आधुनिक हिंदी कविता के दिग्गज और खड़ी बोली को खास तरहीज देने वाले मैथिलीशरण गुप्त की आज जयंती है. उनका जन्म साल 3 अगस्त 1886 में हुआ था. वह ऐसे कवि थे, जिनकी कविताओं से हर निराश मन को प्ररेणा मिल जाती थी. कविता की दुनिया के सरताज मैथलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि के नाम से भी जाना जाता है. Show
जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें- - मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ. - स्कूल में खेलकूद में ज्यादा देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गई. जिसके बाद उन्होंने घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया. - मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया. महज 12 साल की उम्र में उन्होंने ब्रजभाषा में कविता लिखना शुरू कर दिया था. - उनकी कविताएं खड़ी बोली में मासिक 'सरस्वती' में प्रकाशित होना प्रारंभ हो गई. प्रथम काव्य संग्रह 'रंग में भंग' तथा बाद में 'जयद्रथ वध' प्रकाशित हुई. पिंगली वेंकैया: जिनकी वजह से भारत को मिला तिरंगा... - उन्होंने बंगाली के काव्य ग्रन्थ 'मेघनाथ वध', 'ब्रजांगना' का अनुवाद भी किया. साल 1914 में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत 'भारत भारती' का प्रकाशन किया. जिसके बाद उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई. - इसके बाद प्रेस की स्थापना कर उन्होंने अपनी पुस्तकें छापना शुरू किया. साकेत तथा पंचवटी आदि अन्य ग्रन्थ साल 1931 में पूरे किए. इसी समय वे राष्ट्रपिता गांधी जी के सम्पर्क में आए थे. जिसके बाद गांधी जी ने उन्हें "राष्टकवि" की संज्ञा प्रदान की. इन्होंने देश प्रेम, समाज सुधार, धर्म, राजनीति, भक्ति आदि सभी विषयों पर रचनाएं की. राष्ट्रीय विषयों पर लिखने के कारण राष्ट्रकवि का दर्जा मिला. - साल 1953 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया. 1954 में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. फिर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने साल 1962 में अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किए गए. - मैथिलीशरण गुप्त जी ने 5 मौलिक नाटक लिखे हैं:- अनघ’, ‘चन्द्रहास’, ‘तिलोत्तमा’, ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ और ‘विसर्जन. - वह आधुनिक काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे. उनकी 40 मौलिक तथा 6 अनुदित पुस्तकें प्रकाशित हुई. जिनकी प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार हैं:- भारत भारती- इस काव्य ग्रंथ में देश के गौरव की कविताएं हैं. यशोधरा- इसमें गौतम के वन चले जाने के पश्चात उपेक्षित यशोधरा के चरित्र को काव्य का आधार बनाया गया है. साकेत – इसमें साकेत (अयोध्या ) का वर्णन है. तिलक: अखबार से शुरू की लड़ाई, जेल में रहकर लिख दी थी किताब पंचवटी – इसमें सीता, राम और लक्ष्मण के आदर्श चरित्र का चित्रण है. भाषा शैली- गुप्त जी ने शुद्ध साहित्यिक एवं परिमार्जित खड़ी बोली में रचनाएं की है. - भारतीय संस्कृति और सहित्य की दुनिया में अहम योगदान देने वाले राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त का निधन 12 दिसंबर 1954 में हो गया. मैथिलीशरण गुप्त की अविस्मरणीय कविता नर हो न निराश करो मन को कुछ काम करो कुछ काम करो जग में रहके निज नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो न निराश करो मन को Q. मैथिलीशरण गुप्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए।राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के अमर गायक हैं। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना का पवित्र आदर्श मिलता है। इनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय जन-जागरण के स्वर सुनाई पड़ते हैं। इनकी सेवाओं के लिए महात्मा गांधी ने इनको ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया और राष्ट्रपति ने इनको संसद-सदस्य मनोनीत किया। जीवन-परिचयमैथिलीशरण गुप्त गुप्त जी का जन्म झाँसी के चिरगाँव में सन् 1886 ई. में हुआ था। आपके पिता सेठ रामचरण जी भी एक श्रेष्ठ कवि थे। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद स्वाध्याय से ही इन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। बाद आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आए। महात्मा गांधी के साथ स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लिया और जेल यात्रा की। साहित्यिक उपलब्धियों के कारण इन्हें आगरा और इलाहाबाद विश्वविद्यालयों ने डी. लिट की मानद उपाधि दी। ‘साकेत’ महाकाव्य की रचना पर इनको मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ। इनका देहान्त सन् 1964 ई. में हुआ था। रचनाएँ
इनकी कृति ‘भारत-भारती‘ में देश प्रेम एवं
राष्ट्रीयता की जो भावना विद्यमान थी, उसके कारण अंग्रेजी सरकार ने इसे जब्त कर लिया था। भारत-भारती अपने समय की अत्यन्त लोकप्रिय रचना मानी जाती था। इसके गीतों से स्वतन्त्रता संग्राम सनानियों को पर्याप्त प्रेरणा मिली। इसकी कविता का एक नमूना देखिये – जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। ‘साकेत‘ नामक इनका महाकाव्य रामकाव्य परम्परा पर आधारित है। यह गुप्त जी की कीर्ति का आधार है। इसमें मर्मस्पशी स्थलों का अनुपम चयन और सरस
चित्रण किया गया है। चित्रकूट प्रसंग एक ऐसा ही मार्मिक प्रसंग है जिसमें भरत के उज्ज्वल चरित्र की अभिव्यक्ति हुई है। कैकेयी का अनुताप भी उनकी मौलिक कल्पनाशक्ति का परिचायक है। उसका यह कथन अत्यन्त मार्मिक बन पड़ा है : “मैं रहूँ पंकिला पदमकोश है मेरा” मुझ जैसे कीचड़ से भरत जैसे कमल का जन्म हुआ है, यह मेरा सबसे बड़ा सौभाग्य है। ‘यशोधरा‘ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, हिन्दी साहित्य में स्थान Q. “कैकेयी का अनुताप” के आधार पर कैकेयी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।अथवा मैथिलीशरण गुप्त ने कैकेयी के चरित्र में जो नवीनताएँ उत्पन्न की हैं, उन्हें उदाहरण सहित समझाइए।मैथिलीशरण गुप्त के रामकथा पर आधारित महाकाव्य साकेत में पारम्परिक रामकथा में कई परिवर्तन किए गए हैं। इनमें से एक प्रमुख
परिवर्तन है कैकेयी का पश्चाताप। गुप्तजी ने इस प्रसंग को साकेत के आठवें सर्ग में दिखाया है जिसे ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक से यहाँ संकलित किया गया है। भरत सारे समाज को लेकर राम को वापस अयोध्या लौटा लाने के लिए चित्रकूट गए जहाँ एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में कैकेयी ने अपनी भूल स्वीकार करत हुए स्वय को ‘कुमाता’ तक कहा डाला। वह यह भी सफाई देती है कि मैंने जो कुछ किया है, उसमें भरत का कोई हाथ नहीं है। अपनी बात के लिए शपथ खाती हुई वह कहती है: दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है, वह स्वीकार करती है कि मैंने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपने पत्र को, राज्य का सुख देनें की कामना से यह अपराध किया। राम के समक्ष स्वयं को अपराधिनी मानती हुई वह कहती है- हाँ, जनकर भी मैंने न भरत को जाना, वह कहती है कि मैं रघुकुल को कलंकित करने वाली रानी के रूप में जानी जाऊँगी और युगों-युगों तक यह कठोर कहानी चलती रहेगी कि कैकेयी ने अपने स्वार्थ के कारण राम जैसे पुत्र को वनवास दिया था। उसे सौ बार धिक्कार है : युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी, कैकेयी के इन पश्चाताप भरे हए शब्दों को सुनकर राम उन्हें साधुवाद देते हुए उनकी प्रशंसा इन शब्दों में करते हैं : सौ बार धन्य वह एक लाल की माई। जिस माता ने भरत जैसा भाई उत्पन्न किया है, वह धन्य है। प्रभु राम के कथन का समर्थन सारी सभा ने भी किया। मैं पहाड़ जैसा पाप करके भी मौन रहूँ और राईभर भी अनुताप न करूँ, यह नहीं हो सकता। भला मन्थरा क्या कर सकती थी, दोष तो मेरा ही था, क्योंकि मैं अपने मन को ही काबू में न रख सकी। अब यह मन इस शरीर में मृत्युपर्यन्त जलता रहेगा और अपने पाप का दण्ड भोगेगा : करके पहाड़-सा पाप मौन रह जाऊँ? कैकेयी कहती है कि मैं सारे दण्ड भुगतने को तैयार हूँ किन्तु
कोई मुझसे भरत का मातृपद न छीने अभी तक लोग यही कहते थे कि पुत्र भले ही कुपुत्र निकल जाए पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती पर मैंने जो कुछ किया है उससे अब सब लोग यही कहेंगे कि माता भी कुमाता हो सकती है : छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे, उक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पश्चाताप की इस आग में जलकर कैकेयी निश्चय ही निष्कलंक और पवित्र हो गई है। गुप्तजी ने कैकेयी के इस अनुताप का समावेश ‘रामकथा’ में करके एक आवश्यकता की पूर्ति की है। कैकेयी ने मोह के वशीभूत होकर जो गलती की वह मानवीय दुर्बलता थी, किन्तु यह भी सच है कि जब किसी को अपनी भूल का पता चलता है तो पश्चाताप एवं प्रायश्चित के द्वारा वह अपने अपराध का परिमार्जन भी कर सकता है। गुप्तजी ने कैकेयी को पश्चाताप करने का अवसर प्रदान कर एक सराहनीय कार्य किया है, जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। निश्चय ही साकेत का यह अंश अत्यन्त मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी बन पड़ा है। Q. ‘साकेत’ में संकलित अंश के आधार पर उर्मिला के विरह वर्णन पर प्रकाश डालिए।‘साकेत‘ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित रामकथा पर आधारित महाकाव्य है जिसमें कवि ने रामकथा की उपेक्षित पात्र उर्मिला को केन्द्र में रखकर कथावस्तु का निर्माण किया है। साकेत के नवम सर्ग में उर्मिला का विरह-वर्णन कवि ने बड़े मनोयोग से किया है। उसके विरह वर्णन में मार्मिकता, सजीवता एवं विरह-व्यथित हृदय की टीस व्याप्त है। शरद ऋतु का आगमन होने पर खंजन पक्षी दिखाई देने लगे हैं, धूप खिल गई है. सरोवर जल से भरे दिखाई दे रहे हैं और हंस उनमें क्रीड़ा कर रहे हैं। विरहिणी उर्मिला को शरद के रूप में अपने प्रिय के
विभिन्न अंगों के दर्शन हो रहे हैं। वह अपनी सखी से कहती है : निरख सखी ये खंजन आए। इसी प्रकार शिशिर ऋतु के सारे उपादान विरहिणी उर्मिला को अपने तन में ही दिखाई पड़ रहे हैं। प्रकार वन-उपवन पतझड़ के कारण शुष्क हो गए हैं उसी प्रकार विरहिणी उर्मिला का शरीर विरह में सूख गया है। मुख एवं शरीर कुम्हला गया है। आँखें मोती रूपी आसू बरसाती रहती हैं। वह कहती है: शिशिर न फिर वन-वन में, विरहिणी उर्मिला को काम भावना भी सता रही है। वह कामदेव से कहती है कि मैं तो अबला हूँ और फिर वियोग व्यथा से पीड़ित हूँ। तुम्हें यह शोभा नहीं देता कि तुम मेरे ऊपर प्रहार करो। यदि तुम्हें अपने रूप का गर्व है तो उसे मेरे पति पर न्योछावर किया जा सकता है और यदि तम्हें अपनी पत्नी रति के रूप का घमण्ड हो, तो लो मेरी चरण धूलि ले जाओ
और उसे उस पर न्योछावर कर दो। इस प्रसंग को निम्न पंक्तियों में देखा जा सकता है: मुझे फूल मत मारो। उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उर्मिला का विरह वर्णन गुप्त जी ने साकेत में बड़े मनोयोग से किया है। यह रामकथा में उनकी मौलिक उद्भावना है तथा रामकथा का एक मधुर प्रसंग है। गुप्तजी को इसमें पूर्ण सफलता मिली है यह निःसंकोच कहा जा सकता है। हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचयहिन्दी के अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।
मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता?गुप्त राष्ट्रकवि केवल इसलिए नहीं हुए कि देश की आजादी के पहले राष्ट्रीयता की भावना से लिखते रहे। वह देश के कवि बने क्योंकि वह हमारी चेतना, हमारी बातचीत, हमारे आंदोलनों की भाषा बन गए। व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण उन्हें 1941 में जेल जाना पड़ा. तब तक वह हिंदी के सबसे प्रतिष्ठित कवि बन चुके थे।
मैथिलीशरण गुप्त को क्या कहा जाता है?गुप्त राष्ट्रकवि केवल इसलिए नहीं हुए कि देश की आजादी के पहले राष्ट्रीयता की भावना से लिखते रहे। वह देश के कवि बने क्योंकि वह हमारी चेतना, हमारी बातचीत, हमारे आंदोलनों की भाषा बन गए। व्यक्तिगत सत्याग्रह के कारण उन्हें 1941 में जेल जाना पड़ा. तब तक वह हिंदी के सबसे प्रतिष्ठित कवि बन चुके थे।
मैथिली शरण गुप्त के आराध्य कौन है?मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झाँसी में हुआ। गुप्तजी खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे।
भारत के राष्ट्रीय कवि कौन है?भारत के राष्ट्रकवि का दर्जा मुख्य रूप से कवि रामधारी सिंह दिनकर को दिया जाता है। रामधारी सिंह दिनकर ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते हैं। दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को आज के बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था।
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