लोहा का निष्कर्षण कैसे किया जाता है - loha ka nishkarshan kaise kiya jaata hai

  • लोहे का निष्कर्षण
    • ढलवां लोहा
    • पिटवां लोहा
      • इस्पात
      • पिटवां लोहे का निर्माण
      • आयरन (लोहे) के उपयोग

लौह अयस्क से लोहे का निष्कर्षण प्रस्तुत अध्याय के अंतर्गत समझाया गया है।

लोहे का निष्कर्षण

लोहे के निम्न अयस्क होते हैं।
ऑक्साइड अयस्क
(i) हेमेटाइट – Fe2O3
(ii) मैग्नेटाइट – Fe3O4
सल्फाइड अयस्क
(i) आयरन पायराइट – FeS2
(ii) आर्सेनिक पाइराइट – FeAsS
कार्बोनेट अयस्क
(i) सिडेराइट – FeCO3

लोहे का निष्कर्षण वात्या भट्टी द्वारा किया जाता है। आयरन का निष्कर्षण, हेमेटाइट अयस्क द्वारा निम्न विधियों से किया जाता है।

1. सांद्रण
अधिकांश हेमेटाइट अयस्क के सांद्रण की आवश्यकता नहीं होती है। चूंकि अयस्कों से 20 – 55% के बीच ही लोहा प्राप्त हो जाता है। अगर अयस्क में हल्की अशुद्धियां जैसे रेत, मिट्टी के कण आदि उपस्थित होते हैं तो अयस्क के बारीक चूर्ण को जल की धारा के साथ धोकर अशुद्धियां दूर हो जाती हैं।

2. चुंबकीय पृथक्करण
इसको एक अलग से लेख में समझाया गया है।
पढ़ें.. चुंबकीय पृथक्करण विधि क्या है

3. सांद्रित अयस्क का भर्जन अथवा निस्तापन
सांद्रित अयस्क को कम गहरी भट्टी में वायु की उपस्थिति में तेज गर्म किया जाता है तो निस्तापन में निम्न परिवर्तन होते हैं।
(i) अयस्क में नमी भाप बन कर निकल जाती है जिससे अयस्क शुष्क हो जाता है।
(ii) सल्फर आर्सेनिक तथा फास्फोरस क्रमशः SO2 , As2O3 तथा P4O10 के रूप में पृथक हो जाते हैं।
(iii) कार्बोनेट अयस्क अपघटित होकर फेरिक ऑक्साइड FeO बनाते हैं फिर वह फैरिस ऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।
FeCO3 \longrightarrow FeO + CO2
4FeO + O2 \longrightarrow 2Fe2O3

4. धातु ऑक्साइड का अपचयन (प्रगलन)
अयस्क में कोक तथा चूने का पत्थर मिलाकर इसे वात्या भट्टी में धीरे-धीरे प्रगलित किया जाता है।
भट्टी के बारे में हम पढ़ चुके हैं।
पढ़ें.. वात्या भट्टी क्या है
वात्या भट्टी में कच्चा लोहा प्राप्त होता है जिसमें 92-93% आयरन 2-4% कार्बन व अन्य धातुएं होती हैं।

ढलवां लोहा

यह लोहे का सबसे कम शुद्ध रूप होता है। इसमें कार्बन की मात्रा 3% पायी जाती है। एवं अन्य धातुएं जैसे – सिलिकॉन, फास्फोरस तथा सल्फर आदि अल्प मात्रा में अशुद्धि के रूप में पायी जाती हैं।

पिटवां लोहा

यह लोहे का सबसे शुद्धतम रूप होता है इसमें कार्बन की मात्रा 0.5% से भी कम पायी जाती है। ए
एवं इसमें अन्य अशुद्धियां नहीं पायी जाती हैं।

इस्पात

यह एक मिश्रधातु होती है इसमें कार्बन की मात्रा 0.1-1.5% होती है एवं इसमें अल्प मात्रा में सल्फर और फास्फोरस भी पायी जाती है।

पिटवां लोहे का निर्माण

यह लोहे का सबसे शुद्धतम रूप होता है कच्चे अथवा ढलवां लोहे से पिटवां लोहे को एक विशेष प्रक्रम द्वारा प्राप्त किया जाता है। जिसे पडलिंग प्रक्रम कहते हैं।
इसमें ढलवां लोहे में गालक मिलाकर इसे हेमेटाइट Fe2O3 के अस्तर के साथ परावर्तनी भट्टी में गर्म किया जाता है हेमेटाइट का अस्तर ऑक्सीकारक का कार्य करता है। ढलवां लोहे में विद्यमान C, S की अशुद्धियां वाष्पशील ऑक्साइड बना लेती हैं। जबकि सिलिकॉन, मैंगनीज की अशुद्धियां धातुमल बनाती हैं।

C + Fe2O3 \longrightarrow 2FeO + 2CO
3S + 2Fe2O3 \longrightarrow 4Fe + 3SO2
3Mn + 2Fe2O3 \longrightarrow 2Fe + 3MnO
MnO + SiO2 \longrightarrow \footnotesize \begin{array}{rcl} MnSiO_3 \\ धातुमल \end{array}

इस प्राप्त धातु की एक लुगदी बन जाती है जो गेंदों के रूप में परिवर्तित हो जाती है। इन गेंदों को हथौड़े से पीटते हैं जिससे इनमें विद्यमान धातुमल बाहर निकल जाता है और अंत में प्राप्त लोहे का सबसे शुद्धतम रूप होता है इसे ही पिटवा लोहा कहते हैं।

आयरन (लोहे) के उपयोग

1. रेलवे स्लीपर्स, स्टॉव, नलों के पाइप आदि ढलाऊ चीजें बनाने में ढलवां लोहे का प्रयोग किया जाता है।
2. तार, यंत्र, जंजीर आदि के निर्माण में पिटवा लोहे का प्रयोग किया जाता है।
3. संदूक, अलमारी अन्य घरेलू वस्तुएं, वाहनों की बॉडी आदि में इस्पात (स्टील) का प्रयोग किया जाता है।



अध्याय : 1. धातु एवं अधातु

हेमेटाइट से लोहे का निष्कर्षण

1. अयस्क का उपचार : व्यस्क के बड़े-बड़े टुण्ड़ों को छोटे-छोटे टूकड़ों में तोड़ा जाता है। तत्पश्चात् जल के साथ धोकर क्ले, रेत तथा अन्य अतिरिक्त अशुद्धियों को हटाया जाता है। इस प्रकार अयस्क वात्याभट्टी में उपचार के लिए तैयार हो जाता हैं।
2. वात्याभट्टी में प्रगलन : सान्द्रित अयस्क को कॉक तथा चूने पत्थर के साथ मिश्रित किया जाता है। मिश्रण, वात्याभट्टी के शीर्ष पर जमा हो जाता है। भट्टी में निम्न अभिक्रियायें होती हैं।
(i) आवेश को 873 K क्षेत्रा तक कम किया जाता है। जिससे आयरन ऑक्साइड़, कॉक के जलने से बनी कार्बन मोनोऑक्साइड़ गैस के बढ़ने के साथ-साथ अपचयित होता जाता है।

लोहा का निष्कर्षण कैसे किया जाता है - loha ka nishkarshan kaise kiya jaata hai

इस प्रकार प्राप्त लोहा स्पॉन्ज लोहा कहलाता है
(ii) 1273 K क्षेत्रा में सिलिका, धातुमल में परिवर्तित होती है।
लोहा का निष्कर्षण कैसे किया जाता है - loha ka nishkarshan kaise kiya jaata hai

(iii) 1573 K क्षेत्रा में स्पॉन्ज लोहा पिघलता है तथा कार्बन, फॉस्फोरस, सिलिका आदि घुलती हैं। धातुमल भी संगलित होता है। गलित पदार्थ भट्टी के आधार पर इकट्ठा हो जाता हैं। धातुमल इस पर तैरता रहता है। गलित लोहा को आवश्यकतानुसार निकाल लिया जाता हैं। यह लोहा, ढलवा लोहा कहलाता हैं।
चूने पत्थर का कार्य : चूने पत्थर, बिना बुझे चूने में विघटित होता है
CaCO3 → CaO + CO2
बिना बुझा चूना, अशुद्धियों जैसे- रेत के साथ जुड़कर एक गलित धातुमल (कैल्शियम सिलिकेट) बनाता है।
CaO + SiO2 → CaSiO3
धातुमल, गलित लोहे की सतह पर तैरता है। इसे समान्तरालों पर छिद्र द्वारा बाहर निकाल लिया जाता है। धातुमल के रूप में कैल्शियम सिलिकेट निर्माण के द्वारा केवल अवांछित सिलिका ही हटार्इ नहीं जाती बल्कि लोहों को भी ऑक्सीकृत से बचाया जाता है।


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लोहा निष्कर्षण कैसे किया जाता है?

लोहे का निष्कर्षण वात्या भट्टी द्वारा किया जाता है। आयरन का निष्कर्षण, हेमेटाइट अयस्क द्वारा निम्न विधियों से किया जाता है। अधिकांश हेमेटाइट अयस्क के सांद्रण की आवश्यकता नहीं होती है। चूंकि अयस्कों से 20 – 55% के बीच ही लोहा प्राप्त हो जाता है।

हेमेटाइट से लोहे Fe का निष्कर्षण कैसे करेंगे?

(i) आवेश को 873 K क्षेत्रा तक कम किया जाता है। जिससे आयरन ऑक्साइड़, कॉक के जलने से बनी कार्बन मोनोऑक्साइड़ गैस के बढ़ने के साथ-साथ अपचयित होता जाता है। (ii) 1273 K क्षेत्रा में सिलिका, धातुमल में परिवर्तित होती है। (iii) 1573 K क्षेत्रा में स्पॉन्ज लोहा पिघलता है तथा कार्बन, फॉस्फोरस, सिलिका आदि घुलती हैं।

लोहे का सांद्रण कैसे किया जाता है?

Solution : अयस्क का सांद्रण - अयस्क के सांद्रण हेतु गुरुत्वीय पृथक्करण विधि प्रयोग में लाते हैं । <br> (ii) ऑक्साइड का धातु में अपचयन - अपचयन के लिये प्रगलन विधि प्रयोग में लाया जाता हैं यह वात्याभट्टी व्दारा होता हैं ।

लोहा का निर्माण कैसे होता है?

वात्या भट्ठी से कच्चा लोहा ही निकलता है। वस्तुतः 'कच्चा लोहा' लौह, कार्बन, सिलिकन, मैंगनीज, फॉस्फोरस और गंधक की मिश्रधातु है। यह एक माध्यमिक उत्पाद है जिसकी और प्रसंस्करण करके अन्य उत्पाद बनाये जाते हैं। अन्य चीजें बनाने के लिए यह एक 'कच्चा माल' है इसी से इसका 'पिग आइरन' नाम पड़ा है।