माता के पुत्र के प्रति प्रेम को क्या कहते हैं? - maata ke putr ke prati prem ko kya kahate hain?

बच्चे अपने माता−पिता के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति अपनी विविध प्रकार की हरकतों से करते हैं -

  • वे अपने माता−पिता से हट द्वारा अपनी माँगे मनवाते हैं और मिल जाने पर उनको विभिन्न तरह से प्यार करते हैं।
  • माता−पिता के साथ नाना−प्रकार के खेल खेलकर।
  • माता−पिता को अपने रोज़मर्रा के खेल और बातों को बताकर।
  • माता−पिता की गोद में बैठकर या पीठ पर सवार होकर।
  • माता−पिता के साथ रहकर उनसे अपना प्यार व्यक्त करते हैं।

पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?


पाठ में ऐसे कई प्रसंग आए हैं जिन्होंने मेरे दिल को छू लिए-
(1) रामायण पाठ कर रहे अपने पिता के पास बैठा हुआ भोलानाथ का आईने में अपने को देखकर खुश होना और जब उसके पिताजी उसे देखते हैं तो लजाकर उसका आईना रख देने की अदा बड़ी प्यारी लगती है।
(2) बच्चों द्वारा बारात का स्वांग रचते हुए समधी का बकरे पर सवार होना। दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घूँघट उठाने ने पर सब बच्चों का भाग जाना, बच्चों के खेल में समाज के प्रति उनका रूझान झलकता है तो दूसरी और उनकी नाटकीयता, स्वांग उनका बचपना।
(3) बच्चे का अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ना। शिथिल होकर बच्चे के बल को बढ़ावा देना और पछाड़ खा कर गिर जाना। बच्चे का अपने पिता की मूंछ खींचना और पिता का इसमें प्रसन्न होना बड़ा ही आनन्दमयी प्रसंग है।
(4) कहानी के अन्त में भोलानाथ का माँ के आँचल में छिपना, सिसकना, माँ की चिंता, हल्दी लगाना, बाबू जी के बुलाने पर भी मन की गोद न छोड़ना मर्मस्पर्शी दृश्य उपस्थित करता है; अनायास माँ की याद दिला देता है।


माता-पिता की छाया में ही जीवन सँवरता है। माता-पिता, जो निःस्वार्थ भावना की मूर्ति हैं, वे संतान को ममता, त्याग, परोपकार, स्नेह, जीवन जीने की कला सिखाते हैं।

माता और पिता इन दो स्तंभों पर भारतीय संस्कृति मजबूती से स्थिर है। माता-पिता भारतीय संस्कृति के दो ध्रुव हैं। माँ शब्द ही इस जगत का सबसे सुंदर शब्द है। इसमें क्या नहीं है? वात्सल्य, माया, अपनापन, स्नेह, आकाश के समान विशाल मन, सागर समान अंतःकरण, इन सबका संगम ही है माँ। न जाने कितने कवियों, साहित्यकारों ने माँ के लिए न जाने कितना लिखा होगा। लेकिन माँ के मन की विशालता, अंतःकरण की करुणा मापना आसान नहीं है।
परमेश्वर की निश्छल भक्ति का अर्थ ही माँ है। ईश्वर का रूप कैसा है, यह माँ का रूप देखकर जाना जा सकता है। ईश्वर के असंख्य रूप माँ की आँखों में झलकते हैं। संतान अगर माँ की आँखों के तारे होते हैं, तो माँ भी उनकी प्रेरणा रहती है। कुपुत्र अनेक जन्मते हैं, पर कुमाता मिलना मुश्किल है।

वेद वाक्य के अनुसार प्रथम नमस्कार माँ को करना चाहिए। सारे जग की सर्वसंपन्न, सर्वमांगल्य, सारी शुचिता फीकी पड़ जाती है माँ की महत्ता के सामने। सारे संसार का प्रेम माँ रूपी शब्द में व्यक्त कर सकते हैं। जन्मजात दृष्टिहीन संतान को भी माँ उतनी ही ममता से बड़ा करती है। दृष्टिहीन संतान अपनी दृष्टिहीनता से ज्यादा इस बात पर अपनी दुर्दशा व्यक्त करता है कि उसका लालन-पोषण करने वाली माँ कैसी है, वह देख नहीं सकता, व्यक्त कर नहीं सकता।
माँ को देखने के लिए भी दृष्टि चाहिए होती है। आँखें होते हुए भी माँ को न देख सकने वाले बहुतायत में होते हैं। ईश्वर का दिव्य स्वरूप एक बार देख सकते हैं, मगर माँ के विशाल मन की थाह लेने के लिए बड़ी दिव्य दृष्टि लगती है। माँ यानी ईश्वर द्वारा मानव को दिया हुआ अनमोल उपहार।

दूसरा नमस्कार यानी पितृदेव। पिता सही अर्थों में भाग्य-विधाता रहता है। जीवन को योग्य दिशा दिखलाने वाला महत्वपूर्ण कार्य वह सतत करता है। विशेषता यह कि पिता पर कविताएँ कम ही लिखी गईं। कारण कुछ भी रहे हों, मगर कविता की चौखट में पितृकर्तव्य अधूरे ही रहे। कभी गंभीर, कभी हँसमुख, मन ही मन स्थिति को समझकर पारिवारिक संकटों से जूझने वाले पिता क्या और कितना सहन करते होंगे, इसकी कल्पना करना आसान नहीं है।
माता-पिता व संतान का नाता पवित्र है। माता-पिता को ही प्रथम गुरु समझा जाता है। माता-पिता ही जीवन का मार्ग दिखलाते हैं। माता-पिता के अनंत उपकार संतान पर रहते हैं। जग में सब कुछ दोबारा मिल जाता है, लेकिन माता-पिता नहीं मिलते। आज आधुनिक युग का जो चित्र दिखाई दे रहा है, उसमें इस महान पवित्र संबंध की अवहेलना होती दिखाई दे रही है। कहते हैं व्यक्ति जिंदा रहता है, तब तक उसको महत्वहीन समझा जाता है, उसके जाने के पश्चात ही उसका मूल्य समझ में आता है।
कालचक्र घूम रहा है, फिर भी माता-पिता का संबंध अभंग है। संतान के लिए उनके ऋण कभी पूरे नहीं होते। अतः संतान को उनकी मनोभाव से सेवा करनी चाहिए। आज आधुनिकता के अंधे प्रवाह में बहकर माता-पिता को बोझ माना जाने लगा है। यहाँ तक आदेशित किया जाने लगा है कि साथ-साथ रहना है तो सब धन, संपत्ति उनके (संतान)नाम कर दें या फिर अलग रहें। वृद्धाश्रम या इसी प्रकार की दूसरी व्यवस्था का क्या अर्थ है?
वह भी एक जमाना था, जब श्रवण कुमार जैसे पुत्र ने अपने अंधे माता-पिता की सेवा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। आधुनिक श्रवण कुमार आधुनिकता के आकर्षण में धन कमाने की अंधीदौड़ में वृद्ध माता-पिता को जीवन के अंतिम दौर में अकेले रहने को विवश कर रहे हैं। माता-पिता की छाया में ही जीवन सँवरता है। माता-पिता, जो निःस्वार्थ भावना की मूर्ति हैं, वे संतान को ममता, त्याग, परोपकार, स्नेह, जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
माता-पिता की सेवा और उनकी आज्ञा पालन से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। पिता-पुत्र संबंधों का सबसे उदात्त स्वरूप राम और दशरथ के उदाहरण से मिलता है। पिता की आज्ञा को सर्वोच्च कर्तव्य मानना और उसके लिए स्वयं के हित और सुख का बलिदान कर देना राम के गुणों में सबसे बड़ा गुण माना जाता है और इस आदर्श ने करोड़ों भारतीयों को इस मर्यादा के पालन की प्रेरणा दी है।

मां के पुत्र के प्रति प्रेम को क्या कहते हैं?

Answer. Answer: माता के पुत्र के प्रति प्रेम को ममता कहते है।

बच्चे माता पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे व्यतीत करते हैं?

बच्चे अपने माता−पिता के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति अपनी विविध प्रकार की हरकतों से करते हैं -.
(क) वे अपने माता−पिता से हट द्वारा अपनी माँगे मनवाते हैं और मिल जाने पर उनको विभिन्न तरह से प्यार करते हैं।.
(ख) माता−पिता के साथ नाना−प्रकार के खेल खेलकर।.
(ग) माता−पिता को अपने रोज़मर्रा के खेल और बातों को बताकर।.

बच्चे माता पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते है माता का अंचल पाठ के आधार पर बताएं?

माता का अँचल.
माता−पिता को अपने दोस्तों के बारे में बताकर या किसी रिश्तेदार के बारे में पूछकर।.
माता-पिता के साथ नाना-प्रकार के खेल खेलकर।.
माता−पिता को कहानी सुनाने या कहीं घुमाने ले जाने की या अपने साथ खेलने को कहकर ।.
माता−पिता के साथ विभिन्न प्रकार की बातें करके अपना प्यार व्यक्त करते हैं।.

बच्चे माता पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं Class 10?

Solution : बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ रहकर, उनकी सिखाई हुई बातों में रुचि लेकर, उनके लिए खेल करके, उन्हें चूमकर, उनकी गोद में या कधे पर बैठकर प्रकट करते हैं