जंगल में आग लगने का कारण क्या है? - jangal mein aag lagane ka kaaran kya hai?

पहाड़ी इलाकों में हर साल गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाओं का बढ़ना पर्यावरण के लिए चिंता का विषय बन गया है। इस साल तीन राज्यों जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के जंगलात में लगी आग की समस्या गंभीर हो गई है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक अकेले उत्तराखंड में फरवरी से अब तक आग लगने की लगभग 700 छोटी बड़ी घटनायें दर्ज की जा चुकी हैं। आग लगने की घटनाओं और इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक डा. एसडी सिंह से पांच सवाल।

1. गर्मियों में पहाड़ों पर आग लगने की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी की क्या वजह है?

उत्तर- ऐसा नहीं है कि पहाड़ों पर जंगलों में आग की घटनाएं हर साल बढ़ रही हैं। दरअसल आग लगने की घटनाओं के पीछे पर्वतीय इलाकों में बारिश न होने की अवधि (ड्राइ स्पैल) में इजाफा होना मुख्य वजह है। गर्मी के मौसम में औसतन 20 से 25 दिन के अंतराल पर अगर बारिश नहीं होती है तो जंगलों में पेड़ से गिरने वाले पत्ते और घास के सूखने से आग लगने का खतरा ज्यादा हो जाता है। इसलिये गर्मी में 'ड्राई स्पैल के बढ़ने पर आग लगने की घटनायें बढ़ जाती है। साल 2013-14 में ड्राई स्पैल ज्यादा रहा लेकिन इसके बाद यह साल दर साल दुरुस्त होता गया। यह जरूर है कि जिन इलाकों में अभी आग लगने की घटनायें हुयी हैं उनमें 'ड्राई स्पैल देखा गया है। 

2. आग लगने की इन घटनाओं में चीड़ की पत्तियों को एक वजह माना जाता है। क्या इन पत्तियों के झड़ने के मौसम में कोई उपाय करके आग की इन घटनाओं को रोका जा सकता है?

उत्तर- सूखी हुयी चीड़ की पत्ती में आग जल्दी लगती है और तेजी से फैलती भी है। सामान्यत: पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क किनारे और खेतों के आसपास से जंगलों में आग लगती है। इसकी वजह सड़क से गुजरने वाले वाहनों से और खेतों के आसपास किसानों द्वारा कृषि कार्य के दौरान छोटी मोटी आग लगाने से सूखे पत्तों के जरिये जंगलों में आग फैलती है। इसे रोकने के लिये वनकर्मी सड़क किनारे और दो प्रकार के जंगलों के बीच छोडे़ गये खाली स्थान 'अग्निरेखा (फायर लाइन) का इस्तेमाल करते हैं। अग्निरेखा क्षेत्र में गर्मी शुरु होने से पहले हर साल फरवरी में पत्तियों की सफाई की जाती है। इसके बाद गर्मी के मौसम में भी अग्निरेखा क्षेत्र को निरंतर साफ किया जाता है। जिससे यदि कहीं आग लग भी जाये तो उसे दूसरे जंगलों में फैलने से रोका जा सके।       

3. एक समय था, जब पहाड़ों से पानी की छोटी छोटी धाराएं निकलती दिखाई देती थीं और हर तरफ हरे भरे मौसमी पेड़ पौधे और फल लगते थे। आज ज्यादातर पहाड़ों पर सूखी पीली घास दिखती है। कई पहाड़ जलने के कारण काले दिखने लगे हैं। पर्यावरण और वन्य जीवन के लिए इसे कितना बड़ा खतरा कह सकते हैं?

उत्तर- पर्वतीय क्षेत्रों के लिये यह स्थापित सत्य है कि अगर पहाड़ों पर पानी है तो आग नहीं लगती है और पानी वहां ज्यादा होता है जहां जंगल होते हैं। पहाड़ों पर जंगलों की कमी के लिये पेड़ों का अवैध कटान को एक बड़ी वजह माना जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि वनक्षेत्र के प्रसार को देखते हुये पेड़ों के अवैध कटान की दलील सही नहीं मानी जाती है। इसके बजाय सड़क आदि विकासकार्यों के लिये पेड़ों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी की अधिकता के कारण जलस्रोतों का सिमटना आग की घटनाओं की बड़ी वजह है। साथ ही पहाड़ी इलाकों में आबादी में इजाफे और विकास कार्यों के लिये पानी के उपभोग में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण जलदोहन बढ़ा है। इससे भूमिगत और पहाड़ी जलस्रोत खत्म रहे हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन और अवैध खनन, सड़क निर्माण आदि परियोजनाओं के फलस्वरूप भूस्खलन और भूचाल जैसी आपदायें भी बढ़ी हैं। यह स्थिति पर्यावरण, वन्य जीवन और इंसानी जीवन के लिए बड़ा खतरा बन गयी है। 

4. इतने साल से हम पहाड़ों में आग लगने की घटनाओं के बारे में सुनते हैं, लेकिन इन्हें रोकने की दिशा में किये जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। शासन और प्रशासन इस दिशा में कोई ठोस उपाय क्यों नहीं कर पाते?

उत्तर- आग रोकने के उपायों को नाकाफी नहीं कहा जा सकता है। भौगोलिक और अन्य स्थानीय परिस्थितियों के मुताबिक आग रोकने के हर साल पर्याप्त उपाय किये जाते हैं। इनमें वनकर्मियों का नियमित प्रशिक्षण, स्थानीय लोगों को जागरुक करना और नियमित रूप से जंगलों में और सड़कों एवं खेतों के आसपास अग्निरेखा क्षेत्र की सफाई करना शामिल है। इस बीच पिछले कुछ सालों में गर्मी की अधिकता को देखते हुये आग पर निगरानी रखने वाले कर्मियों की तैनाती को बढ़ाया गया है। साथ ही सरकार के स्तर पर चीड़ की सूखी पत्तियों को एकत्र करने के त्वरित उपाय खोजने के अलावा एकत्रित पत्तियों के पुनर्उपयोग के विकल्प तलाशे जा रहे हैं। 

5. जंगलों में आग लगने की घटनाएं अन्य देशों में भी होती हैं। हमारे देश में और दूसरे देशों में इस तरह की घटनाओं पर काबू पाने के लिए किये जाने वाले उपायों में क्या फर्क है। क्या हमारे पास इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं? 

उत्तर- दुनिया भर में चीड़ या इस तरह की लकड़ी के वाले जंगलों में आग की घटनायें प्राय: अधिक देखी जाती हैं। जहां तक आग को बुझाने के तरीकों में अंतर का सवाल है तो बेशक अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में हेलीकॉप्टर का अधिकतम इस्तेमाल होता है। लेकिन भारत में भौगोलिक परिस्थतियों को देखते हुये हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल मुमकिन नहीं है। क्योंकि भारत में यह घटनायें शिवालिक पर्वत श्रेणी वाले इलाकों में होती है। पहाड़ी दुर्गम इलाकों में हेलीकॉटर की हवा से आग फैलने के खतरे को देखते हुये इसका इस्तेमाल नहीं होता है। इस मामले में मानवश्रम पर निर्भरता अधिक होती है।

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इसका तात्पर्य यह नहीं है कि भारत में जंगलों की आग रोकने के लिये तकनीकी का इस्तेमाल नहीं होता है। इसके लिये तकनीकी संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता के मुताबिक उपग्रह आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल व्यापक तौर पर किया गया है। इससे आग लगने की जगह की सटीक पहचान करने और आग को आगे बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है।

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जंगल की आग का क्या कारण है उत्तर?

जंगल में आग लगने के प्रमुख कारण जंगल में दावानल की बड़ी वजह मानव जनित होती है। कई बार लोग जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास के ढेर में आग लगा देते हैं। जिसके चलते कई बार आग विकराल हो जाती है। वन कर्मियों की संख्या सीमित होने के कारण भी समय से आग पर काबू न हो पाने से दावानल की घटनाएं बढ़ रही हैं।

आग लगने का तीन कारण क्या है?

आग लगने के अनेको कारण है आग घरो मे, बाजारो मे, जंगलों मे और बिजली घरो मे कही भी लग सकती हैं। लोग घरो मे गैस पर खाना बना कर उसे बंद करना भूल जाते हैं। जब लोग कपड़ा प्रेस करती है तो कभी-कभी प्रेस को लगाकर भूल जाते हैं या उसे ज्यादा देर तक गर्म होने को लिये छोड़ देती है।

वन में आग कैसे लगता है?

जंगलों में आग लगने की ज्यादातर घटनाएं इंसानों के कारण होती हैं, जैसे आगजनी, कैम्पफायर, बिना बुझी सिगरेट फेंकना, जलता हुआ कचरा छोड़ना, माचिस या ज्वलनशील चीजों से खेलना आदि। जंगलों में आग लगने के मुख्य कारण बारिश का कम होना, सूखे की स्थिति, गर्म हवा, ज्यादा तापमान भी हो सकते हैं।

जंगल में आग लगने से क्या क्या नुकसान होता है?

आग लगने से जंगली जानवर तो भाग कर अपनी जान बचा लेते हैं, परंतु पेड़ों पर बने पक्षियों के घोंसले भी जल जाते हैं और उनमें पाल रहे चिड़ियों के बच्चे भी झुलस जाते हैं। आग की घटनाओं से वन संपदा को तो नुकसान होता ही है, पर्यावरण भी प्रदूषित हो जाता है। आग लगने से गर्मी में भी बढ़ोतरी हो रही है।