प्रकृति-चित्रण अभ्यासबोध प्रश्न Show प्रकृति-चित्रण अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. धरती अपनी प्रसन्नता किस प्रकार प्रकट कर रही है? प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रकृति-चित्रण लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रकृति-चित्रण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. (आ) पर बंजर ……….. पैसा उगला। प्रश्न 3. प्रश्न 4. कहने का भाव यह है कि दोष पृथ्वी का नहीं होता है, दोष तो हमारी अपनी भावना का होता है। यदि हमारी भावना शुद्ध, पवित्र एवं परोपकारी है तो उससे जहाँ हमें आनन्द और शान्ति मिलेगी वहीं हम समाज तथा देश का भी भला कर सकेंगे। प्रकृति-चित्रण काव्य-सौन्दर्य प्रश्न 1.
उत्तर:
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) इन पंक्तियों में कवि ने यह दिखाया है कि प्रकृति मानव के सुख में तुहिन कणों को बिखरा कर हँसती है तो वही प्रकृति दु:ख के समय आत्मीय भाव से अपने उपादानों द्वारा दुःख भाव को भी व्यक्त करती रहती है। प्रश्न 5.
पंचवटी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या चारु चन्द्र की चंचल
किरणें कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
क्या ही स्वच्छ चांदनी है यह कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
है बिखेर देती वसुंधरा कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : विशेष :
सरल तरल जिन तुहिन-कणों से कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
गोदावरी नदी का तट यह कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : आज भी वृक्षों के पत्ते वायु का स्पर्श पाकर नाच रहे हैं तथा वहाँ प्रसन्न मन के समान पुष्प अपनी सुगन्ध बिखेर रहे हैं। यहाँ पर चन्द्रमा और नक्षत्रगण ललककर तथा लालच में भरकर प्रसन्न हो रहे हैं। विशेष :
आँखों के आगे हरियाली कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : इस वन प्रदेश का एक-एक कण सरस एवं पवित्र है। वे मन में सोचते हैं कि जितनी पवित्रता एवं सरसता इन ओस के कणों में निहित है क्या उतनी ही पवित्रता एवं सरसता नगर में रहने वाले नागरिकों में देखने को मिलती है? अर्थात् नहीं। क्या नागरिकों के हृदय में भी प्रकृति के सदृश सुन्दर एवं पवित्र भावनाएँ पाई जाती हैं? अर्थात् नहीं पाई जाती हैं। कहने का भाव यह है कि कवि चाहता है कि मानव का मन भी प्रकृति के समान पवित्र होना चाहिए। विशेष :
आः धरती कितना देती है! संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोए थे, कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
पर बंजर धरती में एक न अंकुर फूटा, कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
अर्धशती हहराती निकल गई है तब से! कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
मैंने कौतुहल वश, आँगन के कोने की कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
फिर एक दिन, जब मैं संध्या को आँगन में कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
छाता कहूँ कि विजय-पताकाएँ जीवन की, कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
निर्मिमेष, क्षण भर, मैं उनको रहा देखता कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
हरे, भरे टैंग गए कई मखमली चंदोवे! कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
ओह, समय पर उनमें कितनी फलियाँ टूटी! कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
झुंड-झुंड झिलमिलकर कचचिया तारों-सी! कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
यह धरती कितना देती है! धरती माता कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ। कठिन शब्दार्थ : सन्दर्भ : प्रसंग : व्याख्या
: विशेष :
MP Board Class 9th Hindi Solutionsमैं अबोध था मैंने गलत बीज बोये थे कवि ने ऐसा क्यों कहा?पन्त ने बचपन में धनवान होने की लालसा में पैसे बोये थे। बहुत समय तक प्रतीक्षा करने पर उनमें से एक अंकुर भी नहीं फूटा तो कवि ने दोष धरती को दिया और उसको बंध्या (बंजर) मान लिया। जब बड़े होने पर उसने सेम के बीज बोये थे। उन पर अगणित फलियाँ उत्पन्न हुईं तो कवि ने समझा उसने गलत बीज बोये थे।
कवि ने पैसों को क्यों बोया था *?उत्तर: पैसा बोने के पीछे कवि का यह स्वार्थ था कि उससे सुन्दर-सुन्दर पेड़ उगेंगे और फिर वे पेड़ बड़े होकर कलदार रुपयों की फसल उगायेंगे जिन्हें बेचकर कवि एक बड़ा सेठ बन जाएगा।
कवि ने धरती के बारे में क्या कहा है?Answer: कवि ने धरती को हमारी मातृभूमि कहा है!
पैसे बोने का क्या परिणाम हुआ?इस कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि मनुष्य धन के लोभ में पड़कर उच्च मानवीय गुणों को भूल चुका है। कवि ने पैसे बोने की बात से समाज के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है। कवि इस दृष्टिकोण के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहता है कि पैसा स्वार्थ और लोभ का प्रतीक है। इससे समाज और राष्ट्र का कल्याण संभव नहीं है।
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