भारत में वन संरक्षण अधिनियम के दो प्रमुख उद्देश्य क्या हैं - bhaarat mein van sanrakshan adhiniyam ke do pramukh uddeshy kya hain

वन क्षेत्र में निवास करने वाली ऐसी अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों के, जो ऐसे वनों में पीढि़यों से निवास कर रहे है, किन्तु उनके अधिकारों को अभिलिखित नहीं किया जा सका है, वन अधिकारों और वन भूमि में अधिभोग को मान्यता देने और निहित करने, वन भूमि में इस प्रकार निहित वन अधिकारों को अभिलिखित करने के लिए संरचना का और वन भूमि के संबंध में अधिकारों को ऐसी मान्यता देने ओर निहित करने के लिये अपेक्षित साक्ष्य की प्रकृति का उपबंध करने के लिए भारत सरकार द्वारा वन अधिकार अधिनियम, 2006 पारित किया गया, जो दिनांक 31 दिसम्बर, 2007 से लागू हुआ।
उक्त अधिनियम के अन्तर्गत नियम, 2008 जारी किये गये जो दिनांक 1 जनवरी, 2008 को राजपत्र में प्रकाशित हुए। तदुपरान्त विभिन्न राज्यों एवं स्वयंसेवी संगठनो के सुझाव प्राप्त होने पर इस अधिनियम के क्रियान्वयन में आ रही कठिनाईयों को दूर करने एवं प्रभावी तथा व्यापक ढंग से लागू करने के उद्धेश्यों से भारत सरकार ने उक्त नियमों में कुछ संशोधन करते हुए संशोधित नियम 6 सितम्बर, 2012 से जारी किये गये।

वन अधिकार अभियान- 2021

अधिनियम के अन्तर्गत अधिकार हेतु पात्रता-

अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति -

  1. 13 दिसम्बर 2005 से पूर्व वन भूमि का अधिभोग
  2. आजीविका की वास्तविक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भरता या निवासरत

अन्य परम्परागत वन निवासी -

  1. ऐसा कोई सदस्य या समुदाय अभिप्रेत है, जो 13 दिसम्बर, 2005 से पूर्व कम से कम तीन पीढि़यों तक प्राथमिक रूप से वन या वन भूमि में निवास करता रहता है और जो जीविका की वास्तविक आवश्यकताओं के लिए उन पर निर्भर है।
    ’’पीढी’’ से 25 वर्ष की अवधि अभिप्रेत है।

वन अधिकार अधिनियम एक दृष्टि में

राज्य में वनाधिकार अधिनियम की नवीनतम प्रगति निम्नानुसार है:-(अक्टूबर, 2022)

वन अधिकार अधिनियम

 राज्य में कुल प्राप्त दावे 113905
 राज्य में कुल स्वीकृत दावे 49080
 राज्य में विभिन्न स्तर पर निरस्त दावे 62949
 जारी अधिकार पत्रों की कुल संख्या 48489
 जारी अधिकार पत्रों का कुल क्षेत्रफल 46614.4 हैक्टेयर
 जारी व्यक्तिगत अधिकार पत्रों की संख्या 48489
 जारी व्यक्तिगत अधिकार पत्रों का क्षेत्रफल 27651 हैक्टेयर
 जारी सामुदायिक अधिकार पत्रों की संख्या 591
 जारी सामुदायिक अधिकार पत्रों का क्षेत्रफल 20963.4 हैक्टेयर
 प्रक्रियाधीन दावों की संख्या 1876

  जिलेवार प्रगति

भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, १९७२ भारत सरकार ने सन् १९७२ ई॰ में इस उद्देश्य से पारित किया था कि वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाई जा सके। इसे सन् २००३ ई॰ में संशोधित किया गया है और इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम २००२ रखा गया जिसके तहत इसमें दण्ड तथा जुर्माना और कठोर कर दिया गया है। १९७२ से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे। अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है।

यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है|

इसमें कुल ६ अनुसूचियाँ है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।

  • अनुसूची-१ तथा अनुसूची-२ के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है| इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है।
  • अनुसूची-३ और अनुसूची-४ भी संरक्षण प्रदान कर रहे हैं लेकिन इनमे दंड बहुत कम हैं।
  • अनुसूची-५ मे वह जानवरों शामिल है जिनका शिकार हो सकता है।
  • छठी अनुसूची में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक है।

सबसे ज्यादा जोर भारतीय स्टार कचवे पर दिया गया है इसे रखने पर १०००० रु जुर्माना ओर १० साल की निश्चित गैर जमानती कारावास है

  1. मध्य प्रदेश राज्य इसे लागू करने बाला पहला राज्य था जिसने इसे १९७३—७४ मे लागू किया।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

अपराध और दण्ड विधान[संपादित करें]

उन अपराधों के लिए जिसमें वन्य जीव (या उनके शरीर के अंश)— जो कि इस अधिनियम की सूची 1 या सूची 2 के भाग 2 के अंतर्गत आते हैं— उनके अवैध शिकार, या अभ्यारण या राष्ट्रीय उद्यान की सीमा को बदलने के लिए दण्ड तथा जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। अब कम से कम कारावास 3 साल का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 10,000- है। दूसरी बार इस प्रकार का अपराध करने पर यह दण्ड कम से कम 3 साल की कारावास का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 25,000/- है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

https://web.archive.org/web/20190805045809/http://nbaindia.org/uploaded/Biodiversityindia/Legal/15.%20Wildlife%20(Protection)%20Act,%201972.pdf

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 PDF

वन्यजीव अभ्यारण

भारतीय वन संरक्षण अधिनियम का क्या उद्देश्य?

वन संरक्षण अधिनियम, 1980: वन संरक्षण अधिनियम, 1980 ने निर्धारित किया कि वन क्षेत्रों में स्थायी कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिये केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। इसके अलावा उल्लंघन या परमिट की कमी को एक अपराध माना गया। इसने वनों की कटाई को सीमित करने, जैवविविधता के संरक्षण और वन्यजीवों को बचाने का लक्ष्य रखा।

वन्य जीवों के संरक्षण के उद्देश्य क्या है?

Solution : (i) वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक वातावरण में सुरक्षित रखना तथा उन्हें लुप्त होने से बचाना। <br> (ii) लुप्त होने के कगार पर पहुँचे वन्य जीवों के नस्ल को सुरक्षित रखना। <br> (iii) प्राकृतिक वातावरण में जंतुओं और वनस्पतियों के बीच तथा उनकी अलग-अलग प्रजातियों के बीच के पारिस्थितियकी संबंधों को स्थापित रखना।

भारत में वन संरक्षण अधिनियम कब लागू किया गया?

भारत में वन संरक्षण अधिनियम 25 अक्टूबर 1980 को लागू हुआभारत में वनों की कटाई को नियंत्रित करने के लिए वन संरक्षण अधिनियम को प्रख्यापित किया गया था। वन संरक्षण अधिनियम वनों के संरक्षण को उनके वनस्पतियों, जीवों और अन्य विविध पारिस्थितिक घटकों के साथ सुनिश्चित करता है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के उद्देश्य और महत्व क्या हैं?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 - संवैधानिक प्रावधान, गठन भारत सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972) को देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने एवं अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया था।