महादेवी वर्मा की भाषा कौन सी है? - mahaadevee varma kee bhaasha kaun see hai?

  • महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
  • महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)
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    • शिक्षा
    • वैवाहिक जीवन
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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा की भाषा कौन सी है? - mahaadevee varma kee bhaasha kaun see hai?

हिन्दी भाषा की मशहूर कवयित्री महादेवी वर्मा का नाम तो आपने सुना ही होगा, इस पोस्ट में हम आपको महादेवी वर्मा का जीवन परिचय mahadevi verma ka jivan parichay के विषय में अध्ययन करेंगे । इस पोस्ट को पढ़कर आप जान पाएंगे की महादेवी वर्मा का जन्म कहाँ और कब हुआ था, महादेवी वर्मा का मूल नाम क्या था, महादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय, महादेवी वर्मा का चित्र , व महादेवी वर्मा ने कौन कौन सी रचनाएं लिखी हैं।

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)

महादेवी वर्मा की भाषा कौन सी है? - mahaadevee varma kee bhaasha kaun see hai?
महादेवी वर्मा का चित्र
जन्म 26 मार्च, 1907, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 11 सितम्बर, 1987, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
पिता  गोविन्द प्रसाद वर्मा
माता श्रीमती हेमरानी वर्मा
पति  डॉ० स्वरूपनारायण वर्मा

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

जन्म

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था, महादेवी वर्मा के जन्म के बारे में एक रोचक बात यह है की उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार महादेवी वर्मा के रूप में पुत्री का जन्म हुआ था, इसलिए उनके परिवार ने उनको देवी मानते हुए उनका नाम महादेवी रखा।

महादेवी वर्मा के पिता का नाम श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा और माता का नाम श्रीमती हेमरानी वर्मा था। उनके पिता भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता एक धार्मिक महिला थी जो प्रतिदिन कई घंटे पूजा-पाठ किया करती थी। और संगीत में भी उनकी अत्यधिक रुचि थी। महादेवीजी वर्मा के नाना ब्रजभाषा के कवि थे जिसके कारण महादेवी वर्मा में भी बचपन से ही काव्य में रुचि उत्पन्न हो गई और मात्र 7 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था।

शिक्षा

महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा सफर इन्दौर में मिशन स्कूल से शुरू हुआ, और इसके साथ ही उन्हे संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा चित्रकला आदि की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती थी। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद महादेवी वर्मा का विवाह हो गया जिस करण उनकी शिक्षा कुछ समय के लिए रुक गई। विवाह के बाद उन्होंने 1919 में क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। 1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की जीमें उन्होंने सम्पूर्ण प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त किया। और 1925 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस समय तक वह एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं, उनकी कविताएं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी थी। कॉलेज में ही उनकी मित्रता हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई।

महादेवी वर्मा ने 1928 में बी० ए० की परीक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज से उत्तीर्ण की तथा वर्ष 1933 में संस्कृत से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस प्रकार महादेवी वर्मा जी अपने विधार्थी जीवन में एक उत्कृष्ठ छात्रा रही।

वैवाहिक जीवन

महादेवी वर्मा का विवाह सन् 1916 में बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया, इस समय महादेवी जी मात्र 9 वर्ष की थी और उनके पती दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। जो इण्टर करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज में बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। और महादेवी जी इस समय क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद के छात्रावास में थीं। महादेवी वर्मा को वैवाहिक जीवन पसंद नहीं था वह विवाह के बाद भी एक सन्यासिनी की तरह जीवन व्यतीत करती थी और सफेद वस्त्र पहनती थी।  सन् 1966 में उनके पति की मृत्यु हो गई।

कार्यक्षेत्र

महादेवी का कार्यक्षेत्र मुख्यतः लेखन, सम्पादन और अध्यापन रहा है , उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया वह यहाँ की प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (अनूदित-1959), प्रथम आयाम (1974), अग्निरेखा (1990) आदि उनके प्रमुख कविता संग्रह है महादेवी जी कवयित्री के साथ गद्यकार भी थीं। 

सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की, वह  हिन्दी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तिका भी मानी जाती है।

महादेवी जी बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थी, महात्मा गढ़ी के विचारों का भी उन पर बहुत प्रभाव पड़ा जिसकए कारण उन्होंने उन्होंने जनसेवा का व्रत लेकर कार्य किया और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। महादेवी वर्मा जी ने 1936 में उत्तराखंड के नैनीताल के पास में रामगढ़ के उमागढ़ नामक गाँव में एक बंगला बनवाया, जिसका नाम उन्होंने मीरा मन्दिर रखा था। जितने दिन वे यहाँ रहीं इस छोटे से गाँव की शिक्षा और विकास के लिए काम करती रहीं। वर्तमान में इस बंगले को महादेवी साहित्य संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। महादेवी वर्मा ने महिलाओं की शिक्षा के लिए विशेष कार्य किया।

पुरस्कार व सम्मान

  • महादेवी वर्मा को ‘यामा’ नामक काव्य संकलन के लिये उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।
  • उन्हे ‘नीरजा’ के लिये 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, 1942 में ‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये ‘द्विवेदी पदक’ प्राप्त हुए।
  • नहादेवी वर्मा को सन 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने उन्हें डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया।
  • महादेवी जी को 1943 में ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ एवं ‘भारत भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • महादेवी वर्मा को 1956 में पद्म भूषण की उपाधि दी गई तथा 1988 में उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण उपाधि से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

महादेवी वर्मा का निधन 11 सितम्बर, 1987 को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) में हुआ। महादेवी जी हिन्दी भाषा की प्रख्यात कवयित्री व गद्यकार के साँथ-साँथ एक समाजसेवी व स्वतंत्रता सेनानी भी थी।

इस पोस्ट में हमने आपको महादेवी वर्मा का जीवन परिचय mahadevi verma ka jivan parichay के बारे में विस्तार से जानकारी दी , इसके अलावा इस संबंध में आपके कोइ सवाल व सुझाव हो तो आप नीचे कमेन्ट में पूछ सकते हैं हम उनका उत्तर अवश्य देंगे।

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महादेवी वर्मा की भाषा शैली कौन सी है?

महादेवी वर्मा जी की रचना-शैली की प्रमुख विशेषता भावतरलता, वैयक्तिकता, प्रतीकात्मकता, चित्रात्मकता, आलंकारिता, छायावादी तथा रहस्यात्मक अभिव्यक्ति आदि हैं। महादेवीजी की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के सरल और क्लिष्ट तत्सम शब्दों का मेल है।

महादेवी वर्मा का उपनाम क्या है?

छायावादी कविता की सफ़लता में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है और वे छायावाद के प्रमुख आधार स्तंभों में से एक हैं। आधुनिक युग की मीरा के उपनाम से सम्मानित महादेवी, निरंतर महिलाओं के हित में आवाज उठाती रहीं।

महादेवी वर्मा का गद्य साहित्य क्या है?

महादेवी का शुद्ध विचारपरक गद्य भी मात्रा की दृष्टि से कम नहीं है। 'चाँद' के नारी-जागरण से सम्बद्ध सम्पादकीय, काव्य-संकलनों का पक्ष प्रस्तुत करने वाली भूमिकाएँ, 'काव्य-कला', 'छायावाद', 'रहस्यवाद', 'गीतकाव्य', जैसे साहित्यिक विषयों पर लिखे गये निबन्ध उनके गद्य लेखन का महत्वपूर्ण अंग हैं।

महादेवी वर्मा की प्रमुख कृतियां कौन कौन सी है?

नीहार से सप्तपर्णा तक.
सांध्यगीत.
अग्निरेखा.
दीपशिखा.
सप्तपर्णा.
संक्षेप में.