Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams. Show कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 3प्रश्न 1. प्रश्न 2. कवि चाहता है कि रचनाकार को अपनी बात अत्यंत सहज तथा स्पष्ट शब्दों में कहनी चाहिए। कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य बना रहना चाहिए, जिससे पाठक अथवा श्रोता तक उसकी बात सहज रूप से पहुँच सके। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
प्रश्न 6. फूल के खिलने के साथ ही उसकी परिणति निश्चित है लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी भी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं है। कविता भी शब्दों का एक खेल है जिसमें जड़-चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य साधन मात्र हैं। अत: जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होती है वहाँ सीमाओं के बंधन स्वयं ही टूट जाते हैं। प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. कवि ने प्रसाद गुण का सहज स्वभाविक प्रयोग किया है। इसी कारण उनकी भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल बन पड़ी है। कवि ने दोनों ही कविताओं को छंद-रहित लिखा है। प्रतीकात्मकता एवं व्यंजनात्मकता सर्वत्र विद्यमान है। कवि ने दोनों ही कविताओं को उपदेशात्मक शैली में लिखा है। प्रश्न 19. सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने शब्दार्थ : माने-मायने, अर्थ। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ आरोह भाग-2 में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री कुँवर नारायण हैं। कविता को मन की उड़ान स्वीकार किया जाता है। कोई चिड़िया भी उड़ती है पर चिड़िया और कविता की उड़ान एकसमान नहीं है। इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। व्याख्या : कवि कहता है कि कविता एक उड़ान है। वह किसी चिड़िया की उड़ान के बहाने व्यक्त तो हो सकती है लेकिन कविता में निहित भावों की उड़ान में जो गुण और व्यापकता विद्यमान है, वह भला चिड़िया की सीमित उड़ान में कैसे संभव हो सकती है। चिड़िया तो एक घर से दूसरे घर, बाहर से भीतर या भीतर से बाहर ही उड़ान भरती है। उसकी उड़ान की सीमा बँधी रहती है लेकिन कवि के मन में उत्पन्न होने वाले भावों की कोई सीमा नहीं है। भावों के पंख तो असीम दूरी तथा अनंत ऊँचाई तक उड़ान भर सकते हैं। कविता के द्वारा पंख लगाकर उड़ने का अर्थ तो किसी भी सीमा में न बँधना है। भला एक चिड़िया क्या जाने कि कविता की उड़ान में कितनी व्यापकता है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
6. कविता की तुलना चिड़िया से इसलिए की गई है क्योंकि कविता और चिड़िया में कुछ-न-कुछ समानता होती है। चिड़िया हवा में उड़ान भरती है और कविता कवि की कल्पना में उड़ान भरती है। उड़ती चिड़िया आँखों को लुभाती है और सुनाई गई कविता इनसानी मन-मस्तिष्क को अच्छी लगती है। 2. कविता एक खिलना है फूलों के बहाने प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक आरोह भाग-2 में संकलित ‘कविता के बहाने’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री कुंवर नारायण हैं। कवि का मानना है कि कविता का विषय चाहे कोई हो, पर कविता हर विषय से बढ़कर होती है। कविता में चाहे फूलों के खिलने का वर्णन हो पर कविता तो उससे बढ़कर ही होती है। व्याख्या : कवि कहता है किसी कविता में सुंदर फूलों के खिलने का वर्णन हो सकता है, उनकी शोभा का उल्लेख हो सकता है पर वास्तव में कविता की सुंदरता को फूलों का खिलना नहीं समझा जा सकता। फूल खिलते हैं, कुछ देर महकते हैं और फिर मुरझा जाते हैं। वे सूख कर मिट जाते हैं पर कविता के मधुर भाव तो कभी नहीं मुरझाते। वे मधुर भाव तो बाहर-भीतर, इस घर में, उस घर में, सब जगह व्याप्त रहते हैं। सब के हृदय में जीने की चाह उत्पन्न करते हैं। फूलों की महक और सुंदरता की तुलना किसी भी प्रकार कविता से नहीं की जा सकती। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
4. कविता का खिलना असीमित होता है। कविता एक बार खिलकर बिना मुरझाए सदैव महकती है जबकि फूल का खिलना सीमित है। यह सूर्योदय के समय खिलता और सूर्यास्त के समय मुरझा जाता है। 5. कविता की उड़ान असीमित होती है। कविता बिना मुरझाए महकती रहती है। 3. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण श्री कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित किया गया है जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक आरोह भाग-2 में संकलित किया गया है। कविता की रचना कवि के हृदय की कोमल पुकार होती है। वह अपने आप में एक नया संसार होता है। वह छोटे बच्चों के खेल की तरह होती है जो किसी बंधन में बंधी हुई नहीं होती। उसका संबंध तो सबसे होता है, हर काल से होता है, हर स्थान से होता है। व्याख्या : कवि कहता है कि कविता को किसी बहाने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो बच्चों के खेल की तरह है जो कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थान पर प्रकट हो जाती है। बच्चे अपने खेल में मग्न हो बाहर-भीतर की परवाह नहीं करते। वे इस घर से उस घर में, हर घर में अपने खेल का स्थान ढूँढ़ लेते हैं, उसी प्रकार कविता अतीत के, वर्तमान के, भविष्य के प्रसंगों को प्रकट कर लेती है। वह हर समय के भावों को व्यक्त कर लेती है। कविता की रचनात्मकता में तो अपूर्व ऊर्जा छिपी हुई है। वह किसी भी बंधन में बँधती नहीं है। वह बच्चों के खेल की तरह बेपरवाह है। वह बच्चे के खेल की तरह किसी एक स्थान से बँधी हुई नहीं है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
4. बात सीधी थी पर एक बार शब्दार्थ : सीधी-सरल, सहज। पेचीदा-कठिन, मुश्किल। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के वंद्व को प्रस्तुत करते हुए भाषा के सहज प्रयोग पर बल दिया है। व्याख्या : कवि कहता है कि जब भी कवि अपनी सीधी-सादी भावनाओं को व्यक्त करना चाहता है तो भाषा के चक्कर में फंसकर वह अपनी बात को सहज रूप से कह नहीं पाता जिससे उसकी बात बिगड़ जाती है। वह फिर से कोशिश करता है और भाषा के नए-नए शब्दों को उलट-पुलट और तोड़-मरोड़ कर प्रयोग करता है अर्थात भाषा में अनेक प्रकार के परिवर्तन करता है कि किसी प्रकार से उसकी बात बन जाए परंतु भाषा के आडंबरपूर्ण प्रयोगों से उसकी बात स्पष्ट न होकर और अधिक उलझती गई तथा उसे समझना और भी अधिक कठिन हो गया। वह कथ्य को जितना अधिक सहज बनाना चाहता था, भाषा के जाल में उलझ कर वह और भी अधिक असहज हो गई। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
5. सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना शब्दार्थ : मुश्किल-कठिनता। बेतरह-अनुचित रूप से। पेंच-ऐसा कौल जिसके आधे भाग पर चूड़ियाँ बनी होती हैं; घुमाव, चक्कर, उलझन। धैर्य-धीरता, चित्त को स्थिर रखना। करतब-कार्य, करामात। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के वंद्व को प्रस्तुत करते हुए कथ्य को स्पष्ट करने के लिए भाषा के सहज प्रयोग पर बल दिया है। व्याख्या : कवि कहता है कि वह जब भी कोई बात कहने लगता है शब्द-जाल में उलझकर उसकी बात और भी उलझ जाती है। अपने कथ्य की विभिन्न कठिनाइयों को धीरता से समझे बिना वह उलझन को और अधिक उलझाता जाता है। जैसे कि किसी पेंच को जबरदस्ती कसा जाए और वह ढीली पड़ जाएँ। मेरे इस प्रकार के भाषा के प्रयोगों पर मुझे सुनने वाले मेरे कथ्य को समझे बिना ही मेरे शब्द-चयन पर ही मुझे शाबाशी देने लगते हैं तथा मेरे शब्दाडंबर की प्रशंसा करने लगते हैं। इससे यही होता है कि जैसे पेंच के साथ ज़बरदस्ती करने से उसकी चूड़ियाँ समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार से मेरी जो बात है उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है और वह मात्र शब्दों का जाल बनकर रह जाती है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
6. हार कर मैंने उसे कील की तरह शब्दार्थ : कसाव-कसने का भाव, खिचाव, गहराई, गठन। बरतना-व्यवहार में लाना। सहूलियत-सहजता। प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को प्रस्तुत करते हुए कथ्य को स्पष्ट करने के लिए आडंबरपूर्ण शब्दावली के स्थान पर भाषा के सहज प्रयोग पर बल दिया है। व्याख्या : कवि कहता है कि जब उससे उसकी बात स्पष्ट न हो सकी तथा और भी अधिक उलझती गई तो उसने उसे उसी स्थान पर वैसे ही छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ियाँ मर जाने पर उसे कील की तरह उसी स्थान पर ठोंक दिया जाता है। ऐसी स्थिति में ऊपर से सब कुछ सुंदर और आकर्षक लगता है परंतु उसमें सहज रूप से कसाव और ताकत नहीं आ पाती। आडंबरपूर्ण शब्दावली से वाह-वाही तो मिल जाती है परंतु बात स्पष्ट नहीं हो पाती। इसलिए जब मैं अपनी बात को स्पष्ट न कर सका तो एक शरारती बच्चे के समान मुझसे खेलने वाली बात ने मुझे पसीना पोंछते देखकर मुझसे पूछा कि क्या मैंने भाषा को सहजता से व्यवहार में लाना नहीं सीखा है? वह जानना चाहता था कि मैं शब्दजाल में फंस कर क्यों अपनी बात को उलझाता गया जबकि सहज, सरल भाषा में अपनी बात कहकर मैं सबको अपनी बात समझा सकता था। बात को खेल की तरह ठोकना क्या है ऐसा क्यों कहा जाता है?उत्तर: 'बात को कील की तरह ठोंकना' से कवि का अभिप्राय अपनी बात को अनुपयुक्त भाषा में बलपूर्वक व्यक्त करने से है। पेंच को लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह ठोंकने से उसकी पकड़ में कसावट नहीं आती। कवि ने भावों को अनुपयुक्त क्लिष्ट भाषा में प्रकट करने की जोर-जबरदस्ती की तो कविता का मर्म ही नष्ट हो गया।
बात की चूड़ी मर गई से क्या तात्पर्य है?बात की चूड़ी मर जाना मुहावरे का अर्थ baat ki choodi mar jana muhavare ka arth – प्रभावहीन होना । दोस्तो कहा जाता है की अपनी किसी भी बात कहने के लिए एक सरल और सहज भाषा का प्रयोग करना चाहिए । ताकी सामने वाले को सब कुछ समझ में आ जाए ।
कविता की उड़ान से क्या तात्पर्य है?कविता की उड़ान से कवि का यह आशय है कविता कल्पना प्रधान होती है। कविता भावों और विचारों की उड़ान भरती है। कवि कविता की रचना करते समय कल्पना की उड़ान भरता है।
बिना मुरझाए कौन महकता है कब तक?(ग) बिना मुरझाए कविता हर जगह महका करती है। यह अनंतकाल तक सुगंध फैलाती है।
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