जनसंचार का सबसे नया माध्यम कौन सा है? - janasanchaar ka sabase naya maadhyam kaun sa hai?

संचार और जनसंचार के विभिन्न माध्यमों-टेलीफ़ोन, इंटरनेट, फैक्स, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन और सिनेमा आदि के जरिये मनुष्य संदेशों के आदान-प्रदान में एक-दूसरे के बीच की दूरी और समय को लगातार कम से कम करने की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि आज संचार माध्यमों के विकास के साथ न सिर्फ भौगोलिक दूरियाँ कम हो रही हैं बल्कि सांस्कृतिक और मानसिक रूप से भी हम एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। शायद यही कारण है कि कुछ लोग मानते हैं कि आज दुनिया एक गाँव में बदल गई है।

जनसंचार माध्यम कितने उपयोगी
दुनिया के किसी भी कोने में कोई घटना हो, जनसंचार माध्यमों के जरिये कुछ ही मिनटों में हमें खबर मिल जाती है। अगर वहाँ किसी टेलीविजन समाचार चैनल का संवाददाता मौजूद हो तो हमें वहाँ की तसवीरें भी तुरंत देखने को मिल जाती हैं। इसी तरह आज टेलीविजन के परदे पर हम दुनियाभर के अलग-अलग क्षेत्रों में घट रही घटनाओं को सीधे प्रसारण के जरिये ठीक उसी समय देख सकते हैं। हम क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम भले न जाएँ लेकिन घर बैठे उस मैच का सीधा प्रसारण (लाइव) देख सकते हैं।

आज संचार और जनसंचार के माध्यम हमारी अनिवार्य आवश्यकता बन गए हैं। हमारे रोजमर्रा के जीवन में उनकी बहुत अहम भूमिका हो गई है। उनके बिना हम आज आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। वे हमारे लिए न सिर्फ सूचना के माध्यम हैं बल्कि वे हमें जागरूक बनाने और हमारा मनोरंजन करने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

मैगी की बिक्री पर रोक

नई देल्ली, विशेष संवाददाता
सरकार ने शुक्रवार को नेस्ले कंपनी के ब्रांड मैगी की सभी नौ किस्मों की बिक्री पर पूरे देश में पाबंदी लगा दी। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कहा, ‘मैगी के नौ नूडल खाने के लिहाज से असुरक्षित और खतरनाक हैं। इसलिए कंपनी तुरंत इनकी बिक्री और उत्पादन पर रोक लगाए।’
कंपनी ने मैगी पर सफाई दी : नेस्ले के ग्लोबल सीईओ पॉल बुल्के ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर मैगी पर सफाई दी। उन्होंने कहा, ‘मैगी पूरी तरह सुरक्षित है फिर भी हमने इसे भारतीय बाजार से हटाने का फैसला लिया है क्योंकि बेवजह भ्रम फैलने से ग्राहकों का भरोसा प्रभावित हो रहा है।’ पॉल स्विट्जरलैंड से आए थे।
15 दिन में जवाब दें : खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने नेस्ले को कारण बताओ नोटिस जारी करके पंद्रह दिन के अंदर जवाब मांगा है। नियामक का कहना है कि नेस्ले ने उत्पाद मंजूरी लिए बगैर और बिना जोखिम एवं सुरक्षा आकलन के मैगी ओट्स मसाला नूडल्स पेश किया है। इसलिए मैगी की सभी नौ किस्में तुरंत बाजार से वापस लेने का आदेश दिया हैं। एफएसएसएआई के मुख्य कार्यकारी वाईएम मलिक ने बताया, कंपनी को तीन दिन में बाजार से मैगी हटाने के आदेश पर रिपोर्ट देने को कहा गया है। साथ ही यह प्रक्रिया पूरी होने तक रोज प्रगति रिपोर्ट सौंपने का भी निर्देश दिया गया है। भारत की जांच पर सवाल! : नेस्ले के ग्लोबल सीईओ पॉल से जब यह पूछा गया कि क्या वह भारतीय लैब में हुई जांच पर सवाल उठा रहें हैं तो उन्होंने इस बात स इनकार किया। पॉल ने कहा, ‘सबकी जांच का तरीका अलग-अलग हो सकता है। हम भारत का तरीका समझेंगे।’

उग्रवादियों की तलाशी का अभियान तेज

इंफाल एजेंसियों
सुरक्षाबलों ने गुरुवार को सेना के काफिले पर घात लगाकर हमला करने में शामिल उग्रवादियों को पकड़ने के लिए मणिपुर के चंदेल जिले में तलाशी अभियान तेज कर दिया है। इस हमले में डोगरा रेजीमेंट के 18 सैनिक शहीद हो गए थे। इस बीच, सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने स्वयं मणिपुर पहुँचकर स्थिति का जायजा लिया है। चंदेल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस घटनास्थल से शहीदों के शवों को ला चुकी है। इनमें 17 शव छठी डोगरा रेजीमेंट के जवानों के हैं, जबकि एक शव उग्रवादी का है। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं कि उग्रवादी किस सगठन से संबंधित है। पुलिस ने बताया कि तलाशी अभियान सेना और असम राइफल्स मिलकर चला रहे हैं। लेकिन अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि घटनास्थल जंगल के काफी अंदर एवं दुर्गम है।

महज 20 किलोमीटर की दूरी पर म्यांमार सीमा है। इसलिए हमला कर उग्रवादी भागने में कामयाब रहे। सूत्रों ने बताया कि उग्रवादियों की धरपकड़ के लिए परालोंग, चरोंग, मोल्तुह और कुछ अन्य इलाकों में खोज अभियान चलाया जा रहा है। इस बीच, सुरक्षा का जायजा लेने पहुँचे सुहाग ने शुक्रवार को तीसरी कोर के कमांडर और शीर्ष पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने घटना और मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी ली। सुहाग ने कहा कि उग्रवादियों के खिलाफ दीर्घकालिक और लक्षित अभियानों के लिए एक विस्तृत अभियान योजना पर काम किया जा रहा है।

संचार क्या है?
संचार शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। संचार स हमारा तात्पर्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है। मशहूर संचारशास्त्री विल्बर श्रैम के अनुसार “संचार अनुभवों की साझेदारी है।’ इस प्रकार  सुचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरीये सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना ही संचार है और इस प्रक्रिया को अंजाम देने में मदद करने वाले तरीके संचार माध्यम कहलाते हैं।

संचार के तत्व
संचार एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में कई तत्व शामिल हैं। इनमें से प्रमुख तत्व निम्नलिखित है-

  1. स्त्रोत या संचारक-संचार-प्रक्रिया की शुरुआत ‘स्रोत” या ‘संचारक’ से होती है। जब स्रोत या संचारक एक उद्देश्य के साथ अपने किसी विचार, संदेश या भावना को किसी और तक पहुँचाना चाहता है, तो संचार-प्रक्रिया की शुरुआत होती है। जैसे हमें किताब की जरूरत होने पर जैसे ही हम किताब माँगने की सोचते हैं, संचार की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। किताब माँगने के लिए हम अपने मित्र से बातचीत करेंगे या उसे लिखकर संदेश भेजेंगे। बातचीत या संदेश भेजने के लिए हम भाषा का सहारा लेते हैं।
  2. कूटीकृत या एनकोडिंग-यह संचार की प्रक्रिया का दूसरा चरण है। सफल संचार के लिए जरूरी है कि आपका मित्र भी उस भाषा यानी कोड से परिचित हो जिसमें आप अपना संदेश भेज रहे हैं। इसके साथ ही संचारक का एनकोडिंग की प्रक्रिया पर भी पूरा अधिकार होना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि सफल संचार के संचारक का भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। साथ ही उसे अपने संदेश के मुताबिक बोलना या लिखना भी आना चाहिए।
  3. संदेश-संचार-प्रक्रिया में संदेश का बहुत अधिक महत्व है। किसी भी संचारक का सबसे प्रमुख उद्देश्य अपने संदेश को उसी अर्थ के साथ प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना है। इसलिए सफल संचार के लिए जरूरी है कि संचारक अपने संदेश को लेकर खुद पूरी तरह से स्पष्ट हो। संदेश जितना ही स्पष्ट और सीधा होगा, संदेश के प्राप्तकर्ता को उसे समझना उतना ही आसान होगा।
  4. माध्यम (चैनल)-संदेश को किसी माध्यम (चैनल) के जरिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना होता है। जैसे हमारे बोले हुए शब्द ध्वनि तरंगों के जरिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचते हैं, जबकि दृश्य संदेश प्रकाश तरंगों के जरिये। इसी तरह वायु तरंगों के जरिये भी संदेश पहुँचते हैं। जैसे खाने की खुशबू हम तक वायु तरंगों के जरिये पहुँचती है। स्पर्श या छूना भी एक तरह का माध्यम है। इसी तरह टेलीफ़ोन, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और फ़िल्म आदि विभिन्न माध्यमों के जरिये भी संदेश प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाता है।
  5. प्राप्तकर्ता या रिसीवर-यह प्राप्त संदेश का कूटवाचन यानी उसकी डीकोडिंग करता है। डीकोडिंग का अर्थ है प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। यह एक तरह से एनकोडिंग की उलटी प्रक्रिया है। इसमें संदेश का प्राप्तकर्ता उन चिहनों और संकेतों के अर्थ निकालता है। जाहिर है कि संचारक और प्राप्तकर्ता दोनों का उस कोड से परिचित होना जरूरी है।
  6. फीडबैक-संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की इस प्रतिक्रिया को फीडबैक कहते हैं। संचार-प्रक्रिया की सफलता में फ़ीडबैक की अहम भूमिका होती है। फ़ीडबैक से ही पता चलता है कि संचार-प्रक्रिया में कहीं कोई बाधा तो नहीं आ रही है। इसके अलावा फ़ीडबैक से यह भी पता चलता है कि संचारक ने जिस अर्थ के साथ संदेश भेजा था वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है या नहीं? इस फ़ीडबैक के अनुसार ही संचारक अपने संदेश में सुधार करता है और इस तरह संचार की प्रक्रिया आगे बढ़ती है।
  7. शोर-संचार प्रक्रिया में कई बाधाएँ भी आती हैं। इन बाधाओं को शोर (नॉयज) कहते हैं। संचार की प्रक्रिया को शोर से बाधा पहुँचती है। यह शोर किसी भी किस्म का हो सकता है। यह मानसिक से लेकर तकनीकी और भौतिक शोर तक हो सकता है। शोर के कारण संदेश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता। सफल संचार के लिए संचार प्रक्रिया से शोर को हटाना या कम करना बहुत जरूरी है।

संचार के प्रकार
संचार विभिन्न प्रकार के होते हैं, पर वे परस्पर काफी मिले-जुले होते हैं। इन्हें अलग करके देखना कठिन होता है। संचार के निम्नलिखित रूप हैं-

  1. सांकेतिक संचार-जब हम किसी व्यक्ति को संकेत या इशारे से बुलाते हैं तो इसे सांकेतिक संचार कहते हैं। अपने से बड़ों को प्रणाम करते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करना मौखिक संचार का उदाहरण है। मौखिक संचार के समय चेहरे और शरीर के विभिन्न अंगों की मुद्राओं की मदद ली जाती है। खुशी, प्रेम, डर आदि अमौखिक संचार द्वारा व्यक्त किया जाता है।
  2. अंत:वैयक्तिक (इंटरपर्सनल) संचार-जब हम कुछ सोच रहे होते हैं, कुछ योजना बना रहे होते हैं या किसी को याद कर रहे होते हैं तो यह भी एक संचार है। इस संचार-प्रक्रिया में संचारक और प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। यह संचार का सबसे बुनियादी रूप है। इसे अंत:वैयक्तिक (इंट्रपर्सनल) संचार कहते हैं। हम जब पूजा, इबादत या प्रार्थना करते वक्त ध्यान में होते हैं तो वह भी अंत:वैयक्तिक संचार का उदाहरण है। किसी भी संचार की शुरुआत यहीं से होती है।
  3. समूह संचार-इस संचार में हम जो कुछ भी कहते हैं, वह किसी एक या दो व्यक्ति के लिए न होकर पूरे समूह के लिए होता है। समूह संचार का उपयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस-मुबाहिसे के जरिये हल करने के लिए होता है। संसद में जब विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है तो यह भी समूह संचार का ही एक उदाहरण है।
  4. जनसंचार-जब हम व्यक्तियों के समूह के साथ प्रत्यक्ष संवाद की बजाय किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के जरिये समाज के एक विशाल वर्ग से संवाद कायम करने की कोशिश करते हैं तो इसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के जरिये बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। इसके लिए हमें किसी उपकरण या माध्यम की मदद लेनी पड़ती है-मसलन अखबार, रेडियो, टी०वी०, सिनेमा या इंटरनेट। अखबार में प्रकाशित होने वाले समाचार वही होते हैं लेकिन प्रेस के जरिये उनकी हजारों-लाखों प्रतियाँ प्रकाशित करके विशाल पाठक वर्ग तक पहुँचाई जाती हैं।

जनसंचार की विशेषताएँ
जनसंचार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. जनसंचार माध्यमों के जरिये प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि अंतरवैयक्तिक या समूह संचार की तुलना में जनसंचार के संदेश सबके लिए होते हैं।
  2. जनसंचार का संचार के अन्य रूपों से एक फ़र्क यह भी है कि इसमें संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता है।
  3. जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की भी जरूरत पड़ती है। औपचारिक संगठन के बिना जनसंचार माध्यमों को चलाना मुश्किल है। जैसे समाचारपत्र किसी न किसी संगठन से प्रकाशित होता है या रेडियो का प्रसारण किसी रेडियो संगठन की ओर से किया जाता है।
  4. जनसंचार माध्यमों ढेर सारे द्वारपाल (गेटकीपर) काम करते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है।

जनसंचार माध्यमों में द्वारपाल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह उनकी ही जिम्मेदारी है कि वे सार्वजानिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों, मूल्यों और आचार संहिता के अनुसार सामग्री को संपादित करें और उसके बाद ही उनके प्रसारण या प्रकाशन की इजाजत दें।

जनसंचार के कार्य
जिस प्रकार संचार के कई कार्य हैं, उसी तरह जनसंचार माध्यमों के भी कई कार्य हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :

  1. सूचना देना-जनसंचार माध्यमों का प्रमुख कार्य सूचना देना है। हमें उनके जरिये ही दुनियाभर से सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। हमारी जरूरतों का बड़ा हिस्सा जनसंचार माध्यमों के जरिये ही पूरा होता है।
  2. शिक्षित करना-जनसंचार माध्यम सूचनाओं के जरिये हमें जागरूक बनाते हैं। लोकतंत्र में जनसंचार माध्यमों की एक महत्वपूर्ण भूमिका जनता को शिक्षित करने की है। यहाँ शिक्षित करने से आशय है-उन्हें देश-दुनिया के हाल से परिचित कराना और उसके प्रति सजग बनाना।
  3. मनोरंजन करना-जनसंचार माध्यम मनोरंजन के भी प्रमुख साधन हैं। सिनेमा, टी०वी०, रेडियो, संगीत के टेप, वीडियो और किताबें आदि मनोरंजन के प्रमुख माध्यम हैं।
  4. एजेंडा तय करना-जनसंचार माध्यम सूचनाओं और विचारों के जरिये किसी देश और समाज का एजेंडा भी तय करते हैं। जब समाचार-पत्र और समाचार चैनल किसी खास घटना या मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हैं या उन्हें व्यापक कवरेज देते हैं, तो वे घटनाएँ या मुद्दे आम लोगों में चर्चा के विषय बन जाते हैं। किसी घटना या मुद्दे को चर्चा का विषय बनाकर जनसंचार माध्यम सरकार और समाज को उस पर अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य कर देते हैं।
  5. निगरानी करना-किसी लोकतांत्रिक समाज में जनसंचार माध्यमों का एक और प्रमुख कार्य सरकार और संस्थाओं के कामकाज पर निगरानी रखना भी है। अगर सरकार कोई गलत कदम उठाती है या किसी संगठन/संस्था में कोई अनियमितता बरती जा रही है, तो उसे लोगों के सामने लाने की जिम्मेदारी जनसंचार माध्यमों पर है।
  6. विचार-विमर्श के मंच-जनसंचार माध्यमों का एक कार्य यह भी है कि वे लोकतंत्र में विभिन्न विचारों को अभिव्यक्ति का मंच उपलब्ध कराते हैं। इसके जरिये विभिन्न विचार लोगों के सामने पहुँचते हैं। जैसे किसी समाचार-पत्र के ‘संपादकीय’ पृष्ठ पर किसी घटना या मुद्दे पर विभिन्न विचार रखने वाले लेखक अपनी राय व्यक्त करते हैं। इसी तरह ‘संपादक के नाम चिट्ठी’ स्तंभ में आम लोगों को अपनी राय व्यक्त करने का मौका मिलता है। इस तरह जनसंचार माध्यम विचार-विमर्श के मंच के रूप में भी काम करते हैं।

भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास
भारत में जनसंचार माध्यमों का इतिहास बहुत पुराना है। इसके बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में मिल जाते हैं। देवर्षि नारद को भारत का पहला समाचार वाचक माना जाता है जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे। उन्हीं की तरह महाभारत काल में महाराज धृतराष्ट्र और रानी गांधारी को युद्ध की झलक दिखाने और उसका विवरण सुनाने के लिए जिस तरह संजय की परिकल्पना की गई है, वह एक अत्यंत समृद्ध संचार व्यवस्था की ओर इशारा करती है।

चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक जैसे सम्राटों के शासन-काल में स्थायी महत्व के संदेशों के लिए शिलालेखों और सामयिक या तात्कालिक संदेशों के लिए कच्ची स्याही या रंगों से संदेश लिखकर प्रदर्शित करने की व्यवस्था और मजबूत हुई। तब बाकायदा रोजनामचा लिखने के लिए कर्मचारी नियुक्त किए जाने लगे और जनता के बीच संदेश भेजने के लिए भी सही व्यवस्था की गई।

भीमबेटका के गुफाचित्र इसके प्रमाण हैं। यह समानांतर व्यवस्था बाद में कठपुतली और लोकनाटकों की विविध शैलियों के रूप में दिखाई पड़ती है। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विविध नाट्यरूपों-कथावाचन, बाउल, सांग, रागनी, तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्षगान आदि का विशेष महत्व है। इन विधाओं के कलाकार मनोरंजन तो करते ही थे, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक संदेश पहुँचाने और जनमत निर्माण करने का काम भी करते थे।

लेकिन जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के जो रूप आज हमारे यहाँ हैं, वे निश्चय ही हमें अंग्रेजों से मिले हैं। चाहे समाचारपत्र हों या रेडियो, टेलीविजन या इंटरनेट, सभी माध्यम पश्चिम से ही आए। हमने शुरुआत में उन्हें उसी रूप में अपनाया लेकिन धीरे-धीरे वे हमारी सांस्कृतिक विरासत के अंग बनते चले गए। चाहे फ़िल्में हों या टी०वी० सीरियल, एक समय के बाद वे भारतीय नाट्य परंपरा से परिचालित होने लगते हैं। इसलिए आज के जनसंचार माध्यमों का खाका भले ही पश्चिमी हो. लेकिन उनकी विषयवस्तु और रंगरूप भारतीय ही हैं।

जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूपों में प्रमुख हैं-समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा और इंटरनेट। इन माध्यमों के जरिये जो भी सामग्री आज जनता तक पहुँच रही है, राष्ट्र के मानस का निर्माण करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

समाचारपत्र-पत्रिकाएँ
जनसंचार की सबसे मजबूत कड़ी पत्र-पत्रिकाएँ या प्रिंट मीडिया ही है। हालाँकि अपने विशाल दर्शक वर्ग और तीव्रता के कारण रेडियो और टेलीविजन की ताकत ज्यादा मानी जा सकती है लेकिन वाणी को शब्दों के रूप में रिकॉर्ड करने वाला आरंभिक माध्यम होने की वजह से प्रिंट मीडिया का महत्व हमेशा बना रहेगा। आज भले ही प्रिंट, रेडियो, टेलीविजन या इंटरनेट, किसी भी माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहा जाता हो, लेकिन आरंभ में केवल प्रिंट माध्यमों के जरिये खबरों के आदान-प्रदान की ही पत्रकारिता कहा जाता था।

पत्रकारिता के सोपान
इसके निम्नलिखित तीन सोपान हैं-

  1. समाचारों को संकलित करना।
  2. उन्हें संपादित कर छापने लायक बनाना!
  3. पत्र या पत्रिका के रूप में छापकर पाठकों तक पहुँचाना।

यद्यपि ये तीनों काम परस्पर जुड़े हुए हैं पर पत्रकारिता के अंतर्गत पहले दो कामों को शामिल किया जाता है। जहाँ बाहर से खबरें लाने का काम संवाददाताओं का होता है, वहीं तमाम खबरों, लेखों, फ़ीचरों को व्यवस्थित तरीके से संपादित करने और सुरुचिपूर्ण ढंग से छापने का काम संपादकीय विभाग में काम करने वाले संपादकों का होता है। आज पत्रकारिता का क्षेत्र भी बहुत व्यापक हो चला है। खबर का संबंध किसी एक या दो विषयों से नहीं होता। दुनिया के किसी भी कोने की घटना समाचार बन सकती है बशर्त कि उसमें पाठकों की दिलचस्पी हो या उसमें सार्वजानिक हित निहित हो।

भारत में अखबारी पत्रकारिता का आरंभ
भारत में अखबारी पत्रिका की शुरुआत सन् 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गजट’ से हुई जो कलकत्ता (कोलकाता) से निकला था जबकि हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदत मार्तड’ भी कलकत्ता से ही सन् 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था। हिंदी भाषा के विकास में शुरुआती अखबारों और पत्रिकाओं ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस लिहाज से भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा जिन्होंने कई पत्रिकाएँ निकालीं। आजादी के आंदोलन में भारतीय पत्रों ने अहम भूमिका निभाई। महात्मा गांधी, लोकभान्य तिलक और मदनमोहन मालवीय जैसे नेताओं ने लोगों को जागरूक बनाने के लिए पत्रकार की भी भूमिका निभाई।

गांधी जी को हम समकालीन भारत का सबसे बड़ा पत्रकार कह सकते हैं, क्योंकि आजादी दिलाने में उनके पत्रों न महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के पहल के प्रमुख पत्रकारों में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद दविवेदी, बाबुराव  बिष्णुराव पराड़कर, प्रताप नारायण मिश्र, शिवपूजन सहाय. रामवृक्ष बेनीपुरी और बालमुकुंद गुप्त हैं। उस समय के महत्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं में ‘केसरी’, हिंदुस्तान’ ‘सरस्वती’ ‘हंस’ ‘कर्मवीर’, ‘ आज’,’ प्रताप ‘,’प्रदीप’ और ‘विशाल भारत’ आदि प्रमुख हैं।

स्वतंत्र भारत के प्रमुख समाचार पत्र
आजादी के बाद के प्रमुख हिंदी अखबारों में ‘नवभारत टाइम्स’, ‘जनसत्ता’, ‘नई दुनिया’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘अमर उजाला’ , ‘दैनिक भास्कर’, “दैनिक जागरण और पत्रिकाओं में ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’, ‘ दिनमान’ , ‘रविवार’ , ‘इंडिया टुडे’ और ‘आउटलुक’ का नाम लिया जा सकता है। इनमें से कई पत्रिकाएँ बंद हो चुकी हैं। आजादी के बाद के हिंदी के प्रमुख पत्रकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यानन ‘अज्ञेय’, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सुरेन्द्र प्रताप सिंह का नाम लिया जात सकता है।

जनसंचार का सबसे नया माध्यम कौन सा है? - janasanchaar ka sabase naya maadhyam kaun sa hai?

रेडियो
पत्र-पत्रिकाओं के बाद जिस माध्यम ने दुनिया को सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह रेडियो है। सन् 1895 में जब इटली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जी० माकनी ने वायरलेस के जरिये ध्वनियों और संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में कामयाबी हासिल की, तब रेडियो जैसा माध्यम अस्तित्व में आया। पहले विश्वयुद्ध तक यह सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण औजार बन चुका था। भारत में 1892 में रेडियो की शुरुआत हुई। 1921 में मुंबई में ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने डाक-तार विभाग के सहयोग से संगीत कार्यक्रम प्रसारित किया। 1936 में विधिवत् ऑल इडिया रेडियो की स्थापना हुई और आजादी के समय तक देश में कुल में रेडियो स्टेशन खुल चुके थे-लखनऊ, दिल्ली, बंबई (मुंबई), कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चेन्नई) तिरुचिरापल्ली, ढाका, लाहौर और पेशावर। इनमें से तीन रेडियो स्टेशन विभाजन के साथ पाकिस्तान के हिस्से में चले गए।

आजादी के बाद भारत में रेडियो एक बेहद ताकतवर माध्यम के रूप में विकसित हुआ। आज आकाशवाणी देश की 24 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। देश की 96 प्रतिशत आबादी तक इसकी पहुँच है। 1993 में एकएम (फ्रिक्वेंसी मॉडयूलेशन) की शुरुआत के बाद रेडियो के क्षेत्र में कई निजी कंपनियाँ भी आगे आई ह। लेकिन अभी उन्हें समाचार और सम-सामयिक कार्यक्रमों के प्रसारण की अनुमति नहीं है।

रेडियो एक ध्वनि पाध्यम है। इसकी तात्कालिकता, घनिष्ठता और प्रभाव के कारण गांधी जी ने रेडियो को एक अद्भुत श न कहा था। ध्वनि-तरंगों के जरिये यह देश के कोने-कोने तक पहुँचता है। दूर-दराज के गाँवों में, जहाँ संचार और मनोरंजन के अन्य साधन नहीं होते, वहाँ रेडियो ही एकमात्र साधन है. बाहरी दुनिया से जुड़ने का। फिर अखबार और टेलीविजन की तुलना में यह बहु ‘ सस्: भी है।

इसलिए भारत के दूरदराज के हलाकों में लोगों ने रेडियो क्लब बना लिए हैं। आकाशवाणी के अलावा सैकड़ों निजी एफएम स्टेशनों और बीबीसी, वायस आँफ अमेरिका, डोयचे वेले (रेडियों जर्मनी), मास्को रेडियो, रेडियों पेइचिंग, रेडियो आस्ट्रेलिया जैसे कई विदेशी प्रसारण और हैम अमेच्योर रेडियो क्लबों (स्वतंत्र समूह द्वारा संचालित पंजीकृत रेडियो स्टेशन) का जाल बिछा हुआ है।

टेलीविजन
आज टेलीविज़न जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और ताकतवर माध्यम बन गया है। प्रिंट मीडिया के शब्द और रेडियो की ध्वनियों के साथ जब टेलीविज़न के दृश्य मिल जाते हैं, तो सूचना की विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है।

भारत में टेलीविजन की शुरुआत यूनेस्को की एक शैक्षिक परियोजना के अंतर्गत 15 सितंबर, 1959 को हुई थी। इसका मकसद टेलीविजन के जरिये शिक्षा और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना था। इसके तहत दिल्ली के आसपास के गाँवों में 2 टी०वी० सेट लगाए गए जिन्हें 200 लोगों ने देखा। यह हफ्ते में दो बार एक-एक घंटे के लिए दिखाया जाता था। लेकिन 1965 में स्वतंत्रता दिवस से भारत में विधिवत टी०वी० सेवा का आरंभ हुआ। तब रोज एक घंटे के लिए टी०वी० कार्यक्रम दिखाया जाने लगा। 1975 तक दिल्ली, मुंबई, श्रीनगर, अमृतसर, कोलकाता, मद्रास और लखनऊ में टी०वी० सेंटर खुल गए। लेकिन 1976 तक टी०वी० सेवा आकाशवाणी का हिस्सा थी। 1 अप्रैल, 1976 से इसे अलग कर दिया गया। इसे दूरदर्शन नाम दिया गया। 1984 में इसकी रजत जयंती मनाई गई।

स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दूरदर्शन की ताकत का एकसास था। वे देशभर में टेलीविजन केंद्रों का जाल बिछाना चाहती थीं। 1980 में इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर पी०सी० जोशी की अध्यक्षता में दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक समिति गठित की। जोशी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, हमारे जैसे समाज में जहाँ पुराने मूल्य टूट रहे हों और नए न बन रहे हों, वहाँ दूरदर्शन बड़ी भूमिका निभाते हुए जनतंत्र को मजबूत बना सकता है।

दूरदर्शन कार्यक्रमों की गुणवत्ता के सुधार में प्रो० पी०सी० जोशी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने अपनी रिपोर्ट में लिखा-‘हमारे जैसे समाज में जहाँ पुराने मूल्य टूट रहे हों और नए न बन रहे हों, वहाँ दूरदर्शन बड़ी भूमिका निभाते हुए जनतंत्र को मजबूत बना सकता है।’

टेलीविजन के उद्देश्य
टेलीविजन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • सामाजिक परिवर्तन
  • राष्ट्रीय एकता
  • वैज्ञानिक चेतना का विकास
  • परिवार-कल्याण को प्रोत्साहन
  • कृषि-विकास
  • पर्यावरण-संरक्षण
  • सामाजिक विकास
  • खेल–संस्कृति का विकास
  • सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन

दूरदर्शन ने देश की सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में उल्लेखनीय सेवा की है, लेकिन लंबे समय तक सरकारी नियंत्रण में रहने के कारण इसमें ताज़गी का अभाव खटकने लगा और पत्रकारिता के निष्पक्ष माध्यम के तौर पर यह अपनी जगह नहीं बना पाया। अलबत्ता मनोरंजन के एक लोकप्रिय माध्यम के तौर पर इसने अपनी एक खास जगह बना ली है।

टेलीविजन का असली विस्तार तब हुआ, जब भारत में देशी निजी चैनलों की बाढ़ आने लगी। अक्टूबर, 1993 में जी टी०वी० और स्टार टी०वी० के बीच अनुबंध हुआ। इसके बाद समाचार के क्षेत्र में भी जी न्यूज और स्टार न्यूज नामक चैनल आए और सन् 2002 में आजतक के स्वतंत्र चैनरल के रूप में आने के बाद तो जैसे समाचार चैनलों की बाढ़ ही आ गई। जहाँ पहले हमारे सार्वजनिक प्रसारक दूरदर्शक का उद्देश्य राष्ट्र-निर्माण और सामाजिक उन्नयन था, वहीं इन निजी चैनलों का मकसद व्यावसायिक लाभ कमाना रह गया। इससे जहाँ टेलीविजन समाचार को निष्पक्षता की पहचान मिली, उसमें ताजगी आई और वह पेशेवर हुआ, वहीं एक अंधी होड़ के कारण अनेक बार पत्रकारिता के मूल्यों और उसकी नैतिकता का भी हनन हुआ। इसके बावजूद आज पूरे भारत में 200 से अधिक चैनल प्रसारित हो रहे हैं और रोज नए-नए चैनलों की बाढ़ आ रही है।

सिनेमा
जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली माध्यम है-सिनेमा। हालाँकि यह जनसंचार के अन्य माध्यमों की तरह सीधे तौर पर सूचना देने के अन्य
नहीं करता, लेकिन परोक्ष रूप में सूचना, ज्ञान और संदेश देने का काम करता है। सिनेमा को मनोरंजन के एक सशक्त माध्यम के तौर पर देखा जाता रहा है। सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस अल्वा एडिसन को जाता है और यह 1883 में मिनेटिस्कोप की खोज के साथ जुड़ा हुआ है। 1894 में फ्रांस में पहली फ़िल्म बनी ‘द अराइवल ऑफ़ ट्रेन’। सिनेमा की तकनीक में नेजी से विकास हुआ और जल्दी ही यूरोप और अमेरिका में कई अच्छी फ़िल्में बनने लगीं।

जनसंचार का सबसे नया माध्यम कौन सा है? - janasanchaar ka sabase naya maadhyam kaun sa hai?

भारत में पहली मूक फ़िल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फ़ाल्के को जाता है। यह फ़िल्म थी 1913 में बनी-‘राजा हरिश्चंद्र’। इसके बाद के दो दशकों में कई और मूक फ़िल्में बनीं। इनके कथानक धर्म, इतिहास और लोक-गाथाओं के इर्द-गिर्द बुने जाते रहे। 1931 में पहली बोलती फिल्म बनी-‘ आलम आरा’। इसके बाद कि बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ। आज़ादी मिलने के बाद जहाँ एक तरफ़ भारतीय सिनेमा ने देश के सामाजिक यथार्थ को गहराई से पकड़कर आवाज़ देने की कोशिश की, वहीं लोकप्रिय सिनेमा ने व्यावसायिकता का रास्ता अपनाया। एक तरफ़ पृथ्वीराज कपूर, महबूब खान, सोहराब मोदी, गुरुदत्त जैसे फ़िल्मकार थे, तो दूसरी तरफ़ सत्यजित राय जैसे फ़िल्मकार। सिनेमा जनसंचार के एक बेहतरीन और सबसे ताकतवर माध्यमों में से एक है। इसके कई और आयाम भी हैं। यह मनोरंजन के साथ-साथ समाज को बदलने का, लोगों में नई सोच विकसित करने का और अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से लोगों को सपनों की दुनिया में ले जाने का माध्यम भी है।

मौजूदा समय में भारत हर साल लगभग 800 फ़िल्मों का निर्माण करता है और दुनिया का सबसे बड़ा फ़िल्म-निर्माता देश बन गया है। यहाँ हिंदी के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं और बालियों में भी फ़िल्में बनती हैं और खूब चलती हैं।

इंटरनेट
इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया, लेकिन तेजी से लोकप्रिय हो रहा माध्यम है। एक ऐसा माध्यम, जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं। उसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है और उसकी रफ़्तार का कोई जवाब नहीं है। उसमें सारे माध्यमों का समागम है। इंटरनेट पर आप दुनिया के किसी भी कोने से छपनेवाले अखबार या पत्रिका में छपी सामग्री पढ़ सकते हैं। रेडियो सुन सकते हैं। सिनेमा देख सकते हैं। किताब पढ़ सकते हैं और विश्वव्यापी जाल के भीतर जमा करोड़ों पन्नों में से पलभर में अपने मतलब की सामग्री खोज सकते हैं।

यह एक अंतरक्रियात्मक माध्यम है यानी आप इसमें मूक दर्शक नहीं है। आप सवाल-जवाब, बहस-मुबाहिसों में भाग लेते हैं, आप चैट कर सकते हैं और मन हो तो अपना ब्लाग बनाकर पत्रकारिता की किसी बहस के सूत्रधार बन सकते हैं। इंटरनेट ने हमें मीडिया समागम यानी कंवर्जेस के युग में पहुँचा दिया है और संचार की नई संभावनाएँ जगा दी हैं।

हर माध्यम में कुछ गुण और कुछ अवगुण होते हैं। इंटरनेट ने जहाँ पढ़ने-लिखने वालों के लिए, शोधकर्ताओं के लिए संभावनाओं के नए कपाट खोले हैं, हमें विश्वग्राम का सदस्य बना दिया है, वहीं इसमें कुछ खामियाँ भी हैं। पहली खामी तो यही है कि इसमें लाखों अश्लील पन्ने भर दिए गए हैं, जिसका बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर पड़ सकता है। दूसरी खामी यह है कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। हाल के वर्षों में इंटरनेट के दुरुपयोग की कई घटनाएँ सामने आई हैं।

जनसंचार माध्यमों का प्रभाव
आज के संचार प्रधान समाज में जनसंचार माध्यमों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारी जीवन-शैली पर संचार माध्यमों का जबरदस्त असर है। अखबार पढ़े बिना हमारी सुबह नहीं होती। जो अखबार नहीं पढ़ते, वे रोजमर्रा की खबरों के लिए रेडियो या टी०वी० पर निर्भर रहते हैं। हमारी महानगरीय युवा पीढ़ी समाचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट का उपयोग करने लगी है। खरीद-फ़राख्त के हमारे फ़ैसलों तक पर विज्ञापनों का असर साफ़ देखा जा सकता है। यहाँ तक कि शादी-ब्याह के लिए भी लोगों की अखबार या इंटरनेट के मैट्रिमोनियल पर निर्भरता बढ़ने लगी है। टिकट बुक कराने और टेलीफ़ोन का बिल जमा कराने से लेकर सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है। इसी तरह फुरसत के क्षणों में टी०वी०-सिनेमा पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों और फ़िल्मों के जरिये हम अपना मनोरंजन करते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जनसंचार माध्यमों ने जहाँ एक ओर लोगों को सचेत और जागरूक बनाने में अहम भूमिका निभाई है, वहीं उसके नकारात्मक प्रभावों से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यह भी स्पष्ट है कि जनसंचार माध्यमों के बिना आज सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे में यह जरूरी है कि हम जनसंचार माध्यमों से प्रसारित और प्रकाशित सामग्री को निष्क्रिय तरीके से ग्रहण करने के बजाय उसे सक्रिय तरीके से सोच-विचार करके और आलोचनात्मक विश्लेषण के बाद ही स्वीकार करें। एक जागरूक पाठक, दर्शक और श्रोता के बतौर हमें अपनी आँखें, कान और दिमाग हमेशा खुले रखने चाहिए। V

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

प्रश्न 1:
इस पाठ में विभिन्न लोक-माध्यमों की चर्चा हुई है। आप पता लगाइए कि वे कौन-कौन से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने क्षेत्र में प्रचलित किसी लोकनाट्य या लोकमाध्यम के किसी प्रसंग के बारे में जानकारी हासिल करके उसकी प्रस्तुति के खास अंदाज़ के बारे में भी लिखिए।
उत्तर –
इस पाठ में जिन लोकमाध्यमों की चर्चा हुई है, वे हैं-लोक-नृत्य, लोक-संगीत और लोक-नाट्य। ये देश के विभिन्न भागों में विविध नाट्य रूपों-कथावाचन, बाउल, सांग, रागिनी तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्ष-गान, कठपुतली लोक-नाटक आदि में प्रचलित हैं। इनमें स्वाँग उत्तरी भारत, नौटंकी उत्तर प्रदेश, बिहार, रागिनी हरियाणा तथा यक्ष-गान कर्नाटक क्षेत्रों से संबंधित हैं। हमारे क्षेत्र में नौटंकी का प्रयोग खूब होता है। यह ग्रामीण नाट्य-शैली का एक रूप है। इसमें प्राय: रात्रि के समय मंच पर किसी लोक-कथा या कहानी को नाट्य-शैली में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें स्त्री-पात्रों की भूमिका भी प्राय: पुरुष-पात्र करते हैं। हारमोनियम, नगाड़ा, ढोलक आदि वाद्य-यंत्रों के साथ यह संगीतमय प्रस्तुति लोक-लुभावन होती है।

प्रश्न 2:
आजादी के बाद भी हमारे देश के सामने बहुत सारी चुनौतियाँ हैं। आप समाचार-पत्रों को उनके प्रति किस हद तक संवेदनशील पाते हैं?
उत्तर –
आजादी के बाद भी हमारे देश में बहुत-सी चुनौतियाँ हैं। ये चुनौतियाँ हैं :

  1. निर्धनता से निपटने की चुनौती।
  2. बेरोजगारी से निपटने की चुनौती।
  3. भ्रष्टाचार की चुनौती।
  4. देश की एकता बनाए रखने की चुनौती।
  5. आतंकवाद का मुकाबला करने की चुनौती।
  6. सांप्रदायिकता से निपटने की चुनौती।

हम समाचार-पत्रों को इन चुनौतियों के प्रति काफी हद तक संवेदनशील पाते हैं। वे अपने दायित्व का निर्वहन, इनसे पीडित लोगों की आवाज सरकार तक पहुंचाकर कर रहे हैं, जिससे सरकार और अन्य स्वयंसेवी संस्थाएँ इनको हल करने के लिए आगे आती हैं। हाँ, छोटे समाचार-पत्र अपनी सीमा निश्चित होने के कारण कई बार दबाव में आकर उतने संवेदनशील नहीं हो पाते हैं।

जनसंचार का सबसे नया माध्यम क्या है?

इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया, लेकिन तेजी से लोकप्रिय हो रहा माध्यम है। एक ऐसा माध्यम, जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं।

जनसंचार का सबसे आधुनिक माध्यम कौन सा है?

इंटरनेट जनसंचार का सबसे आधुनिक तथा तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा माध्यम है। 3. इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा इन सारे माध्यमों का समागम है ।

नए संचार माध्यम कौन कौन से हैं?

पत्र-पत्रिकाएँ.
सिनेमा.
आकाशवाणी और रेडियो.
टेलीविजन.
इन्टरनेट.
सोशल मिडिया.
विज्ञापन.
विविध माध्यम.

वर्तमान का लोकप्रिय संचार माध्यम क्या है?

' दूरदर्शन, समाचार पत्र, फिल्में, पत्रिकाएं, रेडियो, विज्ञापन, वीडियो गेम और सीडी। ' 1- पहला आधुनिक मास मीडिया संस्थान 'प्रिंटिंग प्रेस डेवलपमेंट' के साथ शुरू हुआ। 2- आज के जीवन में, हमारे पास आधुनिक जनसंचार के स्रोत के रूप में 'अखबार, पत्रिका, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, विज्ञापन, सोशल मीडिया, पत्रकारिता' हैं।