गांव का घर कविता के रचनाकार कौन है? - gaanv ka ghar kavita ke rachanaakaar kaun hai?

ज्ञानेंद्रपति बीसवीं शती के आठवें दशक में एक संभावनाशील युवा कवि के रूप में उदित हुए थे। अपनी आरंभिक रचनाओं से ही उन्होंने लोकपरकता के मूल्य को कभी विसर्जित नहीं किया है। उनकी कविताओं में गाँव, गँवई स्मृति, रहन-सहन, भाषा, लोकगीत आदि एक जीवंत अस्मिताबोध के साथ सामने आते हैं।

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गांव का घर पाठ का सारांश

प्रस्तुत कविता में कवि ज्ञानेंद्रपति इतिहास, परंपरा और स्मृतियों को अपने नितांत समसामयिक समय के साथ रचनात्मक रूप से जोड़ देते हैं और इस तरह अनुभवों को एक विस्तार प्रदान कर देते हैं। वस्तुतः स्मृतियाँ किसी मनुष्य जाति के लिए एक आत्मसंबल का काम करती हैं। वह अपने वर्तमान की दुश्चिंताओं के समानांतर एक प्रतिसंसार रचती हैं। स्मृतियाँ हमारे आज के समयबोध को विस्तृत, प्रशस्त, गरिमामय और काफी हद तक जैविक भी कर जाती हैं। व्यक्ति अपने अतीत को सिर्फ इसलिए याद नहीं करता कि वह यथार्थ के दुख से उसे कुछ देर के लिए मुक्त करता है, बल्कि इसलिए भी याद करता है कि आज के संघर्षों और चुनौतियों के बरक्स वह एक आत्मिक और रागात्मक बल प्रदान करता है। वह व्यक्ति के अनुभवों को ज्यादा मानवीय बनाता है। संबंधों, मूल्यों, नैतिकताओं, मर्यादाओं, विश्वासों से रहित होते जा रहे इस भौतिकवादी समय में स्मृतियाँ ही व्यक्ति और समाज के लिए एक सार्थक भविष्यदृष्टि की प्रस्तावना करती हैं। ऐसी भविष्यदृष्टि जो आगामी समय के लिए, मानवता की हिफाजत के लिए जरूरी हुआ करती है। प्रस्तुत कविता में कवि गाँव पर आधुनिकता के प्रभाव तथा छीजते मानवीय मूल्यों की बेहद कारुणिक तस्वीर सामने रखता है। गँवई जीवन का बंधनरहित, बेलौस, रागात्मक और समूहभावना के चलते आत्मविश्वास का भाव ही गाँव की गरिमा होता है। लेकिन सबकुछ शहरीकरण की आंधी में होम हो जाने को अभिशप्त हो गया है। कवि चौखट, भीत, सर्कस, घर, गाँव और बचपन को याद करता हुआ मानो उस दुनिया में अपने साथ पाठकों को भी लौटा लेना चाहता है, जहाँ पहुँचकर आज के स्वार्थपूर्ण, व्यक्तिवादी परिवेश से आक्रांत और क्षीण मनुष्य पुनः प्रेम, स्वच्छंदता और संबंधों की ऊष्मा को महसूस कर सके। कविता में आल्हा, चैती, बिरहा, होरी जैसे लोकगीतों के मरते जाने की विडंबनापूर्ण स्थिति से पैदा एक अंतःव्याप्त शोकगीत की चर्चा है जिसे न तो कोई गा रहा है और न कोई सुन रहा है। अर्थात् इन लोकगीतों की जमीन पर भी आज से गहन मानवीय रागात्मक संबंधों के वाहक लोकगीत समाप्त हो रहे हैं और इसको कहने-सुनने की चिंता किसी को भी नहीं है। ‘गाँव का घर’ कविता में शहर के समानांतर गँवई नॉस्टेल्जिया है। अतः गँवई तथा देशज शब्द कविता को एक भदेस वातावरण प्रदान करते हैं। कवि पूरी कविता में एक शोक का परिवेश खड़ा करता है लेकिन वह मन में किसी वितृष्णा या तिक्तता की अपेक्षा अपनी भाषाई रौ के चलते एक सघन और मानवीय करुणा को ‘उबुद्ध कर देता है।

 

गांव का घर Subjective Question 

Q. 1. कवि की स्मृति में ‘घर का चौखट’ इतना जीवित क्यों हैं? ”

उत्तर – घर का चौखट’ गाँव में रिश्तों की मर्यादा का एक अनकहा-सा अदृश्य पर्दा था। इस चौखट पर घर की औरतों द्वारा टिकुली सटाने के लिए सहजन के पेड़ से छुड़ायी गोंद चिप हुई थी, जो घर के बुजुर्गों के लिए भी और घर के अंदर की स्त्रियों के लिए भी एक स्नेहपूरित मर्यादा की सीमारेखा थी। अतः कवि की स्मृति में यह चौखट इसीलिए इतना जीवित है क्योंकि आज के छीजते रिश्तों के समय में उसकी अनुभूति एक संबल प्रदान करती है।

Q. 2. ‘पंच परमेश्वर के खो जाने को लेकर कवि चिंतित क्यों हैं?

उत्तर – ‘पंच परमेश्वर’ वस्तुतः गँवई संस्कृति में बेहद सम्मानित और दायित्वपूर्ण न्यायव्यवस्था के प्रतीक हुआ करते थे। गाँव के सर्वाधिक ईमानदार और तटस्य व्यक्ति ही इस रूप में समादृत होते थे। लेकिन पंचायती व्यवस्था आ जाने से ईमानदारी, तटस्थता का यह मूल्य ओछी राजनीति की भेंट चढ़ता गया। इसीलिए कवि चिंतित है।

 

Q. 3. कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी न रोशनी की आवाज ___ यह आवाज क्यों नहीं आती ?

उत्तर – यह आवाज इसलिए नहीं आती क्योंकि यह आवाज गाँव की अंधेरी दुनिया से परे नगरों की चकाचौंध रोशनी के बीच मदमस्त होकर बजाए जा रहे आर्केस्ट्रा की है। यहाँ शहर में बजाया जा रहा आर्केस्ट्रा शहरी जीवनशैली के भोगवाद और व्यक्तिवाद का प्रतीक है, जो अपनी ही ऐशो-आराम की दुनिया में सिमटा, संतृप्त है। उसे गाँव की अंधेरी तथा जहालत मरी दुनिया से कोई साबका नहीं है।

 

Q.4 आवाज की रोशनी या रोशनी की आवाज का क्या अर्थ है ?

उत्तर – आवाज की रोशनी का आशय नगर में तथाकथित राजनीतिक जागरूकता और आंदोलनों के गाँवों में पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव से है। रोशनी की आवाज का आशय नगर के भौतिक विकास की अनुगूँज और पहुँच गाँवों तक न हो पाने की विडंबनापूर्ण स्थिति से है।

 

Q. 5. कविता में किस शोकगीत की चर्चा है ?

उत्तर – कविता में आल्हा, चैती, विरहा, होरी जैसे लोकगीतों के मरते जाने की विडंबनापूर्ण स्थिति से पैदा एक अंतःव्याप्त शोकगीत की चर्चा है, जिसे न तो कोई गा रहा है और न कोई सुन रहा है। अर्थात् इन लोकगीतों की जमीन पर भी आज ये गहन मानवीय रागात्मक संबंधों के वाहक लोकगीत समाप्त हो रहे हैं और इसको कहने-सुनने की चिंता किसी को भी नहीं है।

 

Q. 6. सर्कस का प्रकाश बुलीआ किन कारणों से मरा होगा ?

उत्तर – सर्कस का प्रकाश बुलीआ तथाकथित औद्योगिक विकास के चलते, मनोरंजन तया संचार के अन्य त्वरित माध्यमों के वर्चस्व में आ जाने से बंद होते सर्कस की विडंबनापूर्ण स्थिति में अपनी बेरोजगारी से मरा होगा।

 

Q. 7. गाँव के घर की रीढ़ क्यों झुरझुराती है, इस झुरझुराहट के क्या कारण हैं?

उत्तर – गाँव के घर की रीढ़ शहरी अदालतों और अस्पतालों के दूषित और दुर्गंधयुक्त परिसर में जाने की कल्पना से ही झुरझुराती है। इस झुरझुराहट का कारण शहर की अदालतों तथा अस्पतालों में व्याप्त व्यवस्था की सड़ांध के तथा उसकी प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति के रूप में दुर्गंधयुक्त परिसर की कल्पना है। गाँव में लोग पंच परमेश्वर की न्याय व्यवस्था तथा गंवई इलाज से ही प्रसन्न और संतुष्ट रहा करते थे। लेकिन शहर उनसे यह सबकुछ छीनकर उन्हें और जर्जर और कमजोर बनाता जा रहा है।

 

Q. 8. मर्म स्पष्ट करें–

“कि जैसे गिर गया हो गजदंतों को गंवाकर कोई हाथी”

उत्तर – इस वाक्यांश में कवि ने गाँव की आत्मसम्मानपूर्ण स्थिति के पतन की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति की है। जिस प्रकार किसी हाथी के लिए उसके शानदार सफेद दांत उसकी शान, स्वास्थ्य तथा प्रसन्नता के सूचक होते है, उसी तरह गवई जीवन का बंधनरहित, वेळीस, रागात्मक और समूहभावना के चलते आत्मविश्वास का भाव भी गाँव की गरिमा होती है। लेकिन सबकुछ शहरीकरण की आँधी में होम हो जाने को अभिशप्त हो गया है। कवि ने इसी की मार्मिक अभिव्यक्ति उक्त पंक्तियों में की है।

 

Q.9. कविता में कवि की कई मृतियाँ दर्ज हैं। स्मृतियों का हमारे लिए क्या महत्व होता है, इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखें।

उत्तर – स्मृतियाँ किसी मनुष्य जाति के लिए एक आत्मसंबल का काम करती हैं। वे अपने वर्तमान की दुश्चिताओं के समानांतर एक प्रतिसंसार रचती हैं। स्मृतियाँ हमारे आज के समयबोध को विस्तृत प्रशस्त, गरिमामय और काफी हद तक जैविक भी कर जाती हैं। व्यक्ति अपने अतीत को सिर्फ इसलिए याद नहीं करता कि वह यथार्थ के दुख से उसे कुछ देर के लिए मुक्त करता है, बल्कि इसलिए भी याद करता है कि आज के संघर्षों और चुनौतियों के बरक्स यह एक आत्मिक और रागात्मक बल प्रदान करता है। वह व्यक्ति के अनुभवों को ज्यादा मानवीय बनाता है। संबंधों, मूल्यों, नैतिकताओं, मर्यादाओं, विश्वासों से रहित होते जा रहे इस भौतिकवादी समय में स्मृतियाँ ही व्यक्ति और समाज के लिए एक भविष्यदृष्टि की प्रस्तावना करती हैं, ऐसी भविष्यदृष्टि की जो आगामी समय के लिए, मानवता की हिफाजत के लिए जरूरी हुआ करती हैं।

 

Q.10. चौखट, भीत, सर्कस, घर, गाँव और साथ ही बचपन के लिए कवि की चिंता को आप कितना सही मानते हैं? अपने विचार लिखें।

उत्तर – कवि की यह चिंता बिल्कुल स्वाभाविक है। कवि गवई संस्कारों में पला-बढ़ा व्यक्तित्व है। गैंवई जीवन का बंधनरहति, वेलीस, रागात्मक और समूहभावना के चलते आत्मविश्वास का भाव ही गाँव की गरिमा होती है। लेकिन सबकुछ शहरीकरण की आँधी में होम हो जाने को अभिशप्त हो गया है। अतः कवि चौखट, गीत, सर्कस, घर, गाँव और बचपन को याद करता हुआ मानो उस दुनिया में अपने साथ पाठकों को भी लौटा लेना चाहता है, जहाँ पहुँच कर आज के स्वार्थपूर्ण व्यक्तिवादी परिवेश से आक्रांत और क्षीण मनुष्य पुनः प्रेम, स्वच्छंदता और संबंधों की ऊष्मा को महसूस कर सके।

 

Q. 11. जिन चीजों का विलोप हो चुका है और जिनके लिए शोक है, उनकी एक सूची बनाएँ।

उत्तर – घर की चौखट, पंच परमेश्वर, गाँव के घर में मौजूद पूरे गाँव को ही घर मानने का भाव, लोकगीत, सर्कस और उसका प्रकाश बुलौआ।

 

Q.12. ‘गाँव का घर’ कविता का सारांश लिखें।

उत्तर – उत्तर प्रस्तुत कविता में कवि ज्ञानेंद्रपति इतिहास, परंपरा और स्मृतियों को अपने नितांत समसामयिक समय के साथ रचनात्मक रूप से जोड़ देते हैं और इस तरह अनुभवों को एक विस्तार प्रदान कर देते हैं। प्रस्तुत कविता में कवि गाँव पर आधुनिकता के प्रभाव तथ छीजते मानवीय मूल्यों की बेहद कारुणिक तस्वीर सामने रखता है। गवई जीवन का बंधनरहित, बेलौस, रागात्मक और समूहभावना के चलते आत्मविश्वास का भाव ही गाँव की गरिमा होती है। लेकिन सबकुछ शहरीकरण की आँधी में होम हो जाने को अभिशप्त हो गया है। कवि चौखट, भीत ,सर्कस, घर, गाँव और बचपन को याद करता हुआ मानो उस दुनिया में अपने साथ पाठकों को भी छौटा लेना चाहता है, जहाँ पहुँचकर आज के स्वार्थपूर्ण व्यक्तिवादी परिवेश से आक्रांत और क्षीण मनुष्य पुनः प्रेम, स्वच्छंदता और संबंधों की ऊष्मा को महसूस कर सके। कविता में आल्हा, चैती, बिरहा होरी जैसी लोकगीतों के मरते जाने की विडंबनापूर्ण स्थिति से पैदा एक अंतःव्याप्त शोकगीत की चर्चा है जिसे न तो कोई गा रहा है और न कोई सुन रहा है। अर्थात् इन लोकगीतों की जमीन पर भी आज ये गहन मानवीय रागात्मक संबंधों के वाहक लोकगीत समाप्त हो रहे हैं और इसको कहने-सुनने की चिंता किसी को भी नहीं है। ‘गाँव का घर’ कविता में शहर के समानांतर गँवई नॉस्टेल्जिया है। अतः गवई तथा देशज शब्द कविता को एक भदेस वातावरण प्रदान करते हैं। कवि पूरी कविता में एक शोक का परिवेश खड़ा करता है लेकिन वह मन में किसी वितृष्णा की अपेक्षा अपनी भाषाई रौ के चलते एक सघन और मानवीय करुणा को उद्बुद्ध कर देता है।

 

Q.13 ‘गाँव का घर’ कविता में कवि किस घर की बात कर रहे हैं।

उत्तर – ‘गाँव का घर’ कविता में कवि गाँव के उस घर की बात कर रहे हैं जहाँ रिश्तों की मासूम स्मृतियाँ हों। बड़े-बुजुर्गों और छोटों के बीच एक गरिमा और स्नेह का अनकहा बंधन हो। जहाँ सिर्फ परिवार में ही नहीं आस-पड़ोस के लोगों, बूढ़े ग्वाल दादा जैसे लोगों से भी एक आत्मीय संबंध बरकरार हो। लेकिन कवि को निराशा है कि आँख मिचौली करती बिजली, टीवी, चकाचौंध रौशनी पर बजते आर्केस्ट्रा आदि के रूप में तथाकथित विकास और पंचायती राज जैसी संवेदनहीन व्यवस्था के चलते गाँव की आत्मा ही गायब हो गयी है। गाँव के घर में न होरी चैती बिरहा- आल्हा जैसी लोकधुनें हैं न इसी बहाने सामूहिकता को जीने वाले लोग हैं। गाँव के घर का स्वच्छन्द जीवन शहरी अदालतों और अस्पतालों से भयभीत होकर गायब सा हो गया है।

गांव का घर कविता के लेखक कौन है?

'गाँव का घर' कविता ज्ञानेन्द्रपति के किस संग्रह से ली गयी है? 11. किस पाठ में आया है- “कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक न आवाज की रोशनी की आवाज।”

गांव के लेखक कौन है?

गाँव की ओर' उपन्यास के लेखक कौन है? Notes: पंडित मधुकांत झा मधुकर (19 जनवरी 1924 ) एक मैथिली कवि एवं संस्कृत, हिन्दी सहित अनेकों भाषाओं के विद्वान थे।

गांव का घर सिरसा कविता का सारांश क्या है?

Solution : गाँव का घर- गाँव का घर ज्ञानेन्द्रपति समकालीन कवि है वे नवपूँजीवाद और आर्थिक उदारवादी के कारण ग्रामीण संस्कृति में जो बहुआयामी बदलाव आया है उस संस्कृति को नष्ट होता हुआ देख दुखी होते है। उन्होंने जो बचपन के दिन गुजारे है वह स्मृतियों में बीएस जाता है।

घर कविता के कवि निम्न में से कौन है?

गाँव-घर के कवि मिथिलेश कुमार राय की कविताएँ