हरित क्रांति कृषि से संबंधित है। हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य गेहूँ की पैदावार में वृद्धि से है। हरित क्रांति का काल 1960 से दशक को कहा जाता है। पूरे विश्व में हरित क्रांति का श्रय मैक्सिको के नोबल पुरस्कार विजेता एक वैज्ञानिक प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को जाता है। भारत में
हरित क्रांति की शुरुआत कब हुई? भारत में हरित क्रांति का श्रय एम. एस. स्वामीनाथन को जाता है। डा० प्रोफेसर नारमन बोरलॉग पुरस्कार पहली बार एम. एस. स्वामीनाथन को दिया गया था। हरित क्रांति कृषि क्षेत्र में आधुनिक विकास जैसे नए बीज ,खाद ,रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग , सुनिश्चित जलपूर्ति की व्यवस्था व उपकरणों के प्रयोग से कुछ खाद्यान्नों जैसे गेहूँ और चावल के उत्पादन में वृद्धि से था। भारत में भी 1960 के
दशक में हरित क्रान्ति शुरू हो गई थी एम. एस. स्वामीनाथन द्वारा हरित क्रांति के चलते भारत पहली बार खाद्यान्नों विशेष कर गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिभर बन गया था। हरित
क्रांति से भारतीय परंपरागत कृषि का स्वरूप बदल गया तथा आधुनिक कृषि के रूप विश्व स्तर पर भारतीय कृषि बड़ रही थी। हरित क्रांति कर चलते ग्रामीण रोजगार में वृद्धि हो गई थी। भारत 1947 को आजाद हो गया था और भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक समस्या बेरोजगारी थी परंतु हरित क्रांति ने भारत के अंदर बेरोजगारी का स्तर को काम किया था। 3) खाद्यान्न आत्मनिर्भर तथा निर्यात:-जैसा की हम आज कल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में सुनते है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। जब भारत देश में हरित क्रान्ति हुई थी तो भारत जो 1960 के दशक से पहले दूसरे देशों का खाद्यान्नों पर निर्भर हुआ करता था परंतु हरित क्रान्ति के बाद भारत खाद्यान्नों के मामलों में आत्मनिर्भर बन गया था तथा निर्यात योग्य भी बन गया था। 4) गेहूँ की पैदावार में वृद्धि:–हरित क्रान्ति से गेहूँ की पैदावार में काफी वृद्धि हो गई थी और पंजाब ,हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि में सम्पन्न हो गए थे। प्रथम तीन आम चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के कारणों का उल्लेख कीजिए?-Mention the reasons for the dominance of Congress in the first three general elections in Hindi? # हरित क्रान्ति के नकारात्मक प्रभाव – हरित क्रांति के नुकसान, हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभावों का वर्णन कीजिए-1) अमीर व गरीब की खाई में वृद्धि:-हरित क्रान्ति के समय ऐसा माना जाता था की ग्रामीण क्षेत्र में अमीर व गरीब के बीच की खाई को और बड़ा दिया था| विविन्न वर्गों के बीच में असमानता बड़ गई थी। 2) कृषि में पिछड़ापन:-हरित क्रान्ति से भारत के कुछ ही क्षेत्र पंजाब ,हरियाणा व उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र कृषि की दृष्टि में सम्पन्न हुए थे | लेकिन भारत के बाकी क्षेत्रों में पिछड़ापन देखा गया था। 3) दलहन और तिलहन उत्पादन में कमी:-हरित क्रान्ति से देश में गेहूँ तथा चावल की ही पैदावार में वृद्धि हुई थी। दलहन और तिलहन उत्पादन में कमी देखने को मिलता था। # हरित क्रांति को भारत देश द्वारा अपनाने के 5 मुख्य कारण-1) स्वतंत्रता के समय देश की जनसंख्या का लगभग 75% जनता कृषि पर ही निर्भर थी। 2) भारत में कृषि मानसून पर निर्भर थी और मानसून की अपर्याप्तता की स्थिति में किसानों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। 3) इसके अतिरिक्त भारत अपनी पिछड़ी तकनीक के प्रयोग और वंचित आधारित संरचना के अभाव के कारण कृषि के क्षेत्र में उत्पादन बहुत कम होता था। 4) स्वतंत्रता के पहले भारतीय कृषि पर अंग्रेजों द्वारा चलाई गई कुनितिया अविकसित होने के कारण हरित क्रांति को अपनाया गया। 5) अन्य देशों के मुकाबले में भारत की कृषि की गतिहीन उनके कारण भी भारत देश को हरित क्रांति को अपनाना पड़ा। # प्रथम हरित क्रांति की विशेषताएं?जैसा कि हम जानते हैं भारत देश में हरित क्रांति को विभिन्न विभिन्न चरणों में देखा जाता है। भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक के बाद से माना जाता है। इसलिए हम भारत के 1960 से लेकर 1970 के दशक के मध्य तक चला दौड़ को हम हरित क्रांति का प्रथम चरण कहते हैं। प्रथम हरित क्रांति की विशेषताएं निम्नलिखित थी। 1) कुछ पैदा पैदावार वाले किस्म के बीजों का प्रयोग (HYV):-जिसके प्रयोग से प्रति एकड़ कृषि उत्पादन को आविश्वनीय ऊंचाइयों तक बढ़ा दिया है। 2) रासायनिक उर्वरको का उपयोग:-हरित क्रांति में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को 4 से 10 गुना अधिक कर दिया था। 3) सिंचाई व्यवस्था:-बीजों के प्रयोग उन्हीं स्थानों पर किया जा सकता था जहां सिंचाई व्यवस्था तक जल पूर्ति हो, हरित क्रांति ने हर राज्य में सिंचाई के महत्व को समझा वह सिंचाई व्यवस्था करने का भरपूर प्रयत्न किया। 4) कीटनाशकों का प्रयोग:-हरित क्रांति के कारण ही भारतीय कृषक ओने कीटनाशक दवाई के महत्व को समझा तथा कीटनाशक दवाई प्रयोग को बढ़ावा मिला। 5) आधुनिक तकनीकों का उपयोग:-हरित क्रांति के चलते भारतीय कृषकों ने पुरानी तकनीकों को छोड़कर नई तकनीक को का उपयोग किया तथा नई तकनीक से भारतीय कृषि को काफी ज्यादा फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी देखने को मिली। # निष्कर्ष -harit krantiहरित क्रांति क्या है। हरित क्रान्ति भारत के लिए अच्छी भी थी और हरित क्रान्ति के कुछ बुरे प्रभाव भी भारत देश में देखने को मिले थे| जैसा की हम जानते ही है कि हर चीज के दो पहलू होते है सकारात्मक व नकारात्मक इसी प्रकार से भारत के लिए भी हरित क्रान्ति को डॉनप स्वरूप में देखा जा सकता है। अगर भारत में कृषि के लिए एक बार फिर हरित क्रान्ति अगर कोई करने की सोच रहा है तो वह 1960 के दशक में हुई हरित क्रान्ति के प्रभावों को हाल करने के बाद शुरू करें। जैसे की हम जानते है भारत की स्वतंत्रता के बाद भी कृषि क्षेत्र में काफी ज्यादा पिछड़ापन देखने को मिलता था। जब भारत देश में भी हरित क्रान्ति का आगमन हुआ जिससे भारत के कुछ क्षेत्र में कृषि में सुधार देखने हो मिला। हरित क्रान्ति के नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों की स्वरूप देखने को मिलते है। @Roy Akash (pkj) हरित क्रांति का सकारात्मक प्रभाव क्या है?भारत में हरित क्रांति उस अवधि को संदर्भित करती है जब भारतीय कृषि अधिक उपज देने वाले बीज की किस्मों, ट्रैक्टर, सिंचाई सुविधाओं, कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग जैसे आधुनिक तरीकों एवं प्रौद्योगिकियों को अपनाने के कारण एक औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तित हो गई थी।
हरित क्रांति क्या है इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव बताइए?(i) इस प्रक्रिया में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज़्यादा फायदा हुआ। हरित क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बड़ी) और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई। (ii) इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देशों के अलग- अलग इलाकों के बिच धुर्वीकरण तेज़ गति से हुआ।
हरित क्रांति क्या थी हरित क्रांति के 2 सकारात्मक व नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें?हरित क्रांति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें - Brainly.in.. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग. उन्नतशील बीजों के प्रयोग में वृद्धि. सिंचाई सुविधाओं का विकास. पौध संरक्षण. बहुफ़सली कार्यक्रम. आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग. कृषि सेवा केन्द्रों की स्थापना. कृषि उद्योग निगम. हरित क्रांति के क्या प्रभाव थे?हरित क्रांति ने स्वतंत्रता के बाद ज़मींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार जैसे कदमों के चलते भारत में समतामूलक समाज के निर्माण को गति प्रदान की। इससे छोटे व मध्यम स्तर के किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और इससे उनमें शिक्षा तथा राजनैतिक चेतना का विकास हुआ।
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