मानव में पशुपालन की क्या भूमिका है? - maanav mein pashupaalan kee kya bhoomika hai?

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आपका पसंद के मानव कल्याण ओपन पालन की भूमिका का लेखन कीजिए तो मैं बता दूं पशुपालन में जानवरों के भोजन प्रजनन पशुपालन शामिल है जिन का प्राथमिक उद्देश्य मांस और दूध प्रदान करना है इस प्रकार पशुपालन हमें दूध अंडे मांस और रेशम शहद मॉम और अन्य चीजें प्रदान करके मानव कल्याण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है धन्यवाद

aapka pasand ke manav kalyan open palan ki bhumika ka lekhan kijiye toh main bata doon pashupalan me jaanvaro ke bhojan prajanan pashupalan shaamil hai jin ka prathmik uddeshya maas aur doodh pradan karna hai is prakar pashupalan hamein doodh ande maas aur resham shehed mom aur anya cheezen pradan karke manav kalyan me ek mahatvapurna bhumika nibhata hai dhanyavad

आपका पसंद के मानव कल्याण ओपन पालन की भूमिका का लेखन कीजिए तो मैं बता दूं पशुपालन में जानवर

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मानव में पशुपालन की क्या भूमिका है? - maanav mein pashupaalan kee kya bhoomika hai?
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आपने पूछा मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका तो यह मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका बहुत ही ज्यादा महत्व रखती है अगर एक मानव के अंतर पशुपालन का एक शरीर में भाव है उसके दिल में एक भाव है तो वह उसके कल्याण के लिए भी तात्पर्य यह है कल्याण को भी शुरुआत करती है और उसके कल्याण में एक अहम भूमिका निभाती है तो मानव कल्याण में पशुपालन का बहुत बड़ा भूमिका है क्योंकि अगर हम पशुपालन करते हैं तो इससे हमें गुण धाम की भावना उत्पन्न होते हैं और हमारा जो शरीर हैं वह अच्छा और स्वस्थ रहता है क्योंकि हम नेता

aapne poocha manav kalyan mein pashupalan ki bhumika toh yah manav kalyan mein pashupalan ki bhumika bahut hi zyada mahatva rakhti hai agar ek manav ke antar pashupalan ka ek sharir mein bhav hai uske dil mein ek bhav hai toh vaah uske kalyan ke liye bhi tatparya yah hai kalyan ko bhi shuruat karti hai aur uske kalyan mein ek aham bhumika nibhati hai toh manav kalyan mein pashupalan ka bahut bada bhumika hai kyonki agar hum pashupalan karte hain toh isse hamein gun dhaam ki bhavna utpann hote hain aur hamara jo sharir hain vaah accha aur swasthya rehta hai kyonki hum neta

आपने पूछा मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका तो यह मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका बहुत ह

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पशुपालन कृषि विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है। पशुपालन का पठन-पाठन विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों में एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में किया जा रहा है।जिनसेन मठ कोल्हापुर का प्रधान जैन मठ है यहाँ के स्वामी भट्टारक लक्ष्मीसेन है जो भारत के सबसे बड़े भट्टारक है कोल्हापुर क्षेत्र के सभी जैन (ब्राह्मण,वैश्य,क्षत्रिय,शूद्र) इनकी आज्ञा का पालन करते है

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन का विशेष महत्व है। सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का योगदान सराहनीय है जिसमें दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है। भारत में विश्व की कुल संख्या का 15 प्रतिशत गायें एवं 55 प्रतिशत भेड़ है और देश के कुल दुग्ध उत्पादन का 53 प्रतिशत भैंसों व 43 प्रतिशत गायों और 3 प्रतिशत बकरियों से प्राप्त होता है। भारत लगभग 121.8 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन करके विश्व में प्रथम स्थान पर है जो कि एक मिसाल है और उत्तर प्रदेश इसमें अग्रणी है। यह उपलब्धि पशुपालन से जुड़े विभिन्न पहलुओं ; जैसे- मवेशियों की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य एवं आवास प्रबंधन इत्यादि में किए गये अनुसंधान एवं उसके प्रचार-प्रसार का परिणाम है। लेकिन आज भी कुछ अन्य देशों की तुलना में हमारे पशुओं का दुग्ध उत्पादन अत्यन्त कम है और इस दिशा में सुधार की बहुत संभावनायें है।

छोटे, भूमिहीन तथा सीमान्त किसान जिनके पास फसल उगाने एवं बड़े पशु पालने के अवसर सीमित है, छोटे पशुओं जैसे भेड़-बकरियाँ, सूकर एवं मुर्गीपालन रोजी-रोटी का साधन व गरीबी से निपटने का आधार है। विश्व में हमारा स्थान बकरियों की संख्या में दूसरा, भेड़ों की संख्या में तीसरा एवं कुक्कुट संख्या में सातवाँ है। कम खर्चे में, कम स्थान एवं कम मेहनत से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे पशुओं का अहम योगदान है। अगर इनसे सम्बंधित उपलब्ध नवीनतम तकनीकियों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाय तो निःसंदेह ये छोटे पशु गरीबों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। छोटे व सीमांत किसानों के पास कुल कृषि भूमि की 30 प्रतिशत जोत है। इसमें 70 प्रतिशत कृषक पशुपालन व्यवसाय से जुड़े है जिनके पास कुल पशुधन का 80 प्रतिशत भाग मौजूद है। स्पष्ट है कि देश का अधिकांश पशुधन, आर्थिक रूप से निर्बल वर्ग के पास है। भारत में लगभग 19.91 करोड़ गाय, 10.53 करोड़ भैंस, 14.55 करोड़ बकरी, 7.61 करोड़ भेड़, 1.11 करोड़ सूकर तथा 68.88 करोड़ मुर्गी का पालन किया जा रहा है। भारत 121.8 मिलियन टन दुग्धउत्पादन के साथ विश्व में प्रथम, अण्डा उत्पादन में 53200 करोड़ के साथ विश्व में तृतीय तथा मांस उत्पादन में सातवें स्थान पर है। यही कारण है कि कृषि क्षेत्र में जहाँ हम मात्र 1-2 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त कर रहे हैं वहीं पशुपालन से 4-5 प्रतिशत। इस तरह पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करने तथा उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने की अपार सम्भावनायें हैं।

वर्ष के विभिन्न महीनों में पशुपालन से सम्बन्धित कार्य (पशुपालन कलेण्डर) इस प्रकार हैं-

  • 1. खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव का टीका लगवायें।
  • 2. जायद के हरे चारे की बुआई करें, बरसीम चारा बीज उत्पादन हेतु कटाई कार्य करें।
  • 3. अधिक आय के लिए स्वच्छ दुग्ध उत्पादन करें।
  • 4. अन्तः एवं बाह्य परजीवी का बचाव दवा स्नान/दवा पान से करें।
  • 5. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका सभी पशुओं में लगवायें।
  • 2. पशुओं को हरा चारा पर्याप्त मात्रा में खिलायें।
  • 3. पशु को स्वच्छ पानी पिलायें।
  • 4. पशु को सुबह एवं सायं नहलायें।
  • 5. पशु को लू एवं गर्मी से बचाने की व्यवस्था करें।
  • 6. परजीवी से बचाव हेतु पशुओं में उपचार करायें।
  • 7. बांझपन की चिकित्सा करवायें तथा गर्भ परीक्षण करायें।
  • 8. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका अवशेष पशुओं में लगवायें।
  • 2. पशु को लू से बचायें।
  • 3. हरा चारा पर्याप्त मात्रा में दें।
  • 4. परजीवी निवारण हेतु दवा पशुओं को पिलवायें।
  • 5. खरीफ के चारे मक्का, लोबिया के लिए खेत की तैयारी करें।
  • 6. बांझ पशुओं का उपचार करायें।
  • 7. सूखे खेत की चरी न खिलायें अन्यथा जहर वाद का डर रहेगा।
  • 8. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका शेष पशुओं में लगवायें।
  • 2. खरीफ चारा की बुआई करें तथा जानकारी प्राप्त करें।
  • 3. पशुओं को अन्तः कृमि की दवा पान करायें।
  • 4. वर्षा ऋतु में पशुओं के रहने की उचित व्यवस्था करें।
  • 5. ब्रायलर पालन करें, आर्थिक आय बढ़ायें।
  • 6. पशु दुहान के समय खाने को चारा डाल दें।
  • 7. पशुओं को खड़िया का सेवन करायें।
  • 8. कृत्रिम गर्भाधान अपनायें।
  • 9. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. नये आये पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीकाकरण करवायें।
  • 2. लिवर फ्लूक के लिए दवा पान करायें।
  • 3. गर्भित पशुओं की उचित देखभाल करें।
  • 4. ब्याये पशुओं को अजवाइन, सोंठ तथा गुड़ खिलायें। देख लें कि जेर निकल गया है।
  • 5. जेर न निकलनें पर पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
  • 6. भेड़/बकरियों को परजीवी की दवा अवश्य पिलायें।
  • 7. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. उत्पन्न संतति को खीस (कोलेस्ट्रम) अवश्य पिलायें।
  • 2. अवशेष पशुओं में एच.एस. तथा बी.क्यू. का टीका लगवायें।
  • 3. मुँहपका तथा खुरपका का टीका लगवायें।
  • 4. पशुओं की डिवर्मिंग करायें।
  • 5. भैंसों के नवजात शिशुओं का विशेष ध्यान रखें।
  • 6. ब्याये पशुओं को खड़िया पिलायें।
  • 7. गर्भ परीक्षण एवं कृत्रिम गर्भाधान करायें।
  • 8. तालाब में पशुओं को न जाने दें।
  • 9. दुग्ध में छिछड़े आने पर थनैला रोग की जाँच अस्पताल पर करायें।
  • 10. खीस पिलाकर रोग निरोधी क्षमता बढ़ावें।
  • 11. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें।
  • 2. बरसीम एवं रिजका के खेत की तैयारी एवं बुआई करें।
  • 3. निम्न गुणवत्ता के पशुओं का बधियाकरण करवायें।
  • 4. उत्पन्न संततियों की उचित देखभाल करें
  • 5. स्वच्छ जल पशुओं को पिलायें।
  • 6. दुहान से पूर्व अयन को धोयें।
  • 7. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें।
  • 2. कृमिनाषक दवा का सेवन करायें।
  • 3. पशुओं को संतुलित आहार दें।
  • 4. बरसीम तथा जई अवश्य बोयें।
  • 5. लवण मिश्रण खिलायें।
  • 6. थनैला रोग होने पर उपचार करायें।
  • 7. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।

दिसम्बर (अगहन/मार्गशीर्ष)[संपादित करें]

  • 1. पशुओं का ठंड से बचाव करें, परन्तु झूल डालने के बाद आग से दूर रखें।
  • 2. बरसीम की कटाई करें।
  • 3. वयस्क तथा बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलायें।
  • 4. खुरपका-मुँहपका रोग का टीका लगवायें।
  • 5. सूकर में स्वाईन फीवर का टीका अवश्य लगायें।
  • 6. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. पशुओं का शीत से बचाव करें।
  • 2. खुरपका-मुँहपका का टीका लगवायें।
  • 3. उत्पन्न संतति का विशेष ध्यान रखें।
  • 4. बाह्य परजीवी से बचाव के लिए दवा स्नान करायें।
  • 5. दुहान से पहले अयन को गुनगुने पानी से धो लें।
  • 6. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. खुरपका-मुँहपका का टीका लगवाकर पशुओं को सुरक्षितकरें।
  • 2. जिन पशुओं में जुलाई अगस्त में टीका लग चुका है, उन्हें पुनः टीके लगवायें।
  • 3. बाह्य परजीवी तथा अन्तः परजीवी की दवा पिलवायें।
  • 4. कृत्रिम गर्भाधान करायें।
  • 5. बांझपन की चिकित्सा एवं गर् परीक्षण करायें।
  • 6. बरसीम का बीज तैयार करें।
  • 7. पशुओं को ठण्ड से बचाव का प्रबन्ध करें।
  • 8. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • 1. पशुशाला की सफाई व पुताई करायें।
  • 2. बधियाकरण करायें।
  • 3. खेत में चरी, सूडान तथा लोबिया की बुआई करें।
  • 4. मौसम में परिवर्तन से पशु का बचाव करें
  • 5. खान-पान में शुध्दता का ध्यान रखें।
  • जूलियट, Clutton बिज्जू. घूमना कोठार. पालतू बनाने, ग्रामीण काव्य और शिकार के पैटर्न, अनविन Hyman, लंदन 1988
  • जूलियट, Clutton बिज्जू. हार्स पावर: मानव समाज, राष्ट्रीय इतिहास संग्रहालय प्रकाशनों, लंदन में 1992 में घोड़े और गधे का एक इतिहास
  • फ्लेमिंग जी, Guzzoni एम. Storia cronologica डेले epizoozie दाल 1409 ए वी. क्रिस्टो चीन अल 1800, Gazzetta चिकित्सा VETERINARIA में, मैं द्वितीय, मिलानो 1871-72

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मानव कल्याण में पशुपालन की क्या भूमिका है?

पशुपालन खाद्य उत्पादन बनाने के प्रयासों में मुख्य भूमिका निभाता हैं । शहद का उच्च पोषक मान तथा इसके औषधीय महत्व को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी पालन अथवा मोम पालन पद्धति में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है । डेयरी उद्योग से मानव खपत के लिए दुग्ध तथा इसके उत्पाद प्राप्त होते हैं ।

पशुपालन क्यों किया जाता है?

Solution : पशुपालन इसलिए आवश्यक है क्योंकि इनसे हमें दूध, मांस आदि प्राप्त होता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुपालन का क्या महत्व और योगदान है?

भारत में लगभग 2 करोड़ लोग आजीविका के लिये पशुपालन पर आश्रित हैं। पशुपालन क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 4% तथा कृषि सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 26% का योगदान करता है। भारत में पशुओं की उपयोगिता खाद्य पदार्थ, चमड़ा, खाद, खर-पतवार नियंत्रण, मनोरंजन तथा साथी पशु के रूप में है।

पशुपालन का सिद्धांत क्या है?

पशु के गर्मी पर आने के बाद 12 से 18 घंटे के बीच का समय कृतिम गर्भाधान के लिए सही माना जाता है। पशु को फलवाने के दिन एवं दूसरे दिन सामान्य दिनों की अपेक्षा कम चारा पानी देना चाहिए। फलवाने के बाद पशु को 20 से 21 दिन के बाद देखना चाहिए कि वह पुन: गर्मी पर आ रहा है या नहीं।