Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 8 तत्सत Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Show
Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 8 तत्सत11th Hindi Digest Chapter 8 तत्सत Textbook Questions and Answers आकलन 1. लिखिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. प्रश्न इ. शब्द संपदा 2. प्रश्न आ. ना अ अप अ अव ना बे अप कुजिम्मेदार कामयाब न्याय मान सत्य गुण मंजूर मेल यश संगगैर जिम्मेदार नाकामयाब अन्याय अपमान असत्य अवगुण नामंजूर बेमेल अपयश कुसंग अभिव्यक्ति 3. वास्तव में देखा जाए तो जंगली जानवरों के लिए हम खतरा बन रहे हैं। भौतिक विकास के नाम पर जंगलों को खत्म करने से बेचारे जानवरों का जीना हराम हुआ है। जंगलों में रहने वाले अनेक छोटे-छोटे जीव-जंतु अस्तित्वहीन हो रहे हैं। उनका निवास हमने छीन लिया है। इसलिए बेचारों को मानवी बस्ती में घुसना पड़ रहा है। इस कारण अभयारण्यों की आवश्यकता तीव्रता से महसूस हो रही है। प्रश्न आ. हमारे विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाकर मानो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मार रहे हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों की हानि से भविष्य में मनुष्य के जीवन में गंभीर चुनौतियाँ निर्माण हो सकती है। केदारनाथ पहाड़ी में हुई दुर्घटना हो, या हाल ही में कोकण में हुई दुर्घटना हो – इन जैसी घटनाओं से प्रकृति हमें इशारा दे रही है। इन इशारों से अगर हम सावधान नहीं होंगे, प्रकृति की रक्षा नहीं करेंगे तो बाढ़, तूफान, भूचाल, सूखा इन जैसे प्राकृतिक संकटों का मनुष्य के अस्तित्व पर हमला संभव है। हमें यह जानना चाहिए कि अगर पर्यावरण सुरक्षित हो तो ही हम सुरक्षित रह पाएँगे। पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न – 4. आदमी किस वन के बारे में बात कर रहे थे, यह जंगल वासी समझ नहीं पाए। वन किसे कहते है? वह कहाँ है? इसे जानने के लिए सब बेचैन थे। अनेक पेड़, प्राणियों के साथ बड़ दादा की चर्चा हुई। किसी को भी ‘वन’ के बारे में जानकारी नहीं थी। कुछ दिन बाद वही आदमी फिर दिखाई दिए। बड़ ने उन्हें ‘वन’ के बारे में पूछा। आदमी ने बड़ के पेड़ पर चढ़कर ऊपरी हिस्से में खिले हुए नए पत्तों को आस-पास की दुनिया दिखाकर बड़ के कान में कुछ कहा। बड़ दादा को उस वक्त पता चला कि ‘वन’ माने कोई जानवर या पेड़-पौधे नहीं बल्कि उन सबसे वन बना है। वन हम में है और हम वन में हैं इस परम सत्य का उसे पता चला। आखिर वही ‘तत्सत’ था। (2) सिंह : इस कहानी का सिंह ‘शक्ति’ का प्रतीक है। सिंह पराक्रमी है। वन का राजा है। उसे अपनी शक्ति पर गर्व है। जब बड़ दादा तथा अन्य उसे ‘वन’ के बारे में पूछते हैं तब उसे पता चलता है कि ‘वन’ नामक कोई है? उस ‘वन’ को उसने कभी नहीं देखा था। सिंह उस वन को चुनौती देना चाहता है। अगर उसका ‘वन’ से मुकाबला हो जाए तो उसे फाड़कर नष्ट करना चाहता है। ‘वन’ को नष्ट करने की भाषा के पीछे उसका अज्ञान है। वन के अस्तित्व पर उसे भरोसा नहीं है। खुद की शक्ति पर अहंकार करने वाले सिंह के शब्द और कृति से उसका बल दिखाई देता है। शक्ति, वीरता, बल और अहंकार का प्रतीक ‘सिंह’ है। (3) वाँस : ‘तत्सत’ कहानी में गहन वन है जहाँ के पेड़-पौधों को तथा पशुओं को ‘वन’ नामक जानवर के बारे में पता नहीं है। परंतु सबको उसका डर था क्योंकि शिकारियों ने ‘भयानक वन’ की बात आपस में की थी। वन के सभी ‘वन’ नामक भयानक जानवर के बारे में चर्चा कर रहे थे। तब बाँस भी उस चर्चा में सम्मिलित हुआ। वह थोड़ी सी हवा आते ही खड़खड़ करने लगता था। वह पोला था परंतु बहुत कुछ जानता था। वह घना नहीं था, सीधा ही सीधा था। इसीलिए झुकना नहीं जानता था। उसे लगता था कि हवा उसके भीतर के रिक्त में वन-वन-वन-वन कहती हुई घूमती रहती है। वाग्मी वंश बाबू अर्थात् बाँस ‘वन’ नामक भयानक प्राणी के बारे में अधिक बता न सके। प्रश्न आ. आखिर बड़ दादा को साक्षात्कार होता है और वह वन रूपी ईश्वर के अस्तित्व को मानने के लिए तैयार हो जाता है। बड़ दादा से मनुष्य ने जो कुछ कहा, मंत्र रूपी संदेश दिया तब मानो उसमें चैतन्य भर आया। उन्होंने खंड को कुल में देख लिया। उन्हें अपने चरमशीर्ष से कोई अनुभूति प्राप्त हुई। सृष्टि के अंतिम सत्य को उन्होंने जान लिया। हम आज हैं कल नहीं परंतु ईश्वर है। ईश्वर हम सब में है। ईश्वर के अस्तित्व के बारे में उलझन और समाधान के बीच की उथल-पुथल को जंगल वासी और आदमियों के संवाद द्वारा लेखक ने साकार किया है। हम सभी का अस्तित्व इस सृष्टि के लिए महत्त्वपूर्ण है परंतु अंत में उस परम शक्तिशाली का अस्तित्व हमें स्वीकार करना ही पड़ता है। यही सत्य है। इसीलिए कहानी का शीर्षक सार्थक है। ‘तत्सत’ का शब्दश: अर्थ है वही सत्य है अर्थात ईश्वर सत्य है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए: प्रश्न अ. प्रश्न आ. 6. निम्नलिखित रसों के उदाहरण लिखिए : (a) हास्य (b) वात्सल्य रस : Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 8 तत्सत Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : शीशम ने कहा, “ये लोग इतने ही ……………………………………………. वह चीतों से बढ़कर होगा।” (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 39-40)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. (ii) वन चीतों से बढ़कर होगा ……………………………………………. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. पेड़ अपनी हजारों मशीनों (पत्तियों) द्वारा हवा शुद्ध करने के काम में। लगा है। पशु-पक्षी पेड़ के फल खाते हैं और फलों के बीज इधर-उधर डालकर नए वृक्ष उगाने में सहायक सिद्ध होते हैं। उनके मल-मूत्र से पेड़-पौधों को खाद मिल जाती है और वे भी फलते-फूलते हैं। मनुष्य द्वारा फैलाए गए प्रदूषण को कम करने में इस तरह पेड़-पौधे और पशु-पक्षी अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। ये इस धरती का शृंगार है जो हमें जीवन प्रदान करने में मददगार सिद्ध हुए हैं। अत: इनकी अहमियत समझकर इन्हें संरक्षण देना हम सबका कर्तव्य है। (आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : तब सबने घास से पूछा ……………………………………………………………………………………………………………. कैसे जाना जाए। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 41)प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. (ii) अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए : प्रश्न 4. पेड़ की शाखाएँ दूर-दूर तक फैली हुई थी। पेड़ के नीचे फल-फूल बिखरे हुए थे। अलगअलग पछियों की चहचहाट से मन पुलकित हो रहा था। एक अनोखा सुकून, महसूस हो रहा था। तब से मुझे हमेशा लगता है कि ‘जंगल’ बचाना बहुत जरूरी है। सिर्फ हमारी अंदरूनी सुकून के लिए नहीं बल्कि उन सारे जीव-जंतुओं के लिए भी जिनकी जिंदगी जंगल पर निर्भर है। आज हम अपने स्वार्थ के लिए जंगल बरबाद कर रहे हैं। हमारी भौतिक जिंदगी आबाद हो रही है। जंगल की लकड़ियाँ तोड़कर हम तो एक से एक बड़ी इमारतें खड़ी कर रहे हैं किंतु जानवरों का निवास नष्ट हो रहा है। आजकल शेर, हाथी, बंदरों का मानवी बस्ती में घुसना आम बात हो गई है। इन सबको बचाना हमारा कर्तव्य है। अत: ‘जंगल बचाओ’ यह अभियान चलाने की जरूरत है। (ई) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : उन दोनों आदमियों में से प्रमुख ने विस्मय से …………………………………………………………………………. ‘तो क्या मरोगे?’ (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 43)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4. हमारे विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाकर मानो हम अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मार रहे हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों की हानि से भविष्य में मनुष्य के जीवन में गंभीर चुनौतियाँ निर्माण हो सकती है। केदारनाथ पहाड़ी में हुई दुर्घटना हो, या हाल ही में कोकण में हुई दुर्घटना हो – इन जैसी घटनाओं से प्रकृति हमें इशारा दे रही है। इन इशारों से अगर हम सावधान नहीं होंगे, प्रकृति की रक्षा नहीं करेंगे तो बाढ़, तूफान, भूचाल, सूखा इन जैसे प्राकृतिक संकटों का मनुष्य के अस्तित्व पर हमला संभव है। हमें यह जानना चाहिए कि अगर पर्यावरण सुरक्षित हो तो ही हम सुरक्षित रह पाएँगे। पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न : प्रश्न अ. लेकिन इतना होने पर भी उसे ‘वन’ के बारे में कुछ ज्ञान नहीं है। साँप के मतानुसार ‘वन’ फर्जी है। धरती के गर्त में ज्ञान की खान है। जहाँ सिर्फ साँप पहुँचता है इसलिए साँप इस कहानी में ‘ज्ञान’ का प्रतीक माना गया है। उसे धरती के अनेक रहस्यों का ज्ञान है। परंतु ‘वन’ के बारे में उसे कुछ पता नहीं है। (2) घास : ‘तत्सत’ कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है। इस कहानी के अनेक पात्र किसी विशेष गुणों का प्रतीक है। कहानी की ‘घास’ एक सर्वव्यापी वनस्पति है। वह हर जगह व्याप्त है। वह ऐसी बिछी रहती है कि किसी को उससे शिकायत नहीं होती। लोगों की जड़ों को वह जानती है। पद-तल के स्पर्श से घास सबको पहचानती है। जब उसके सिर पर किसी का स्पर्श इतना जोरदार होता है कि उसे चोट पहुंचे तो वह पहचानती है कि वह ताकतवर है। धीमे कदमों से अगर कोई घास पर से चलता है तो वह जान लेती है कि कोई दुखियारा जा रहा है। दुख से घास का अपनेपन का रिश्ता है। इस कहानी में ‘घास’ ‘बुद्धिमती’ है, अर्थात बुद्धि का प्रतीक है। तत्सत Summary in Hindiतत्सत लेखक परिचय : प्रेमचंदोत्तर उपन्यास (novel) में लेखक जैनेंद्र कुमार जी का एक विशिष्ट स्थान है। आपका जन्म 2 जनवरी 1905 को अलीगढ़ में हुआ। मनोविज्ञान और दर्शन आपके साहित्य का आधार है। हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक (promoter) के रूप में आप प्रसिद्ध है। पद्मभूषण से आप सम्मानित हैं। आपका देहांत 24 दिसंबर 1988 को हुआ। तत्सत रचनाएँ : परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी (उपन्यास) फाँसी, नीलम, एक रात, दो चिड़ियाँ, जैनेंद्र की कहानियाँ (सात भाग), (कहानी संग्रह) सोच-विचार, जड़ की बात, पूर्वोदय, काम, प्रेम और परिवार (निबंध) प्रेम में भगवान, पाप और प्रकाश (नाटक) तत्सत विधा-परिचय : गद्य साहित्य की सबसे प्रिय तथा रोचक विधा ‘कहानी’ को माना जाता है। जीवन का यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का चित्रण कहानी में होता है। मनोरंजन के साथ-साथ, जीवन में व्याप्त कुप्रथा, गलत रूढ़ियाँ तथा आडंबरों (ostentatious) का पर्दाफाश करते हुए एक नए समाज की स्थापना करना यह उसका हेतु है। तत्सत विषय प्रवेश : ‘तत्सत’ यह कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है। इस कहानी के घने जंगल में रहने वाले पेड़-पशु-पंछी, जीव-जंतु विशिष्ट प्रवृत्तियों के प्रतीक है। ‘बुद्धि’, ‘शक्ति’, ‘ज्ञान’ के अहंकार में चूर मनुष्य स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझता है। प्रस्तुत कहानी में लेखक कहना चाहते हैं कि सभी का अस्तित्व, अपनी-अपनी जगह महत्त्वपूर्ण है। हम सभी का अस्तित्व इस सृष्टि के लिए महत्त्वपूर्ण है। परंतु अंत में उस परम शक्तिमान का अस्तित्व भी स्वीकार करना पड़ता है। जंगल में होने वाली उथल-पुथल भरी घटना का आधार लेकर लेखक यह अंतिम सत्य अर्थात ‘तत्सत’ हम तक पहुँचाना चाहते हैं। तत्सत सारांश : एक घना जंगल था। एक दिन उस जंगल में दो शिकारी, शिकार की टोह में आए थे। शिकारी आपस में बोलने लगे कि इतना घना और भयानक जंगल इसके पहले उन्होंने कभी नहीं देखा था। एक बड़े बड़ के पेड़ के नीचे कुछ देर आराम करके वे आगे निकले। शिकारी लोगों के जाने के बाद बड़ के पेड़ के नीचे बैठे उन प्राणियों के बारे में सब पेड़-पौधों में चर्चा होने लगी। बड़ दादा से अन्य पेड़ों को पता चला कि बिना जड़ वाला सिर्फ दो शाखाओं पर चलने वाला यह प्राणी मतलब आदमी। उन आदमियों ने जिस ‘वन’ का जिक्र किया था वह ‘वन’ मतलब क्या है, कैसा है? उसे किसने देखा है? इस विषय पर चर्चा होने लगी। जंगल में अनेक पेड़, प्राणी, जीव-जंतु थे। उन सब में उथल-पुथल मच गई थी कि आखिर ‘यह वन कौन है?’ जिसे किसी ने भी देखा नहीं था। जंगल का राजा सिंह को जब वन के बारे में पूछा गया तो वह जोर से दहाड़ते हुए वन को चुनौती देने की भाषा करने लगा। वनराज सिंह ‘शक्ति’ का प्रतीक है। हर जगह फैलने वाली घास भी ‘वन’ के बारे में नहीं जानती थी। पद-तल के स्पर्श से व्यक्ति की भावनाओं को पहचानने वाली घास ‘बुद्धिमत्ता’ का प्रतीक है। धरती के सारे गर्त को जानने वाला साँप ‘ज्ञान’ का प्रतीक है। वह भी वन से बेखबर था। ऊँचा बातूनी बाँस अंदर से पोला था, जो ‘पोले’ आदमियों का प्रतिनिधित्व करता है। कहानी का ‘बड़’ संयमी, सहनशील, सबसे प्रेम करने वाला है। वह ज्ञान की लालसा रखता है। सारे वन्यजन ‘वन’ में रहकर भी ‘वन’ के अस्तित्व के बारे में अज्ञानी थे। ‘तत्सत’ का ज्ञान : जंगल के जीव-जंतु परेशान थे। इतने में वहाँ वे आदमी फिर आए। सब उन आदमियों से पूछने लगे कि ‘वन कहाँ है? वन मतलब कौन है? कैसा है?’ आदमी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे कि आप से ही वन है। वन्य जीव आदमी की बातें समझ नहीं पा रहे थे। पशु चिढ़कर आदमी पर हमला करने की सोच रहे थे, आदमी भी सुरक्षा के लिए उनपर बंदूक चलाना चाहता था। परंतु बड़ दादा ने सभी को शांत किया। अंत में आदमी बड़ के पेड़ पर चढ़ा। पेड़ के ऊपरी हिस्से पर खिलते नए पत्तों की जोड़ी को उसने आस-पास का दृश्य दिखाकर बड़ के कान में कुछ कहा। बड़ को मानो समाधि लग गई। एक नई अनुभूति (sensation) उसे मिली और ‘तत्सत’ का ज्ञान हुआ कि वन में ही हम हैं और हम से ही वन है। इस कहानी से लेखक कहना चाहते हैं कि सृष्टि की परम शक्ति जिसके अस्तित्व का अज्ञान हम में है। अंतिम सत्य यही है कि ईश्वर या परम शक्ति का अस्तित्व हम में ही है। हम से ही ईश्वर है। ईश्वर हम सब में है। इस कहानी की यही प्रतीकात्मकता है। जंगलवासी और आदमियों के संवाद मानो ‘परम शक्तिमान’ के अस्तित्व के बारे में उलझन और समाधान के बीच की उथल-पुथल है। यह कहानी रोचक तथा प्रभावकारी है। तत्सत शब्दार्थ :
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 7 स्वागत है! Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 स्वागत है!11th Hindi Digest Chapter 7 स्वागत है! Textbook Questions and Answers आकलन 1. उत्तर लिखिए: प्रश्न अ. प्रश्न आ. प्रश्न इ. काव्य सौंदर्य 2. प्रश्न आ. 3. फलत: समस्त देश अब यह अनुभव करने लगे हैं कि पारस्परिक सहयोग, स्नेह, सद्भाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भाईचारे के बिना उनका काम नहीं चलेगा। विश्वबंधुत्व की अवधारणा (concept) भारतीय मनीषियों (wise) के सूत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर आधारित है जो शाश्वत (eternal) तो है ही, व्यापक एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधारित भी है। संसाधनों की बढ़ती माँग और उसकी पूर्ति के मनुष्य-मात्र के अथक प्रयत्नों ने दूरियों को कम किया है। फलस्वरूप विश्वबंधुत्व का विशाल दृष्टिकोण वर्तमान स्थितियों का महत्त्वपूर्ण परिचायक बना है। प्रश्न आ. इसमें कहीं पर घने जंगल हैं तो कहीं पर पहाड़ और कहीं पर नदियाँ हैं। इसकी राष्ट्रभाषा हिंदी है। यहाँ पर सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। मेरी मातृभूमि विविधता में एकता का प्रतीक है। यहाँ पर सभी धर्मों के लोग रहते हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी विशेषता है। इसके कण-कण में माँ की ममता छिपी है और कृषिप्रधान देश होने के कारण यहाँ पर हर समय खेतों में फसलें लहलहाती नजर आती है। मेरी मातृभूमि बहुत ही सुंदर है और इसकी सुंदरता को देखने हर साल बहुत से पर्यटक विदेशों से भी आते हैं। रसास्वादन 4. गिरमिटियों की भावना तथा कवि की संवेदना को समझते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए। (iv) रस-अलंकार : यह कविता प्रवासी साहित्य है। विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा रचा साहित्य इस श्रेणी में आता है। शाम दानीश्वर जी मॉरिशस में बसे हिंदी कवि हैं। स्वागत है कविता में कहीं पर भयानक रस “कहीं पुन: दोहरा न दे इतिहास हमारा, इस-उस धरती पर बिखर न जाएँ” तो कहीं पर वीर रस – ‘तो स्वर्ग इसे तुम बना जाओ, स्वागत – स्वागत – स्वागत है!’ की निष्पत्ति हुई है। प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को अपनी विगत दुखद स्मृतियाँ भुलाकर मॉरिशस आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। (vi) कल्पना : मॉरिशस की भूमि के लिए नैहर की कल्पना की है क्योंकि इस भूमि पर बिखरे परिजनों का मिलाप होगा। विविध देशों में विखरे हुए बंधुओं का मॉरिशस की भूमि पर स्वागत है। (vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं हम अग्रेजों के गुलाम बनकर कीचड़ की दल-दल में जा गिरे थे। कई युग लग गए कीचड़ में कमल खिलने के लिए। कई दिशाओं से इकट्ठा कर हमारे बांधवों को मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर सफलतापूर्वक ले जाया गया है। गिरमिटियों के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर करने वाली ये पंक्तियाँ मुझे पसंद हैं। (viii) कविता पसंद आने के कारण : मॉरिशस हिंद महासागर का स्वर्ग है, यह कल्पना गिरमिटियों को सत्य में तबदील करनी है। कवि का गिरमिटियों की सृजनात्मक प्रतिभा पर विश्वास इस कविता में व्यक्त हुआ है। इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए: प्रश्न अ.
प्रश्न आ.
Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 7 स्वागत है! Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : स्वागत है! ……………………………………………………………………………………………….. फिर उस जहाज पर तो चढ़े थे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 35)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. (i) सब अलग-अलग जहाज पर चढ़े थे क्योंकि …………………………………………….. (ii) सब हक्का-बक्का ताकने लगे क्योंकि …………………………………………….. प्रश्न 3. हम सब जहाज से प्रवास करने वाले जहाजिया बांधव ठहरे। अलग-अलग देशों से कोई इस जहाज पर, कोई उस जहाज से हमारे बांधव यहाँ आ रहे हैं। समुद्र तट पर जहाज का लंगर पड़ा तब सब चकित होकर यहाँ-वहाँ ताकने लगे। किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था कि हम कहाँ आ गए हैं? मेरे भाई-भतीजे कहाँ हैं? इस जहाज पर उन्हें जगह नहीं मिली थी लेकिन दूसरे जहाज पर तो चढ़े ही थे फिर वे कहाँ हैं? आने वाले सभी बांधवों का, दोस्तों का कवि सहर्ष स्वागत कर रहे हैं। (आ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : भूल जाओ …………………………………………………………………………………………………………………….. आँसू थामे वहीं मिलेंगे (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 35)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. प्रश्न 3. कवि इन सारे बांधवों का, दोस्तों का मॉरिशस में स्वागत करतें हैं। हमारे सब बांधवों के मन में पानी में चलने वाले जहाज को लेकर डर-सा समा गया है। भय लग रहा है कि कहीं वह काला भयंकर इतिहास फिर से दोहराया न जाए। उनके सामने सवाल है कि जहाज पर अब कौन चढ़ेगा? यहाँ पर फिर से हम बिखर न जाएँ ना ही फिर एक बार अपने बंधुओं को ढूँढ़ते रह जाना पड़ें। अब तो हम सब आसमान में उड़कर मॉरिशस की धरती पर उतर जाएँगे। वहीं पर हमारा मायका होगा और वहीं पर हमें हमारे परिवार के लोग मिलेंगे। अब देश-परदेश से छुटकारा मिलेगा। दुःखाश्रुओं को थामकर वहीं पर हम सब मिलेंगे। (इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : हे मेरे गिरमिटिया ……………………………………………………………………………………………………….. स्वर्ग इसे तुम बना जाओ (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 36)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. उत्तर : प्रश्न 3. मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर कई देशों के लोग इकट्ठा हुए। कीचड़ से कमल उगने में भी कई युग बीते। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। आज तक बिछड़े बंधुओं का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते है। मेरे भारत – नेपाल – श्रीलंका, फीजी सूरीनाम – पाक – गयाना के चहेते भाइयो साऊथ अफ्रिका – युके – युएसए – कनाडा – फ्रांस – रेनियन के प्यारे भाइयो मॉरिशस की इस भूमि में तुम्हारी सारी यादें गहराई-तक खुदी हुई हैं। इस भूमि को हिंद महासागर का स्वर्ग कहते हैं। यह कल्पना है या वास्तव पता नहीं परंतु मेरे प्यारे भाइयों मुझे विश्वास है कि आप सब यहाँ आकर इस धरती को स्वर्ग में तब्दील कर देंगे इसलिए कवि सभी प्रियजनों का मॉरिशस में हार्दिक स्वागत करते हैं। अलकार काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक, गुण, धन अथवा तत्त्व को अलंकार कहा जाता है। जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार जिन साधनों से काव्य की सुंदरता में अभिवृद्धि होती है, वहाँ अलंकार की उत्पत्ति होती है। मुख्य रूप से अलंकार के तीन भेद हैं – शब्दालंकार, अर्थालंकार , उभयालंकार हम शब्दालंकार का अध्ययन करेंगे। अनुप्रास – जब काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। उदा. – वक्रोक्ति – वक्ता के कथन का श्रोता द्वारा वक्ता के अभिप्रेत आशय से चमत्कारपूर्ण भिन्न अर्थ लगाया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। (२) मैं सुकुमारी नाथ बन जोगू। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले कारक, गुण, धन अथवा तत्त्व को अलंकार कहा जाता है। जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार जिन साधनों से काव्य की सुंदरता में अभिवृद्धि होती है, वहाँ अलंकार की उत्पत्ति होती है। मुख्य रूप से अलंकार के तीन भेद हैं – शब्दालंकार, अर्थालंकार, उभयालंकार हम शब्दालंकार का अध्ययन करेंगे। अनुप्रास : जब काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। वक्रोक्ति : वक्ता के कथन को श्रोता द्वारा वक्ता के अभिप्रेत आशय से चमत्कारपूर्ण भिन्न अर्थ लगाया जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। (2) मैं सुकुमारी नाथ बन जोगू। यमक : जहाँ शब्दों, शब्दांशों या वाक्यांशों की आवृत्ति होती है किंतु अर्थ भिन्न होता है वहाँ यमक अलंकार होता है। श्लेष : जब एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ मिलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। यहाँ शब्द का प्रयोग एक ही बार किया जाता है परंतु अर्थ कई निकलते हैं। (2) सुवरन को खोजत फिरत स्वागत है! Summary in Hindiस्वागत है! कवि परिचय : शाम दानीश्वर जी का जन्म 1943 में हुआ। आपने प्राथमिक शिक्षा poudre d’or Hamlet, Mauritius सरकारी पाठशाला में माध्यमिक शिक्षा Goodlands, Mauritius स्कूल में प्राप्त की। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आप हिंदी अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे। हिंदी के प्रति लगाव होने के कारण साहित्य रचना में रुचि जागृत हुई। प्रवासी साहित्य में मॉरिशस के कवि के रूप में आपकी पहचान बनी। अपने परिजनों से बिछोह का दुख, गुलामी का दंश और पीड़ा आपके काव्य में पूरी संवेदना के साथ उभरी है। यथार्थ अंकन के साथ भविष्य के प्रति आशावादिता आपके काव्य की विशेषता है। साहित्य सृजन समाज संस्थान के प्रधान 1994 जुलाई से सह मुख्य अध्यापक, 1964 से 1994 तक अध्यापन कार्य आदि पद प्राप्त किए। शाम दानीश्वर जी की मृत्यु 2006 में हुई। स्वागत है! प्रमुख कृतियाँ : पागल, कमल कांड (उपन्यास) प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य-संग्रह स्वागत है! काव्य परिचय : प्रस्तुत कविता में कवि ने गिरमिटियों (indentured labour) के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया है। गिरमिटियों की पीढ़ियों के मन में स्थित भारतीयों की संवेदनाओं और सृजनात्मक प्रतिभाओं के दर्शन कराए हैं। साथ ही गिरमिटियों को अपनी विगत दुखद स्मृतियों को भुलाकर मॉरिशस आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अब मॉरिशस की भूमि नैहर के समान है, जहाँ परिजनों से मिलाप होगा। अब यहाँ पर कीचड़ में कमल उगने लगे हैं। कवि विविध देशों में बिखरे हुए बंधुओं को बुलाकर उनका स्वागत करते हैं। स्वागत है! सारांश : कवि शाम दानीश्वर प्रवासी साहित्य में मॉरिशस के कवि के रूप में जाने जाते हैं। प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को बिछुड़ने का गम भुलाकर, इतिहास के दुःस्वप्न को पीछे धकेलकर लघु भारत अर्थात मॉरिशस की भूमि पर लौट आने का न्यौता) आमंत्रण देते हैं। कवि अपने समस्त भाइयों का और अंग्रेजों के गुलाम बनकर बिखरे हुए सभी परम दोस्तों का मॉरिशस में स्वागत करते हैं। कवि आगे कहते हैं कि एक ही भारत माँ के हम सभी बालक हैं लेकिन अंग्रेजों ने हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़कर भिन्न-भिन्न देशों में बिखेर दिया। आज कई युगों के बाद हमारा मिलन होने जा रहा है। कवि कहते हैं कि तुम सब लघु भारत अर्थात मॉरिशस की भूमि पर पधार रहे हो, आप सब का इस भूमि पर स्वागत है। हम सब जहाज से प्रवास करने वाले जहाजिया बांधव (brother) ठहरे। मॉरिशस जाने के लिए कोई इस जहाज पर सवार हो गया तो कोई उस जहाज पर क्योंकि हम सब भिन्न-भिन्न देशों से आ रहे थे। अलग-अलग देशों से हमें लेकर आने वाले जहाज पानी में आगे सरकने लगे (बहने लगे)। बहुत दूर आने पर जब एक समुद्र तट पर जहाज का लंगर पड़ा तब हम आश्चर्यचकित होकर यहाँ-वहाँ ताकने लगे। समझ में ही नहीं आ रहा था कि हम कहाँ आ गए हैं? मेरे भाई-भतीजे कहाँ हैं? इस जहाज पर उन्हें जगह नहीं मिली थी लेकिन दूसरे जहाज पर तो चढ़े ही थे, फिर वे कहाँ हैं? इस जहाज से हो या उस जहाज से हो, आने वाले सभी जहाजों से मॉरिशस लौटने वाले अपने सभी बांधवों का, दोस्तों का कवि सहर्ष स्वागत कर रहे हैं। कवि अपने बांधवों से उस पुरानी लंबी कहानी को, गुलामी के दंश और पीड़ा को, अपने सगे-संबंधियों से बिछुड़ने के गम को भुला देने की बिनती करते हैं। कवि अपने जिगर के टुकड़ों से कहते हैं कि परतंत्रता (dependence) के कारण अंग्रेजों ने हमें गुलाम बना-बना कर जहाजों में बिठाकर भिन्न-भिन्न देशों में भेज दिया, यह इतिहास था, अब उसे भूल जाओ। जो भी हमारे नसीब में था वह सब अब हो चुका। अब उसे याद कर हम क्यों रोए ? जहाज आकर हमें जबरदस्ती ले गए थे, वह हमारा भूतकाल था। युग-युगांतरो के बाद ही सही लेकिन आज तो हम मिल ही रहे हैं, यह वास्तव है। यह नजारा कितना सुंदर है कि आज हम सब लघु भारत के विशाल आँगन में तृप्त होकर एक-दूसरे से मिल रहे हैं। लंबे अरसे के बाद गले मिलने का यह सौभाग्य आज हमें प्राप्त हुआ है। कवि इन सारे सुरागवार (clue) बांधवों का, दोस्तों का मॉरिशस में स्वागत करते हैं। हमारे सब बांधवों के मन में पानी में चलने वाले जहाज को लेकर डर-सा समा गया है। भय लग रहा है, कहीं वह काला, भयंकर, इतिहास फिर से दोहराया न जाए। उनके सामने सवाल है कि पानी में चलने वाले इस जहाज पर अब कौन चढ़ेगा? यह जहाज दोबारा इतिहास को वापिस न लाए। इस धरती पर फिर से हम बिखर न जाए और ना ही फिर एक बार अपने ही बंधुओं कों ढूँढ़ते रह जाना पड़े। अब तो हम सब आसमान में उड़कर मॉरिशस की धरती पर उतर जाएँगे। वहीं हमारा नैहर होगा और वहीं हमें हमारे (पिता) और परिवार के लोग मिलेंगे। अब देश-परदेश से छुटकारा मिलेगा और दुःखाश्रुओं को थामकर वहीं हम सब मिलेंगे। आसमान में उड़कर मॉरिशस की धरती पर उतरने वाले सभी बांधवों का और दोस्तों का कवि तहे दिल से स्वागत करते हैं। हे मेरे गिरमिटिया भाइयो, अंग्रेजों के गुलाम बनकर झेले गए अपार कष्टों को सहने में आपने जो हिम्मत दिखाई है वह सब हृदयद्रावक थी। अंग्रेजों के गुलाम (चाकर) बनकर कीचड़ की दलदल में फँस गए थे, कितने युग बाद उस कीचड़ में कमल खिलने लगा हैं। (कितने युगों के बाद हम गुलामी से बाहर आ रहे हैं)। जिस प्रकार मारीच (राक्षस) से मॉरिशस (स्वर्ग) बनने में युग बीते वैसे ही कीचड़ से कमल उगने में भी कई युग बीते। मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर कई देशों से इकट्ठा कर हमारे बांधवों को सफलतापूर्वक ले जाया गया है। उस सयम कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज तक बिछड़े सारे लहु-लुहान बंधु अब मॉरिशस में इकट्ठे हो रहे हैं। कवि दानीश्वर जी इन सब बंधु-बांधवो का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते हैं। मेरे भारत-नेपाल-श्रीलंका, फीजी-सूरीनाम-पाक-गयाना के चहेते भाईयो साऊथ आफ्रिका-युके-यू.एस.ए., कनाडा, फ्रांस, रेनियन के प्यारे भाइयों मॉरिशस की इस भूमि में तुम्हारी सारी यादें गहराई तक खुदी हुई हैं। इस भूमि को हिंद महासागर का स्वर्ग कहते हैं। यह कल्पना है या वास्तव पता नहीं परंतु मेरे प्यारे भाइयो अगर यह कोई कल्पना भी हो तो भी मुझे विश्वास है कि आप सब यहाँ आकर इस धरती को स्वर्ग में तबदील कर देंगे। इसलिए कवि कहते हैं कि आप सभी मेरे प्रियजनों का मॉरिशस में हार्दिक स्वागत है। स्वागत है! शब्दार्थ :
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 6 कलम का सिपाही Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही11th Hindi Digest Chapter 6 कलम का सिपाही Textbook Questions and Answers आकलन 1. लिखिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. उत्तर : कहानी उपन्यासकफन निर्मलाप्रतिज्ञा गोदानबूढ़ी काकी रंगभूमिनमक का दरोगा सेवासदनप्रश्न इ. शब्द संपदा 2. निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए : (1) अपत्य – (2) कृपण – (3) श्वेत – (4) पवन – (5) वस्तु – (6) व्रण – (7) शोक – (8) दमन – (2) कृपण – कंजूस (3) श्वेत – सफेद (4) पवन – हवा (5) वस्तु – किसी भी चीज का आधार, सत्य (6) व्रण – निशान (7) शोक – दुःख (8) दमन – दबाने या बलपूर्वक शांत करने का काम अभिव्यक्ति 3. जितना दाम लगता है उतने बड़े पैमाने पर अनाज़ उगता भी नहीं और उसके दाम भी उतने नहीं मिलते। बारिश के कारण पहले की तरह आज भी परेशानी उसके सामने है। बाजार में अन्य वस्तुओं के दाम दुगुने हो नहीं बल्कि चौगुने बढ़े हैं; जबकि अनाज़ के दामों में उतने बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। परिणामत: अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करते समय किसान परेशान हो रहा है। प्रश्न आ. व्यक्ति ईमानदार तो है किंतु कर्तव्य के प्रति आनाकानी करता है या कर्तव्य सही समय पर करता है परंतु ईमानदार नहीं है, तो वह अपने जीवन में कभी कामयाब नहीं हो सकता।। 4. पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न : प्रश्न अ. प्रेमचंद जी का साहित्य लोगों को अन्याय से जूझने की शक्ति प्रदान करता है। उनका साहित्य समय की धडकनों से जुड़ा सजग, आदर्शवादी है। ऐसा लगता है, आज भी वे जीवन से जुड़े हुए युगजीवी हैं और युगांतर तक मानवसंगी दिखाई पड़ते हैं। उनके कहानी और नाटकों में व्याप्त माननीय संवेदना उनके साहित्य की विशेषता मानी जाती है। प्रश्न आ. ‘प्रतिज्ञा’, ‘निर्मला’, ‘सेवासदन’ में शहरी जीवन से जुड़ी समस्याओं का चित्रण मिलता है। इन उपन्यासों में हमें भारतीय नारी की समस्या का चित्रण मिलता है। ‘निर्मला एक ऐसी स्त्री है जो परंपराओं, रुढ़ियों, धर्म और कर्मकांडों से जुड़ी हुई है। इस प्रकार ग्रामीण और शहरी जीवन की समस्याओं को रेखांकित किया है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. 6. कोष्ठक की सूचना के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए – (1) मछुवा नदी के तट पर पहुँचा। (सामान्य वर्तमानकाल) (2) एक बड़े पेड़ की छाँह में उन्होंने वास किया। (अपूर्ण वर्तमानकाल) (3) आदमी यह देखकर डर गया। (पूर्ण वर्तमानकाल) (4) वे वास्तविकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। (सामान्य भूतकाल) (5) उन लोगों को अपनी ही मेहनत से धन कमाना पड़ता है। (अपूर्ण भूतकाल) (6) बबन उसे सलाम करता है। (पूर्ण भूतकाल) (7) हम स्वयं ही आपके पास आ रहे थे। (सामान्य भविष्यकाल) (8) साहित्यकार अपने सामयिक वातावरण से प्रभावित हो रहा है। (सामान्य भूतकाल) (9) आकाश का प्यार मेघों के रूप में धरती पर बरसने लगता है। (पूर्ण वर्तमानकाल) (10) आप सबको जीत सकते हैं। (सामान्य भविष्यकाल) Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 6 कलम का सिपाही Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश- “आज जब हम ………………………………………………………………………………………………………. में प्रासंगिक हैं। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 28-29)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. उत्तर : उत्तर : प्रश्न 3. प्रश्न 4. जितना दाम लगता है उतने बड़े पैमाने पर अनाज़ उगता भी नहीं और उसके दाम भी उतने नहीं मिलते। बारिश के कारण पहले की तरह आज भी परेशानी उसके सामने है। बाजार में अन्य वस्तुओं के दाम दुगुने ही नहीं बल्कि चौगुने बढ़े हैं; जबकि अनाज़ के दामों में उतने बड़े पैमाने पर बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। परिणामत: अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करते समय किसान परेशान हो रहा है। (आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश- जहाँ तक मैंने प्रेमचंद को …………………………………………………………………………………………. हाँ यह तो ठीक ही है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 30-31)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. उत्तर : प्रश्न 3. प्रश्न 4. विभिन्न परीक्षाओं के नतीजे जब सामने आते हैं तब लड़कियाँ बाजी मार जाती है। मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर वे आगे बढ़ रही हैं। हर क्षेत्र में वह पुरुषों की तरह ही सफलता पा रही है फिर वह क्षेत्र सामाजिक हो, राजनीतिक हो, आर्थिक हो या ज्ञान-विज्ञान का। वास्तव में नारी देश की शक्ति है। भारतीय संस्कृति में नारी को दुर्गा और लक्ष्मी का रूप मानकर सम्मान दिया है। किसी कवि ने खूब कहा हैं, जिसके हाथ में झूले की डोर, वह सारी दुनिया का उद्धार करने का सामर्थ्य रखती है।’ यह कथन अतिशयोक्ति पूर्ण निश्चित ही नहीं है। (इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश – आलोपीदीन : बाबू जी कहिए …………………………………………………………………………………….. यह समझता क्या है मुझे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 29)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. (ii) वंशीधर रिश्वत नहीं ले रहे थे ……………………………….. प्रश्न 3. (ख) वचन बदलिए : प्रश्न 4. कलम का सिपाही Summary in Hindiकलम का सिपाही लेखक परिचय : बहुमुखी (multifaceted) प्रतिभा के धनी डॉ. सुनील देवधर जी ने साहित्य की विविध (various) विधाओं (genres) के साथ-साथ राजभाषा एवं कार्यालयीन हिंदी भाषा की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य किया है। आपकी निवेदन शैली किसी भी समारोह को सजीव बनाती है। आपकी ‘मोहन से महात्मा’ रचना महाराष्ट्र राज्य, हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत रचना है। कलम का सिपाही प्रमुख कृतियाँ : ‘मत खींचो अंतर रेखाएँ’ (कविता संग्रह) ‘मोहन से महात्मा’, ‘आकाश में घूमते शब्द’ (रूपक संग्रह) ‘संवाद अभी शेष हैं,’ ‘संवादों के आईने में’ (साक्षात्कार) आदि। कलम का सिपाही विधा का परिचय : ‘रेडियो रूपक’ एक विशेष विधा है, जिसका विकास नाटक से हुआ है। दृश्य-अदृश्य जगत के किसी भी विषय, वस्तु या घटना पर रूपक लिखा जा सकता है। इसके प्रस्तुतीकरण का ढंग सहज, प्रवाही तथा संवादात्मक (interactive) होता है। विकास की वास्तविकताओं को उजागर करते हुए जनमानस को इन गतिविधियों में सहयोगी बनने की प्रेरणा देना रेडियो रूपक का उद्देश्य होता है। कलम का सिपाही विषय प्रवेश : किसान और मजदूर वर्ग के मसीहा प्रेमचंद जी के जीवन के मूल तत्वों और सत्य को सामंजस्यपूर्ण (harmonious) दृष्टि से प्रस्तुत करना यह उद्देश्य है। लेखक ने यहाँ साहित्यकार प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व (creativity) को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। कलम का सिपाही सारांश : प्रेमचंद जी के उपन्यास तथा कहानियों में सामयिक (modern) जीवन की विशालता, अभिव्यक्ति (expression) का खरापन, पात्रों की विविधता (variation), सामाजिक अन्याय का विरोध, मानवीय मूल्यों से मित्रता और संवेदना हैं। ‘धन के शत्रु और किसान वर्ग के मसीहा’ – ऐसे ही मुंशी प्रेमचंद जी का परिचय दिया जाता है। प्रेमचंद जी ने सामाजिक समस्याओं के और मान्यताओं के जीते-जागते चित्र उपस्थित किए, जो मध्यम वर्ग, किसान, मजदूर, पूँजीपति समाज के दलित और शोषित व्यक्तियों के जीवन को संचलित करते हैं। इनके साहित्य का मूल स्वर है – ‘डरो मत’। उन्होंने युग को जूझना और लड़ना सिखाया है। मानव जीवन से जुड़े हुए लेखक युगजीवी और युगांतर तक मानवसंगी दिखाई पड़ते हैं। चाहे शिक्षा संबंधी आयोजन हो या विचार गोष्टी (forum) अथवा संभाषण, प्रेमचंद जी की विचारधारा, उनके साहित्य तथा प्रासंगिकता पर चर्चा होती है। यही उनके साहित्य की विशेषता है। प्रेमचंद जी के साहित्य रचना लिखने के कई सालों बाद आज भी हम किसान, पिछड़े वर्ग और शोषित वर्ग के कल्याण की जिम्मेदारी अनुभव कर रहे हैं। अपने युग की प्रतिगामी (retrogressive) शक्तियों का विरोध करने वाले प्रेमचंद जी एक श्रेष्ठ विचारक और समाज सुधारक नजर आते हैं। जीवन के प्रति इनका दृष्टिकोण ‘कफन’ और ‘पूस की रात’ कहानियों में नया मोड़ लाता है; तो ‘गोदान’ उपन्यास में नए साँचे में ढलने लगता है। इनके साहित्य से कभी वे मानवतावादी, सुधारवादी, प्रगतिवादी तो कभी गांधीवादी लगे किंतु वे हमेशा वादातीत रहे। उनके पात्र चाहे वह होरी हो, अलोपीदीन हो, या वंशीधर समाज के अलग-अलग क्षेत्र के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते नजर आते हैं। युग चेतना के लिए उन्होने ‘जागरण’ निकाला, विभिन्न भाषाओं के साहित्य को एक-दूसरे से परिचित कराने के लिए ‘हंस’ का प्रकाशन किया। उनका प्रगतिशील आंदोलन, विचारोत्तेजक निबंध, व्याख्यान आदि ने साहित्य भाषा और साहित्यकार के दायित्व की ओर जनसाधारण का ध्यान आकर्षित किया और साथ ही संदर्भ और समाधान भी दिए और इशारा भी किया है। उनके द्वारा लिखे गए गोदान, कफन, ईदगाह, बूढ़ी बाकी में देहाती जीवन का चित्रण है; तो ‘प्रतिज्ञा’, ‘निर्मला’ और ‘सेवासदन’ उपन्यास में शहरी जीवन का चित्रण मिलता है। उनके साहित्य का मूल उद्देश्य उस समाज के क्रमिक विकास के दर्शन कराना है जो सामाजिक रुढ़ियों पर आधारित है। लोगों की जरूरतें पूरी करने और विकास की सुविधाएँ निर्माण करने का अवसर निर्माण करने वाले समाज व्यवस्था की चाह उन्हें थी। न कि सिर्फ प्रेमचंद जी का साहित्य ही कालजयी नहीं हैं, बल्कि वे स्वयं भी कालजयी हैं। कलम का सिपाही शब्दार्थ :
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला11th Hindi Digest Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Textbook Questions and Answers आकलन 1. लिखिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. (b) व्यंजन : रचि पिराक लड्डू दधि आनौं। (c) पान : तब तमोल रचि तुमहिं खवावौं। काव्य सौंदर्य 2. माँ अपनी युक्ति लगाती है – बड़े बर्तन में पानी रखकर चंद्रमा को अपने आँगन में उतार लेती है। यशोदा कहती है यह लो लल्ला, पकड़ लाई चंद्रमा को.. यहाँ चंद्रमा का मानवीकरण किया गया है। वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है। प्रश्न आ. अभिव्यक्ति 3. ‘माँ ममता का सागर होती है’, इस उक्ति में निहित विचार अपने शब्दों में लिखिए। रसास्वादन 4. बाल हठ और वात्सल्य के आधार पर सूर के पदों का रसास्वादन कीजिए। (iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कविवर्य संत सूरदास जी ने कृष्ण के बाल हठ एवं यशोदा मैया की वात्सल्य मूर्ति को अंकित किया है। प्रथम पद में यशोदा मैया कृष्ण का चाँद पाने का हठ भी पूरा करती है तो द्वितीय पद में यशोदा कृष्ण को कलेवा कराने हेतु दुलारती दिखाई देती है। कृष्ण की पसंद के विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजन सामने रखकर वह कृष्ण की मनुहार कर रही है। (iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत पद गेय शैली में लिखे गए हैं। इनमें वात्सल्य रस की निष्पत्ति हुई है। (v) प्रतीक विधान : सूरदास स्वयं को माता यशोदा मानते हैं और अपने आराध्य को बालक कृष्ण समझकर कृष्ण के बाल हठ को पूरा कर रहे हैं तथा उन्हें भोजन कराने का प्रयत्न कर रहे हैं। (vi) कल्पना : प्रथम पद में चाँद को शरीर धारण कर कृष्ण के साथ खेलने की कल्पना की है। (vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : सूरदास जी इस पद में कह रहे हैं कि यशोदा हाथ में पानी का बरतन उठाकर लाई है। वे चंद्रमा से कहती हैं कि, ‘तुम शरीर धारण कर आ जाओ।’ फिर उन्होंने जल का पात्र भूमि पर रख दिया और कृष्ण से कहा, “देखो मैं वह चंद्रमा पकड़ लाई हूँ। तब सूरदास के प्रभु कृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे। कितनी सुंदर कल्पना की है यहाँ सूरदास जी ने। (viii) कविता पसंद आने के कारण : मुझे यह कविता पसंद है, क्योंकि यहाँ वात्सल्य रस के साथ-साथ सूरदास जी का अपने आराध्य के प्रति भक्ति भाव भी स्पष्ट दिखाई देता है। उन्होंने अपने आराध्य को बालक के रूप में देखा और माता के समान स्नेह देते हुए भक्ति की है। माँ के जैसे ही वे कृष्ण को कहते हैं, “उठिए स्याम कलेऊ की जै।” यही भक्ति की चरम सीमा है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए: प्रश्न अ. प्रश्न आ. रस हास्य – जब काव्य में किसी की विचित्र वेशभूषा, अटपटी आकृति, क्रियाकलाप, रूप-रंग, वाणी एवं व्यवहार को देखकर, सुनकर, पढ़कर हृदय में हास का भाव उत्पन्न होता है, वहाँ हास्य रस की निर्मिति होती है। (२) मैं ऐसा शूर वीर हूँ, पापड़ तोड़ सकता हूँ। वात्सल्य – जब काव्य में अपनों से छोटों के प्रति स्नेह या ममत्व भाव अभिव्यक्त होता है, वहाँ वात्सल्य रस की निर्मिति होती है। (२) ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियाँ। Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 5.2 मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : बार-बार ……………………………………………………………………………………………………………. दोऊ कर नावें (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 24)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. माँ यशोदा एक बड़े बर्तन में पानी भरकर आँगन में रख देती है और कृष्ण से कहती है, “मेरे लाल ये देखो मैं चंद्रमा को पकड़ लाई, अब जितनी देर तक मन करे उतनी देर तक तुम चंद्रमा के साथ खेल सकते हो।’ इस पंक्ति में चंद्रमा को धरती पर ले आने का भाव व्यक्त हुआ है। प्रश्न 3. आ जाओ, चंदा जल्दी से आ जाओ। मेरा लाल तुम्हें बुला रहा है। स्वयं भी छप्पन भोग खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।” यशोदा कृष्ण की पसंदीदा मक्खन, मिसरी, मेवा का नाम इसलिए लेती है कि यह सुनते ही कृष्ण चुप हो जाएँगे। “मेरे लल्ला को तुम्हारे साथ खेलना बहुत अच्छा लगेगा, हाँ, तुम चिंता ना करो, मेरा लाल तुम्हे अपने हाथ (हथेली) पर ही रखकर खेलेगा, नीचे तो कभी नहीं उतारेगा।” यशोदा आँगन में पानी से भरा पात्र रखकर कृष्ण को चंद्रमा दिखाती है। कहती है, “लाल यह देखो, मैं चंद्रमा को पकड़कर ले आई।” सूरदास जी कहते हैं – ऐसा सुनकर मेरे प्रभु श्रीकृष्ण हँस पड़े और मुस्कराते हुए उस पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालने लगे। (आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : उठिए स्याम ……………………………………………………………………………………………………………. पनवारौ पावौं (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 24)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. प्रश्न 3. माता यशोदा कहती है – “हे स्याम, मेरे मनमोहन उठो, जल्दी उठकर कलेवा (जलपान) कर लो। मेरे जीवन का आधार तो तुम ही हो। अर्थात् तुम्हें देखकर ही तो मैं जीवित हूँ। देखो, तुम्हारे जलपान के लिए नाना प्रकार के व्यंजन लाई हूँ। छुहारा, दाख, खोपरा, आम, केला, ईख का रस, पूड़ी, अचार जो तुम्हें बहुत ही प्रिय है वह सब कुछ। जब पूरे व्यंजन खत्म कर दोगे तो मैं तुम्हें पान भी खिलाऊँगी।” यह माता-पुत्र के संवाद को सुनकर सूरदास जी अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। मन-ही-मन आनंदित होते हैं कि अब उनको पान खिलाई मिलें। मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Summary in Hindiमध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला कवि परिचय : संत सूरदास जी का जन्म 1478 को दिल्ली के पास सीही नामक गाँव में हुआ। आरंभ में आप आगरा और मथुरा के बीच यमुना के किनारे गऊ घाट पर रहे। वहीं आप की भेंट वल्लभाचार्य से हुई। अष्टछाप कवियों की सगुण भक्ति काव्य-धारा के आप अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी भक्ति में साख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव निहित हैं। कृष्ण की बाल-लीला तथा वात्सल्य भाव का सजीव चित्रण आपकी रचना का मुख्य विषय है। मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला प्रमुख रचनाएँ : ‘सूर सागर’, ‘सूरसारावली’ तथा साहित्य लहरी आदि। मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला काव्य विधा : ‘पद’ काव्य की एक गेय शैली है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो निश्चित परंपराएँ मिलती हैं, एक संतो के ‘सबद’ की और दूसरी परंपरा कृष्णभक्तों की ‘पद शैली’ है। इसका आधार लोकगीतों की शैली है। भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग किया जाता है। मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला विषय प्रवेश : प्रस्तुत पदों में कृष्ण के बाल हठ और माँ यशोदा की ममतामयी छबि को प्रस्तुत किया है। प्रथम पद में चाँद की छबि दिखाकर यशोदा कृष्ण को बहला लेती है। चाँद को देखकर कृष्ण मुस्करा उठते हैं जिसे देख माँ यशोदा बलिहारी जाती है। द्वितीय पद में माँ यशोदा कृष्ण को कलेवा करने के लिए मनुहार कर रही है उनकी पसंद के विभिन्न स्वदिष्ट व्यंजन उनके सामने रखकर वह खाने के लिए मनहार कर रही है। मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला सारांश : (कविता की व्याख्या) : यशोदा अपने पुत्र को प्यार करते हुए चुप करा रही हैं। वे बार-बार कृष्ण को समझाती है और कहती हैं कि – “अरे चंदा हमारे घर आ जा। तुम्हें मेरा लाल बुला रहा है। यह मधु, मेवा, ढेर सारे पकवान स्वयं भी खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा। मेरा लाल (कृष्ण) तुम्हें हाथ पर ही रखकर खेलेगा, तुम्हें जमीन पर बिल्कुल नहीं बिठाएगा।” माँ यशोदा बर्तन में पानी भरकर उठाती है और कहती है, “हे चंद्रमा, तुम इस पात्र में आकर बैठ जाओ। मेरा लाल तुम्हारे साथ खेलकर अत्यंत प्रसन्न हो जाएगा।” यशोदा उस जल पात्र को नीचे रख देती है और कृष्ण से कहती है – “देख बेटा ! मैं चंद्रमा को पकड़ लाई हूँ।” सूरदास जी कहते हैं, मेरे प्रभु श्रीकृष्ण चंद्रमा को जल पात्र में देखकर हँस पड़ते हैं। मुस्कराते हुए उस जल पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालकर चंद्रमा को हाथ में लेने का (उठाकर खेलने के लिए) प्रयास करने लगते हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में बाल-हठ और माता के ममत्व का भावपूर्ण वर्णन मिलता है। हे मेरे मनमोहन, मेरे लाल, उठो, कलेवा (नाश्ता) कर लो। माँ यशोदा अपने हृदय की बात कहती है, अपने मनोभाव को व्यक्त करती हुई कहती है – “मैं मनमोहन को देखकर ही तो जीती हूँ” अर्थात् कृष्ण के बिना मेरा जीवन अधूरा है। मेरे जीवन का लक्ष्य ही कृष्ण है। हे लाल, देखो तो सही; मैं तुम्हारे पसंद के बहुत से व्यंजन लाई हूँ। गुझिया, लड्डू, पूरी, अचार वह सब कुछ जो तुम्हें पसंद हैं। पहले तुम कलेवा कर लो, फिर मैं तुम्हें पान बनाकर खिलाऊँगी। कवि का यहाँ यही अभिप्राय है कि माँ किस तरह अपनी संतान से स्नेह करती है। उसके जीवन का उद्देश्य ही अपनी संतान को सदा प्रसन्न रखना रहता है। पान खिलाने की बात सुनकर महाकवि सूरदास अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। सूरदास पान खिलाई के अवसर पर विशेष उपहार की कल्पना करते हैं और वह उपहार है “कृष्ण भक्ति”। विशेष शुभ अवसर पर विशेष व्यक्ति को पान खिलाया जाता है। यह एक भारतीय परंपरा है। बदले में उपहार के तौर पर कुछ ना कुछ भेंट दी जाती है। उसे नेग भी कहते हैं। सूरदास जी को भला प्रभु भक्ति के अलावा अन्य (नेग) उपहार से क्या लेना देना? यही भक्ति की चरम सीमा है। मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला शब्दार्थ:
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा11th Hindi Digest Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Textbook Questions and Answers आकलन 1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ पूर्ण कीजिए : प्रश्न अ. प्रश्न 2. ‘मैं ही मुझको मारता’ से तात्पर्य ……………………… प्रश्न आ. काव्य सौंदर्य 2. प्रश्न आ. किसी भी प्राणी को किसी भी तरह का कष्ट, दुख, पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए क्योंकि सभी प्राणी में वही परमात्मा निवास करता है जो हमारे मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। हे जीव ! उस परमात्मा के अलावा वहाँ दूसरा कोई नहीं है। सबकी आत्मा एक है। कबीर दास जी भी यही कहते हैं – “घट – घट में वही साईं रमता अभिव्यक्ति 3. प्रश्न आ. रसास्वादन प्रश्न 4. (iii) केंद्रीय कल्पना : इन साखियों में कवि संत दादू दयाल जी ने ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया है। ईश्वर को पूजने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर मन के भीतर ही है। नामस्मरण करने से हमें मोक्ष प्राप्त होगा। वेद-पुराण पढ़ने से जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिलता बल्कि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम होना चाहिए यही कल्पना यहाँ कवि ने हमारे सामने रखी है। (iv) रस-अलंकार : प्रस्तुत कविता नीति और ज्ञानोपदेश देने वाली साखियाँ हैं जो दोहा छंद में लिखी गई हैं। (vi) कल्पना : संत दादू दयाल जी ने हृदय एक सँकरा महल है, ऐसी कल्पना की है और प्रभु और अहंकार दोनों उसमें एक साथ नहीं रह सकते ऐसा बताया है। अहंकार को त्यागने का संदेश देने के लिए कवि ने यह कल्पना की है। (vii) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : इन साखियों में मेरी पसंदीदा साखी है – साखी का भाव दिल को छू लेता है और अहंकार को त्यागने का संदेश देता है। क्योंकि राम अर्थात ईश्वर और ‘मैं’ अर्थात अहंकार दोनों एक साथ नहीं रह सकते। मनुष्य का हृदय एक सँकरा महल है जहाँ अहंकार और ईश्वर एक साथ नहीं रह सकते। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर से दूर हो जाता है। अत: अहंकार का त्याग कर के ही मनुष्य प्रभुमय हो सकता है। मनुष्य का बैरी उसका अहंकार है। है जो उसे प्रभु से मिलने नहीं देता। इसीलिए अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है। (viii) कविता पसंद आने के कारण : नीति ज्ञानोपदेश और संसार का व्यावहारिक ज्ञान देने वाली ये साखियाँ हैं जो हमें अहंकार को त्यागकर सभी को एक समान मानने की प्रेरणा देती हैं। इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है। इनकी गेयता भी मुझे अच्छी लगती है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. 6. निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 5.1 मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : माखण मन ……………………………………………….. प्रेम बिना क्या होइ। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 20)प्रश्न 1. उत्तर : उत्तर : प्रश्न 2. (i) अहंकार का त्याग करना अनिवार्य है – (ii) प्रभु स्मरण के सिवा अन्य मार्ग दुगर्म हैं – प्रश्न 3. अन्य तो भवसागर में डुबोने वाला ही होता है। राम की प्राप्ति केवल प्रेम की नाव पर ही बैठकर प्राप्त हो सकती है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। भक्ति के सहारे ही भवसागर पार किया जा सकता है। जीवन के उद्धार के लिए अन्य सभी मार्ग दुर्गम हैं। प्रेम की पत्री वही पढ़ सकता है जिसके हृदय में प्रेम है। यदि हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम नहीं तो वेद-पुराण आदि पुस्तकें पढ़ने से क्या लाभ? (आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : कागद काले करि मुए, ……………………………………………….. इनका मोल न तोल।। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 20)प्रश्न 1. (i) प्रभु का एक अक्षर पढ़ने का परिणाम – (ii) वेद-पुराण का गहन अध्ययन करने का परिणाम – प्रश्न 2. उत्तर : (आ) उत्तर लिखिए : प्रश्न 3. जिसने प्रिय प्रभु का एक अक्षर ही पढ़ लिया, वह सुजान पंडित हो गया। मनुष्य को उसका अहंकार ही मारता है, दूसरा कोई नहीं। अहंकार का त्याग करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति होती है। अपने अहंकार को मारकर ही मनुष्य मरजीवा हो सकता है अर्थात वैरागी बन सकता है। अपने लौकिक बंधन तोड़कर स्वयं पर जीत पा सकता है। अहंकार के आवरण से बाहर निकलकर ही जीवन की सार्थकता मनुष्य समझ पाएगा। मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Summary in Hindiमध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा कवि परिचय : संत दादू दयाल का जन्म 1544 को अहमदाबाद (गुजरात) में हुआ। आपके गुरु का नाम बुड्ढन था। आपने जिस संप्रदाय की स्थापना की वह ‘दादू पंथ’ के नाम से विख्यात हुआ संत परंपरा के अनुसार आपका दृष्टिकोण भी – “सर्वे भवंतु सुखिन:’ का रहा है। समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियाँ, अंधविश्वास और जातिगत ऊँच-नीच के विरोध में आपकी साखियाँ (एक काव्य प्रकार) एवं पद प्रस्तुत हैं। आपके पद समाज, समता एवं एकता के पक्ष में हैं। आपने कबीर की भाँति अपने उपास्य को निर्गुण और निराकार (formless) माना है। संत दादू दयाल की मृत्यु-1603 में हुई। प्रमुख रचनाएँ : ‘अनभैवाणी’, ‘कायाबेलि’ आदि। मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा काव्य विधा : ‘साखी’ साक्षी का अपभ्रंश है जो वस्तुतः दोहा छंद में ही लिखी जाती है। साखी का अर्थ है – साक्ष्य, प्रत्यक्ष ज्ञान। निर्गुण संत संप्रदाय का अधिकांश साहित्य साखी में ही लिखा गया है। जिसमें गुरुभक्ति और ज्ञान उपदेशों का समावेश है। मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा विषय प्रवेश : प्रस्तुत साखी में संत कवि ने गुरु महिमा का वर्णन किया है। ईश्वर पूजन के लिए बाह्य संसाधन (exterior resources) की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर के अलावा सांसारिक अंधकार को दूर करने वाला अन्य कोई नहीं है। नाम स्मरण से पत्थर हृदय भी मक्खन सा मुलायम हो जाता है। अंहकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। बिना इसका त्याग किए ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसकी रक्षा ईश्वर करता है, वही इस भवसागर से पार हो सकता है। ईश्वर एक ही है और वही एक ईश्वर सभी प्राणियों में समान रूप से निवास करता है अर्थात् सभी को एक समान मानना चाहिए। मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा सारांश (कविता का भावार्थ) : मायामोह में रहने वाले व्यक्ति का हृदय पत्थर के समान हो जाता है। ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाले मनुष्य का हृदय ईश्वर प्रेम से भरा रहता है। मनुष्य को सदा अहंकार से दूर रहना चाहिए। प्रभु प्राप्ति में अहंकार बहुत बड़ी बाधा है। ईश्वर कीर्तन में दादू मग्न हो जाते हैं। उनको ऐसा लगता है कि उनके मुँह से ताल (rhythm) बजने की आवाज आ रही है, उनके प्रभु उनके समक्ष प्रस्तुत है। भक्ति के सहारे ही संसार को पार किया जा सकता है। प्रभु स्मरण के अतिरिक्त संसार पार के अन्य मार्ग केवल भ्रम है। प्रेम ही जीवन और संसार का सार है। प्रेम नहीं तो संपूर्ण वेद वेदांत का अध्ययन निर्रथक है। वेद पुराण की व्याख्या करने वाले जाने कितने लोगों ने कितने कागज़ भर डाले पर प्रभु का सानिध्य (nearness) नहीं मिल पाया। जिसने प्रभु प्रेम का अक्षर आत्मसात कर लिया वह पंडित हो गया। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। जिसने अहंकार पर विजय प्राप्त कर लिया वह विजेता हो जाता है। परमात्मा जिसका हाथ पकड़ लेता है वही इस संसार रूपी सागर से पार हो सकता है। शेष तो भवसागर में डूब ही मरते हैं। सज्जन व्यक्ति ही प्रभु कृपा का पात्र होता है। आत्मा में ही परमात्मा का निवास होता है इसलिए किसी को भी किसी तरह का कष्ट, दुःख मत पहुँचाना। इस संसार में दो ही ऐसे रत्न हैं जिनकी किसी से भी कोई तुलना नहीं है। पहला रत्न है – सबका मालिक, स्वामी, प्रभु, परमात्मा और दूसरा रत्न है – संकीर्तन करने वाला संतजन। इन्हीं दो रत्नों के बल पर, सामर्थ्य पर जीवन और जगत सुंदर बन जाता है। ये दोनों ही रत्न ऐसे हैं जिनका मोल-तोल नहीं हो सकता। मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा शब्दार्थ :
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ11th Hindi Digest Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Textbook Questions and Answers आकलन 1. (b) लेखक का योग के प्रति मोह भंग हो गया है – प्रश्न आ. उत्तर : (i) पार्क में घूमने जाते हैं तब योग संस्थान वाले घेर लेते हैं। (ii) फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है। (iii) मनोरंजन के लिए टी.वी. ऑन करते हैं तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डराते हैं। शब्द संपदा प्रश्न अ. उत्तर: प्रश्न आ. उत्तर: अभिव्यक्ति आज एक ही प्रकार की वस्तुओं के अलग-अलग उत्पादक है। उत्पादन करने वाली हर कंपनी अपनी वस्तु को दूसरे से हटकर अधिक अच्छे तरीके से दूसरों के गले में बाँध देना चाहते हैं। ग्राहक आकर्षित हो इसलिए वे ‘फ्री’ का फंडा अपनाते हैं, चाहे उसका दर्जा कैसा भी क्यों न हो। वस्तु का दर्जा पहचाने बगैर मुफ्त में मिलने वाली वस्तुओं के प्रति लोगों का आकर्षण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, इसका फायदा उत्पादन करने वाली कंपनियाँ ले रही हैं। लोग हैं कि, फ्री की वस्तु पाने के लिए वस्तुओं की खरीदारी कर अपने को चतुर एवं सयाने समझने लगे हैं। इस फ्री के चक्कर में लोग न जाने कितनी अनावश्यक वस्तुएँ खरीदते हैं। पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न 4. आपका मोटापा कम करने की चिंता जितनी आपको नहीं है, उतनी स्लिमिंग सेंटरवालों को है। आप बेझिझक कोई भी और कितनी भी महँगी वस्तु खरीद सकते हैं। बैंक की ओर से क्रेडिट कार्ड वाला आपको डेबिट कार्ड दे रहा है। आपके स्वास्थ्य की चिंता वॉटर फिल्टर वालों को अधिक है। योग संस्थान वाले आपको हँसाकर आपके स्वास्थ्य में सुधार लाना चाहते हैं। भारत माँ का सपूत लोगों के हित के लिए सस्ते में मॉल में कपड़े बेच रहा है। ‘सेल’ फोन वाला मुफ्त में सिम कार्ड बेच रहा है। आज ‘मुफ्त के चक्कर’ में लोग फँसते हैं। प्रश्न आ. कागजातों में क्या लिखा है ये पढ़े बगैर ही हस्ताक्षर वाली जगह दिखाकर हस्ताक्षर करवाए। कुछ ही दिनों में लेखक को एक क्रेडिट कार्ड मिला। पूछताछ करने पर पता चला कि, उनका किसी विदेशी बँक से काँट्रेक्ट था। अपना लक्ष्य पूरा करवाने के लिए उन्होंने यह क्रेडिट कार्ड बनवाया था। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. प्रश्न अ. प्रश्न आ.
6. निम्नलिखित रसों के उदाहरण लिखिए : (a) वीर (b) करुण (c) भयानक (b) करुण : (c) भयानक : Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 4 मेरा भला करने वालों से बचाएँ Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : इधर मैं कई दिनों से ………………………………………….. वक्त नहीं बचेगा। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 13)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. (ii) अखबार के साथ आए पैंफलेट पढ़ने का परिणाम ………………………………. (क) गद्यांश में इन शब्दों के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द : (ख) विलोम शब्द लिखिए : प्रश्न 3. जानकार लोगों से राय लेनी पड़ती थी कि हमारे लिए कौन सी लाभदायक है? किंतु आज वस्तुओं को खरीदने से पहले उसमें क्या है, यह हमें मालूम पड़ जाता है। उस वस्तु में जिन पदार्थों का उपयोग किया गया है – वह है क्या यह जान लेने की जरूरत पड़ती है। पहले लोगों को उधार सामान खरीदना अच्छा नहीं लगता या किंतु आज यह फैशन बन गया है। बैंकों आदि से लोन लेने के लिए बैंकों के कई चक्कर काटने पड़ते थे किंतु आज बैंक के सदस्य हमारे घर आकर लोन की पूछताछ करते हैं। बड़े-बड़े विज्ञापन हमारे जीवन में जरूरतें निर्माण करते भी हैं और उसे पूरा करने के लिए उपाय भी सुझाते हैं। (आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : बाजार की चिल्लपों से …………………………………………… प्रहार से मरना लाजिमी है। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 15)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. दूरदर्शन पर किसी भी समाचार को सुनने के साथ-साथ हम देख भी सकते हैं। इसीलिए लोगों का रुझान भी बढ़ा। आज दूरदर्शन पर ऐसे चैनल आए हैं जो 24 घंटे समाचार प्रसारित करते हैं। यह उनकी सफलता ही बयाँ करती है कि वे कई भाषाओं में उपलब्ध हैं। हमारे सामने इतने विकल्प होते हैं कि अपनी मर्जी से हम किसी भी चैनल को चुन सकते हैं। इसी वजह से इन चैनलों में स्पर्धा शुरू हो गई। और सच्चाई को भी तोड़-मरोड़कर परोसा जाने लगा है। छोटी सी बात को मिर्च-मसाला लगाकर दिखाते हैं। किसी अपदा, दुर्घटना के समय घायल या मृतकों की संख्या इसी लिए अलग-अलग होती है और चैनल अपनी विश्वसनीयता खोने लगे हैं। (इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : ‘सेल’ फोन से ……………………………………. वो ले लो, ये फ्री।” (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 16)प्रश्न 1. उत्तर: प्रश्न 2. प्रश्न 3. (ii) गद्यांश से विलोम शब्द की जोड़ियाँ ढूँढकर लिखिए : प्रश्न 4. ‘सेल’ फोन से ऊँचा सुनना, आँख की बीमारी जैसी कई प्रकार की समस्याएँ निर्माण हुईं। अपने मिलने वालों से कम और जो कहीं दूरी पर है, उससे ही बतियाते रहे। परिणामत: एक ही घर में रहने वाले सदस्य एक-दूसरे के लिए अजनबी हो गए। हमारा कीमती वक्त मोबाइल में उलझे रहने के कारण बर्बाद होने लगा। मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindiमेरा भला करने वालों से बचाएँ लेखक परिचय : सहगल जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम्.ए.,पीएच्.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप बैंक में उपप्रबंधक के रूप में कार्यरत रहे। आप आकाशवाणी से विभिन्न विषयों पर वार्ताओं का प्रसारण करते हैं तथा सामयिक महत्त्व के विषयों पर फीचर लेखन भी करते हैं। मेरा भला करने वालों से बचाएँ प्रमख कतियाँ : ‘हिंदी उपन्यास’, ‘तीन दशक’ (शोध प्रबंध), ‘असत्य की तलाश’, ‘धर्म बिका बाजार में (व्यंग्य संग्रह) मेरा भला करने वालों से बचाएँ विधा परिचय : ‘व्यंग्य’ का मतलब शब्दों का तीखा प्रहार। लेखक अपनी संवेदना के धरातल पर समाज में व्याप्त विसंगतियों (discrepancy) पर कड़ा प्रहार करता है। वह भाषा की व्यंजना शक्ति का प्रयोग इतना बखूबी करता है, कि विसंगति में संगति, कुरूपता (ugliness) के पीछे सुंदरता, विरोधाभास (parodax) में समानता की सृष्टि होकर हास्य रस की निष्पत्ति होती है। मेरा भला करने वालों से बचाएँ विषय प्रवेश : लेखक का मानना है कि, झूठ को सच बताने में जो ताकत लगती है उसका सौंवा हिस्सा भी सच को सच साबित करने में नहीं लगता। ‘मुफ्त के चक्कर’ में अपना भला करने वाले हमारे आस-पास कई सारे लोग दिखाई देते हैं, उनसे ‘मुझे बचना है’ कहकर इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य कसा है। मेरा भला करने वालों से बचाएँ मुहावरें :
मेरा भला करने वालों से बचाएँ टिप्पणी : तुरुप – ताश का एक खेल जिसमें प्रधान माने हुए रंग का छोटे-से-छोटा पत्ता अन्य रंगों के बड़े-से-बड़े पत्ते को काट सकता है। मेरा भला करने वालों से बचाएँ सारांश : समाज का हर एक आदमी लेखक का भला करना चाहता है। अखबार में विज्ञापन के ढेर सारे कागज पाए जाते हैं, जिसमें हर तरह के इलाज के लिए क्लिनिक है, स्लिमिंग सेंटरवाला आप के आने का इंतजार कर रहा है, हलवाई लाजबाब मिठाई बेच रहा है। कहीं क्रेडिट कार्ड वाला फ्री डेबिट कार्ड दे रहा है। कोई घर तक सामान पहुँचाने के लिए तैयार है। गाड़ी वाला नई गाड़ी के लिए लोन के लिए बैंक के कागज दे रहा है। कहीं पर मुस्कुराती चहचहाती लड़कियों के झुंड आपका आटोग्राफ लेने के लिए आती हैं। कोई साफ पानी के लिए वॉटर फिल्टर लगाना चाह रहा है। सब कुछ किस्तों में और क्रेडिट कार्ड पर मिल रहा है। साबुन की टिकियाँ कम-से-कम चार लेनी पड़ती है। हर जगह भाईचारा इतना बढ़ गया है कि, ‘लार्जर टॅन लाइफ’ हो गया है। पार्क में जाते हैं तो योग संस्थान वाले ‘योगा’ के फायदे समझाते हैं। फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है। ‘मॉल’ में कपड़ों की सेल लगी है। देशवासियों के प्रति होने वाले प्यार के कारण वह सस्ता माल बेच रहा है। दरअसल वह सेकेंड का सस्ता माल बेचने के लिए अपने को धरती का लाल कहता है। कोई दुकानवाला त्योहारों पर दुकान की छुट्टियों की अग्रिम सूचना देता है। घर जाकर टीवी शुरू करते हैं, तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डरा रहे हैं। मौसम का हाल जानना चाहते हैं, तो कहते हैं, अगर आप जीवित रहना चाहते हैं, तो घर से बाहर न निकलें। दरअसल ये सारे लोग हमारा भला चाहने वाले हैं लेकिन हम इन्हें ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे हैं। लेखक के मोहल्ले में ‘पुरुष ब्यूटी पार्लर’ खुल गया है। लेखक नाखून कटवाने के लिए जाता है, तो उसे सलाह मिलती है कि लेखक अपना ‘फेशियल’ करवाकर अपना ‘फेस वेल्यू’ बढ़ाए। लेखक के नाखून इस तरह तराशे मानो कोई संगमरमर की मूर्ति तराश रहा हो। आखिरकार नाखून काटने के 1000/- रु. लेकर मुक्त कर दिया। रास्ते में मोबाइल खरीदारों की लाइन लगी थी पूछने पर पता चला कि, मोबाइल के साथ सिम कार्ड मुफ्त मिलता है। लेखक ने भी मोबाइल खरीदा। कोई भी फोन नहीं आ रहा है। लेखक सोचता है, शायद उसने कोई गलत बटन तो नहीं दबाया। कार्यव्यस्तता के कारण लोग सड़क पर चलते-चलते फोन कर रहे हैं। ‘सेल’ फोन से हम हीनता की ग्रंथि से मुक्त हुए हैं। हम एक-दूसरे से कम, फोन पर ज्यादा बातें कर रहे हैं। अपना नुकसान करने वालों से तो हम बच सकते हैं किंतु हमारा फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है। ना कहने पर भी वे, ‘यह ले लो, वो फ्री, वो ले लो, ये फ्री’, कहकर हर हालत में हमारा फायदा करके ही मानेंगे। इस तरह लेखक फायदा करने वालों से बचना चाहता है। मेरा भला करने वालों से बचाएँ शब्दार्थ :
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त11th Hindi Digest Chapter 3 पंद्रह अगस्त Textbook Questions and Answers आकलन प्रश्न अ. (b) विषम शृंखलाएँ (c) युग बंदिनी हवाएँ प्रश्न आ. उत्तर : (1) शोषण से मृत है समाज (2) कमजोर हमारा घर है। काव्य सौंदर्य 2. आशय लिखिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. अभिव्यक्ति 3. देश की रक्षा किसी व्यक्ति का केवल कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसका धर्म भी होता है। व्यक्ति द्वारा कोई भी ऐसा कार्य नहीं होना चाहिए जिससे देश धर्म में बाधा पहुँचे। हमारा देश सबसे सर्वोपरि (above all) है। कोई भी लाभ और हानि हमारे देश को सीमित नहीं कर सकती। देश के प्रति पूरी निष्ठा होनी चाहिए। देश केवल भूभाग नहीं है। देश का आर्थिक विकास व वृद्धि, साफ-सफाई, सुशासन, भेदभाव न करना, कानून का पालन करना आदि जिम्मेदारियाँ निभाना हमारा कर्तव्य है। एक जिम्मेदार नागरिक बनकर हमें ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे देश की आन, बान और शान में वृद्धि हो। हमारी राष्ट्रीय धरोहर (heritage) और सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान और रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है। देश के कानून का पालन और सम्मान करना चाहिए। हमें अपने करों का समय पर सही तरीके से भुगतान करना चाहिए। देश को प्रदूषण मुक्त करने में सहयोग देना, पर्यावरण संतुलन हेतु वृक्षारोपण (plantation) करना जैसे कार्यों में रुचि दिखाना भी देश की रक्षा करना ही है; इस तथ्य को स्वयं समझना और औरों को समझाना भी हमारा कर्तव्य है। प्रश्न आ. युवा देश की ऐसी संपत्ति है, जो देश को उन्नति के उच्चतम शिखर तक पहुँचा सकती है। इतिहास और शास्त्र दोनों ही इस बात के गवाह हैं, चाहे वे सतयुग, त्रेता, द्वापर के युवा हो चाहे वर्तमान काल के युवा। जो भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सकारात्मक परिवर्तन होता है उसमें युवाओं का हिस्सा अधिकाधिक होता है। युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। वे देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। उनमें गहन (intensive) ऊर्जा और महत्त्वाकांक्षाएँ (ambitions) होती हैं। उनकी आँखों में इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। उनके योगदान से देश उन्नति के पथ पर अग्रसर (proceed) होगा। क्योंकि युवा ही वर्तमान का निर्माता और भविष्य का नियामक (regulator) होता है। अत: समस्त भारतीय युवाओं को यह संकल्प लेना चाहिए कि राष्ट्र के सम्मुख जितनी भी चुनौतियाँ हैं हम उनका डटकर सामना करेंगे। रसास्वादन 4. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए। (v) प्रतीक विधान : देशवासियों को देश के पहरेदार बनकर सावधान रहने की बात कवि कह रहे हैं। (vi) कल्पना : कवि ने स्वतंत्रता को स्वर्ग का प्रथम चरण माना है और अनेकों लक्ष्य पाने की कल्पना की है। इन पंक्तियों में स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझाने का प्रयास कवि ने किया है। देश में चारों ओर उल्लास है, जनगंगा में ज्वार है। परंतु जब शोषित पीड़ित और मृतप्राय समाज का पुनरुत्थान होगा तभी सही मायने में देश आजाद होगा। किंतु हमारा यह विश्वास कि हमारे जीवन में एक नई शुरुआत हो गई है हमारा मनोबल बढ़ाता है और इस बल को कभी टूटने नहीं देना है। जनशक्ति की लहर बनकर प्रगति की ओर आगे बढ़ना है। (viii) कविता पसंद आने के कारण : कविता के ये भाव मन में उल्लास भर देते हैं और कविता की गेयता कविता गुनगुनाने पर बाध्य करती हुई आनंद की प्राप्ति कराने में सक्षम है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. प्रश्न आ. रस (२) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है। (२) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी। Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 3 पंद्रह अगस्त Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) पन्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पदयांश : आज जीत की ……………………………………………………….. बने अंबुधि महान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 9-10)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. प्रश्न 3. (आ) एद्याश पड़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : विषम श्रृंखलाएँ टूटी ……………………………………………………….. तुम दीप्तिमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. प्रश्न 3. विभाजन के कारण वे सीमाओं में सीमटकर अपना होश खो बैठे हैं। दुर्बल हो गए हैं। ऐसे में अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। कहीं आपस में लड़कर हम एक-दूसरे को ही नुकसान न पहुँचा दें इस बात का ख्याल रखना होगा। चंद्र के समान शीतल रोशनी फैलाकर देशवासियों को रास्ता दिखाने का काम कवि हमें करने को कह रहे हैं। (इ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : ऊँची हुई मशाल’……………………………………….. तुम प्रवाहमान रहना। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 10)प्रश्न 1. उत्तर : प्रश्न 2. प्रश्न 3. कवि देशवासियों को सावधान रहने के लिए कहते हैं। उनका कहना हैं कि शत्रु भले ही हमारे देश को छोड़कर चला गया है, पर पलटकर वार करें तो उसके प्रत्युत्तर के लिए सतर्क रहना चाहिए। धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर हमें आपसी विवाद से बचना चाहिए। रस: वीर रस – किसी पद में वर्णित हमारे प्रसंग हृदय में ओज, उमंग, उत्साह का भाव उत्पन्न करते हैं, तब वीर रस का निर्माण होता है। ये भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह, अधर्म, अत्याचार का विनाश, असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने में व्यंजित (express) होते हैं। (2) दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। भयानक रस – जब काव्य में भयानक वस्तुओं या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में भय का भाव उत्पन्न होता है, तब भयानक रस की अभिव्यंजना होती है। (2) उधर गरजती सिंधु लहरिया, कुटिल काल के जालों-सी। पंद्रह अगस्त Summary in Hindiपंद्रह अगस्त कवि परिचय : गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में हुई थी। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (अंग्रेजी) एवं एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक आपने वकालत की तत्पश्चात दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। कुछ समय तक दूरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवा निवृत (retired) हुए। माथुर जी की मृत्यु 10 जनवरी 1994 में हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो प्रमुख कवि थे, उनमें गिरिजाकुमार माथुर जी का नाम अग्रणी (leading) है। पंद्रह अगस्त प्रमुख रचनाएँ : ‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक) आदि। पंद्रह अगस्त काव्य विधा : यह ‘गीत’ विधा है। इसमें एक मुखड़ा (first line) होता है और दो या तीन अंतरे (stanza) होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि इस प्रकार की अभिव्यक्ति में प्रतीक, बिंब तथा उपमान का प्रयोग करता है। पंद्रह अगस्त विषय प्रवेश : प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के हर्ष और उल्लास को उत्साह पूर्वक अभिव्यक्त (expressed) किया है। कवि देशवासियों एवं सैनिकों को अत्यंत जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है। पंद्रह अगस्त सारांश : (कविता का भावार्थ) : प्रस्तुत कविता आज़ादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करती है। कवि देशवासियों को पहरेदार के समान सावधान रहने के लिए कहता है। कवि का कहना है कि हे देशवासियो, यह हमारी विजय की पहली रात है। आज से देश की सभी तरह की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारा है। हमें उस निश्चल दीपक की भाँति (जो विपरीत समय में भी अपनी रोशनी से अंधकार को ललकारता रहता है।) अपने देश पर आने वाली सभी समस्याओं को दूर भगा देना है। कविता में प्रथम स्वर्ग का तात्पर्य – पहला लक्ष्य पहली प्राप्ति है, जिसे हमने सामूहिक प्रयास से प्राप्त किया है। कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शेष कार्यों की ओर संकेत करते हैं। हमारे सामने अनेक लक्ष्य शेष हैं। देशवासियों ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक पीड़ा को बहुत लंबे समय तक सहन किया है। देश अपने अपमान को अभी भुला नहीं पाया है। इसलिए आज़ादी के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमें समुद्र की भाँति मन में गहराई और विशालता रखनी होगी। हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। बड़े संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद भी अभी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ अपना ताल ठोक (challenging) रही हैं। हमारे देश पर अनेक देश की ओर से खतरे मँडरा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हमें कमजोर करने के लिए कई प्रकार के जाल बिछाए हैं। हमें जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर अलग-अलग बाँटने का प्रयास किया है। यह हमारी प्रगति के लिए रुकावट है। आज ब्रिटिश सरकार का सिंहासन ध्वस्त हो गया है। लोगों में आक्रोश है। अगर हम सावधान न रहे तो हम आपस में ही लड़कर एक दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए इस-हर्ष-विषाद (griet) की घड़ी में हमें अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है। जिस प्रकार चाँद की रोशनी अँधेरे में भी पथिक (passenger) को रास्ता दिखाती है ठीक उसी प्रकार हे पहरुए तुम्हें भी सबको रास्ता दिखाना है। कवि का कहना है कि यह सही है कि हमें स्वतंत्रता मिल गई है। शत्रु सामने से चला गया है पर पीछे से वह कौन सा खेल खेलेगा हमें पता नहीं है। इससे बचने के लिए हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहना होगा। सालों-साल की गुलामी ने हमारे जन समुदाय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी ओर से अत्यंत दुर्बल बना दिया है। किंतु हमारा यह एक विश्वास, है कि हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई है, यह सोचकर हमारा मनोबल बढ़ जाता है। जैसे समुद्र की लहरें एकजुट होकर समुद्र में ज्वार ला देती हैं हमें भी उन समुद्री लहरों की तरह ही एक-साथ होकर आगे बढ़ते रहना है। हे पहरुए ! उपरोक्त कार्य के लिए तुम्हें अत्यंत सावधान रहना होगा। पंद्रह अगस्त शब्दार्थ:
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 2 लघु कथाएँ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ11th Hindi Digest Chapter 2 लघु कथाएँ Textbook Questions and Answers आकलन 1. लिखिए : प्रश्न अ. प्रश्न आ. शब्द संपदा 2. प्रश्न अ. प्रश्न आ. (i) पेड़ पर सुंदर फूल खिला है। (ii) कला के बारे में उनकी भावना उदात्त थी। (iii) दीवारों पर टँगे हुए विशाल चित्र देखे। (iv) वे बहुत प्रसन्न हो जाते थे। (v) हमारी-तुम्हारी तरह इनमें जड़ें नहीं होती। उत्तर : (vii) वह कोई बनावटी सतह की चीज है। (इ) निम्नलिखित शब्दों का लिंग परिवर्तन करके प्रत्येक का वाक्य में प्रयोग कीजिए – उत्तर : परिवर्तित शब्द वाक्य में प्रयोगअध्यापिका मेरा सपना था कि एक दिन अध्यापिका बन जाऊँ।राजा राजा प्रजाहित दक्ष था।नायक वह उस चित्रपट का नायक था।देवरानी देवरानी ने चूड़ियाँ पहनी।पंडिताइन पंडिताइन मौसी ने मुझे पुकारा।यक्षिनी यक्षिणी और अप्सराएँ विहार कर रही थीं।बुद्धिमती वह एक बुद्धिमती नारी है।श्रीमान आइए, श्रीमान जी थोड़ा आराम कीजिए।दुखियारी बुढ़िया बेचारी दुखियारी लग रही है।विदुषी उस विदुषी नारी ने सभा में तात्विक चर्चा की।अभिव्यक्ति होटलों का, शादी-ब्याह में लोगों के प्लेटों का बचा-खुचा खाना अगर जरूरतमंदों को मिल जाए तो बेचारों की जिंदगी खुशी से भर जाएगी। अत: ‘अन्न बैंक’ खुलवाकर वहाँ अगर ऐसा अन्न दिया जाए तो इस अन्न को सुरक्षित रखने की व्यवस्था हो जाएगी और आवश्यकता के अनुसार यह अन्न गरीबों को दे दिया जाए तो देश की भूख की समस्या हल हो पाएगी। प्रश्न आ. बंजारे, आदिवासी, गड़रिया, भटकते मजदूरों की टोलियाँ इन लोगों के बच्चे शिक्षा से वंचित रहते हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवाले गरीबों के बच्चे भी पेट के पीछे दौड़ते स्कूल से वंचित रहते हैं। इन समस्याओं पर सरकार के साथ हम सबका योगदान भी आवश्यक है। आज सरकार मुक्त विद्यालय की स्थापना कर चुकी है। जिसके माध्यम से नियमित स्कूल न जानेवाले बच्चे भी शिक्षा से जुड़े रह सकते हैं। हर पढ़े-लिखे व्यक्ति ने स्कूल से वंचित बच्चों को पढ़ाने के लिए दिल से प्रयास किया तो संभव है कि समस्या कुछ हद तक मिट पाएगी। पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न 4. इस पाठ की छोटी उषा एक संवेदनशील (sensitive) लड़की है। दीपावली के अवसर पर वह देखती है कि सफाई का काम करने वाला बबन ‘नरक चौदस’ पर जलाए हुए आटे के दीपक कूड़े-कचरे के डिब्बे में न फेंकते हुए अपनी जेब में रख रहा है। बबन इतना गरीब था कि ये दीपक सेंककर खाना चाहता था। ये आटे के दीप जिसे लोग कचरे में फेंकते हैं वे किसी का पेट भरने के भी काम आते हैं। यह सुनकर उषा को तकलीफ होती है। शादी-ब्याह में लोग प्लेटों में जरूरत से ज्यादा खाना लेकर बाद में बचा हुआ खाना फेंकते हैं। यह दृश्य उषा को याद आया और उषा दीपावली के पकवान बबन को देकर सच्ची खुशी महसूस करती है। इस कहानी से अन्न की बरबादी टालकर बचा-खुचा अन्न गरीबों तक पहुँचाने का संदेश मिलता है। ‘देने की खुशी महसूस करने का अनोखा संदेश इस कहानी से मिलता है। प्रश्न आ. मालकिन की लड़की जब रद्दी की किताबें उसकी पढ़ाई के लिए मुफ्त में देना चाहती है, तब मालकिन विरोध करती है। किताबें लेकर वह पढ़ाई करेगा इस पर अविश्वास प्रकट करती है। ये बातें बबलू के मन को चोट पहुँचाती हैं। परंतु बाद में जब मालकिन को पता चलता है कि उन किताबों को रद्दी में बेचने के बजाय उसने खुद की पढ़ाई के लिए किताबें अलग रखी हैं तो उसे अपने अपशब्दों पर पछतावा होता है और वह बबलू की आगे की पढ़ाई का सारा खर्चा स्वयं उठाने का निश्चय करती है। इससे बबलू की चोट मुस्कुराहट में परिवर्तित होती है। दिल की चोट अब खुशी में बदलती है। अत: सुखांत वाली इस लघुकथा को ‘मुस्कुराती चोट’ यह शीर्षक अत्यंत सार्थक लगता है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए: प्रश्न अ. प्रश्न आ. Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 2 लघु कथाएँ Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : आटे के दीपक कंपाउंड की मुंडेर पर जलकर ……………………………………….. आँसू छलक आए। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 5)प्रश्न 1. उत्तर : उत्तर लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 4. प्रश्न 5. इसमें लोग कतार में खड़े होने से बचने के लिए प्लेटों में एक ही बार ढेर सारा खाना ले लेते हैं। इतना ज्यादा खाना खा नहीं पाने से आखिर जूठा फेंका जाता है। यह सारा अन्न कूड़े-कचरे में जाकर बरबाद होता है। दूसरी ओर दिन-रात परिश्रम करके भी गरीबों को पेटभर खाना नसीब नहीं होता। एक वक्त की रोटी पाने के लिए वे तरसते हैं। यह बरबाद होने वाला अन्न गरीबों तक पहुँचाने की सुविधा हो तो शादी में दुल्हा-दुल्हन को सच्ची दुआएँ मिलेंगी। (आ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : घर में बाबा बीमार थे ……………………………………….. इसलिए पढ़ाई रुक गई। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 6)प्रश्न 1. प्रश्न 2. (i) बबलू की पढ़ाई रुक गई थी क्योंकि (ii) रद्दी तौलते समय बबलू की नजर स्कूल की किताबों पर थीं क्योंकि …. प्रश्न 3. (ii) …………………………… उदा. – (ख) निम्न शब्दों के लिए हिंदी मानक शब्द लिखिए : (ii) कॉलेज – ………………………………………… प्रश्न 4. इसके पीछे अनेक कारण हैं। गरीबी, व्यसनी पिता, बीमार माता-पिता, माँ-बाप का अभाव। विपन्नावस्था (poverty) के कारण जिस उम्र में बच्चे को स्कूल जाना जरूरी है उस उम्र में उन्हें परिवार के लिए काम करना पड़ता है। इसमें न माँबाप को खुशी मिलती है न बच्चों को, परंतु दोनों ओर मजबूरी होती है। इस समस्या को मिटाने के लिए देश में बढ़ रही अमीरी और गरीबी की खाई का मिटना बहुत जरूरी है। यह संभव नहीं तो हर अमीर परिवार द्वारा कुछ बच्चों का खर्चा चलाकर उनकी पढ़ाई का बोझ उठाने पर उनका भविष्य सुधर जाएगा। (इ) निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : गद्यांश : बबलू ने रद्दी के पैसे ……………………………………………… बबलू की खुशी का ठिकाना न था। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 6)प्रश्न 1. प्रश्न 2. (ii) बबलू अब स्कूल जा सकेगा …………………………………… प्रश्न 3. (i) मुस्कुराना – …………………………………… (ii) झुकना – …………………………………… (ख) अपशब्द शब्द में ‘अप’ उपसर्ग लगा है, ‘अप’ उपसर्ग लगाकर नए शब्द बनाकर लिखिए : उदा. – अपमान प्रश्न 4. अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए छात्रावास तथा छात्रवृत्ति का प्रावधान सरकारी तथा निजी संस्थाओं द्वारा, एन्.जी.ओ. द्वारा होना चाहिए। विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के लिए जो शारीरिक रूप से अक्षम है उनके लिए विशिष्ट शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए और उनके लिए विशेष अध्यापकों की नियुक्ति सरकार द्वारा होनी चाहिए। सर्वशिक्षा अभियान के साथ-साथ ‘समावेशन’ भी आवश्यक है ताकि शिक्षा से कोई भी बालक वंचित न रहें। लघु कथाएँ Summary in Hindiलघु कथाएँ लेखक परिचय : श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी का जन्म मध्यप्रदेश के मंडला नामक गाँव में 23 नवंबर 1952 को हुआ। आधुनिक नारी जीवन के विविध आयाम तथा सामाजिक जीवन की विसंगतियाँ (discrepancy) आपके साहित्य द्वारा चित्रित है। लघु कथाएँ रचनाएँ : आपकी बहुविध रचनाएँ प्रकाशित हैं : जैसे ‘दबे पाँव प्यार’ ‘टेम्स की सरगम’ ‘ख्वाबों के पैरहन (उपन्यास)’ ‘बहके बसंत तुम’, ‘बहते ग्लेशियर’ (कहानी संग्रह), ‘फागुन का मन’ (ललित निबंध संग्रह) ‘नीली पत्तियों का शायराना हरारत’ (यात्रा संस्मरण) लघु कथाएँ विधा परिचय : ‘लघुकथा’ यह एक गद्य विधा है। कथा तत्त्वों से परिपूर्ण किंतु आकार से लघुता यह उसकी विशेषता है। अत्यंत कम शब्दों में जीवन की पीड़ा, संवेदना, आनंद की गहराई को प्रकट करने की क्षमता लघुकथा में होती है। कोई भी छोटी घटना, प्रसंग, परिस्थिति का आधार लेकर लघुकथा लिखी जाती है। हिंदी साहित्य में डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर, कमल चोपड़ा आदि को प्रमुख लघुकथाकार के रूप में पहचाना जाता है। लघु कथाएँ विषय प्रवेश : (आ) ‘मुस्कुराती चोट’ : ‘मुस्कुराती चोट’ इस दूसरी लघुकथा में गरीबी के कारण इच्छा होकर भी पढ़ाई जारी न रख पानेवाला एक छोटा लड़का ‘बबलू’ की उथल-पुथल भरी जिंदगी है। बबलू की पढ़ाई की अदम्य (indomitable) इच्छा, उसकी बाधाएँ, छोटी-छोटी चोटें और अंत में मुस्कुराहट फैलानेवाली सुखद बात पाठकों को लुभाती है। दोनों लघुकथाएँ ‘आशावाद’ को जगाती है। लघु कथाएँ महावरा : टस से मस न होना – बिल्कुल प्रभाव न पड़ना, कुछ परिणाम न होना। लघु कथाएँ सारांश : (अ) उषा की दीपावली : दीपावली का त्योहार : दीपावली का त्योहार था। नरक-चौदस के दिन लोगों ने कंपाउंड के मुंडेर पर आटे के दीप जलाए थे। सुबह तक वे दीप बुझ गए थे। बबन की गरीबी : सुबह बबन सफाई के लिए आया था, जो एक गरीब इन्सान था। बुझे दीप उठाकर कूड़े में फेंकने के बजाय वह जेब में रख रहा था। दस साल की उषा ने यह दृश्य देखा। उसे पूछने पर पता चला कि बबन वे आटे के दीपक सेंककर खाना चाहता है। उषा की संवेदना : उषा की आँखों के सामने वह दृश्य घूमने लगा, जो उसने अनेक बार देखा था। अमीर लोग शादी-ब्याह में ढेर सारा खाना प्लेटों में लेकर बचा-खुचा फेंक देते हैं। उषा की आँखें भर आईं। घर में जाकर उसने दीपावली के मौके पर बनाए हुए पकवान लाकर बबन को दे दिए जिसकी वजह से बबन की आँखों में खुशी के हजारों दीप जगमगा उठे। उषा की दीपावली भी इससे खुशहाल हो गई। (आ) मुस्कुराती चोट : ‘बबलू की गरीबी’ – इस लघुकथा का बबलू, गरीब परिवार का लड़का है। माँ चौका-बर्तन करके कुछ पैसे कमाती है। पिता जी बीमार है। माँ का हाथ बँटाने के लिए बबलू घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करके रद्दी वाले को बेचता है। बबलू के पास किताबें खरीदने के लिए पैसे न होने से उसका स्कूल छूट गया था। अविश्वास की चोट : एक दिन वह एक घर में रद्दी लेने गया था। उस रददी में किताबें थीं। घर मालकिन की बेटी वे किताबें बबलू को पढ़ने के लिए मुफ्त में देना चाहती थी। परंतु घर मालकिन का बबलू पर भरोसा नहीं था। वह किताबें बेचकर चैन करेगा ऐसा उसे शक था। बबलू ने रद्दी में से किताबें अलग रखवा दीं। रद्दी वाले को किताबों के पैसे खर्च करने की झूठ बात बताकर उससे डाँट सुनकर भी चुप रहा। पछतावा : बबलू किताबें लेकर वापस आ रहा था। मालकिन ने उसे देखा तो अपने अपशब्दों पर उसे पछतावा हुआ। उसे पता चला कि बबलू पढ़ने की अदम्य इच्छा रखता है। बबलू की आगे की सारी पढ़ाई का खर्चा उठाने का उसने निश्चय किया। सुखद अंत वाली यह कहानी आशावादी है। लघु कथाएँ शब्दार्थ :
Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 11th Digest Chapter 1 प्रेरणा Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Maharashtra State Board 11th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 प्रेरणा11th Hindi Digest Chapter 1 प्रेरणा Textbook Questions and Answers कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर आकलन 1. सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : प्रश्न अ. (a) माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है – (b) बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है – (c) कवि की उम्र बढ़ती ही नहीं है – प्रश्न आ. (a) उत्तर : काव्य सौंदर्य 2. प्रश्न अ. प्रस्तुत त्रिवेणी में ममत्व का भाव प्रकट हुआ है। जब कभी कवि अपनी माँ को फोन करता है तब पुत्र की आवाज सुनकर माँ की ममता रो पड़ती है। कवि भले ही इसे बे-वजह रोना कहता है, परंतु सच्चाई तो यही है कि कवि भी फोन रखने के बाद रोता है क्योंकि माता और पुत्र दोनों एक-दूसरे के स्नेह के लिए तरसते हैं और उनका एक-दूसरे के प्रति स्नेह आँसुओं के रूप में आँखों से बहने लगता है। प्रश्न आ. अभिव्यक्ति 3. प्रश्न अ. अगर पालनाघर में बच्चे को घर जैसा माहौल मिलता हो तो महिलाएँ निश्चित होकर आत्मनिर्भर बनने के लिए कदम उठा पाती हैं। भारत की आधी आबादी महिलाओं की है। अत: महिलाएँ अगर श्रम में योगदान दें तो भारत का विकास तेजी से होगा। पालनाघर की सुविधा मुहैया कराने से महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी और देश के विकास पर इसका असर अवश्य दिखाई देगा। उन्हें बच्चों की देखभाल करने के लिए काम छोड़ने की नौबत नहीं आएगी। घरेलु आमदनी में भी इजाफा (increase) होगा। परिणामत: बच्चों की सेहत और शिक्षा में भी सुधार होगा। संक्षेप में महिलाओं का काम करना महत्त्वपूर्ण है ताकि उन्हें अलग पहचान मिले और इसके लिए पालनाघर की सुविधा अगर उनके कार्य-स्थल के आस-पास हो तो सोने पे सुहागा हो सकता है। प्रश्न आ. बच्चों की परवरिश उनके लिए एक समस्या बन जाती है। वास्तव में कामकाजी माता-पिता के पास अक्सर समय की कमी होती है। समय का उचित नियोजन करके इस समस्या से निजात (escape) पाया जा सकता है। अपने छोटे-छोटे कार्यों में बच्चों को सम्मिलित कर लेने से बच्चों को भी अहमियत मिल जाती है और बच्चे जिम्मेदार भी बन जाते हैं। घर का समय बच्चों को देकर उन्हें खुश रखा जा सकता है। उन्हें अच्छी आदतें सिखाने का समय मिल जाता है। माता-पिता के जीवन में बच्चे महत्त्वपूर्ण हैं इस बात का एहसास दिलाया जा सकता है। अक्सर कामकाजी माता-पिता के बच्चों के मन में यह भावना पनपती (flourish) रहती है कि माता-पिता के लिए काम ही महत्त्वपूर्ण है और वे बच्चों से प्यार नहीं करते। कई बार दफ्तर की परेशानियाँ घर तक ले आते हैं और अपना क्रोध वे बच्चों पर निकाल देते हैं। ऐसे में डर के कारण बच्चे अभिभावकों से दूर हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने की कोशिश अभिभावक अवश्य करें। बच्चों की बातें चाव से सुनना, दफ्तर की बातें उन्हें बताना, साथ में भोजन करना, छुट्टी के दिन घूमने ले जाना जैसी छोटी-छोटी बातें भी कामकाजी अभिभावक और बच्चों का रिश्ता मजबूत करती हैं। इस प्रकार समस्या हैं तो उसके उपाय भी है जिन पर अवश्य अमल करना चाहिए। रसास्वादन 4. आधुनिक जीवन शैली के कारण निर्मित समस्याओं से जूझने की प्रेरणा इन त्रिवेणियों से मिलती है, स्पष्ट कीजिए। जीवन की इन समस्याओं को उजागर करते हुए त्रिपुरारि जी ने अपनी त्रिवेणियों में माँ के ममत्व और पिता की गरिमा को भी व्यक्त किया है। जीवन में आगे निकलने की होड़ में चोट खाकर गिरने पर भी सँभलकर फिर से चलने की, आगे बढ़ने की सलाह दी है। (iv) रस-अलंकार : तीन पंक्तियों के मुक्त छंद में इस कविता की त्रिवेणियाँ लिखी हुई हैं। (v) प्रतीक विधान : जीवन के प्रति सकारात्मकता का विधान है – पेड़ में बीज और बीज में पेड़ छुपा है। यहाँ बीज हमारी भावनाओं का प्रतीक है और उसे आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता फूलता है। (vi) कल्पना : खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखने की कल्पना हमें तनाव, कुंठा से मुक्ति देगी। (vii) पंसद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : (viii) कविता पसंद आने के कारण : सामयिक स्थितियाँ, रिश्ते और जीवन के प्रति सकारात्मकता कविता का मुख्य विषय है जो प्रेरणादायी है। त्रिपुरारि जी की ये त्रिवेणियाँ हमें जीने की कला सिखाती है, इसीलिए मुझे कविता पसंद है। साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान 5. जानकारी दीजिए: प्रश्न अ. प्रश्न आ. रस काव्यशास्त्र में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है। रस स्थायी भाव(१) शृंगार प्रेम(७) भयानक भय(२) शांत शांति(८) बीभत्स घृणा(३) करुण शोक(९) अद्भुत आश्चर्य(४) हास्य हास(१०) वात्सल्य ममत्व(५) वीर उत्साह(११) भक्ति भक्ति(६) रौद्र क्रोधकरुण रस : (२) अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी, Yuvakbharati Hindi 11th Textbook Solutions Chapter 1 प्रेरणा Additional Important Questions and Answers कृतिपत्रिका (अ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : माँ मेरी बे-वजह ………………………………………… टुकड़ों में मिले हैं माँ-बाप (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 1)प्रश्न 1. (i) माँ, मेरी आवाज सुनकर रोती है – (ii) बच्चों को माता-पिता का प्यार टुकड़ों में मिलता है – प्रश्न 2. (ii) रात = …………………………. , …………………………. प्रश्न 3. जब संतान को चोट लगती है तो पिता का कोमल हृदय भी तड़प उठता है। हर पिता में इस तरह कोई माँ भी छुपी होती है अर्थात पिता भी अपनी संतान से उतना ही प्यार करता है, जितना कि एक माँ। दोनों के स्नेह में कोई तुलना नहीं होनी चाहिए। (आ) निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : चाहे कितना भी हो घनघोर अंधेरा ……………………………………………… जहाँ पर भी कदम रखोगे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 2)प्रश्न 1. (i) अँधेरा होने पर भी आस रखने का परिणाम (i) एक ही दीप से आगाज-ए-सफर कर लेने का परिणाम – प्रश्न 2. (ii) …………………………… x …………………………… प्रश्न 3. (इ) निम्नलिखित पठित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए : पद्यांश : अपनी आँखों में जब भी …………………………………………….. नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे। (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 2)प्रश्न 1. उत्तर : ‘अ’ ‘आ’(1) सच्चा ज्ञानी(2) पेड़ बीज(3) ना उम्मीदी मौत(4) एक शय आँसू-खुशियाँप्रश्न 2. इसकी वजह से जीवन की अबोधता (innocence), मासूमियत नष्ट हो जाती है और मन अशांत हो जाता है। इससे छुटकारा पाना है तो कभी अपने भीतर छिपे बालक को मरने नहीं देना चाहिए। स्वाध्याय (अ) कारण लिखिए – प्रश्न 1. प्रश्न 2. (आ) लिखिए – व्याकरण रस : काव्यशास्त्र (poetics) में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर (afterward) में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है। रस स्थायी भाव(1) शृंगार प्रेम(2) शांत शांति(3) करुण शोक(4) हास्य हास(5) वीर उत्साह(6) रौद्र क्रोध(7) भयानक भय(8) बीभत्स घृणा(9) अद्भुत आश्चर्य(10) वात्सल्य ममत्व(11) भक्ति भक्ति1. शृंगार रस : उदा. (ii) बतरस लालच लाल की मुरली धरि लुकाय। 2. शांत रस : उदा. (ii) देखी मैंने आज जरा! 3. करुण रस : उदा. (ii) अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी, 4. हास्य रस : (ii) बुरे समय को देखकर गंजे तू क्यों रोय। 5. वीर रस : उदा. (ii) तू न थकेगा कभी, 6. रौद्र रस : उदा. (ii) उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा 7. भयानक रस : उदा. (ii) एक ओर अजगर हिं लखि, एक ओर मृगराय 8. बीभत्स रस : उदा. (ii) विष्टा पूय रुधिर कच हाडा 9. अद्भुत रस : उदा. (ii) पड़ी अचानक नदी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार। 10. वात्सल्य रस : (ii) सुत मुख देखि जसोदा फूली। 11. भक्ति रस : उदा. (ii) कहत कबीर सुनहु रे लाई प्रेरणा Summary in Hindiप्रेरणा कवि परिचय : एरौत (बिहार) (5 दिसंबर, 1988) में जन्मे त्रिपुरारि कुमार शर्मा जी एक कवि, लेखक, संपादक (editor) और अनुवादक (translater) हैं। शिक्षा, रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य करते हुए ‘त्रिवेणी’ काव्य (poetry) रचना में अपनी विशेष पहचान बना चुके हैं। नींद की नदी’, ‘नॉर्थ कैंपस, साँस के सिक्के आदि आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताएँ, कहानियाँ, लेख आदि प्रकाशित हुए हैं। प्रेरणा कविता का परिचय : प्रस्तुत रचना ‘त्रिवेणी’ विधा में लिखी कविता है। ‘त्रिवेणी’ एक तीन पंक्तियों वाली कविता है जिसे प्रसिद्ध गीतकार और कवि गुलजार साहब ने विकसित (develop) किया है। शब्दों की किफायत और एहसासों की अमीरी इस विधा की विशेषता है। एक चलचित्र की तरह इसकी पहली दो पंक्तियाँ कहानी को गढ़ती है और तीसरी पंक्ति कहानी की परिपूर्णता को अभिव्यक्त करते हुए क्लाइमेक्स व्यक्त कराती है। प्रस्तुत त्रिवेणियों में त्रिपुरारि जी ने कहीं माँ की ममता, पिता का गौरव तो कहीं जीवन की कठोर सच्चाई को व्यक्त करते हुए मुश्किलों का डटकर सामना करने की सलाह दी है और उम्मीद का दामन पकड़कर आगे बढ़ने का मशवरा दिया है। प्रेरणा कविता का भावार्थ (purport) : जीवन की आपाधापी में माता-पुत्र बिछड़ जाते हैं। दोनों ही एक-दूसरे के स्नेह के लिए तरसते हैं। पुत्र माँ से फोन पर बात करता है तब पुत्र की आवाज सुनकर ही माँ की ममता आँसुओं के रूप में फूट पड़ती है। माँ को रोते देखकर पुत्र को लगता है माँ बे-वजह ही रोती है। परंतु जब फोन पर बातचीत पूरी हो जाती है और पुत्र फोन रखता है तो वह भी अपनी भावनाएँ रोक नहीं पाता और रोता है। पिता माँ की अपेक्षा कठोर हृदय के होते हैं ऐसा लोग कहते हैं, परंतु उनका हृदय भी कोमल ही होता है। जब संतान को चोट लगती है तो वह तड़प उठते हैं। यह इस बात का सबूत है कि पिता में भी कोई माँ छुपी होती है अर्थात स्नेह की बात आती है तो माँ के ममत्व (mother’s love) को अधिक अहमियत दी जाती है परंतु पिता भी अपनी संतान से उतना ही स्नेह करते हैं जितना कि एक माँ। जीवन की जरूरतें पूरी करने हेतु माता-पिता दोनों काम पर जाते हैं। कभी-कभी शिफ्ट में ड्युटी करने वाले अभिभावक (guardian) अपनी ड्युटी इस तरह से लेने की कोशिश करते कि दोनों में से एक बच्चे के साथ रहे। ऐसे में पिता महीनों तक दिन की शिफ्ट जाता है और माता महीनों तक रात की शिफ्ट जाती है। बच्चे को दोनों का स्नेह ऐसी स्थिति में टुकड़ों में ही मिलता है। नन्हा बच्चा जब माँ का स्नेह पाता है तब पिता नहीं होते और पिता का स्नेह पाता है तब माँ काम पर गई होती है। उगते सूरज का स्वागत सभी करते हैं, परंतु डूबते सूरज के प्रति उदासीनता दिखलाते हैं। कवि का मशवरा है कि डूबते सूरज को भी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि, डूबना-उगना तो केवल नजरों का धोखा है। सूरज तो आसमान में ही है। हमारी धरती ही सूरज की परिक्रमा करते हुए हमें सूरज के डूबने-उगने का आभास कराती है अर्थात सच्चाई से मुख न मोड़कर हमें हर स्थिति में तटस्थ रहना चाहिए। जीवन पथ पर चलते-चलते कभी-कभी गिर भी गए तो खुद को सँभालकर आगे बढ़ना चाहिए। गिरने पर जो चोट लगती है वह हमें जीवन का नया पाठ सिखाती है क्योंकि ठोकर खाकर ही हमें जीने की कला का सबक मिलता है। अनुभव से बड़ा कोई शिक्षक नहीं। बस, जीवन चलने का नाम है, आगे बढ़ने का नाम है इसे याद रखना होगा। जीवन पथ पर आगे बढ़ते समय कभी मार्ग में घनघोर अँधकार छाया हुआ मिले लेकिन तब भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। किसी दिन उजाला अवश्य होगा यही आशा रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि रात की कोख से ही सुबह जन्म लेती है। इस त्रिवेणी में कवि हमें निराशा के अंधकार से आशा के उजाले की ओर ले जाना चाहते हैं और इस सत्य से अवगत (aware) कराते हैं कि जीवन में दुःख के बाद सुख अवश्य आता है। सुख-दुख, दिन-रात की तरह आते-जाते रहते हैं इसीलिए दुख की स्थिति में निराश नहीं होना चाहिए। अपनी आयु के कुछ पल उधार लेकर मैंने हसरत के बीज बोए क्योंकि विचारों की जमीन मेरे पास पहले से थी अर्थात (means) हमारे सपनों को पूरा करने के लिए आयु कम ही पड़ती है। परंतु सपने अवश्य देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने की कोशिश भी करनी चाहिए। मंजिल बहुत दूर है यह सोचकर हमें यात्रा रोकनी नहीं चाहिए बल्कि छोटे से दीपक की धुंधली सी रोशनी में भी यात्रा आरंभ कर लेनी चाहिए क्योंकि हिम्मत से आगे बढ़ने वाले यात्री के कदम जहाँ भी पड़ेंगे वहाँ रोशनी होगी और मंजिल का मार्ग प्रशस्त (wide) होगा। कवि हमें सकारात्मक सोच से जीवन में आगे बढ़ने का मशवरा दे रहे हैं। मैंने जब कभी अपनी आँखों में देखा स्वयं को एक बालक की तरह अबोध, (innocent) निष्पाप पाया। इससे तो यही सिद्ध होता है कि उम्र बढ़ती ही नहीं। वास्तव में उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे हम मासुमियत खो देते हैं और दुनियादारी निभाते-निभाते हमारे भीतर छिपे बालक को बड़ा बुजुर्ग, अनुभवी बनाकर जीवन की सुंदरता का गला घोट देते हैं। मन को अशांत, तनाव पूर्ण, कुंठा (frustration) ग्रस्त बना देते हैं। इससे मुक्ति पाना है तो खुद के भीतर छिपे बालक को जीवित रखना चाहिए। आँसू और खुशियाँ एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जैसे पेड़ में बीज छुपा है और बीज में पेड़ वैसे ही आँसू में खुशी और खुशी में आँसू छिपे होते हैं। जो इस बात को समझ गया वही सच्चा ज्ञानी है क्योंकि आँसू और खुशियाँ जीवन के दो अंग हैं और ये जीवन में आते-जाते रहते हैं। हर खुशी में आँसू छिपे हैं जो हमारी भावनाओं के प्रतीक (symbol) हैं और आँसुओं के जल से सींचकर खुशियों का वृक्ष फलता-फूलता है। जीवन में कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न आए हमें उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि नाउम्मीदी तो मृत्यु के समान है अर्थात् कठिनाइयों से घबराकर निराशा का दामन थामने वाला जीते जी मर जाता है। जैसे हर अँधेरी रात के बाद सुबह अवश्य आती है वैसे ही दुख के बाद सुख का आना निश्चित है। इस सकारात्मकता (positivity) के साथ जीना ही जिंदगी है। सुख-दुख की स्थिति में स्थिर रहना ही मनुष्य की सच्ची पहचान है इस तथ्य को कभी नहीं भूलना चाहिए। प्रेरणा शब्दार्थ:
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मुस्कुराती चोट इस लघुकथा के लेखक का नाम इन में से कौनसा है *?लघुकथा संग्रह:मुस्कुराती चोट-संतोष श्रीवास्तव
मुस्कुराती चोट लघुकथा कौनसी समस्या दर्शाती है?मुस्कुराती चोट' लघुकथा आर्थिक अभाव के कारण पढ़ाई न कर पाने की विवशता तथा मजदूरी करके अपनी पढ़ाई जारी रखने की अदम्य इच्छा को दर्शाती है। यह बाल मजदूरी जैसी समस्या को इंगित करते हुए हौसला देती, आशावाद को बढ़ाती सकारात्मक और संवेदनशील लघुकथा है।
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