कबीर एक समाज सुधारक थे कभी नहीं इस कथन की पुष्टि कीजिये? - kabeer ek samaaj sudhaarak the kabhee nahin is kathan kee pushti keejiye?

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Published in Journal

Year: Jan, 2019
Volume: 16 / Issue: 1
Pages: 690 - 693 (4)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/89144
Published On: Jan, 2019

Article Details

कबीर समाज सुधारक के रूप में | Original Article


मुख्यपृष्ठनोट्सकबीर एक समाज सुधारक इन हिन्दी( kabir ek samaj sudharak in hindi)

कबीर की समाज सुधार की भावना

कबीर महान समाज सुधारक थे। उनके समकालीन समाज में अनेक अंधविश्वासों, आडम्बरों, कुरीतियों एवं विभिन्न धर्मों का बोलबाला था। कबीर ने इन सब का विरोध करते हुए समाज को एक नवीन दिशा देने का पूर्ण प्रयास किया। उन्होंने जाती-पांति के भेदभाव को दूर करते हुए शोषित जनों के उद्धार का प्रयत्न किया तथा हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया उनका मत था।

जाति-पांति पूछै नहीं कोई।
हरि को भजै सो हरि का होई।।

    कबीर ने विभिन्न क्षेत्रों में समाज सुधार का प्रयास किया। उनके द्वारा किए गए इस प्रयास को निम्न शिर्षकों में समझाया जा सकता है:

१. मूर्ति पूजा का विरोध :-

कबीर नहीं समाज में मूर्ति पूजा का डटकर विरोध किया वह सामान्य जनता को समझाते हुए कहते हैं की मूर्ति पूजा से भगवान नहीं मिलते हैं इससे तो अच्छा है कि आप घर की चक्की को ही पूजा करें क्योंकि चक्की हमें खाने भर के लिए अनाज पीस कर दे देती है।

पाहन पूजैं हरि मिलैं तौ मैं पूजूं पहार।
घर की चाकी कोई ना पूजै पीस खाय संसार।

२.जीव हिंसा का विरोध

कबीर ने धर्म के नाम पर व्यक्त हिंसा का विरोध किया। हिंदुओं में शाक्तो और मुसलमानों में कुर्बानी देने वालों को उन्होंने निर्भीकता से फटकारा और कहा कि दिन में रोजा रखने वाले रात को गाय काटते हैं।इस कार्य से भला खुदा कैसे प्रसन्न हो सकता है।

दिन भर रोजा रखत है रात हनन है गाय।
यह तो खून वह बंदगी कैसी खुशी खुदा है।।
बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल।
जो नर बकरी खात है ताको कौन हवाल।।

३. राम रहीम की एकता का प्रतिपादन:-

कभी चाहते थे कि हिंदू मुसलमान प्रेम एवं भाईचारे की भावना से एक साथ मिल कर रहें। उन्होंने राम और रहीम की एकता स्थापित करते हुए बताया कि ईश्वर दो नहीं हो सकते। यह तो लोगों का भ्रम है जो खुदा को परमात्मा से अलग मानते हैं-

दुई जगदीस कहां ते आया कहु कौने भरमाया।

 ४. जाति-पाति तथा छुआछूत का विरोध

कबीर भक्त और कभी बात में है समाज सुधारक पहले हैं। उनकी कविता का उद्देश्य जनता को उपदेश देना और उसे सही रास्ता दिखाना है। उन्होंने जो गलत समझा उसका निर्भीकता से खंडन किया। अनुभूति की सच्चाई और अभिव्यक्ति की ईमानदारी कबीर की सबसे बड़ी विशेषता है। कबीर ने समाज में व्याप्त जाति प्रथा छुआछूत एवं ऊंच-नीच की भावना पर प्रहार करते हुए कहा कि जन्म के आधार पर कोई ऊंचा नहीं होता ऊंचा हुआ है जिस के कर्म अच्छे हैं

ऊंचे कुल का जनमिया करनी ऊंच न होय।
सुबरन कलस सुरा भरा साधू निंदत सोय।।

५. हिंदू पाखंड का खंडन

कबीर ने हिंदू पाखंड साधुओं एवं अंधविश्वासी जैसे हिंदुओं पर फटकारा। वे कहते थे की माला फेरने से परमात्मा या ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं ईश्वर को अगर प्राप्त करना है तो मन की सुधि से ईश्वर प्रश्न होता है बल्कि हाथ में माला फेरने से और मुंह से ईश्वर का नाम जपते रहने से परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती। उसके लिए मन भी स्थिर होना आवश्यक है। वे इस पर कहते हैं

माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माहिं।
मनुवा तो चहुँदिसि फिरै, यह ते सुमिरन नाहिं।।

माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर।
कर का मनका डारि कै मन का मनका फेर।।

६. मुस्लिम प्रखंड का खंडन

कबीर सिर्फ हिंदुओं पर ही नहीं बल्कि मुसलमानों को भी पाखंडी कहा। मुसलमान दिन भर रोजा रखकर रात को यादी गौ हत्या करके ईश्वर को प्रसन्न करना चाहे तो यह नीरा भ्रम है। ईश्वर इस से प्रसन्न होने वाला नहीं है। वे समाज में व्याप्त बुराइयों के

कटु आलोचक थे किंतु उनकी आलोचना सुधार भावना से प्रेरित था वे मुल्ला जो अजान के वक्त जोर-जोर से माइक में अल्लाह का नाम लेते हैं उन पर भी वे कड़ी फटकार लगाते हुए कहा

कंकर पत्थर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय

७.तीर्थाटन का विरोध

कबीर ने हिंदू तथा मुसलमान जो तीर्थ यात्रा या भगवान की प्राप्ति के लिए यहां वहां भटकते हैं उन पर भी विरोध किया और कहा कि

गंगा नहाए कहो को नर तरिंगे
मछरी न‌ तरी जाको पानी में घर है।

८. संप्रदायिकता का विरोध

कबीर नहीं हिंदू और मुसलमान दोनों को ही एक समान माना है फिर चाहती थी कि हिंदू मुसलमानों में भाईचारे की भावना उत्पन्न हो। लेकिन वे आपस में ही लड़ मरते थे इस पर भी उन्होंने कहा

हिंदू कहे मोहे राम पियारा और तुरक रहमान।
आपस में दोऊ लरि मुए मरम न काहू जाना।।

 निष्कर्ष

कबीर नैतिक मूल्यों को लोगों के अंदर से बाहर निकालना चाहते थे कबीर ऐसे संत थे जो जनता के सच्चे पथ प्रदर्शक कहे जा सकते हैं। उन्होंने व्यक्ति के सुधार पर इसलिए बल दिया क्योंकि व्यक्तियों से ही समाज बनता है वे चाहते थे कि हिंदू और मुसलमान में जो विडंबना है उसे खत्म कर सके उन दोनों में भाईचारे की भावना उत्पन्न कर सके और वैसे साधु या ढोंगी और अंधविश्वासों को भी समाप्त करना चाहते थे कबीर को समाज सुधारक के रूप में आज भी याद किया जाता है।

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कबीर एक समाज सुधारक थे कवि नहीं इस कथन को पुष्टि कीजिए?

कबीर दास समाज सुधारक के साथ ही हिंदी साहित्य के एक महान समाज कवि थे । उन्होंने अनोखा सत्य के माध्यम से समाज का मार्गदर्शन तथा कल्याण किया। जिससे मानव कुसंगति, छल कपट, निंदा, अंहकार, जाति भेदभाव, धार्मिक पाखंड आदि को छोड़कर एक सच्चा मानव बल सकता है। उन्होंने समाज में चल रहे अंधविश्वासों, रूढ़ियों पर करारा प्रहार किया।

कबीर दास के समाज सुधारक क्यों कहा जाता है?

कबीर को केवल दार्शनिक, निर्गुण ब्रह्म के प्रतिपादक, समाज सुधारक, हिन्दू मुस्लिम एकता और समन्वय के पुरोधा तथा एक संत के रूप में देखना कबीर के साथ अन्याय करना होगा । कबीर का मूल्यांकन उन “मूल्यों” के आधार पर करना चाहिए जिन्हें विकसित और पल्लवित करने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया ।

कबीर एक समाज सुधारक इस विषय पर 100 शब्दों का एक लेख लिखिए?

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना भी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें बहुत सहयोग किया। कबीर पंथ नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।