क्या 2 महीने में बच्चे को ऊपर बैठाना बुरा है? - kya 2 maheene mein bachche ko oopar baithaana bura hai?

भारतीय नवजात शिशु में जो Male बच्चे का weight 2.8 – 3.2 kg तक Normal weight रहता है वही female का 2.7- 3.1 kg का Weight रहता है। माँ का weight अच्छा होने से बच्चे का Weight भी अच्छा होता है। जो बच्चे 3.1 , 3.2 kg के बच्चे होते है उनको Healthy baby माना जाता है।

बच्चे के जन्म के बाद बच्चे के वजन का क्या होता है?

  • बच्चे पैदा होने के 5 से 7 दिन में बच्चे का वजन 5-7% कम होता है।
  • बच्चे का 7-10 दिन में फिरसे पहले जैसे , जन्म के weight जितना हो जाता है।
  • जिन बच्चो का वजन जन्म के 5 से 7 दिन में 10 % से ऊपर कम हुआ है तो यह एक बुरा संकेत है।

कैसे पता करें कि आपका बच्चा अच्छी तरह से और स्वस्थ बढ़ रहा है?

  • जिन बच्चो का वजन 2.5 kg से कम है उसको Low birth weight कहा जाता है।
  • जिन बच्चो का वजन 1 .5 kg से कम है उसको Very Low birth weight कहा जाता है।
  • जिन बच्चो का वजन 1 kg से कम है उसको Extremely Low birth weight कहा जाता है।
  • यनेकी जिन बच्चो का वजन कम रहता है उतने ही उनको problems ज्यादा रहते है।

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बच्चो का weight बोहोत कम होने से क्या प्रोब्लेम्स होती है?

  • Very Low birth weight और Extremely Low birth weight वाले बच्चो को NICU में भर्ती करना ही पड़ता है।
  • उनको NICU में 15 दिन से 2 महीने तक की care लगती ही है।
  • उनको हर एक body organs के problem आते ही है।
  • उनका वजन भी पहले ज्यादा कम होता है और 10 दिन के बाद धीरे धीरे वजन बढ़ना शुरू हो जाता है।

बच्चो का वजन कम क्यों होता है?

  • जब बच्चा पैदा होता है , तब बच्चे के body fluids ज्यादा होते है। और ये body fluids जन्म के थोड़े दिन बाद निकल जाते है इसलिए बजन कम होता है।
  • बच्चे के वजन के लिए treatment सिर्फ breast feeding है पर जब 10 % weight loss होता है तब lactation consultant के मदत लेना बोहोत जरुरी होता है। बच्चे का feeding pattern देखना जरुरी होता है। बच्चे का attachment देखना जरुरी होता है।
  • जिन बच्चो का वजन बोहोत ही कम होता है तो उनको NICU की जरुरत पड़ती है।

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क्या 2 महीने में बच्चे को ऊपर बैठाना बुरा है? - kya 2 maheene mein bachche ko oopar baithaana bura hai?

Dr. Pradeep Suryawanshi

Neonatologist
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Sangram Shinde

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Vaishali Aitawade

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भारत में नवजात मौतों के प्रमुख कारण प्री-मेच्योरिटी / प्रीटरम (35 प्रतिशत) हैं; नवजात संक्रमण (33 प्रतिशत); इंट्रा-पार्टम संबंधी जटिलताएं / जन्म संबंधी ऐस्फिक्सीअ (20 प्रतिशत); और जन्मजात विकृतियां (congenital malformations) (9 प्रतिशत)। हालांकि पहले से के मुकाबले इन की दरों में गिरावट आई है, लेकिन अभी भी काफी गंभीर है। ये अधिकांश भारत के उन कुछ हिस्सों में ज्यादा हैं जहाँ अभी भी गैर-संस्थागत प्रसवों होते हैं, इसलिए यदि कोई बच्चा किसी भी आपातकालीन स्थिति में पैदा हो तो ऐसे में एक घंटे का गोल्डन टाइम आने – जाने में चला जाता है। ऐसे में फिर उस बच्चे को बचाना काफी मुश्किल हो जाता है। यह अपने आप में एक पूरा विषय है, आज हम इस तरह के उन सभी सामान्य स्थितियाँ जो बच्चों के जन्म को किसी रूप में प्रभावित करते हैं को समझने की कोशिश करेंगे। हम इन्हें रोग नहीं बता रहे हैं लेकिन ये रोग के कारण जरूर बन रहे हैं।

  1. पेट की गड़बड़ी – एक ऐसी स्थिति जब पेट अनुपात से ज्यादा बाहर लटक रहा हो। कब्ज का बने रहना इसका एक लक्षण हो सकता है। बच्चे का पेट छूने में बहुत हार्ड हो। इसका मतलब गैस हो सकता है। लेकिन अगर ये स्थिति बनी रहती है तो यह आंतों के विकार का लक्षण हो सकता है। कोलिक (Colic) के कारण पेट में दर्द भी हो सकता है। रात में ज्यादातर रोने वाले बच्चे या तो कोलिक (Colic) या सांस लेने में तकलीफ से पीड़ित होते हैं।
  2. जन्म के दौरान की चोटें – लंबे समय तक चले प्रसव के मामलों में शिशु को चोट लगने की संभावना रहती है। आमतौर पर किसी एक कंधों में। ऐसा डिलीवरी के दौरान खींचने के कारण होता है। यहां हो सकता है – क्लाविक्ले क्लाविक्ल
  • ब्रोकन क्लाविक्ल – जिसे तब उपचार के लिए स्थिर किया जाता है। साइट पर एक छोटी सी गांठ अच्छी चिकित्सा को दर्शाता है।
  • यूनिलैटरल शोल्डर वीकनेस – जुड़वां बच्चों में सबसे आम है। मांसपेशियों और नर्व स्टिम्युलेटर्स के माध्यम से यह बहुत जल्द ही ठीक हो सकता है।

घायल बच्चे की उचित देखभाल का अभ्यास करने की आवश्यकता है ताकि वे ठीक हो सकें।

  1. डायपर रैश – बेहद सामान्य। अपने से या नारियल का तेल लगाने से ठीक हो जाता है। बच्चे को सूखा और साफ रखें।
  2. डायरिया – बहुत आम। अपने से ठीक हो सकता है। 6 महीने से ऊपर के शिशुओं में चीनी, नमक और जिंक पानी में मिलकर दें। ताकि बच्चे को हाइड्रेटेड रखा जा सके।
  3. पीलिया – एक महत्वपूर्ण लक्षण है जो बिल्कुल सामान्य हो सकता है या फिर जटिलताओं भरा हो सकता है। रक्त में बिलीरुबिन की अधिकता के कारण पीलिया होता है। यह लिवर के विकास में देरी के कारण होता है। इससे नर्व सिस्टम या मस्तिष्क को क्षति पहुँच सकता है। इसके लक्षण चेहरे और फिर पूरे शरीर और आंखों पर भी दिखाई देने लगते हैं। अंतर्निहित स्थितियां फेनिलकेटोनुरिया और एबीओ असंगति हो सकती हैं। ब्रेस्ट फीडिंग के लिहाज से अच्छे पोषण के साथ अल्ट्रा वॉयलेट लाइट ट्रीटमेंट में दिया जाता है।
  4. थकान और थकावट – नवजात को आमतौर पर दिन में 12-18 घंटे चाहिए। लेकिन अगर वे हर समय नींद में रहते हों और भोजन करने के बाद थक जाते हों, तो इसका मतलब गंभीर बीमारी हो सकता है।
  5. सांस लेने में तकलीफ – ज्यादातर शिशुओं को सांस लेने की सामान्य क्रिया में थोड़ा समय लगता है, लेकिन अगर साँस कम होती है, तो तेज़ गति के साथ-साथ कंधे की खराबी या कंधे की खराबी बढ़ जाती है, नाक का फड़कना मतलब अस्थमा या इस तरह के श्वसन तंत्र से संबंधित गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
  6. खांसी गले की सफाई का एक प्राकृतिक तरीका है, लेकिन यदि यह लक्षण भोजन के दौरान कभी-कभी गैगिंग के साथ रहता है, तो फेफड़े और पाचन तंत्र के में विकार का संकेत हो सकता है।
  7. चिड़चिड़ापन – अगर कोई बच्चा चिड़चिड़ा है और बिना किसी कारण के रोता है तो यह लगभग सभी बीमारियों में मौजूद एक लक्षण है।
  8. फोरसेप मार्क – चेहरे या सिर पर लाल निशान जो अंततः जन्म के एक महीने के साथ गायब हो जाते हैं। इस प्रकार के प्रसवों पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है और इसके बजाय एक वैक्यूम का उपयोग किया जाता है जो बच्चे के लिए कोई जोखिम को कम करता है।
  9. ब्लू बेबीज़ – ठंड की वजह से हो सकता है, लेकिन अगर स्थिति कान और नाखूनों में बदलाव के साथ बनी रहती है, तो यह दिल की खराबी का संकेत है। यदि बच्चे को सांस लेने और दूध पिलाना में कठिनाई होती है तो तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता हो सकती है।

यदि इनमें से कोई भी स्थिति 2-3 दिनों से अधिक समय तक बनी रहे तो चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए।

यहाँ हमने शिशु में होने वाले सभी परेशानियों को कवर करने का प्रयास किया है। इनमें से ज्यादातर हल्के होते हैं और समय के साथ ठीक हो जाते हैं, इनके बारे में जानना महत्वपूर्ण है, वे कैसे प्रकट होते हैं, कब किसी चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है। इन सब के बारे में जानना इनको ठीक करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

2 महीने के बच्चे क्या क्या कर सकते हैं?

2 महीने के बच्चे के लिए कितना दूध आवश्यक है? शुरुआती महीनों में बच्चे का पाचन तंत्र मजबूत नहीं होता है, इसलिए उसे सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए। वहीं, कुछ परिस्थितियों में शिशु को फॉर्मूला दूध देना जरूरी हो जाता है।

छोटे बच्चे कौन से महीने में बैठना सकते हैं?

श‍िश‍ु आमतौर पर 5 से 7 महीने में बैठना शुरू करते हैं। वहीं जब बच्‍चे 9 महीने के हो जाते हैं तो वो ब‍िना सपोर्ट के कुछ समय के ल‍िए बैठ पाते हैं। हालांक इसका ये मतलब नहीं है क‍ि बच्‍चे को आप खुद से बैठने दें, उसे सपोर्ट की जरूरत होगी। अगर बच्‍चा बिना सपोर्ट के बैठने की कोश‍िश करेगा तो उसे स‍िर पर चोट भी लग सकती है।

बच्चे कितने महीने में पलटी मारते हैं?

आपका शिशु शायद छह या सात महीने की उम्र में पलटना शुरु करेगा। इस समय तक उसकी गर्दन और बाजुओं की मांसपेशियां मजबूत हो चुकी होंगी। कुछ शिशु तीन महीने की उम्र में ही पलट लेते हैं, वहीं कुछ अन्य शिशुओं को ऐसा करने में सात महीने से भी अधिक समय लग जाता है।

2 महीने के बच्चे को कैसे सुलाएं?

हर रात अलग-अलग समय पर बच्चे को सुलाने की बजाए सोने का एक टाइम फिक्स कर लें और उस दौरान बच्चे को लोरी सुनाएं, गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर बच्चे का बदन पोछें, कंधे पर लेकर इधर-उधर घुमाएं, आप इनमें से कोई भी ट्रिक आजमा सकते हैं लेकिन इसे हर दिन एक ही समय पर रिपीट करें ताकि धीरे-धीरे बच्चे को भी यह बात समझ में आ जाए कि अब ...