कन्यादान कविता में चेहरे पर मत रीझना में क्या निहित है? - kanyaadaan kavita mein chehare par mat reejhana mein kya nihit hai?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
माँ-ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
अवतरण में निहित भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।


कवि ने अपनी लड़की को अपने व्यवहार के प्रति सजग रहने की शिक्षा दी है और उससे कहा है कि वह लड़की की तरह रहे पर लडकी की तरह कमजोर और असहायी न बने।

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‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?


माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा है कि वह भी अनेक अन्य बहुओं की तरह किसी की आग में अपना जीवन न खो दे। उसे किसी भी अवस्था में कमजोर नहीं बनना चाहिए। उसे कष्ट देने की कोशिश करने वालों के सामने उठ कर खड़ा हो जाना चाहिए। कोमलता नारी का शाश्वत गुण है पर आज की परिस्थितियों में उसे कठोरता का पाठ अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि किसी प्रकार की कठिनाई आने की स्थिति में उसका सामना कर सके।

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आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?


माँ के इन शब्दों में लाक्षणिकता का गुण विद्‌यभाव है। नारी में ही कोमलता, सुंदरता, शालीनता, सहनशक्ति, माधुर्य, ममता आदि गुण अधिकता से होते हैं। ये गुण ही परिवार को बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। माँ ने इसीलिए कहा है कि उसका लड़की होना आवश्यक है। उसमें आज की सामाजिक स्थितियों का सामना करने का साहस होना चाहिए। उसमें सहजता सजगता और सचेतता के गुण होने चाहिए। उसे दव्यू और डरपोक नहीं होना चाहिए। इसलिए उसे लड़की जैसी दिखाई नहीं देना चाहिए ताकि कोई सरलता उसे डरा-धमका न सके।

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‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है’-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?

             मैं लौटुंगी नहीं
मै एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है
अब मैं लौटूँगी नहीं
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ जो पहले थी
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूँगी नहीं


इस कविता का ‘कन्यादान’ कविता से सीधा संबंध तो नहीं है पर स्त्री की जागरुकता और सजगता की दृष्टि से साम्य अवश्य है। स्त्री कहती है एक युगों से चली आने वाली सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर उसने घर से बाहर कदम निकालने सीख लिए हैं। वह उन कष्टों और पीड़ाओं से अब परिचित है जिसे आततायियों ने उसके बच्चों, पति और भाइयों को दी थी। उसके बच्चों को दहकती आग में जला दिया गया था। उसने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं। शृंगार के लिए पहने गहने उतार दिए हैं। वह जाग चुकी है। उसने अपने देश को आजाद कराने की राह देख ली है। वह अपना सब कुछ छोड़ कर आजादी की राह पर आगे बढ़ गई है। वह वापिस अपने घर नहीं लौटना चाहती। वह तो आजादी प्राप्त करने के लिए अड़ी हुई है। इस पंक्ति से स्त्री का क्रोध और मानसिक दृढ्‌ता का मनोभाव प्रकट हुआ है। उसने ज्ञान की प्राप्ति से ही ऐसा करना सीखा है।

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पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छबि आपके सामने उभर कर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।


अपने माता-पिता के संस्कारों में बंधी भोली-भाली लड़की उसी रास्ते पर चलना चाहती है जो उसे बचपन से युवावस्था तक दिखाया गया है। उसने माता-पिता की छत्र-छाया में रहते हुए जीवन के दुःखों का सामना नहीं किया। वह नहीं जानती कि आज का समाज कितना बदल गया हैं। उसे दूसरों के द्वारा दी गई पीड़ाओं का कोई अहसास नहीं है। वह तो अज्ञान और अपनी छोटी के धुंधले प्रकाश में जीवन की कुछ तुकों और कुछ लयबद्‌ध पंक्तियों को पढ़ने वाली पाठिका है जो चुपचाप उन्हीं को पड़ती है।

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‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं’
इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?


कवि ने इन पंक्तियों में समाज में विवाहिता र्स्त्रो की बस् के रूप में स्थिति की ओर संकेत किया है। वर्तमान में हमारे भारतीय समाज में दहेज प्रथा और अनैतिक संबंधों की आग बहुओं को बहुत तेजी से जला रही है। लोग दहेज के नाम पर पुत्रवधू के पिता के घर को खाली करके भी चैन नहीं पाते। वे खुले मुँह से धन माँगते हैं और धन न मिलने पर बहू से बुरा व्यवहार करते हैं, उसे मारते-पीटते हैं और अनेक बार लोभ के दैत्य के चंगुल में आ कर उसे आग में धकेल देते हैं। कवियों ने समाज में नारी की इसी स्थिति की ओर संकेत किया है जो निश्चित रूप से अति दुःखदायी है और शोचनीय है। कितना बड़ा आश्चर्य है कि वह आग कभी उस दहेज लोभियों .के घर में उनकी बेटियों को नहीं जलाती। वह सदा बहुओं को ही क्यों जलाती है?

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Solution : अधिकांशतः स्त्रियाँ अपनी सुन्दरता का मोह में फँस जाती है जिसके कारण उनको प्रशंसा के बन्धन में बँधकर, कमजोर बनकर रहना पड़ता है जिसके कारण समाज के शोषण का शिकार बनती है। इसे ही अपना सर्वस्व मान घर की चार - दीवारी में ही सिमित रह जाती है। परम्पराओं के निर्वाह तक सिमित रहना ही जीवन की सार्थकता समझ ली जाती है - और वे अपने वास्तविक एवं आंतरिक गुणों से अनभिज्ञ रहती है।

कन्यादान कविता में चेहरे पर मत भेजना में क्या नियत है?

➲ 'अपने चेहरे पर मत रीझना' का भाव सौंदर्य यह है कि कन्यादान कविता में कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि माँ अपनी बेटी को अपने व्यवहार के प्रति सजग रहने रहने की शिक्षा दे रही है। माँ बेटी के विवाह के समय उसका कन्यादान करते समय उससे कह रही है कि ससुराल में जाकर वह अपनी सुंदरता पर रीझे नहीं।

मां ने बेटी को अपने चेहरे पर रीझने के लिए मना क्यों किया?

प्रश्न (क)- माँ ने अपनी बेटी को चेहरे पर रीझने से क्यों मना किया ? उत्तर: माँ ने लड़की से स्वयं पर रीझने से इसलिए मना किया ताकि वह अपने रूप सौन्दर्य में खोकर अपने कर्तव्य को न भूल जाए।

कन्यादान कविता के माध्यम से कवि ने क्या भाव व्यक्त किए हैं?

व्याख्या- कवि कहता है कि माँ ने अपना जीवन जीते हुए जिन दुःखों को भोगा था; सहा था उसे अपनी लड़की का विवाह करते हुए कन्यादान के समय वह सब समझाना और उसे इसकी जानकारी देना बहुत अधिक आवश्यक था; सच्चा था। उसकी बेटी ही तो उसकी अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सारे सुख-दुःख वह अपनी बेटी के साथ ही तो बांटती थी।

कन्यादान कविता का संदेश क्या है?

' कन्यादान ' कविता में स्त्री को उसके परम्परागत रूप से हटकर अपने लिए कार्य करने तथा अपने अधिकारों को पहचानने का संदेश दिया गया है। मां के माध्यम से स्त्री को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि उसे अपने रूप पर मोहित होने की तुलना में अपने अधिकारों को जानने का प्रयास करना चाहिए।