हेलो फ्रेंड रचने है भूमिगत जल का क्या महत्व है तो दोस्तों जो भूमिगत जल होता है भूमिगत जल यही जल जो है पीने योग्य होता है ठीक है भूमिगत जल क्या है पीने योग्य होता है भूमिगत जल में जो अशुद्धि होती हैं क्या यू कहेंगे कि जो प्रदूषण की मात्रा है वही सबसे कम होती है क्योंकि जो जल स्रोत होते हैं जैसे की नदियां तालाब यह भूमिगत जल नहीं होता और इनके अंदर जो है सीधे नदी नाले ठीक है कचरा आदि डाल दिए जाते हैं तो इन में प्रदूषण की मात्रा ज्यादा होती है लेकिन जो भूमिगत जल होता है भूमि से नीचे होता है जो कि हम हैंडपंप की सहायता से प्राप्त करते हैं और जिसे हम ट्यूबवेल की सहायता से निकाल सकते तो यह जो जल होता है इसमें अशुद्धि की और प्रदूषण की मात्रा कम होती है ठीक है Show
इस जल का मुख्य दया उपयोग किया जाता है पीने योग्य जल में साथ ही जो घरेलू कार्य होते हैं जो घरेलू कार्य होते हैं उनमें और इस जल के द्वारा जो है क्या की जाती है सिंचाई भी की जाती है ठीक है खेतों में सिंचाई के लिए किसका उपयोग किया जाता है और कई स्थानों पर उद्योग की दृष्टि से भी इसका प्रयोग किया जाता है ठीक है तो दोस्तों यह जो हमारा जल है मुख्य जल इसका जो हमारा जल है इसका मुख्य महत्व होता है कि यह पीने योग्य पानी प्रदान करता है आशा करता कुछ प्रश्न का उत्तर समझ आया होगा वीडियो को देखने के लिए धन्यवाद भूजल (अंग्रेजी: Groundwater) या भूगर्भिक जल धरती की सतह के नीचे चट्टानों के कणों के बीच के अंतरकाश या रन्ध्राकाश में मौजूद जल को कहते हैं।[1] सामान्यतः जब धरातलीय जल से अंतर दिखाने के लिये इस शब्द का प्रयोग सतह से नीचे स्थित जल (अंग्रेजी: Sub-surface water या Subsurface water) के रूप में होता है तो इसमें मृदा जल को भी शामिल कर लिया जाता है। हालाँकि, यह मृदा जल से अलग होता है जो केवल सतह से नीचे कुछ ही गहराई में मिट्टी में मौज़ूद जल को कहते हैं।[2] भूजल एक मीठे पानी के स्रोत के रूप में एक प्राकृतिक संसाधन है। मानव के लिये जल की प्राप्ति का एक प्रमुख स्रोत भूजल के अंतर्गत आने वाले जलभरे अंग्रेजी: Aquifers) हैं जिनसे कुओं और नलकूपों द्वारा पानी निकाला जाता है। जो भूजल पृथ्वी के अन्दर अत्यधिक गहराई तक रिसकर प्रविष्ट हो चुका है और मनुष्य द्वारा वर्तमान तकनीक का सहारा लेकर नहीं निकला जा सकता या आर्थिक रूप से उसमें उपयोगिता से ज्यादा खर्च आयेगा, वह जल संसाधन का भाग नहीं है। संसाधन केवल वहीं हैं जिनके दोहन की संभावना प्रबल और आर्थिक रूप से लाभकार हो।[3] अत्यधिक गहराई में स्थित भूजल को जीवाश्म जल या फोसिल वाटर कहते हैं। जलचक्र में स्थान[संपादित करें]जल चक्र पृथ्वी पर पानी के चक्रण से संबंधित है। इसमें इस बात का निरूपण किया जाता है कि जल अपने ठोस, द्रव और गैसीय (बर्फ़ या हिम, पानी और भाप या वाष्प) रूपों में कैसे एक से दूसरे में बदलता है और कैसे उसका एक स्थान से दूसरे स्थान को परिवहन होता है।[4] भूजल भी जलचक्र का हिस्सा है और इसमें भी पानी के आगमन और निर्गमन के स्रोत और मार्ग होते हैं। सबसे पहले हम कुछ प्रक्रियाओं से जुड़ी तकनीकी टर्मावलियों को देखते हैं, जैसे निस्यन्दन, अधोप्रवाह इत्यादि। भूजल पुनर्भरण[संपादित करें]भूजल पुनर्भरण एक जलवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सतही जल रिसकर और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से खिंच कर भूजल का हिस्सा बन जाता है। इस घटना को रिसाव को या निस्यंदन द्वारा भूजल पुनर्भरण कहते हैं।[5] भूजल पुनर्भरण एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसे आजकल कृत्रिम रूप से संवर्धित करने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं क्योंकि जिस तेजी से मनुष्य भू जल का दोहन कर रहा है केवल प्राकृतिक प्रक्रिया पुनर्भरण में सक्षम नहीं है। यह अनुभाग खाली है, अर्थात पर्याप्त रूप से विस्तृत नहीं है या अधूरा है। आपकी सहायता का स्वागत है! भूजल भण्डार[संपादित करें]सामान्यतया भूजल द्रव रूप, अर्थात पानी के रूप, में पाया जाता है। कुछ विशिष्ट जलवायवीय दशाओं वाले क्षेत्रों में यह जम कर बर्फ़ भी बन जाता है जिसे पर्माफ्रास्ट कहते हैं। कुछ ज्वालामुखी क्षेत्रों में अत्यधिक नीचे स्थित भूजल लगातार वाष्प में भी परिवर्तित होता रहता है।[6] जलभर या जलभृत[संपादित करें]जलभर(Aquifer) धरातल की सतह के नीचे चट्टानों का एक ऐसा संस्तर है जहाँ भूजल एकत्रित होता है और मनुष्य द्वारा नलकूपों से निकालने योग्य अनुकूल दशाओं में होता है।[7] वैसे तो जल स्तर के नीचे की सारी चट्टानों में पानी उनके रन्ध्राकाश में अवश्य उपस्थित होता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि उसे मानव उपयोग के लिये निकाला भी जा सके। जलभरे ऐसी चट्टानों के संस्तर हैं जिनमें रन्ध्राकाश बड़े होते हैं जिससे पानी की ज्यादा मात्रा इकठ्ठा हो सकती है तथा साथ ही इनमें पारगम्यता ज्यादा होती है जिससे पानी का संचरण एक जगह से दूसरी जगह को तेजी से होता है।[8][9] जलभर को दो प्रकारों में बाँटा जाता है - मुक्त जलभर (Unconfined aquifer) और संरोधित जलभर (Confined aquifer)। संरोधित जलभर वे हैं जिनमें ऊपर और नीचे दोनों तरफ जलरोधी संस्तर पाया जाता है और इनके पुनर्भरण क्षेत्र दूसरे ऊँचाई वाले भागों में होते हैं। इन्ही संरोधित जलभरों में उत्स्रुत कूप (Artesian wells) भी पाए जाते हैं।[10] भूजल और स्थलरूप[संपादित करें]चूना पत्थर और डोलोमाइट जैसी चट्टानों वाले क्षेत्रों में भूजल के द्वारा कई स्थालाकृतियों का निर्माण होता है।[11] इनमें प्रमुख हैं:
भौगोलिक वितरण[संपादित करें]भूजल का वैश्विक और स्थानीय वितरण सर्वत्र सामान नहीं पाया जाता। सामान्यतः पथरीली जमीन और आग्नेय चट्टानों वाले क्षेत्रों में भूजल की मात्रा कम पायी जाती है। इसकी सर्वाधिक मात्रा जलोढ़ चट्टानों और बलुआ जलोढ़ चट्टानों में पायी जाती है। इसके अलावा स्थानीय जलवायु का प्रभाव भी पड़ता है क्योंकि भूजल पुनर्भरण वर्षा की मात्रा और प्रकृति पर निर्भर करता है। पेड़ों की मात्रा और उनकी जड़ों की गहराई भी भूजल पुनर्भरण को प्रभावित करती है।[12] विश्व में कुछ क्षेत्र भूजल के मामले में समृद्ध हैं जैसे अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, गंगा का मैदान और पश्चिमी यूरोप। वहीं रेगिस्तानी इलाकों में भूजल का स्तर काफ़ी नीचा पाया जाता है और यहाँ इस संसाधन की कमी है।[13] भूजल निष्काशन[संपादित करें]औद्योगिक क्रांति के बाद दुनिया ने विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का काफी दोहन किया है। पिछली शताब्दी में मानव जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है। जिसके कारण पीने के लिए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए भूजल का दोहन किया गया। हमलोगों का वर्षा जल संचयन के मामले में खराब प्रदर्शन रहा है। आज स्थिति यह है कि भूजल के मामले में समृद्ध माने जाने वाले क्षेत्र भी, आज पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं। भारत के भूजल संसाधन[संपादित करें]अन्य जगहों की तरह भारत में भी भूजल का वितरण सर्वत्र समान नहीं है। भारत के पठारी भाग हमेशा से भूजल के मामले में कमजोर रहे हैं। यहाँ भूजल कुछ खास भूगर्भिक संरचनाओं में पाया जाता है जैसे भ्रंश घाटियों और दरारों के सहारे। उत्तरी भारत के जलोढ़ मैदान हमेशा से भूजल में संपन्न रहे हैं लेकिन अब उत्तरी पश्चिमी भागों में सिंचाई हेतु तेजी से दोहन के कारण इनमें अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है।[14] भारत में जलभरों और भूजल की स्थिति पर चिंता जाहिर की जा रही है। जिस तरह भारत में भूजल का दोहन हो रहा है भविष्य में स्थितियाँ काफी खतरनाक हो सकती हैं। वर्तमान समय में २९% विकास खण्ड या तो भूजल के दयनीय स्तर पर हैं या चिंतनीय हैं और कुछ आंकड़ों के अनुसार २०२५ तक लगभग ६०% ब्लाक चिंतनीय स्थिति में आ जायेंगे।[15] ज्ञातव्य है कि भारत में ६०% सिंचाई एतु जल और लगभग ८५% पेय जल का स्रोत भूजल ही है,[16] ऐसे में भूजल का तेजी से गिरता स्तर एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
भूमिगत जल का उपयोग कैसे करें?भूमिगत जल कुएँ, नलकूप आदि साधनों द्वारा खेती ओर जनसामान्य के पीने हेतु काम आता है। भूमिगत जल, मृदा (धरती की उपरी सतह) की अनेक सतहों कि नीचे चट्टानों के छिद्रों या दरारों में पाया जाता है। उपयोगिता कि दृष्टि से भूमिगत जल, सतह पर पीने योग्य उपलब्ध जल संसाधनों के मुकाबले अधिक महत्त्वपूर्ण है।
भूमिगत जल का क्या महत्व है?भूजल, जो मृदा, रेत एवं चट्टानों की दरारों और छिद्रों में इकट्ठा रहता है। देश की पेयजल और सिंचाई की तीन चौथाई जरूरतें भूजल से ही पूरी होती है। भूजल, पृथ्वी के कुल मानव उपयोग होने वाले जल का 98 प्रतिशत है।
भौम जल का क्या लाभ है?उत्तर : (1) यह जल वाष्पित होकर वायुमंडल में मिलता नहीं है। (2) इसमें जीव जंतु तथा पादपों का जनन नहीं हो पाता। (3) यह भौम स्तर में सुधार लाता है। (4) यह पौधों को नमी प्रदान करता है।
भौम जल का सर्वाधिक उपयोग कौन से क्षेत्र में किया जाता है?इसका उपयोग सिंचाई, उद्योगों, नगरपालिकाओं एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ता जा रहा है। जिन स्थानों पर अत्यधिक मात्रा में भूगर्भ जल का दोहन किया जाता है, वहाँ इसकी कमी हो रही है।
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