कवि ने मनुष्य को मृत्यु से न डरने का संदेश क्यों दिया है? - kavi ne manushy ko mrtyu se na darane ka sandesh kyon diya hai?

Lesson: 4

(वही मनुष्य है)

1. सम्पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखो:

(क) कवि ने मृत्यु से डरने को क्यों  मना किया है?

उत्तर: कवि ने मृत्यु से डरने को इसलिए मना किया है क्योंकि मनुष्य मरणशील है। उसे एक न एक दिन मरना ही है, तो मृत्यु से डरकर क्या फायदा।

(ख) कवि ने किस तरह की मृत्यु का आह्वान करने को कहा है?

उत्तर: कवि का आह्वान है कि मृत्यु ऐसी होनी चाहिए जिससे मृत्यु के बाद भी सभी उसे याद रखें। अर्थात मनुष्य को जीते जी मनुष्य के हित के लिए कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे मरने के बाद उसके कर्म के कारण उसे सदा याद रखा जाए।

(ग) कवि ने किस स्थिति में जीने-मरने को वृथा कहा है?

उत्तर:  मनुष्य को अपने जीवन काल में दूसरों के हित के लिए कुछ न कुछ कार्य करना ही चाहिए। तभी उस मृत्यु को अच्छी मृत्यु की आख्या दी जाएगी। अगर वह इस प्रकार न जीकर खुद के लिए जीकर मरता है, तो इस स्थिति में जीना और मरना दोनों बेकार है। 

(घ) पशु-पवृत्ति क्या है?

उत्तर: जो अपने आप के लिए जीता है वही पशु प्रवृत्ति है। क्योंकि पशुओं का स्वभाव है कि वह खुद अपने लिए जीता है।

(ङ) सरस्वती किसे बखानती है?

उत्तर: जो दूसरों के लिए जीता और मरता है, ऐसे उदार व्यक्ति को  स्वरस्वती बखानती है।

(च) कवि के अनुसार मनुष्य कहलाने का हक किसको है?

उत्तर: कवि के अनुसार मनुष्य कहलाने का हक उस व्यक्ति को है जो दूसरों के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देता है। तथा वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरता है।

(छ) इसके हाथ विशाल है?

उत्तर: दयालु दीनबंधु के हाथ विशाल है।

(ज) गुप्त जी का जन्म कब और कहांँ हुआ था?

उत्तर: गुप्त जी का जन्म सन 1886 ई. में झांसी जिले के चिरगांँव में हुआ था।

(झ) कवि के मन में राष्ट्र-प्रेम की भावनाएंँ किससे अंकुरित हुई थी?

उत्तर: बचपन में ही बुंदेलखंड में प्रचलित लोक महाकाव्य 'अल्हा-खंड' से उनके मन में राष्ट्र प्रेम और  देशोद्धार की भावनाएंँ अंकुरित हुई थी।

2. सही विकल्प चुनें:

(क) असली मनुष्य होने का हकदार वह है जो-

उत्तर: मनुष्य के लिए मरे।

(ख) दधीचि ने देवताओं की रक्षा हेतु दान किया था-

उत्तर: अस्थि।

(ग) अपनी मृत्यु को निकट देखकर भी कर्ण ने दान स्वरूप दिया-

उत्तर: शरीर-चर्म।

(घ) गुप्ता जी द्वारा रचित महाकाव्य का नाम है-

उत्तर: साकेत।

3. उत्तर लिखो:

(क) मैथिलीशरण गुप्तजी को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?

उत्तर: साहित्य के क्षेत्र में मैथिलीशरण गुप्त जी का अविस्मरणीय योगदान रहा है। आजादी से पहले गुप्तजी ने राष्ट्रीयता की भावना से कई ऐसे कविताएंँ लिखी जिनको पढ़ पढ़नेवालों के मन में देश हित की भावना जागृत हो जाती थी। गुप्तजी सामाजिक कुरीतियों के निराकरण को राष्ट्र जागरण की भूमिका मानते थे। पीड़ित और उपेक्षित नारी के प्रति गुप्ता जी बड़े सहानुभूतिशील थे। एवं इसीलिए उन्होंने उर्मिला, यशोधरा, सीता जैसे नारियों का सटीक चित्रण किया। तथा उनके काव्य में महिलाओं के प्रति उनकी गहरी संवेदनाएंँ देखने को मिलती है। तथा इन्हीं सब कारणों के वजह से मैथिलीशरण गुप्त जी को राष्ट्रकवि कहा जाता है।

(ख) पीड़ित और उपेक्षित नारी के प्रति गुप्त जी का विचार कैसा था?

उत्तर: पीड़ित और उपेक्षित नारी के प्रति गुप्ता जी का विचार सहानुभूतिशील था। उन्होंने पीड़ित और उपेक्षित नारियों का दुख दर्द समझा और काव्य में उन स्त्रियों की दशा का सटीक चित्रण किया। इसका परिचय हमें उर्मिला, यशोधरा, सैरन्ध्री, शकुंतला जैसे स्त्रियों के प्रति उनके दृष्टिकोण से मिलता है।

(ग) गुरुजी के काव्य की विशेषताओं का उल्लेख करो।

उत्तर: मैथिलीशरण गुप्त जी को राष्ट्र कवि कहा जाता है। क्योंकि उनकी काव्य राष्ट्रीयता, विश्व-बंधुत्व, अछूतोद्धार, समाज सुधार आस्तिकता आदि गुणों से पूर्ण है। गुप्तजी ने साकेत नामक महाकाव्य की रचना की तथा यशोधरा, जयद्रथ-वध, काबा और कर्बला, पंचवटी, किसान शकुंतला, कुणाल-गीत, भारत-भारती आदि जैसे प्रसिद्ध रचनाओं का निर्माण किया। उनकी काव्य की  भाषा सरल-सुबोध, प्रांजल और संस्कृत तत्सम शब्द-बहुला है।

(घ) अपने लिए जीने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर: अपने लिए जीने का अभिप्राय उन मनुष्य से है, जो खुद के लिए जीता है। ऐसे मनुष्य को दूसरों से कोई मतलब नहीं होता। उसे तो बस अपनी लाभ की पड़ी रहती है। अतः कवि ने इस प्रकार जीने वाले व्यक्ति को पशु कहा है। क्योंकि पशु ही एक पात्र प्राणी है जो खुद का पेट भरने के लिए अपने आप चलता फिरता है। इसलिए जो अपने लिए जीता है वह मनुष्य के श्रेणी में नहीं आते। वे पशु कहलाते हैं।

(ङ) प्रस्तुत कविता के अनुसार पशु और मनुष्य में क्या अंतर है?

उत्तर: प्रस्तुत कविता के अनुसार पशु और मनुष्य में यह अंतर है कि पशु जो है वह सदा अपने लिए जीता है, उसे दूसरे पशुओं से कोई मदद या सहायता नहीं मिलती। वह अपने आप यहांँ वहांँ घूमकर अपना पेट भरता फिरता है। और दूसरी तरफ मनुष्य खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी कुछ करने का सौभाग्य पाता है। ऐसा करके वह मरने के बाद भी अमर हो जाता है। मनुष्य दूसरों की भलाई के  लिए अपनी जान भी दे सकता है।

(च) समाज में कैसे व्यक्तियों का आदर होता है?

उत्तर: समाज में उस व्यक्ति विशेष का आदर होता है जो, निस्वार्थ भाव से दूसरों का भला करता है। खुद कष्ट उठाकर समाज के हित के लिए अपने को न्योछावर कर देता है। समय पड़ने पर अपनी जान की बाजी भी लगा देता है। ऐसे उदार एवं आदर्श व्यक्ति का ही समाज में आदर होता है।

4. 100 शब्दों के भीतर उत्तर लिखो:

(क) रंतिदेव, दधीचि, शिवि और कर्ण की दानवीरता का वर्णन करो।

उत्तर: इतिहास गवाह है कि हमारे भारत देश में सदियों से दानविवेता की कई गाथा सुनने को मिलती आई है। उनमें रंतिदेव, दधीचि, शिवि और कर्ण द्वारा किया गया दान प्रसिद्ध है। जिन्होंने दूसरों के लिए अपना सब कुछ दान में दे दिया था। नीचे हम उन्हीं दानवीरता का वर्णन निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर चर्चा करेंगे-

(i) रंतिदेव:- कथा के अनुसार भगवान रंतिदेव की परीक्षा ले रहे थे। वह कई दिनों से भूखे थे। जब उनके पास भोजन से भरा हुआ थाली प्राप्त हुआ तो उस भोजन का हिस्सा लेने के लिए गरीब लोग भी उनके पास आ गए। खुद भूख से व्याकुल रंतिदेव को उन गरीबों पर दया आ गई और उन्होंने वह भोजन से भरा हुआ थाली उन्हें दे दिया और खुद भूखे रह गए।

(ii) दधीचि:- वृत्रासुर नामक एक राक्षस था जिसने धरती और स्वर्ग में आतंक मचा रखा था। अतः उसे किसी ऋषि मुनि की हड्डियों से बने ब्रज से ही मारा जा सकता था। इसीलिए वृत्रासुर को मारने के लिए इंद्र को दधीचि मुनि की अस्थियांँ चाहिए थी। इंद्र की प्रार्थना पर दधीचि ने सहर्ष अपनी हड्डियांँ उन्हें ब्रिज बनाने के लिए दे दी और बाद में उसी ब्रज से वृत्रासुर को मारा गया।

(iii) शिवि:- शिवि ने किसी शिकारी के तीर से घायल कबूतर को बचाने के लिए उस शिकारी को कबूतर के भजन का अपना मांँस काटकर दान में दे दिया था।

(iv) कर्ण:- इंद्र ने कर्ण से उनका कवच छीन लेने के लिए एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण किया था। जब करण सूर्य नमन करके लौट रहे थे तब इंद्र ने उसे उसका शरीर कवच मांग लिया। कर्ण को सब कुछ पता होने के बावजूद भी उसने खुशी-खुशी अपना शरीर-च्रम काटकर एवं अपना कवच उतार कर इंद्र को दे दिया था।

(ख)"जो दूसरों के लिए मरता है, वह अमर।" प्रस्तुत कविता के आधार पर  स्पष्ट करो।

उत्तर: कवि कहते हैं कि मनुष्य को जीते जी कुछ ऐसा काम करना चाहिए जिससे मनुष्य का भला हो। ऐसा काम करें कि उसकी मृत्यु के बाद भी उसे याद रखा जाए। और ऐसा तभी हो सकता है जब मनुष्य निस्वार्थ भाव से खुद कष्ट उठाकर समाज के हित के लिए अपना जीवन व्यतीत करें दे। ऐसे लोग अपने कर्मों की देन से मरकर भी अमर हो जाते हैं। ऐसे लोग हमेशा से दूसरों की सेवा में अपना जीवन बिता देते हैं। समय आने पर अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं। तथा कवि का कहना है कि इस प्रकार के लोग ही मनुष्य के श्रेणी में आते हैं। जो मनुष्य के लिए जीता भी है और मरता भी है। वही हमेशा अमर रहता है।

5. सप्रसंग व्याख्या करो:-

(क) विचार लो कि........ जिया न आपके लिए।

उत्तर:-

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आओ हिंदी सीखें चौथे भाग के अंतर्गत मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित कविता 'वही मनुष्य है' से लिया गया है।

प्रसंग: यहांँ कवि का कहना है कि मनुष्य मननशील है। इसलिए मृत्यु से न डरके जीते जी कुछ ऐसा काम करके मरे जिससे समाज का कुछ भला हो सके। 

व्याख्या: कवि हर एक मनुष्य को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम मन में यह बात सोच लो कि अगर तुम्हारी मृत्यु भी हो जाती है तो उस मृत्यु से डरो नहीं, क्योंकि मनुष्य तो मरणशील है। इसलिए अगर मरना ही है तो, इस प्रकार मरो ताकि बाद में सब तुम्हें याद करें। अगर ऐसी अच्छी मृत्यु न हुई तो जीना और मरना व्यर्थ है। अतः कवि का कहना है कि वह व्यक्ति कभी नहीं मरता है जो दूसरों के लिए जीता है। वह व्यक्ति मरकर भी अमर हो जाता है।

(ख) उसी उदार की कथा....... समस्त सृष्टि पूजती।

उत्तर:

संदर्भ: प्रस्तुत पंक्तियांँ हमारी हिंदी पाठ्यपुस्तक आओ हिंदी सीखें चौथा भाग के अंतर्गत मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित कविता 'वही मनुष्य है' से लिया गया है।

प्रसंग: यहाँ उस उदार व्यक्ति के बारे में बात कही गई है जिसे सरस्वती तथा समस्त संसार बखानती तथा पूजती है।

व्याख्या: इन पंक्तियों के जरिए कवि का कहना है कि जो व्यक्ति दूसरों के लिए जीता और मरता है, जिसके लिए कोई अपना या पराया नहीं होता, ऐसे हृदयवान व्यक्ति उदारवादी होते हैं। ऐसे उदार व्यक्ति के उदार गुणों का गुणगान सरस्वती भी करती है। धरती भी सदैव उसकी आभारी रहती है कि उसने इस धरती पर जन्म लिया।  कवि कहते हैं कि ऐसे उदार व्यक्ति के यश हमेशा चारों ओर गूंँजती रहती है। तथा समस्त संसार उस उदार व्यक्ति की पूजा करता है।

Reetesh Das

M.A in HIndi 

मनुष्यता कविता में कवि ने मृत्यु से न डरने का संदेश क्यों दिया है?

This is Expert Verified Answer ➲ 'मनुष्यता' कवि ने मनुष्य को मृत्यु से ना डरने का संदेश इसलिए दिया है क्योंकि कवि मैथिलीशरण गुप्त का मानना है कि जब इस शरीर को नष्ट होना ही है अर्थात यह शरीर नश्वर है, और आत्मा अमर है, तब मृत्यु से डरना क्यों। इसलिए शरीर की नश्वरता को जानते हुए मृत्यु से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।

कवि ने मनुष्य को मृत्यु से भयभीत न होने की प्रेरणा क्यों दी है कौन से व्यक्ति मरकर भी अमर हो जाते हैं?

'अपने लिए जीने वाला कभी नहीं मरता' कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि जो व्यक्ति परोपकार करते हैं, दूसरों की भलाई में लगे रहते हैं तथा अपने-पराए का भेद किए बिना दूसरों के काम आते हैं, ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों के माध्यम से अमर हो जाते हैं। ऐसे लोग मरकर भी दूसरों की चर्चा में रहते हैं

मनुष्य को मृत्यु से क्यों नहीं डरना चाहिए Class 10?

Answer: प्रत्येक मनुष्य समयानुसार अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है क्योंकि जीवन नश्वर है। इसलिए मृत्यु से डरना नहीं चाहिए बल्कि जीवन में ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे उसे बाद में भी याद रखा जाए। उसकी मृत्यु व्यर्थ न जाए।

मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि ने क्या संदेश देना चाहता है?

कवि इस कविता द्वारा मानवता, प्रेम, एकता, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, सदभावना और उदारता का संदेश देना चाहता है। मनुष्य को नि:स्वार्थ जीवन जीना चाहिए। वर्गवाद, अलगाव को दूर करके विश्व बंधुत्व की भावना को बढ़ाना चाहिए।