वन क्षेत्र में निवास करने वाली ऐसी अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों के, जो ऐसे वनों में पीढि़यों से निवास कर रहे है, किन्तु उनके अधिकारों को अभिलिखित नहीं किया जा सका है, वन अधिकारों और वन भूमि में अधिभोग को मान्यता देने और निहित करने, वन भूमि में इस प्रकार निहित वन अधिकारों को अभिलिखित करने के लिए संरचना का और वन भूमि के संबंध में अधिकारों को ऐसी मान्यता देने ओर निहित करने के लिये अपेक्षित साक्ष्य की प्रकृति का उपबंध करने के लिए भारत सरकार द्वारा वन
अधिकार अधिनियम, 2006 पारित किया गया, जो दिनांक 31 दिसम्बर, 2007 से लागू हुआ। Show वन अधिकार अभियान- 2021 अधिनियम के अन्तर्गत अधिकार हेतु पात्रता- अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति -
अन्य परम्परागत वन निवासी -
वन अधिकार अधिनियम एक दृष्टि में राज्य में वनाधिकार अधिनियम की नवीनतम प्रगति निम्नानुसार है:-(अक्टूबर, 2022)
जिलेवार प्रगति भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, १९७२ भारत सरकार ने सन् १९७२ ई॰ में इस उद्देश्य से पारित किया था कि वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाई जा सके। इसे सन् २००३ ई॰ में संशोधित किया गया है और इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम २००२ रखा गया जिसके तहत इसमें दण्ड तथा जुर्माना और कठोर कर दिया गया है। १९७२ से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे। अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है। यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है| इसमें कुल ६ अनुसूचियाँ है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।
सबसे ज्यादा जोर भारतीय स्टार कचवे पर दिया गया है इसे रखने पर १०००० रु जुर्माना ओर १० साल की निश्चित गैर जमानती कारावास है
अपराध और दण्ड विधान[संपादित करें]उन अपराधों के लिए जिसमें वन्य जीव (या उनके शरीर के अंश)— जो कि इस अधिनियम की सूची 1 या सूची 2 के भाग 2 के अंतर्गत आते हैं— उनके अवैध शिकार, या अभ्यारण या राष्ट्रीय उद्यान की सीमा को बदलने के लिए दण्ड तथा जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। अब कम से कम कारावास 3 साल का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 10,000- है। दूसरी बार इस प्रकार का अपराध करने पर यह दण्ड कम से कम 3 साल की कारावास का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 25,000/- है। सन्दर्भ[संपादित करें]https://web.archive.org/web/20190805045809/http://nbaindia.org/uploaded/Biodiversityindia/Legal/15.%20Wildlife%20(Protection)%20Act,%201972.pdf बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 PDF वन्यजीव अभ्यारण भारतीय वन संरक्षण अधिनियम का क्या उद्देश्य?वन संरक्षण अधिनियम, 1980: वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने निर्धारित किया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। इसके अलावा उल्लंघन या परमिट की कमी को एक अपराध माना गया। इसने वनों की कटाई को सीमित करने, जैवविविधता के संरक्षण और वन्यजीवों को बचाने का लक्ष्य रखा।
वन्य जीवों के संरक्षण के उद्देश्य क्या है?Solution : (i) वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक वातावरण में सुरक्षित रखना तथा उन्हें लुप्त होने से बचाना। <br> (ii) लुप्त होने के कगार पर पहुँचे वन्य जीवों के नस्ल को सुरक्षित रखना। <br> (iii) प्राकृतिक वातावरण में जंतुओं और वनस्पतियों के बीच तथा उनकी अलग-अलग प्रजातियों के बीच के पारिस्थितियकी संबंधों को स्थापित रखना।
भारत में वन संरक्षण अधिनियम कब लागू किया गया?भारत में वन संरक्षण अधिनियम 25 अक्टूबर 1980 को लागू हुआ। भारत में वनों की कटाई को नियंत्रित करने के लिए वन संरक्षण अधिनियम को प्रख्यापित किया गया था। वन संरक्षण अधिनियम वनों के संरक्षण को उनके वनस्पतियों, जीवों और अन्य विविध पारिस्थितिक घटकों के साथ सुनिश्चित करता है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के उद्देश्य और महत्व क्या हैं?वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 - संवैधानिक प्रावधान, गठन भारत सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972) को देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने एवं अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया था।
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