भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है pdf? - bhaarateey arthavyavastha kee mukhy visheshataen kya hai pdf?

भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या है pdf? - bhaarateey arthavyavastha kee mukhy visheshataen kya hai pdf?

भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ | Key features of Indian economy in Hindi

  • भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं को अग्र तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
    • (i) परम्परागत विशेषताएँ या अल्प-विकसित राष्ट्र के रूप में भारत की विशेषताएँ (Traditional Characteristics)-
      • निर्बल आर्थिक संगठन-
      • पूंजी निर्माण की नीची दर-
      • आर्थिक विषमता-
      • तकनीकी ज्ञान का निम्न स्तर-
      • कृषि की प्रधानता-
      • प्रति व्यक्ति निम्न आय-
      • ग्रामीण अर्थव्यवस्था-
      • जनसंख्या का अधिक भार-
      • व्यापक बेरोजगारी-
      • प्राकृतिक साधनों की बहुलता-
    • (ii) अर्थव्यवस्था की नवीन प्रवृत्तियाँ या विकासशील राष्ट्र के रूप में भारत की विशेषताएँ (New Trends in Indian Economy)-
      • शिक्षा एवं स्वास्थ्य में सुधार-
      • आधारभूत संरचना का विस्तान-
      • बचत और पूँजी निर्माण में वृद्धि-
      • राष्ट्रीय आय में वृद्धि-
      • उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि-
      • बैंकिंग सुविधाओं का विकास –
      • कृषि का आधुनिकीकरण-
      • सार्वजनिक क्षेत्र का विकास-
    • (iii) संरचनात्मक विशेषताएँ
      • भौगोलिक स्थिति-
      • जल शक्ति-
      • जलवायु-
      • जन शक्ति-
      • वन सम्पदा-
      • खनिज सम्पदा-
      • शक्ति के साधन-
      • पशु धन-
      • अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं को अग्र तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

(i) परम्परागत विशेषताएँ या अल्प-विकसित राष्ट्र के रूप में भारत की विशेषताएँ (Traditional Characteristics)-

अल्प-विकसित राष्ट्र के रूप में भारतीय  अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. निर्बल आर्थिक संगठन-

भारतीय अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता निर्बल आर्थिक संगठन है। इसमें बचत सुविधाओं का कम होना, ग्रामों में जमींदारों और साहूकारों का कार्य करना, विनियोग क्षेत्र की पूरी जानकारी न होना तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए उचित दर पर और उचित मात्रा में वित्त प्रदान करने वाली संस्थाओं की कम संख्या का होना सम्मिलित है।

  1. पूंजी निर्माण की नीची दर-

भारत एक गरीब राष्ट्र है, अतः पूँजी निर्माण एवं विनियोजन की गति भी बहुत धीमी है। पिछले कुछ वर्षों में नियोजन होने के कारण बचत व विनियोग दरों में कुछ वृद्धि हुई है।

  1. आर्थिक विषमता-

भारतीय अर्थव्यवस्था में सम्पत्ति एवं आय के वितरण में काफी विषमता है। NCAER के सर्वेक्षण के अनुसार देश में उच्च स्तर के केवल 1% व्यक्ति कुल आय का 14% भाग प्राप्त कर लेते हैं जबकि नीचे स्तर के 50% व्यक्तियों को कुल आय का केवल 7% भाग प्राप्त होता है।

  1. तकनीकी ज्ञान का निम्न स्तर-

स्वतंत्रता के 64 वर्षों के बाद भी भारत में तककनीकी शिक्षा अनुसंधान एवं विकास आदि की सुविधाओं का अत्यन्त अभाव है जिसके कारण तकनीकी ज्ञान का स्तर निम्न है।

  1. कृषि की प्रधानता-

भारत एक कृषि प्रधान देश है। 2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की कुल जनसंख्या का 65 से 70 प्रतिशत भाग कृषि व्यवसाय में संलग्न है, शेष आबादी उद्योग व सेवाओं में कार्यरत है, जबकि कृषि का राष्ट्रीय आय में योगदान केवल 32.75% है। भारत के निर्यात व्यापार में कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान है और ऐसा अनुमान है कि लगभग 40% निर्यात प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पदार्थों का होता है।

  1. प्रति व्यक्ति निम्न आय-

भारत में अन्य देशों की अपेक्षा प्रति व्यक्ति औसत आय बहुत कम है। वर्ष 2004 में भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय 530 डालर है। जबकि भारत की तुलना में अमेरिका, जापान व यू.के. की प्रतिव्यक्ति आय क्रमशः 72,65 व 53 गुना अधिक है।

  1. ग्रामीण अर्थव्यवस्था-

स्वतन्त्रता के पश्चात् शहरों व शहरी जनसंख्या में वृद्धि हुई है फिर भी देश की अर्थव्यवस्था ग्राम प्रधान है। वर्तमान में कुल जनसंख्या की 72.2% ग्रामीण जनसंख्या और 27.8% शहरी जनसंख्या है। इसके विपरीत अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में ग्रामीण जनसंख्या क्रमशः 26, 20% और 8% है।

  1. जनसंख्या का अधिक भार-

भारतीय अर्थव्यवस्था पर स्वतन्त्रता के पश्चात् जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। स्वतन्त्रता के समय भारत की जनसंख्या 35 करोड़ थी जो 1994 की जनगणना के अनुसार बढ़कर लगभग है4.4 कराड़ हो गयी। ।। मई 2000 को भारत की जनसंख्या 100 करोड़ से अधिक हो गयी तथा 201। की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ हो गई है। भारत का जनसंख्या के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि भारत के पास विश्व के कुल स्थल क्षेत्र का 2.42% भाग हैं, जबकि सम्पूर्ण विश्व की 16% जनसंख्या भारत में निवास करती है।

  1. व्यापक बेरोजगारी-

बेरोजगारी वर्तमान में ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की मुल विशेषताः बन गयी है। यह बेरोजगारी न केवल अशिक्षित बल्कि शिक्षित व्यक्तियों में भी है। एक अनुमान के अनुसार सन् 2025 के अन्त तक 27 करोड़ व्यक्ति बेरोजगार होगे और इसमें प्रतिवर्ष 60 लाख व्यक्तियों की और वृद्धि हो जायेगी। व्यापक बेरोजगारी के साथ-साथ यहाँ पर अर्द्ध-रोजगार भी पाया जाता है अर्थात् कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार मिलता है।

  1. प्राकृतिक साधनों की बहुलता-

भारत प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से सम्पन् देश है किन्तु हम इन संसाधनों का उचित विदोहन नहीं कर पा रहे हैं। श्रा चाल्ल्स एस.  बेहर ने लिखा, “भारत के पास कोयला, लोहा, और मानवीय शक्ति है इसके द्वारा वह चीन के साथ मिलकर समस्त एशिया का नेतृत्व कर सकता है। यही नहीं, यदि भारत चाहे तो एशिया के आर्थिक विकास में असाधारण स्थान प्राप्त कर सकता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत एक अल्प विकसित राष्ट्र है।

(ii) अर्थव्यवस्था की नवीन प्रवृत्तियाँ या विकासशील राष्ट्र के रूप में भारत की विशेषताएँ (New Trends in Indian Economy)-

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने अपने आर्थिक विकास के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिससे कृषि क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आए हैं, नवीन उद्योग स्थापित हुए हैं, उत्पादन विधि में आधुनिक तकनीक का समोवेश हुआ है, सामाजिक चिन्तन में परिवर्तन हुआ है जिसके फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हुई है और अर्थव्यवस्था की विशेषताओं में निम्न नवीन प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हुईं हैं-

  1. शिक्षा एवं स्वास्थ्य में सुधार-

देश की शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। सन् 1950-51 में प्राइमरी मिडिल स्कूलों की संख्या 2.31 लाख थी जो सन् 2002-03 में बढ़कर 6.51 लाख हो गयी है। इस अवधि में विश्वविद्यालय एवं उसके समान संस्थाओं की संख्या भी 28 से बढ़कर 306 हो गयी है। देश में साक्षरता की दर 1941 में 16.61% थी जो 2001 में बढ़कर 64.8% हो गयी है। स्वास्थ्य सुविधाओं में भी तेजी से वृद्धि हुई है।

  1. आधारभूत संरचना का विस्तान-

देश में परिवहन, संचार, शक्ति इत्यादि आधारभूत सुविधाओं का तेजी से विकास हुआ है। देश में 1947 में मात्र 1,400 मेगावट बिजली उत्पादन क्षमता थी, जो कि 2004 के अन्त तक बढ़कर 1,12,682 मेगावाट हो गयी। इस अवधि में रेलवे लाइनों की लम्बाई 53,596 किलोमीटर से बढ़कर 63,221 किलोमीटर तथा सतह वाली सड़कों की लम्बाई 1.57 लाख किलोमीटर से बढ़कर 33 लाख किलोमीटर हो गयी।

  1. बचत और पूँजी निर्माण में वृद्धि-

भारत में बचत एवं पूँजी निर्माण की दर में निरन्तर प्रगति हुई। सन् 1950-51 में राष्ट्रीय आय का 7% भाग ही बचाया गया था तथा पूजा निर्माण दर 68% थी जो 2003-04 में सकल बचत दर 28.1 प्रतिशत तथा सकल घरलू पूजा निर्माण दर 26.3 प्रतिशत रही।

  1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-

यह सत्य है कि विकसित राष्ट्रों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय आज भी भारत में कम है किन्तु सत्य यह है कि स्वतन्त्रता के पश्चात राष्ट्रीय आय व प्राति व्यक्ति, आय में निरन्तर वृद्धि हो रही है। सन् 1993-94 के मूल्यों के आधार पर देश की राष्ट्रीय आय 2004-05 में 13,54,385 करोड़ रुपये थी जबकि प्रति व्यक्ति आय 12,414 रु. ।

  1. उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि-

योजना अवधि में कुछ अल्पकालीय उच्चावचना को छोड़कर देश के उत्पादन में निरन्तर प्रगति हुई है। प्रथम योजना में विकास दर 3.6 थी जो आठवीं योजना में बढ़कर 6% हो गयी एवं नवीं योजना में यह 79% प्रतिशत तक पहुँची है। इसी प्रकार कृषि उत्पादन में प्रगति दर प्रथम योजना में 4.1 थी जो आठवीं योजना में बढ़कर 5 प्रतिशत तथा नवीं योजना में 7 प्रतिशत हो गयी। इसी प्रकार औद्योगिक उत्पादन दर में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

  1. बैंकिंग सुविधाओं का विकास –

भारत में बैंकिंग सुविधाओं में भी निरन्तर प्रगति हुई है। जून, 1969 में व्यापारिक बैंकों की 8.262 शाखाएँ थीं जो 2004 में बढ़कर 67,283 हो गयी। जून 1969 में 65 000 व्यक्तियों पर एक बैंक था जबकि वर्तमान में 12,000 व्यक्तियों पर एक बैंक है।

  1. कृषि का आधुनिकीकरण-

भारत एक कृषि प्रधान देश है, अतः स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार ने कृषि विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया है। सिंचाई के साधनों का समुचित विकास हुआ है। उन्नत बीज एवं खाद कृषकों को उपलब्ध करवाया गयी है तथा भूमि सुधार कार्यक्रम को युद्ध स्तर पर लागू किया गया है। कृषि वित्त एवं विपणन व्यवस्था में भी उल्लेखनीय सुधार हुए हैं। सभी प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हम खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गये हैं।

  1. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास-

देश में स्वतन्त्रता के पश्चात् सार्वजनिक उद्योगों की संख्या में निरन्तर प्रगति हुई है। सन् 1950-51 में देश में 5 सार्वजनिक उद्योग थे जिनमें 29 करोड़ रुपये की पूँजी विनियोजित थी लेकिन सन् 2002-03 में सार्वजनिक उद्योगों की संख्या बढ़कर 240 हो गयी जिनमें कुल विनियोजित पूँजी लगभग 3,24,614 करोड़ रुपये है।

(iii) संरचनात्मक विशेषताएँ

  1. भौगोलिक स्थिति-

भारत की भौगोलिक स्थिति अच्छी है। उत्तर में हिमालय इसका प्रहर ही है। पूर्व में बांग्ला देश व म्यामार (ब्मा) है। पश्चिम में अरब सागर व दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में सातवा स्थान है जिसका क्षेत्रफल 32.88 लाख वर्ग किलोमीटर है।

  1. जल शक्ति-

भारत में निरन्तर प्रवाहित होने वाली नदियाँ हैं। इन नदियों पर बाँध बनाकर पर्याप्त रूप से सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हा सकती है। जल शक्ति का उपयोग विद्युत शक्ति के निर्माण में भी किया जा रहा है जिसका उपयोग देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास हेतु हो रहा है।

  1. जलवायु-

भारत में भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न जलवायु पायी जाती है। इसी जलवायु की विभिन्नता को देखते हुए मार्सडेन ने लिखा है कि “विश्व की समस्त जलवायु भारत में मिल जाती है।

  1. जन शक्ति-

जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की लगभग 84.4 करोड़ जनसंख्या थी जो सन् 2011 में बढ़कर 112 करोड़ से अधिक हो गयी है।

  1. वन सम्पदा-

वन किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य सम्पत्ति होते हैं। भारत इस दृष्टि से भी धनी हैं। भारत में 675.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वन हैं जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 20.55% है। वन देश के तारपीन का तेल, उद्योग, कागज उद्योग, पेण्ट्स एवं वारनिश, रबर, औषधि व शहद आदि का आधार हैं।

  1. खनिज सम्पदा-

खनिज सम्पदा की दृष्टि से भारत धनी देश है। आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक कोयला, लोहा, मैंगनीज, अभ्रक, बॉक्साइट व तांबा आदि खनिज पदार्थ भारत में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। भारत का अभ्रक उत्पादन में विश्व में प्रथम व मैंगनीज उत्पादन में तीसरा स्थान है।

  1. शक्ति के साधन-

भारत में शक्ति के साधन के रूप में कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ, गैस, अणुशक्ति, जलविद्युत व लकड़ी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है । एक अनुमान के अनुसार कोयले का उपयोग यदि वर्तमान दर पर ही किया जाये तो कोयला भण्डारों का उपयोग 600 वर्षों तक किया जा सकता है। पेट्रोलियम पदार्थों की पूर्ति हेतु नवीन स्थानों पर खुदाई की जा रही है।

  1. पशु धन-

पशु धन की दृष्टि से भी भारत काफी धनी देश है। विश्व के दूध देने वाले पशुओं की कुल संख्या का 25% भाग भारत में पाया जाता है। भारत में विश्व के कुल पशु धन का 30% पाया जाता है जो सम्भवतया विश्व में सर्वाधिक है।

अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
  • भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र | Major Sectors of Indian Economy in Hindi
  • भारत एक धनी देश है किन्तु भारत के निवासी निर्धन हैं
  • भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है ? | भारतीय मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
  • Intermediate Microeconomic -Hal Varian | free pdf download
  • Economic Development By Michael P. Todaro – Stephen C. Smith | 11th edition | free pdf download 
  • WTO क्या है ? विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization)
  • WTO के मौलिक सिद्धांत (Fundamental Principles)
  • Indian Economy by Dutt and Sundaram PDF Free Download

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- 

भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख विशेषताएं क्या है?

भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र में वृद्धि औद्योगिक विकास, बैकिंग सुविधाओं का विकास प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, बचत एवं पूँजी-निर्माण में वृद्धि व नवीन उद्योगों की स्थापना, आदि नवीन विशेषताएँ है।

भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या है?

Solution : (i) कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार इसलिए कहा गया है, क्योंकि 67% जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कृषि पर निर्भर है।

भारतीय अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है ।

भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या हैं भारत को विकासशील अर्थव्यवस्था कहा जा सकता है?

1950-51 से 2004-05 तक 54 वर्षों की अवधि में प्रति व्यक्ति आय में 2.25 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई है। 1993-94 की कीमतों के आधार पर 2004-05 में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 12416 रुपये थी। इस आधार पर कहा जा सकता है कि आय में निरन्तर वृद्धि होने से भारत विकासशील देशों की श्रेणी में सम्मिलित होने का अधिकारी है ।