जब सूरज अस्त होता है तो दरवाजे हर कोई बंद करता है लेकिन जब भाग्य का सूरज अस्त होता है तो भी दुनिया के दरवाजे बंद हो जाते हैं। जब कभी ऐसी स्थिति आये तो आप ध्यान रखना कि सभी दरवाजे बंद हो सकते हैं लेकिन ‘परमात्मा’ का दरवाजा कभी बंद नहीं होता, वह हमेशा खुला रहता है। अगर वह एक दरवाजा बंद करता भी है तो अनेक दरवाजे खोलता है। उदासी और दु:ख में डूबा हुआ इंसान बंद दरवाजे की ओर देखता है और भगवान की कृपा के जो दरवाजे खुले हुए हैं, उधर नहीं देखता। जब हम भगवान को भूलते हैं और किसी अहंकार में आकर यह सोचते हैं कि मेरी अक्ल, मेरी शक्ति, मेरा सामर्थ्य और मेरी योग्यता के कारण ही यह सब संभव हुआ है और मैं अपने कार्यों में सफल हुआ हूं तो ध्यान रखना घमंड से इंसान फूल सकता है परन्तु फल नहीं सकता क्योंकि परमात्मा को किसी का अहंकार बर्दाश्त नहीं है। जब व्यक्ति ऐसा करता है तभी चोट खाता है। ‘विनम्रता’ परमात्मा की ओर उन्मुख होने का सशक्त माध्यम है। हम कितने भी आगे बढ़ जायें, कितने भी ऊंचे उठ जायें लेकिन हर किसी की झोली भगवान के सामने फैली ही रहती है। भगवान जब हंसता है, कृपा करता है तो हमारा रोम-रोम हंसता है। अगर भगवान आंखों में आंसू देता है तेा हंसने के कितने भी साधन हमारे पास हों किसी से भी हमें खुशी नहीं मिलती है। शांति तो परमात्मा ही देता है बिना उसके कृपा के बात बनती नहीं। भगवान कृष्ण ने गीता में भी कहा है कि ‘ज्योतियों की भी एक ज्योति है परमेश्वर और वह सर्वत्र विद्यमान है। उस परमेश्वर को ‘दिव्य दृष्टि’ प्राप्त करने के बाद ही उसके दर्शन हो सकते हैं। उसे तत्व ज्ञान के द्वारा ही पाया जा सकता है। परमात्मा को जानने के बाद कुछ जानना बाकी नहीं रह जाता है। उसी परम तत्त्व को जानने, समझने और पाने के लिए हम दुनिया में आये हैं। हर व्यक्ति परिधि से केन्द्र की ओर जाना चाहता है। मनुष्य का केन्द्र क्या है, जिसकी तरफ वह दौड़ता है? दरअसल हर आदमी सुखी होना चाहता है, आनंदित होना चाहता है। ऐसा प्रेम चाहता है जो कभी खत्म न हो, जिसमें पूर्णता हो, एक ऐसी शांति पाना चाहता है जिसे पाने के बाद कभी भी विक्षोभ न हो, मन सतृंप्त हो, व्याकुलता न हो। पूर्ण तृप्ति मिल जाये। ऐसी निर्भयता, निश्चिन्तता, प्रफुल्लता, प्रसन्नता, पूर्ण आनंद का नाम ‘परमात्मा’ है। वह ज्योति ही एकमात्र ‘ज्योति’ है जो सभी अंधेरों, दु:खों के पार है। इसी ज्योति के लिए ज्ञानी और ध्यानी लोग कहते हैं कि–‘हम वासी उस देश के जहां परमब्रह्म का खेल’ अर्थात् हम उस देश के वासी हैं जहां परमब्रह्म परमेश्वर का लगातार खेल चल रहा है, क्रीड़ा चल रही है, आनंद छा रहा है। जहां उत्सव मनाये जा रहे हैं, जहां आनंद की हिलोरे उठ रही है। हर समय जहां परमात्मा की शक्तियां चारों तरफ बिखर रही हैं, जहां उसका पूर्ण प्रेम प्रकट हो रहा है वही हमारा ‘आनंदधाम’ है। आत्मसाधना से आत्मउत्थान का हमेशा प्रयत्न करना चाहिए। जिंदगी में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ें। हम दुनिया में क्यों आए हैं?...चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। आपका सवाल है कि हम दुनिया में क्यों आए हैं भैया दुनिया में आने का एक ही मकसद होना चाहिए कि हमें कुछ अच्छा काम करना है और अच्छे से अपने जीवन को व्यतीत करना है अच्छे से मतलब इमानदारी से रहना है हमेशा सत्य का साथ देना है और सत्य का कभी साथ नहीं देना है भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ आवाज उठाना है मेरे तो जीवन का यही लक्ष्य और सभी लोगों के जीवन का यही लक्ष्य होना चाहिए आप कुछ ऐसी एक्टिविटी मत करिए कि दूसरे को दूसरों को दुख पहुंचा दूसरों को देखे दुख मत पहुंचा यह कभी भी और मैं यह कहना चाहता हूं किसी भी गरीब बुजुर्ग किसी महिला किसी लड़की किसी का अपमान मत करिए जब आप ऐसा करेंगे तो आप जिंदगी में तरक्की करेंगे बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो महिलाओं का लड़कियों का बुजुर्गों का जानवरों का अपमान करते हैं उन्हें प्रताड़ित करते हैं उन्हें दुख पहुंचाते हैं वह लोग जीवन में कभी तरक्की नहीं कर पाते हैं उनकी जिंदगी बहुत ही खराब हो जाती है आगे चल के तो जीवन में आने का एक ही मकसद है कि हमें कुछ समाज के लिए अच्छा कार्य करना है समाज के लिए अच्छा कार्य करने का मतलब हमें अच्छे लोगों के साथ तो हमें रहना है अच्छा काम करना है लेकिन बुरे लोगों के साथ भी रहकर हमें उन्हें अच्छा बनाना है हमारे जीवन का यह लक्ष्य होना चाहिए अगर कोई गलत काम करने वाला व्यक्ति है आपका दोस्त है तो आप उसके साथ रहिए उसका साथ मत छोड़िए और उसके साथ रहकर उस उसके उसको चेंज करिए उसको अच्छा बनाइए जब आप उसे अच्छा बना लेंगे तो आप दुनिया के सबसे अच्छे व्यक्ति हैं आपको लगेगा कि जीवन मेरा धन्य हो गया जब हम लोग बुराइयों को खत्म किसी की बुराइयों को खत्म करके उसमें अच्छाई जब भारते हैं तो जरा सोचिए कि समाज में कितना बदलाव होगा तो समाज में बदलाव करने के लिए हमें गलत काम करने वाले व्यक्तियों की सोच को बदलनी होगी जब उनकी सोच बदलेगी तो धीरे-धीरे हमारा समाज अच्छा होगा समाज अच्छा होगा तो हमारे हमारे देश से गरीबी का खात्मा होगा समाज में सभी लोग खुश रहेंगे अमीर गरीब छोटे बड़े सभी लोग खुश रहेंगे जरा सोचिए कि सभी लोग खुश रहेंगे तो कितना अच्छा लगेगा कितना अच्छा माहौल होगा धन्यवाद Romanized Version 13 जवाब This Question Also Answers:
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मनुष्य का जन्म क्यों होता है?मानव जन्म का मूल उद्देश्य ईश्वर निराकार प्रभु की प्राप्ति करना ही है। जिसके द्वारा ही मानव के भ्रम, कर्मकांड की बेड़ियों से निजात पाकर निराकार परमात्मा का दर्शन किया जा सकता है।
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