प्रश्न; समाज से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएं बताइये। Show अथवा" समाज का अर्थ स्पष्ट करते हुए, समाज को परिभाषित कीजिए। अथवा" समाज के कोई पाँच लक्षण लिखिए। उत्तर-- Samaj ka arth paribhasha or visheshta;मानव एक सामाजिक प्राणी हैं। समाज व सामाजिक जीवन मानव का स्वभाव हैं। इस प्रकार समाज मानव के साथ-साथ चलता हैं मानव से ही समाज हैं। अतः समाज मनुष्य मे निहित हैं मानव
से ही समाज हैं। अपनी आवश्यकताओं को लेकर मनुष्य ने समाज को कही बाहर से नही बुलाया हैं। इस तरह से मनुष्य की यदि कोई परिभाषा मनुष्य के रूप मे कि जाती है तो यह उसके मानव-समाज से पृथक् नही हो सकती। उसके सामाजिक जीवन और उससे उत्पन्न उसकी सांस्कृतिक व्यवस्था से पृथक् से नही हो सकती। समाज का अर्थ (samaj kya hai)समाजशास्त्र मे समाज का अर्थ एक विशेष अर्थ मे लिया जाता हैं। समाजशास्त्र मे व्यक्तियों के मध्य पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों के व्यवस्थित स्वरूप को 'समाज' कहते हैं। समाजशास्त्र मे समाज से आशय, व्यक्तियों के एक समूह से नही, वरन् उनके बीच संबंधों की व्यवस्था से हैं। समाजशास्त्र मे समाज को सामाजिक संबंधों का जाल कहा जाता हैं। व्यक्ति और व्यक्तियों के बीच पाए जाने वाले अनेक संबंध होते है जो एक समाज का निर्माण करते हैं। समाज मे मानव व्यवहार व संबंधों के नियंत्रण की व्यवस्था होती है जो समाज मे संगठन व उपेक्षित स्थरिता प्रदान करने की दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखती है। समाज मे नियंत्रण के यथा आवश्यक औपचारिक एवं अनौपचारिक साधन होते है जिनके पीछे समाज की शक्ति व सहमति होती है। ये नियंत्रण के साधन विभिन्न स्तरों व क्षेत्रों मे व्यक्ति व व्यक्ति, व्यक्ति व समूह तथा समूह एवं समूह के संबंध को नियंत्रित व निर्देशित करते हैं। समाज की परिभाषा (samaj ki paribhasha)गिडिंग्स के अनुसार," समाज स्वयं संघ है वह एक संगठन और व्यवहारों का योग है, जिसमे सहयोग देने वाले एक-दूसरे से सम्बंधित होते हैं।" हेनकीन्स के अनुसार," हम अपने अभिप्राय के लिए समाज की परिभाषा इस प्रकार कर सकते है कि वह पुरूषों, स्त्रियों तथा बालकों का कोई स्थायी अथवा अविराम समूह है जो कि अपने सांस्कृतिक स्तर पर स्वतंत्र रूप से प्रजाति की उत्पत्ति एवं उसके पोषण की प्रक्रियाओं का प्रबन्ध करने मे सक्षम होता हैं।" मैकाइवर व पेज के अनुसार," समाज चलनों व प्रणालियों की, सत्ता व पारस्परिक सहयोग की, अनेक समूहों व भागों कि, मानव व्यवहार के नियंत्रणों और स्वाधीनताओं कि एक व्यवस्था हैं।" पारसन्स के अनुसार," समाज को उन मानवीय संबंधों की जटिलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो साधन और साध्य के रूप में की गयी क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं, चाहे वे यथार्थ हों या केवल प्रतीकात्मक।" रायट के अनुसार," यह व्यक्तियों का एक समूह नही हैं, अपितु विभिन्न समूहों के व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों की व्यवस्था हैं।" समाज की विशेषताएं या लक्षण (samaj ki visheshta)समाज की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-- 1. समाज अमूर्त हैं समाज व्यक्तियों का समूह नही हैं, अपितु यह मानवीय अन्तः सम्बन्धों की एक जटिल व्यवस्था हैं। मानवीय अन्तः सम्बन्धों को न तो देखा जा सकता है और न ही उन्हे स्पर्श किया जा सकता हैं। अमूर्त का अर्थ हैं जिसे देखा ना जा सके, स्पर्श ना किया जा सके। समाज को कोई वस्तु नही जिसका हम हमारी ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से देखकर, सूँघकर, सुनकर, चखकर, अथवा स्पर्श कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त कर सके। इस प्रकार समाज मूर्त नही अमूर्त हैं। 2. पारस्परिक निर्भरता समाज का एक प्रमुख विशेषता पारस्परिक निर्भरता हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अकेले नही कर सकता हैं। उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता हैं। इस पारस्परिक निर्भरता के कारण ही समाज के सदस्य सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण करते हैं। 3. समाज संबंधों की व्यवस्था हैं समाज सामाजिक संबंधों का जाल हैं हैं जो सामाजिक संबंधों के तानेवाने से बना होता हैं। समाज कोई अखण्ड वस्तु नही हैं। यह विभिन्न खण्डों व उपखण्डों से बना हैं जिनमें एक व्यवस्था होती है। यह संबंधों का मात्र एक संकलन नही है, वरन् एक जटिल व्यवस्था है। संबंधों का क्रम-विन्यास समाज की संरचना को व्यक्त करता है। समाज के विभिन्न भागों मे परस्पर संबंध व निर्भरता होती है। 4. भिन्नता के दो रूप समाज मे भिन्नता के दो रूप पाई जाते हैं-- (अ) समानता समाज के निर्माण के लिए समानता एक आवश्यक तत्व है। सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण उसी दशा मे होता है जबकि सम्बन्ध स्थापित करने वाले व्यक्तियों मे आपस मे कुछ समानता होती है। दूसरे शब्दों मे, समाज का अस्तित्व वही पर सम्भव है जहाँ एक प्रकार के प्राणी हैं, जहाँ एक प्रकार की शरीरिक रचना हैं, और एक ही प्रकार के विचार हैं। (ब) असमानता समाज के लिए जिस प्रकार समानता की आवश्यकता होती है उसी प्रकार भिन्नता कि भी। भिन्नता से अभिप्राय हैं-- रूचियों, कार्यों तथा योग्यताओं मे भिन्नता शिशु रक्षा, उदर पूर्ति के सम्बन्ध मे एक तरह के होते है। परन्तु इसमे से प्रत्येक व्यक्ति अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भिन्न-भिन्न साधनों, विधियों तथा मार्गों को अनाते हैं। 5. समाज का एक मनोवैज्ञानिक आधार समाजिक संबंधों का मतलब ही है दो या अधिक प्राणियों मे पारस्परिक अनुभूति का पाया जाना। यह पारस्परिक अनुभूति या मानसिक जागरूकता प्रत्येक प्रकार के संबंधों मे पाई जाती है चाहे संबंध अस्थायी हो या स्थायी,
मैत्री के हो या द्देष के, सहयोग के हो या संघर्ष के। यह मानसिक जागरूकता चेतना से उत्पन्न होती है। यह समूह-चारिता की स्वाभाविक वृत्ति है जो समाज की मनोवैज्ञानिक आधार है और जो समाज की कीसी भी विवेचना मे अत्यधिक महत्वपूर्ण है। साधारणतः समाज मे दो बहुत कुछ विरोधी वृत्तियाँ सदैव क्रियाशील रहती है, जिनमे एक सहयोग को विकसित करती है और दूसरी संघर्ष को जन्म देती है। शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी समाज क्या है उदाहरण सहित समझाइए?सामान्य बोलचाल की भाषा में या साधारण अर्थ में 'समाज' शब्द का अर्थ व्यक्तियों के समूह के लिए किया जाता है। किसी भी संगठित या असंगठित समूह को समाज कह दिया जाता है, जैसे-- आर्य समाज, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, हिंदू समाज, जैन समाज, विद्यार्थी समाज, महिला समाज आदि।
समाज से आप क्या समझते हैं इसकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए?समाज एक उद्देश्यपूर्ण समूह होता है, जो किसी एक क्षेत्र में बनता है, उसके सदस्य एकत्व एवं अपनत्व में बंधे होते हैं। मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है। मनुष्य ने अपने लम्बे इतिहास में एक संगठन का निर्माण किया है।
समाज कैसे बनता है?परिवार समाज की एक इकाई है। परिवारों से मिलकर ही समाज का निर्माण होता है।
समाज के प्रमुख तत्व कौन कौन से हैं?जो मानवीय क्रियाकलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती हैं। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं।
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