Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 10 वाख Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. Std 9 GSEB Hindi Solutions वाख Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास प्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. ख. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 8.
GSEB Solutions Class 9 Hindi वाख Important Questions and Answers अतिरिक्त प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न 1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव । भावार्थ : कवयित्री कहती हैं कि मैं शरीररूपी नाव को साँसों की कच्चे धागे से बनी रस्सी के सहारे खींच रही हूँ । न मालूम कब ईश्वर मेरी पुकार सुनेंगे और मुझे संसाररूपी सागर के पार उतारेंगे । यह शरीर कच्ची मिट्टी से बने पान जैसा है, जिसमें से पानी टपक-टपककर कम होता जा रहा है अर्थात् समय व्यतीत हो रहा है, प्रभु को पाने के मेरे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं । मेरी आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल हो रही है । बार-बार की असफलता के कारण मेरा मन तड़प रहा है । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. 2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, भावार्थ : कवयित्री कहती है कि हे मनुष्य ! तू बाह्याडंबरों से बाहर निकल । सांसारिक भोग-विलासिता में लिप्त रहने से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा । और न ही त्याग तपस्या का जीवन अपने से ही प्रभु की प्राप्ति होगी, क्योंकि इससे तो तू अहंकारी बन जाएगा । यदि परमात्मा को पाना है तो भोग-त्याग, सुख-दुःख में मध्य का मार्ग अपना कर समभावी बनना होगा तब प्रभु प्राप्ति का द्वार खुलेगा । प्रभु से मिलन होगा । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. 3. आई सीधी राह से, गई न सीधी राह । भावार्थ : कवयित्री कहती हैं कि ईश्वर को पाने के लिए संसार में वह सीधे रास्ते से आई थी, लेकिन संसार में आकर मोहमाया आदि के चक्कर में पड़कर रास्ता भूल गई । वह जीवनभर योग-साधना, सुषुम्ना नाड़ी के सहारे कुंडलिनी जागरण में ही लगी रही । इसी तरह देखते-देखते समय बीत गया । अब मृत्यु की घड़ी निकट आ चुकी है । जब उन्होंने अपने जीवन का लेखाजोखा किया तो पाया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है । भवसागर पार उतारनेवाले प्रभु सपी माँझी उतराई के रूप में पुण्यकर्भ माँगेंगे तो वह क्या देगी ? अपनी स्थिति पर उन्हें बहुत पश्चाताप हो रहा है । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. 4. थल-थल में बसता है शिव ही, भावार्थ : कवयित्री ने ईश्वर को सर्वव्यापी बताते हुए समस्त जड़-चेतन में उसका वास बताया है । वे कहती हैं कि हे मनुष्य ! तू जाति-धर्म के आधार अपने आपको हिन्दू-मुसलमान में मत बाँट, एक-दूसरे को अपना ले । ईश्वर को जानने से पहले तू स्वयं को पहचान । आत्मज्ञान के बाद परमात्मा का ज्ञान स्वतः हो जाता है । आत्मा में ही परमात्मा का निवास है इसलिए आत्मज्ञान ही ईश्वर जानना है । प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. वाख Summary in Hindiकश्मीरी भाषा की लोकप्रिय कवयित्री ललयद का जन्म कश्मीर स्थित पाम्पोर के सिमपुरा गाँव में हुआ था । उनके जीवन के बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है । उन्हें लल्लेश्वरी, लला, ललयोगेश्वरी, ललारिका आदि नामों से भी जाना जाता है । ललयद की रचनाओं को याख्ख कहा जाता है । जिसका अर्थ वाणी, शब्द या कथन है । वाख्न चार पंक्तियों में बद्ध कश्मीरी शैली की गेय रचना है । कबीर के दोहे, मीरा के पद, तुलसी की चौपाई और रसखान के सवैये की तरह ही ललगद के वाख प्रसिद्ध हैं । उन्होंने अपनी रचनाओं में धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर भक्ति के रास्ते पर चलने पर जोर दिया है । उन्होंने धार्मिक आहबरा का विरोध किया और प्रेम को सबसे बड़ा मूल्य बताया । ललद्यद की रचनाएँ लोकजीवन के तत्त्वों से प्रेरित हैं । उनकी रचनाएँ संस्कृत और फारसी के स्थान पर जनता की सरल भाषा में हैं । कविता परिचय : प्रस्तुत पाठ में कश्मीरी कवयित्री ललपद के चार वाखों का हिन्दी अनुवाद है । पहले चाख में ईश्वर प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों की व्यर्थता की बात की गई है । दूसरे वाख्न में बाहाडंबरों का विरोध करते हुए समानता की भावना पर बल दिया गया है ! तीसरे वाख्न में भवसागर पार करने के लिए सत्कर्म को महत्त्वपूर्ण बताया गया है । चौथे थान में भेदभाव का विरोध किया गया है, साथ ही साथ ईश्वर के सर्वव्यापी होने का एहसास कराया गया है । उन्होंने आत्मज्ञान को ही सच्चा ज्ञान माना है । शब्दार्थ-टिप्पण :
द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?कवयित्री के कच्चेपन के कारण उसके मुक्ति के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं अर्थात् वह इस संसारिकता तथा मोह के बंधनों से मुक्त नहीं हो पा रही है ऐसे में वह प्रभु भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रहीं है। उसमें अभी पूर्ण रुप से प्रौढ़ता नहीं आई है।
वाख पाठ के आधार पर लिखिए कि कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?उत्तर : कवयित्री इस संसार में उपस्थित लोभ, मोह-माया आदि से मुक्त नहीं हो पा रही है। वह प्रभु भक्ति के सहारे इस भवसागर को ,पार करना चाहती है। उसकी साँसों की डोर अत्यंत कमजोर है, इसलिए कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए गए सारे प्रयास विफल हो रहे हैं।
कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना किससे की है और क्यों?उत्तर: कवयित्री ने अपने व्यर्थ हो रहे प्रयासों की तुलना कच्चे सकोरों से की है। मिट्टी के इन कच्चे सकोरों में जल रखने से जल रिसकर बह जाता है और सकोरा खाली रहता है उसी प्रकार कवयित्री के प्रयास निष्फल हो रहे हैं।
वाख की कवयित्री का कौन सा प्रयास व्यर्थ हो रहा है?कवयित्री का 'घर जाने की चाह' से क्या तात्पर्य है ? 4. भाव स्पष्ट कीजिए- (क) जेब टटोली कौड़ी न पाई । (ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी ।
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