रहते हैं। कुछ लोग इन मान्यताओं को धर्म और पितृसत्ता से जोड़कर देखते हैं तो कुछ इनका वैज्ञानिक कारण तलाशते हैं, जैसे हार्मोन्स का प्रभाव, शरीर का विकास आदि। इन परस्पर विरोधी विचारधाराओं की जांच-पड़ताल करके देखने की ज़रूरत है।

महिलाओं में माहवारी के आने को संतान पैदा करने की क्षमता से भी जोड़कर देखा जाता है। इसलिए माहवारी का आना सिर्फ एक महिला का निजी मुद्दा न रहकर एक पारिवारिक और सामाजिक मुद्दा भी बन जाता है। अफसोस की बात यह है कि परिवार और समाज की चिंताएं सिर्फ माहवारी से जुड़ी पाबंदियों तक ही सीमित हैं। यह विचार तक नहीं आता कि उस समय एक महिला को जिस तरह के आराम, खानपान और साफ-सफाई की ज़रूरत होती है वह उसे मिल पा रही है या नहीं। ज़रा सोचिए हर माह एक रजस्वला स्त्री के शरीर से लगभग 30-40 मि.ली. खून बह जाता है। इसकी क्षतिपूर्ति के बारे में सोचने की बजाय सिर्फ यह चिंता की जाती है कि वह खून गंदा है और उस स्त्री पर तमाम पाबंदियां लग जाती हैं।

आज भी माहवारी के विषय में खुलकर चर्चा नहीं की जाती है, न तो घर में और न ही स्कूल में। टीवी पर सेनेटरी नैपकिन के विज्ञापनों से लड़कियों को माहवारी के समय इस्तेमाल किए जा सकने वाले तरह-तरह के नैपकिन के बारे में जानकारी ज़रूर मिल जाती है, पर माहवारी क्यों होती है और उससे जुड़े तमाम सवालों के जवाबों को जानने का सुलभ ज़रिया उनके पास नहीं होता।

ज़्यादातर स्कूलों में, खासकर गांवों और कस्बों में, अब भी शौचालयों का अभाव है, और अगर होते भी हैं तो टूटे-फूटे और गंदी हालत में, पानी भी नदारद ही होता है। अगर स्कूल में अचानक से किसी लड़की को माहवारी आ जाए तो उन्हें देने के लिए सेनेटरी नेपकिन भी उपलब्ध नहीं होते हैं। इस वजह से लड़कियों को उन दिनों में स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है। सिर्फ लड़कियों को ही नहीं कामकाजी महिलाओं को भी इन परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है।

महिलाएं आज भी बेझिझक होकर किसी दुकान से सेनेटरी नेपकिन नहीं खरीद पातीं। वे या तो दुकान खाली होने का इन्तज़ार करती हैं या फिर दुकान में किसी महिला के होने का। अगर वे दबी ज़ुबान में मांग भी लेती हैं तो नेपकिन को काली पन्नी या अखबार में लपेटकर दिया जाता है जैसे खुल्लम-खुल्ला नैपकिन खरीदना कोई शर्म की बात हो। बहरहाल, सेनेटरी नेपकिन आज भी सब की पहुंच में नहीं हैं और इस कारण से अधिकांश महिलाओं और लड़कियों को कपड़े का ही इस्तेमाल करना होता है। मज़दूरी करने वाली महिलाओं को आसानी से साफ कपड़ा भी मयस्सर नहीं होता। पीने के लिए तो पानी पर्याप्त मिलता नहीं, इन कपड़ों को धोने के लिए कहां से मिल पाएगा? जैसे-तैसे कम पानी में ही धोकर गुज़ारा करना होता है। और फिर औरत माहवारी से है यह सबसे छिपाकर भी रखना होता है इसलिए इन कपड़ों को खुले में न सुखाकर अंधेरी जगह में सुखाना पड़ता है। इस वजह से उन कपड़ों से तरह-तरह के संक्रमण का खतरा लगातार बना रहता है। सामाजिक मर्यादा कायम रखने का दबाव इतना होता है कि यौन संक्रमण के बारे में किसी को बताना या इलाज करवाना भी आसान नहीं होता।

तो क्या इन मान्यताओं को बनाए रखने के लिए -
—किसी महिला के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना सही है?
—उस पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाना जायज़ है?
—उसके साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना ठीक है?

कदापि नहीं। ऐसे परिवेश में जहां शारीरिक विकास, माहवारी और प्रजनन पर चर्चा करना गंदा समझा जाता है, एक ऐसा माहौल बनाना और भी ज़रूरी हो जाता है जहां इन विषयों पर बातचीत हो सके। हमें इन मान्यताओं को जांचने-परखने और इन पर सवाल उठाने की ज़रूरत है। और यह ज़िम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की नहीं बल्कि समाज के हर तबके की है।(स्रोत फीचर्स)

2005 में एकलव्य द्वारा आयोजित एक शिक्षक प्रशिक्षण शिविर में माहवारी से जुड़ी मान्यताओं की जांच-पड़ताल की गई थी। उसी के कुछ अनुभव यहां प्रस्तुत हैं। सबसे पहले माहवारी से जुड़ी उन मान्यताओं को पहचाना गया जिनकी जांच-पड़ताल आसानी से हो सकती है। पूजा-अर्चना वगैरह आस्था से जुड़े सवाल हैं, और ये ऐसी परिकल्पनाएं प्रस्तुत नहीं करते कि आप उनकी वैज्ञानिक जांच कर सकें। पर पापड़ व अचार का खराब हो जाना या पेड़-पौधों का सूख जाना जैसी मान्यताओं को तो प्रयोग करके परखा जा सकता है।

तो शिविर में निम्नलिखित मान्यताओं की जांच की गई:
—क्या माहवारी के दौरान महिलाओं द्वारा सींचे जाने पर पौधे (खासकर तुलसी और गुलाब) सूख जाते हैं?
—अचार-पापड़ बनाने या रखने के दौरान माहवारी वाली महिला छू ले, तो क्या अचार-पापड़ खराब हो जाते हैंै?

इन मान्यताओं के बारे में लोगों के विचार एकदम अलग-अलग थे। कुछ लोगों का मानना था कि अचार इसलिए भी खराब हो जाते हैं कि गीला चम्मच डाल दिया, ढक्कन ठीक से बंद नहीं किया, या फिर बनाने में ही कुछ गलती हो गई।

खाद्य सामग्री बनाने वाले उद्योगों के बारे में भी चर्चा हुई, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं ही काम करती हैं। माहवारी के दौरान छुट्टी तो नहीं मिलती। तो फिर वहां काम कैसे चलता है?
उपरोक्त मान्यताओं की जांच करने के लिए टोलियां बनाकर अलग-अलग प्रयोग किए गए।

तुलसी और गुलाब के एक जैसे दो-दो पौधे चुनकर एक की सिंचाई माहवारी वाली महिला से और दूसरे की सिंचाई ऐसी महिला से करवाई जिसे माहवारी नहीं हो रही है।
इसी प्रकार, अचार-पापड़ वाले प्रयोग में अचार-पापड़ बनाए गए— कुछ को बनाने-संभालने का काम माहवारी वाली महिलाओं द्वारा कराया गया और कुछ को बिना माहवारी की महिलाओं द्वारा।

तीनों प्रयोग करने के बाद अवलोकन किए गए।
पौधे पहले जैसे ही थे। प्रायोगिक पौधे न तो सूखे, न मुरझाए।

पापड़ भूने। सब एक से थे। लाल नहीं हुए। जिनमें ज़्यादा सोड़ा डाला था, वे भी नहीं। अचार के दोनों नमूने दो महीने के अवलोकन के लिए एकलव्य के ऑॅफिस में ही रखे गए थे। दो महीने बाद देखा तो अचार खराब नहीं हुए थे।

प्रयोग में शामिल एक महिला ने कहा कि उसे पाबंदियों पर गुस्सा तो आता था मगर उनको तोड़ने से डर भी लगता था। पर उसे कभी सूझा ही नहीं था कि वह इन पाबंदियों को परखकर देखे।
खोजबीन का अंतिम परिणाम कुछ भी हो मगर एक बात साफ दिखी कि इन मान्यताओं को प्रयोग की जांच-परख की जा सकती है।


अगर अंडा निषेचित नहीं होता है तो क्या होता है?

यदि अंडा फर्टिलाइज नहीं होता है तो एग टूट जाता है और पीरियड्स के दौरान यूट्राइन लाइनिंग गिरने लगती है। गर्भधारण करने या प्रेग्‍नेंसी को रोकने के लिए ओवुलेशन कैसे और कब होता है, ये समझना जरूरी है। इसकी मदद से महिलाएं कुछ स्‍वास्‍थ्‍य स्थितियों का पता भी लगा सकती हैं।

निषेचित न हो सकनेवाले एक परिपक्व अंडाणु का क्या?

Solution : एक परिपक्व अंडाणु यदि निषेचित न हो तो यह लगभग एक दिन तक जीवित रहती है क्योंकि अंडाशय प्रत्येक माह एक अंड का मोचन करता है, अतः निषेचित अंड की प्राप्ति हेतु गर्भाशय भी प्रति माह तैयारी करता है। अत: इसकी अंत:भित्ति मांसल एवं स्पाँजी हो जाती है। यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक है।

अंडाणु का जीवनकाल कितना होता है?

अंडा लगभग 12-24 घंटे तक जीवित रहता है और यदि यह फैलोपियन नली में किसी शुक्राणु (स्पर्म) से नहीं मिलता है, तो यह शरीर से बाहर निकल जाता है।

अंडवाहिनी क्या है?

अण्डवाहिनी (Oviduct) - यह पतली, कुण्डलित पेशीय नली है, जो गर्भाशय और अण्डाशय को जोड़ती है। यह अपनी कशाभिका क्रियाओं द्वारा अण्डाणुओं को गर्भाशय तक पहुँचाती है तथा निषेचन के लिए स्थान प्रदान करती हैं।