सवाल: हिंदी साहित्य के इतिहास को कितने भागों में विभाजित किया गया है? Show
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने "शोध पूर्ण ग्रंथ" मे हिंदी साहित्य के इतिहास का काल विवेचन कुछ इस प्रकार किया है।
यानी की हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है। जो निम्नलिखित है। (1) वीरगाथा काल - आचार्य शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य के इतिहास के प्रारंभिक काल को वीरगाथा काल के नाम से संबोधित किया है। इस काल के अंदर इन्होंने दो प्रकार की रचनाएं तैयार की है अपभ्रंश और देशज अपभ्रंश पुस्तकों में विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्ति लता और कीर्ति पताका मात्र चार साहित्य रचनाएं हैं देशज भाषा की 8 कृतियों का उल्लेख है। (2) भक्ति काल - इस काल को "पूर्व मध्यकाल और धार्मिक काल" के नाम से भी जाना जाता है। परंतु धर्म इस काल की कोई प्रवृत्ति नहीं है इस काल की मूल रूप से तीन प्रवृतियां है ग्यानामारगी, प्रेम मार्गी भक्ति मूलक इसमें भक्ति भावना प्रमुख प्रवृत्ति है इसमें सगुण और निर्गुण भक्ति दो काव्य धाराएं हैं इसमें राम चरित्र कृष्ण चरित्र प्रथम साखा में तुलसीदास वह दूसरी शाखा में मीरा सूरदास रहीम आदि है निर्गुण भक्ति काव्य धारा में प्रेमाश्रय शाखा के अंतर्गत जायसी कूटू बने रहीम आदि प्रसिद्ध है ज्ञानाश्रई शाखा में कबीर दास मूल दास पलटू दास रैदास आदि प्रमुख है इस काल के इतिहास को "स्वर्ण काल" भी कहते हैं। (3) रीतिकाल - आचार्य शुक्ल जी ने इस काल में रीति ग्रंथों रस अलंकार ध्वनि प्रवृत्ति के कारण इस काल को रीतिकाल कहा जाता है इसमें राधा श्री कृष्ण की प्रेम लीला ओं के नाम पर गौर अश्लील हाव भाव का वर्णन है इस काल को उत्तर वैदिक काल के नाम से भी जाना जाता है (4) आधुनिक काल - हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल का विशेष स्थान है आचार्य शुक्ल इसे गद्य काल कहते हैं। इनके अनुसार गद्दे का अभिर्वाव इस काल की सबसे प्रधान घटना है आधुनिक काल को भी अनेक भागों में विभाजित किया गया है भारतेंदु काल द्वेदी युग छायावादी युग प्रगति योगी प्रयोगवाद युग तथा नयी कविता । Rjwala is an educational platform, in which you get many information related to homework and studies. In this we also provide trending questions which come out of recent recent exams.
हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा तक जातीं हैं परन्तु मध्ययुगीन भारत के अवधी, मागधी , अर्धमागधी तथा मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य को हिन्दी का आरम्भिक साहित्य माना जाता हैं। हिन्दी साहित्य ने अपनी शुरुआत लोकभाषा कविता के माध्यम से की और गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ। हिन्दी का आरम्भिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिन्दी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है- गद्य, पद्य और चम्पू। जो गद्य और पद्य दोनों में हो उसे चम्पू कहते है। खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी है, इस विषय में विवाद है लेकिन अधिकांश साहित्यकार लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे गये उपन्यास परीक्षा गुरु को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। हिन्दी साहित्य का आरम्भ[संपादित करें]हिंदी साहित्य का आरम्भ आठवीं शताब्दी से माना जाता है। यह वह समय है जब सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद देश में अनेक छोटे-छोटे शासन केन्द्र स्थापित हो गए थे जो परस्पर संघर्षरत रहा करते थे। मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी। हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिये पाँच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित कर देखते हैं, जो क्रमवार निम्नलिखित हैं:-
आदिकाल[संपादित करें]हिन्दी साहित्य आदिकाल को आलोचक 1400 ईसवी से पूर्व का काल मानते हैं जब हिन्दी का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी की विकास-यात्रा दिल्ली, कन्नौज और अजमेर क्षेत्रों में हुई मानी जाती है। पृथ्वीराज चौहान का उस समय दिल्ली में शासन था और चंदबरदाई नामक उसका एक दरबारी कवि हुआ करता था। चंदबरदाई की रचना 'पृथ्वीराजरासो' है, जिसमें उन्होंने अपने मित्र पृथ्वीराज की जीवन गाथा कही है। 'पृथ्वीराज रासो' हिन्दी साहित्य में सबसे बृहत् रचना मानी गई है। कन्नौज का अन्तिम राठौड़ शासक जयचंद था जो संस्कृत का बहुत बड़ा संरक्षक था। भक्ति काल[संपादित करें]हिन्दी साहित्य का भक्ति काल 1375 से 1700 तक माना जाता है। यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएँ हैं -1.निर्गुण भक्तिधारा तथा 2.सगुण भक्तिधारा। निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बाँटा गया है। एक है संत काव्य जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में भी जाना जाता है, इस शाखा के प्रमुख कवि, कबीर, नानक, दादूदयाल, रैदास, मलूकदास, सुन्दरदास, धर्मदास[1] आदि हैं। निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा सूफी काव्य का है। इसे प्रेमाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुबन, मंझन, शेख नबी, कासिम शाह, नूर मोहम्मद आदि। भक्तिकाल की दूसरी धारा को सगुण भक्ति धारा कहा जाता है। सगुण भक्तिधारा दो शाखाओं में विभक्त है- रामाश्रयी शाखा, तथा कृष्णाश्रयी शाखा। रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- तुलसीदास, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, हृदयराम, प्राणचंद चौहान, महाराज विश्वनाथ सिंह, रघुनाथ सिंह। कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं- सूरदास, नंददास, कुम्भनदास, छीतस्वामी, गोविन्द स्वामी, चतुर्भुज दास, कृष्णदास, मीरा, रसखान, रहीम आदि। चार प्रमुख कवि जो अपनी-अपनी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये कवि हैं (क्रमशः) कबीरदास (1399)-(1518)मलिक मोहम्मद जायसी (1477-1542)सूरदास (1478-1580)तुलसीदास (1532-1602)रीति काल का परिचय[संपादित करें]हिंदी साहित्य का रीति काल संवत 1700 से 1900 तक माना जाता है यानी 1643 ई॰ से 1843 ई॰ तक। रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या बँधी-बँधाई परिपाटी। इस काल को रीतिकाल इसलिए कहा गया है क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों ने श्रृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छन्द बद्धता आदि के बँधे रास्ते की ही कविता की। हालांकि घनानंद, बोधा, ठाकुर, गोबिंद सिंह जैसे रीति-मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे। इस काल को रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त तीन भागों में बाँटा गया है। रीति कालीन कवियों ने समय क़े साथ बहने वाले विचारों पे लेख लिखें l केशव (१५४६-१६१८), बिहारी (1603-1664), भूषण (1613-1705), मतिराम, घनानन्द , सेनापति आदि इस युग के प्रमुख रचनाकार रहे। आधुनिक काल[संपादित करें]आधुनिक काल हिन्दी साहित्य पिछली दो सदियों में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा है। जिसमें गद्य तथा पद्य में अलग अलग विचार धाराओं का विकास हुआ। जहाँ काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग और यथार्थवादी युग इन चार नामों से जाना गया, वहीं गद्य में इसको, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, रामचंद शुक्ल व प्रेमचंद युग तथा अद्यतन युग का नाम दिया गया। अद्यतन युग के गद्य साहित्य में अनेक ऐसी साहित्यिक विधाओं का विकास हुआ जो पहले या तो थीं ही नहीं या फिर इतनी विकसित नहीं थीं कि उनको साहित्य की एक अलग विधा का नाम दिया जा सके। जैसे डायरी, यात्रा विवरण, आत्मकथा, रूपक, रेडियो नाटक, पटकथा लेखन, फ़िल्म आलेख इत्यादि. नव्योत्तर काल[संपादित करें]नव्योत्तर काल की कई धाराएँ हैं - एक, पश्चिम की नकल को छोड़ एक अपनी वाणी पाना; दो, अतिशय अलंकार से परे सरलता पाना; तीन, जीवन और समाज के प्रश्नों पर असंदिग्ध विमर्श। कम्प्यूटर के आम प्रयोग में आने के साथ साथ हिन्दी में कम्प्यूटर से जुड़ी नई विधाओं का भी समावेश हुआ है, जैसे- चिट्ठालेखन और जालघर की रचनाएँ। हिन्दी में अनेक स्तरीय हिंदी चिट्ठे, जालघर व जाल पत्रिकायें हैं। यह कंप्यूटर साहित्य केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के हर कोने से लिखा जा रहा है। इसके साथ ही अद्यतन युग में प्रवासी हिन्दी साहित्य के एक नए युग का आरम्भ भी माना जा सकता है। हिन्दी की विभिन्न बोलियों का साहित्य[संपादित करें]भाषा के विकास-क्रम में अपभ्रंश से हिन्दी की ओर आते हुए भारत के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग भाषा-शैलियाँ जन्मीं। हिन्दी इनमें से सबसे अधिक विकसित थी, अतः उसको भाषा की मान्यता मिली। अन्य भाषा शैलियाँ बोलियाँ कहलाईं। इनमें से कुछ में हिन्दी के महान कवियों ने रचना की जैसे तुलसीदास ने रामचरित मानस को अवधी में लिखा और सूरदास ने अपनी रचनाओं के लिए बृज भाषा को चुना, विद्यापति ने मैथिली में और मीराबाई ने राजस्थानी को अपनाया। हिंदी की विभिन्न बोलियों का साहित्य आज भी लोकप्रिय है और आज भी अनेक कवि और लेखक अपना लेखन अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में करते हैं। हिन्दी साहित्य के लिए पुरस्कार[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]प्रमुख हिंदी साहित्यकार[संपादित करें]
हिन्दी के प्रमुख ग्रन्थ[संपादित करें]अन्य[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
हिंदी साहित्य कितने भागों में बांटा है?इसमें हिंदी साहित्य की विकास-यात्रा के चार काल खण्डों आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिककाल की सामान्य प्रवृत्तियों, कवियों एवं विशिष्टताओं का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
हिंदी साहित्य के इतिहास को कितने भागों में विभाजित किया गया है प्रत्येक के नाम लिखकर एक एक रचना लिखिए?डा रामचन्द्र शुक्ला ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बाँटा है। (१)आदिकाल या वीरगाथा काल इसकाल की मुख्य रचना पृथ्वीराज रासो,परमार रासो हैं। (२) भक्तिकाल इसकाल के मुख्य कवि सूरदास,तुलसीदास , कबीर दास,मलिक मुहम्मद जायसी हैं।
|