क्या फोबिया का इलाज संभव है - kya phobiya ka ilaaj sambhav hai

दुर्भीति या फोबिया (Phobia) एक प्रकार का मनोविकार है जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है जबकि वे चीजें उस वक्त खतरनाक नहीं होती है। यह एक प्रकार की चिन्ता की बीमारी है। इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति को हल्के अनमनेपन से लेकर डर के खतरनाक दौरे तक पड़ सकते हैं।

दुर्भीति की स्थिति में व्यक्ति का ध्यान कुछ एक लक्षणों पर केन्द्रित हो सकता है, जैसे-दिल का जोर-जोर से धड़कना या बेहोशी महसूस होना। इन लक्षणों से जुड़े हुए कुछ डर होते है जैसे-मर जाने का भय, अपने ऊपर नियंत्रण खो देने या पागल हो जाने का डर।

इस विकार से रोगी अधिकतर लोग अपने विकार पर पर्दा डाले रहते हैं। उन्हें लगता है कि इसकी चर्चा करने से उनकी जग हंसाई होगी। वे उन हालात से बचने की पुरजोर कोशिश करते हैं जिनसे उन्हें फोबिया का दौरा पड़ता है। लेकिन यह पलायन का रवैया जीवन में जहर घोल देता है।[1]

इसके बाद साइकोथेरेपिस्ट की सहायता से मन में बैठे फोबिया को मिटाने की कोशिश की जा सकती है। इसमें फोबिया-प्रेरक स्थिति से सामना कराते हुए मन में उठने वाली आशंका पर कंट्रोल रखने के उपाय सुझाए जाते हैं। जैसे-जैसे रोगी का आत्मविश्वास लौटता जाता है, वैसे-वैसे उसका भय घटता जाता है। यह डीसेंसीटाइजेशन थैरेपी रोगी में फिर से जीने की ललक पैदा कर देती है। अस्वाभाविक भय की हार और जीवन की जीत होती है।

सोशल फोबिया जैसे सभा में बोलने के भय से छुटकारा पाने के लिए भीतरी दुश्चिंता और तनाव पर विजय पाकर स्थिति वश में की जा सकती है। बीटा-ब्लॉकर दवाएँ जैसे प्रोप्रेनोलॉल और एटेनोलॉल और चिंतानिवारक दवाएँ जैसे एलप्रेजोलॉम भी सोशल फोबिया से उबारने में प्रभावी साबित होती हैं।

फोबिया तथा साधारण भय में अन्तर[संपादित करें]

फोबिया की बीमारी अन्य डरों से किस प्रकार अलग है? इसकी सबसे बड़ी विशेषता है व्यक्ति की चिन्ता, घबराहट और परेशानी यह जानकर भी कम नहीं होती कि दूसरे लोगो के लिए वही परिस्थिति खतरनाक नहीं है। यह डर सामने दिखने वाले खतरे से बहुत ज्यादा होते हैं। व्यक्ति को यह पता रहता है कि उसके डर का कोई तार्किक आधार नहीं है फिर भी वह उसे नियंत्रित नही कर पाता। इस कारण उसकी परेशानी और बढ़ जाती है।

इस डर के कारण व्यक्ति उन चीजों, व्यक्तियों तथा परिस्थितियों से भागने का प्रयास करता है जिससे उस भयावह स्थिति का सामना न करना पड़े। धीरे-धीरे यह डर इतना बढ़ जाता है कि व्यक्ति हर समय उसी के बारे में सोचता रहता है और डरता है कि कहीं उसका सामना न हो जाए। इस कारण उसके काम-काज और सामान्य जीवन में बहुत परेशानी होती है।[2]

इसके मुख्यतः तीन प्रकार होते है-

  • अगोराफोबिया (खुली जगह का डर),
  • सामाजिक दुर्भीति या सोशल फोबिया,
  • विशिष्ट फोबिया (Specific Phobia) जैसे ट्रिपैनोफोबिया (सुई/इंजेक्शन का डर)।

अगोराफोबिया से पीड़ित व्यक्ति को घर से बाहर जाने में, दुकानों या सिनेमाघरों में घुमने, भीड़-भाड़ में जाने, ट्रेन में अकेले सफर करने, या सार्वजनिक जगहों में जाने, में घबराहट होती है। यानि ऐसी जगह से जहाँ से निकलना आसान न हो, व्यक्ति को घबराहट होती है और उससे बचने का प्रयास करता है।

सामाजिक दुर्भीति में किसी सामाजिक परिस्थिति जैसे-लोगों के सामने बोलना या लिखना, स्टेज पर भाषण देना, टेलीफोन सुनना, किसी उँचे पद पर आसीन लोगों से बातें करने में परेशानी होती है। विशेष फोबिया में किसी खास चीज या स्थिति में डर लगता है। उँचाई से डर, पानी से डर, तेलचट्टा, बिल्ली, कुत्ते, कीड़े से डर आदि।

विशिष्ट फोबिया (Specific Phobia) जैसे ट्रिपैनोफोबिया (सुई/इंजेक्शन का डर) इसमें सुई और इंजेक्शन सहित चिकित्सा प्रक्रियाओं का डर शामिल है। सुइयों, रक्त के खींचने, या इंजेक्शन के डर को ट्रिपैनोफोबिया कहा जाता है और अक्सर इसे सुई का भय कहा जाता है। आमतौर पर, लोग इंजेक्शन लेने से थोड़ा डरते हैं, लेकिन ट्रिपैनोफोबिया के मामले में, व्यक्ति का डर एक भयानक फोबिया में इस हद तक बदल जाता है कि वे एक इंजेक्शन से बचने के लिए अपने जीवन को भी खतरे में डाल सकते हैं

बहुत से लोगों को डर होता है कि वो भीड़ में बेहोश होकर गिर जाएँगे। ये युवावस्था और स्त्रियों में अधिक पाया जाता है।

इसके कुछ मुख्य मनोवैज्ञानिक कारण निम्नलिखित हैं-

इसका एक मुख्य कारण कंडीशनिंग (Conditioning) माना जाता है। इसका मतलब है कि यदि किसी सामान्य परिस्थिति में व्यक्ति के साथ कुछ दुर्घटना घट जाती है तो उस घटना के घटने के बाद अगली बार कोई खतरा न होने पर भी व्यक्ति को उन परिस्थितियों में पुनः घबराहट होती है। अध्ययनो में पाया गया है कि यदि माताओं में ये रोग हो तो बच्चों में इसके पाए जाने की संभावना बहुत होती है क्योंकि बच्चे उन लक्षणों को सीख लेते है।

आत्मविश्वास की कमी और आलोचना का डर भी कई बार इस रोग को जन्म देते है। इसके अलावा यह जैविक या अनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है।

इसके इलाज के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियाँ उपलब्ध है जो काफी प्रभावी है। तथापि इसके लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धतियाँ भी काफी आवश्यक एवं लाभदायक पाई गई है। यहाँ ध्यान देने की बात है कि इसका इलाज स्वयं दवाई लेकर नही करना चाहिए क्योंकि इससे समस्या बढ़ सकती है।

डर क्या होता है - डर हमारी वो भावना है जो किसी खतरे या आशंका के कारण हमारे मन में जागृत होती है। डर हमारे किसी प्यारी चीज़ के छीन जाने, खो जाने या दूर चले जाने की फीलिंग को भी कहा जा सकता है जैसे अपने प्रियजनों को खोने का डर, मृत्यु का डर, धन-दौलत के लूट जाने का डर आदि। अगर आप यह कहते हैं कि आप किसी भी इंसान या वस्तु से नहीं डरते तो आप सही नहीं है। हर मनुष्य के अंदर किसी न किसी बात का डर होता ही है।


क्या फोबिया का इलाज संभव है - kya phobiya ka ilaaj sambhav hai


हालाँकि हमारे कुछ डर जायज़ भी हैं जैसे आग में हाथ न डालने का डर क्योंकि हमें पता है कि उससे हम जल सकते हैं, शेर या किसी हिंसक जानवर के सामने न जाने का डर क्योंकि वो हमें अपना शिकार बना सकते हैं। ये बहुत सामान्‍य बात है और कोई बीमारी नहीं है। लेकिन जब डर जरुरत से ज्यादा बढ़ जाए तो एक गंभीर मानसिक विकार का रूप ले लेता है, इस को 'फोबिया' कहते हैं। 


जरुरत से ज्यादा और बिना किसी कारण के डरना फोबिया का लक्षण होता है। अगर कोई फोबिया से पीड़ित हैं, तो जिस चीज से वो डरता हैं उसका सामना होने पर उसको बहुत ज्यादा डर लगेगा और हो सकता है कि वो नर्वस भी हो जाये।


फोबिया के प्रकार (Types of phobia) :

  1. एक्रोफोबिया (Acrophobia) - ऊंचाइयों से डर
  2. हाइड्रोफोबिया (Hydrophobia) - पानी से डर
  3. एयरोफोबिया (Aerophobia) - उड़ान का डर
  4. ड्राइविंगफोबिया (Drivingphobia) - ड्राइविंग का डर
  5. एस्ट्रोफोबिया (Astraphobia) - गड़गड़ाहट और बिजली का डर
  6. ऑटोफोबिया (Autophobia) - अकेले होने का डर
  7. क्लस्ट्रोफोबिया (Claustrophobia) - सीमित या भीड़ भरे स्थानों का डर
  8. हीमोफोबिया (hemophobia) - खून का डर
  9. अरक्नोफोबिया (arachnophobia) - मकड़ियों का डर
  10. ओफिडियोफोबिया (Ophidiophobia) - सांपों का डर
  11. ज़ोफोबिया (Zoophobia) - जानवरों का डर





हमारे अंदर के अधिकतर डर बेमतलब के होते हैं। तो चलिये जानते है क्या है ऐसे डर के कारण और इलाज। अगर डर लगे तो सबसे पहले क्या करना चाहिए।


डर लगे तो क्या करें?

  • सबसे पहले गहरी और लंबी साँस ले 5 से 10 मिनट तक।
  • सकारात्मक सोचे।
  • डर का सामना करें।
  • आगे का न सोचे।
  • योग या ध्यान करें।
  • व्यस्त रहें।


हमेशा सकारात्मक सोचे :

ऐसा कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है और यह बिलकुल सही भी है। बचपन से ही कुछ चीज़ें हमारे दिमाग में डाल दी जाती हैं जिन से हमें डर लगने लगता है जैसे भूत, चुड़ैल, अंधेरा आदि। उसके बाद हम असफलता, दुर्घटना, कुछ खो जाने जैसी चीज़ों से डरने लगते हैं। लेकिन, आपकी सकारात्मक सोच डर को दूर करने में आपकी मदद कर सकती है। खुद भी सकारात्मक रहे, ऐसे लोगों के साथ रहें जिनकी सोच पॉजिटिव हो। इसके साथ ही सकारात्मक किताबें पढ़ें या फिल्में देखें।


डर का सामना करें :

आप को जिस भी चीज़ या परिस्तिथि से डर लगता है उसका सामना करें। क्योंकि, ऐसा करने से वो डर आपके मन से पूरी तरह से निकल जाएगा।


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आगे का न सोचे :

मनुष्य तभी खुश रह सकता है जब वो आने वाले समय के बारे में नहीं बल्कि अपने वर्तमान के बारे में सोचें। अक्सर लोग अपने भविष्य को लेकर डरते हैं जैसे आगे वो सफल होंगे या नहीं, शादी होगी या नहीं, स्वस्थ रहेंगे या नहीं आदि। इस डर से बाहर निकलने के लिए अवश्य है कि आप अपने भविष्य की फ़िक्र करना छोड़ दें।


योग या ध्यान करें :

डर को दूर करने और खुश रहने का सबसे अच्छा तरीका है योग करना और ध्यान लगाना। इससे आपको अन्य कई लाभ भी होंगे।


खुद पर विश्वास रखें :

अगर आप भगवान और खुद पर विश्वास रखते हैं तो आपको किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं है।


व्यस्त रहें :

अगर आप व्यस्त नहीं हैं या आपके पास खाली समय है, तो आप कई फ़ालतू चीज़ों के बारे में सोचेंगे और कई चीज़ें आपको डराएंगी। इसलिए हमेशा व्यस्त रहने की कोशिश करें।


डर लगने का इलाज

अंधेरे, भूत-प्रेत, ऊंचाई आदि से डर छोटी उम्र में हर बच्चे को होता है। लेकिन, अगर उम्र बढ़ने पर भी यह डर कम न हो तो यह चिंता का कारण हो सकता है। अगर इससे आपका परिवार, आपकी दिनचर्या और जीवन सभी प्रभावित हो रहे हैं तो डॉक्टर से राय लेना आवश्यक है। डर कोई रोग नहीं है लेकिन अगर यह डर अधिक बढ़ जाए तो उसे फोबिया कहा जाता है और इसका इलाज आवश्यक है। फोबिया के उपचार करने के लिए डॉक्टर आपसे आपके लक्षणों के बारे में जानेंगे जैसे घबराहट, दिल धड़कना, शरीर का कांपना, बोलने में समस्या आदि। फोबिया का इलाज दवाइयों और थेरपी की मदद से किया जा सकता है।





1) दवाईयां -

बीटा ब्लॉकर्स (Beta blockers) : बीटा ब्लॉकर्स का प्रयोग डर लगने पर होने वाली परेशानियों से राहत पाने के लिए किया जाता है।


एंटिडिप्रैसेंट्स : इन दवाइयों को भी फोबिया दूर करने के लिए रोगी को दिया जा सकता है ताकि वो अच्छा महसूस करें।


सीडेटिव : यह दवाईयां तनाव के लक्षणों को कम करने में प्रभावी हैं जो फोबिया के रोगी को हो सकता है। लेकिन, डॉक्टर की सलाह के बाद ही इन्हे लेना लाभकारी है।


2) थेरेपी -

फोबिया से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका है थेरेपी। यह थेरेपी भी दो तरह की होती हैं एक संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा (कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी) और दूसरी है डिसेंसिटाइजेशन (एक्सपोज़र थेरेपी)। इसमें संज्ञानात्मक व्यवहारपरक चिकित्सा का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है जिसमें रोगी को किस वजह से डर लगता है, यह जानकर उसका उपचार किया जाता है ताकि वो अपने डर का सामना कर सके। इसके साथ ही उन्हें सकारात्मक रहना भी सिखाया जाता है। डिसेंसिटाइजेशन में रोगी को डर का सामना कैसे करना है यह सिखाया जाता है। यह प्रक्रिया धीमी होती है।


3) आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सा -

आयुर्वेद और होम्योपैथी चिकित्सा भी फोबिया (डर) के लक्षणों को दूर करने में प्रभावी हैं। डर से सबसे सीधा प्रभाव रोगी के दिमाग पर पड़ता है, जिससे वो कई मानसिक बिमारियों का शिकार भी हो सकता है। ऐसे में इन समस्याओं को दूर करने में भी यह दवाईयां प्रभावी हैं। हालाँकि, चिकित्सक या विशेषज्ञ को सभी लक्षणों आदि के बारे में बताने और उनकी सलाह के बाद ही इन दवाइयों का सेवन करें। अपनी मर्जी से इन्हे लेने से बचे।


डर लगने के कारण :

  • डर का कारण जीवन के अनुभव, दिमागी केमिस्ट्री या अनुवांशिक या सभी का मेल हो सकता है।
  • छोटी उम्र में किसी चीज़ से डरना या कोई ऐसा अनुभव होना जिसके कारण आप पूरी उम्र उस चीज़ या अनुभव से भयभीत रहें।
  • यह आनुवंशिक भी हो सकता है जैसे अगर माँ को कॉकरोज से डर लगता है तो हो सकता है कि बच्चा भी उससे डरें।
  • लोगों के डर के बारे में जानने के लिए अभी अधिक अध्ययन किया जाना आवश्यक है क्योंकि इनके कारणों के बारे में सही से जानकारी नहीं है। 




सामान्य डर और फोबिया में अंतर :

डर एक भावनात्‍मक प्रतिक्रिया है जो किसी खतरे या आशंका के कारण हमारे मन में होती है। ये कोई बीमारी नहीं है सामान्‍य बात है।


लेकिन फोबिया, डर का खतरनाक और अगला स्तर है। फोबिया में डर बिना किसी वास्तविक कारण के होने लगता है और इतना ज्यादा होता है कि पीड़ित इसे खत्म करने के लिए अपने आप को नुकसान तक पहुंचा सकता है।


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फोबिया कैसे खत्म करें?

फोबिया के इलाज के लिए कोई एक खास ट्रीटमेंट नहीं होता है. हर मरीज का फोबिया और उसकी स्थिति अलग-अलग होती है. बीएलके हॉस्पिटल के डॉक्टर नीरज बताते हैं कि फोबिया के इलाज के के लिए मनोवैज्ञानिक थेरेपी और मेडिकेशन्स दोनों बेहद जरूरी हैं. Cognitive Behavioural therapy CBT इसके लिए अच्छा इलाज माना जाता है.

फोबिया क्या है और इसका इलाज?

फोबिया एक ऐसी बीमारी है जो डर और भय के साथ जुड़ी होती है। इसमें पीड़ित व्यक्ति को किसी भी चीज, स्थान, परिस्थिति और वस्तु को लेकर डर हो सकता है। फोबिया में अत्याधिक और ओवर रिएक्शन शामिल होता है। जब डर जरूरत से ज्यादा बढ़ जाए तो वह मानसिक विकार का रूप ले लेता है।

फोबिया कैसे होता है?

दुर्भीति या फोबिया (Phobia) एक प्रकार का मनोविकार है जिसमें व्यक्ति को विशेष वस्तुओं, परिस्थितियों या क्रियाओं से डर लगने लगता है। यानि उनकी उपस्थिति में घबराहट होती है जबकि वे चीजें उस वक्त खतरनाक नहीं होती है। यह एक प्रकार की चिन्ता की बीमारी है।

मानसिक डर को कैसे दूर करें?

पैनिक अटैक होने की स्थिति में यह एक सबसे अच्छे तरीकों में से एक है. मेडिटेशन : मेडिटेशन शरीर और उसके आसपास मौजूद माहौल में पूरी तरह से मौजूद होने की गुणवत्ता में सुधार करते है, तनाव को कम कर सकता है और अनिश्चितता या नियंत्रण की कमी की भावनाओं को दूर करने में मदद कर सकता है.