Show Read Time:7 Minute, 24 Second रामवृक्ष बेनीपुरी एक अद्भुत रचनाकार – संजीव जैन हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के लेखकों में रामवृक्ष बेनीपुरी एक विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं, परंतु हिन्दी साहित्य के इतिहास में उन्हें वह विशिष्ट स्थान प्राप्त नहीं हुआ। वे एक लेखक होने के साथ साथ महान विचारक, चिन्तक, क्रान्तिकारी, पत्रकार, और संपादक भी थे। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध रचनाकार थे। आपका जन्म: 23 दिसंबर 1899, मुजफ्फरपुर जिले के वेनीपुर ग्राम के एक कृषक परिवार में हुआ था और 7 सितंबर 1968, को आपने पार्थिव देह को छोड़कर परलोक गमन किया। राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी के कारण अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर देश सेवा में लग गये। असहयोग आंदोलन के दौर में अपने निजी जीवन को छोड़कर देश के लिए जीवन न अर्पिता करने वाले देश भक्तों की सूची में रामवृक्ष बेनीपुरी का नाम भी शामिल है। रामवृक्ष बेनीपुरी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में जो योगदान है उसका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। वे बहुमुखी प्रतिभा के रचनाकार थे। आपने अनेक विधाओं में लेखनी चलाई है – कहानी, नाटक, उपन्यास, रेखाचित्र, यात्रा-विवरण, संस्मरण एवं निबन्ध आदि विधाओं के माध्यम से साहित्य को समृद्ध किया। ‘बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ की स्थापना में भी इनका विशेष योगदान रहा। अनेक विधाओं में लेखन करने के बावजूद आपके रेखाचित्र एवं यात्रा-वर्णन हिन्दी-साहित्य में बेजोड़ है। आपका पूरा सहित्य ‘बेनीपुरी ग्रन्थावली’ के रूप समें कई खण्डों में प्रकाशित हो चुका है उपन्यास- पतितों के देश में, कहानी-संग्रह- चिता के फूल निबन्ध-संग्रह- गेहूँ और गुलाब, मशाल, वन्दे वाणी विनायाको, रेखाचित्र- माटी की मूरतें, लाल तारा, संस्मरण- मील के पत्थर तथा जंजीर की दीवारें,यात्रा-वृत्तान्त- पैरो में पंख बांधकर आैैर उड़ते चल, जीवनी- कार्ल मार्क्स, जयप्रकाश नारायण, महाराणा प्रताप सिंह, नाटक- अम्बपाली, सीता की मां, राम राज्य, सम्पादन – बालक अरुण भारत युवक, किसान मित्र, कर्मवीर, कैदी, जनता, हिमालय, नयी धारा,(चुन्नू-मून्नू) अादि। इसके अतिरिक्त ‘विद्यापति की पदावली’ एवं ‘बिहारी सतसई’ आपकी अन्य उल्लेखनीय रचनाएं हैं। बेनी पुरी जी मार्क्सवादी चिंतक भी थे चूंकि उन्होंने मार्क्स की जीवन लिखी है, अतः उनकी रचनाओं में आजादी के पहले भारत की अंदरूनी हालात के दृश्य और उसकी त्रासदियों के साथ साथ गांव के जीवन के अद्भुत दृश्य और चरित्रों का तालमेल दिखाती देता है उनकी कहानियां वर्गीय खाइयों और उससे उपजी विषमताओं को खूब गहरे से चित्रित करती हैं जैसे कि ‘चिता के फूल’ और ‘उस दिन झोपड़ी रोई’ नामक कहानियों को देखा जा सकता हैं, इनमें भारत की आज़ादी के अंतर्विरोधों को समझा जा सकता है। वर्ग विशेष के लिए स्वतंत्रता के मायने, उसकी परिणति और लड़ाइयां, क्या अर्थ रखती हैं, यह देखा जा सकता है। “इन दोनों कहानियों में उन्होंने 1930 और 1940 के दशक के दौरान कांग्रेस और अमीरों और गरीबों के बीच की उस गहरी फांक को कहीं गहरे धंसकर रेखांकित किया है।” हिंदी रेखाचित्र के इतिहास में रामवृक्ष बेनीपुरी रूप से सर्वश्रेष्ठ रेखाचित्रकार माने जाते हैं। बेनीपुरी जी के रेखाचित्रों में एक जीवंत जीवन की महक अनुभव होती है।। उनको पढ़ते हुए ऐसा लगता है की हम शीत ऋतु में हरे भरे खेत की मेढ़ से गुजर रहे हों। खेतों से उठती हरवायंदी गंध समाने तन मन को ताजा कर देती है। ऐसे ही इनके रेखाचित्रों से गुजरते हुए महसूस होता है। ‘माटी की मूरतें’ (सन् 1946) संग्रह से इन्हें प्रसिद्धि मिली। इस संग्रह में इन्होंने भारतीय समाज के उपेक्षित जीवन से पात्रों को चुना और उन्हें अपनी कलम से गढ़कर नायक का दर्जा दे दिया। इसका प्रमाण है ‘रजिया’ नामक रेखाचित्र। इसमें निम्नवर्ग की एक बालिका रजिया को अपने सूक्ष्म निरीक्षण और गहरी अनुभूति से जीवंत कर दिया है। रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्रों की भाषा भावना प्रधान है। कुछ आलोचक तो उनकी भाषा को गद्य काव्य की संज्ञा भी देते हैं। बेनीपुरी के रेखाचित्रों के बारे में संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्हें जीवन में जो भी पात्र मिले इन्होंने अपनी कुशल लेखनी से उन्हें जीवंत कर दिया। विषय की विविधता और शैली की सरसता का इनके यहाँ अपूर्व संयोजन मिलता है। रेखाचित्र जीवन की सीधे-सीधे अभिव्यक्ति करते हैं। रचनाकार अपनी कलम से साधारण इंसान को भी विशिष्ट बना देता है। यही बेनीपुरी जी ने किया है। आपने अनेक तरह के रेखाचित्र लिखे हैं। व्यक्तिपरक, समस्यापरक, आत्मपरक, घटनापरक इत्यादि। माटी की मूरतें में संकलित रेखाचित्र हैं – रजिया, बलदेव सिंह, सरजू भैया, मंगर,, रूपाआजी, देव, बालगोबिन भगत, भौजी, परमेसर, बैजू मामा, सुभान खाँ, बुधिया। ‘ गेहूं बनाम गुलाब’ उनका सबसे चर्चित ललित निबंध है। इसका लालित्य इसकी भाषा और शिल्प हैं। इसके कथ्य की कल्पना भाषा के लालित्य में द्विगुणित हो गई है। …………………………………………………..
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Surprise 0 % रजिया रेखाचित्र के लेखक कौन है?रजिया रेखाचित्र में लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी एक मनिहारिन रजिया का उल्लेख करता है।
बुधिया के लेखक कौन हैं?➤ 'बुधिया' रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा रचित एक रचना है। जिसके माध्यम से उन्होंने एक स्त्री के जीवन का रेखाचित्र प्रस्तुत किया है। उन्होंने 'बुधिया' नामक एक स्त्री के बचपन से लेकर बुढ़ापे तक के जीवन का मार्मिक चित्रण इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
रज़िया पेशे से क्या थी?हाँ, रज़िया अपने पेशे में भी निपुण होती जाती थी। चूड़ीहारिन के पेशे के लिए सिर्फ़ यही नहीं चाहिए कि उसके पास रंग-बिरंगी चूड़ियाँ हों—सस्ती, टिकाऊ, टटके-से-टटके फैशन की।
रामवृक्ष बेनीपुरी का रेखाचित्र कौन सा है?रामवृक्ष बेनीपुरी की 'कृतियां'
रेखाचित्र – (१) माटी की मूरतें, (२) लाल तारा। संस्मरण – (१) जंजीरें और दीवारें, (२) मील के पत्थर। कहानी – (१) चिता के फूल। उपन्यास – (१) पतितों के देश में।
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