In this article, we will share MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. Show MP Board Class 11th Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचनारासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना NCERT अभ्यास प्रश्नप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. आवर्त सारणी के दूसरे तत्व जो संयोजी कक्षा में आठ से कम इलेक्ट्रॉन रखते हैं रासायनिक सक्रिय है। अतः जिनके संयोजी इलेक्ट्रॉन आठ से कम होते हैं सक्रिय होते हैं।
प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 11. कार्बोनेट आयन (CO32-) – 24 इलेक्ट्रॉन निकाय (अनुनादी संरचनाएँ) – प्रश्न 12. उत्तर: नहीं, H3PO3 की दी गई संरचनाएँ अनुनादी संकर के विहित (कैनोनिकल) रूप नहीं माने जा सकते क्योंकि इन संरचनाओं में परमाणुओं के स्थान परिवर्तित हो रहे हैं। प्रश्न 13. 2. NO2 की अनुनादी संरचनाएँ – 3. NO3– की अनुनादी संरचनाएँ – प्रश्न 14. प्रश्न 15. जबकि H2O की कोणीय (मुड़ी हुई) संरचना के कारण O-H के द्विध्रुव एक-दूसरे को उदासीन या निष्क्रिय नहीं कर पाते हैं। प्रश्न 16. 2. आयनिक प्रतिशतता ज्ञात करने में: 3. अणुओं की आकृति ज्ञात करने में: प्रश्न 17. इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी:
विद्युत्-ऋणात्मकता:
प्रश्न 18. आबंधी इलेक्ट्रॉन बंध का F परमाणु की ओर आकर्षित होना ध्रुवीय सहसंयोजी बंध का निर्माण करना है। प्रश्न 19. प्रश्न 20. उत्तर: प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. NH2 तथा NF3 के द्विध्रुव आघूर्ण की तुलना-इन दोनों में नाइट्रोजन में एक एकाकी युग्म के कारण इनका आकार पिरामिडीय होता है। फ्लुओरीन की विद्युत्ऋणात्मकता हाइड्रोजन से अधिक होने के कारण N – F बंध, N – H बंध की तुलना में अधिक ध्रुवीय होता है अत: NF3 का परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण NH3 से अधिक होनी चाहिए परन्तु NH4 का द्विध्रुव आघूर्ण (µ = 1.47D), NF3 (µ = 0.24D) से अधिक होता है। इस असामान्य व्यवहार को नाइट्रोजन पर उपस्थित एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म द्वारा समझा जा सकता है। NH3 में एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म के कारण कक्षीय द्विध्रुव तथा तीन N – H बंध का बंध आघूर्ण एक ही दिशा में होता है। अतः परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण N – H बंध में जुड़ते हैं जबकि NF3 में कक्षीय द्विध्रुव आघूर्ण की दिशा तीन N – F बंध के परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण के विपरीत होती है। अतः एकाकी युग्म का आघूर्ण परिणामी N – F बंध आघूर्ण को चित्र में दिखाये अनुसार निरस्त कर देते हैं। अत: NF3 का द्विध्रुव आघूर्ण कम होता है। प्रश्न 24. 1. sp संकरण – इस प्रकार के संकरण में एक s तथा एक p कक्षक संकरित होकर दो समान sp संकरण कक्षकों का निर्माण करते हैं। 2. sp2संकरण – इस प्रकार के संकरण में एक s तथा दो p कक्षक संकरित होकर तीन समान sp संकर कक्षकों का निर्माण करते हैं। 3. sp3 संकरण – इस संकरण में एक ऽ तथा तीन p कक्षक संकरित होकर चार समान sp’ संकर कक्षकों का निर्माण करते हैं। प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. एसीटिलीन (C2H2) अणु: C2H2, अणु में sp संकरण होता है। एथाइन अणु के बनने में दोनों कार्बन परमाणु sp संकरण दर्शाते हैं। उन पर दो-दो संकरित (2p, तथा 2p.) कक्षक होते हैं। एक कार्बन परमाणु का sp संकर कक्षक दूसरे कार्बन परमाणु के sp संकर कक्षक से अक्षीय अतिव्यापन द्वारा C – C सिग्मा आबंध बनाता है। बचे हुए संकर कक्षक हाइड्रोजन के अर्धवृत्त 1s कक्षकों से अक्षीय अतिव्यापन द्वारा सिग्मा आबंध बनाते हैं दोनों कार्बन परमाणुओं पर उपस्थित दो-दो असंकरित कक्षक पार्श्व अतिव्यापन द्वारा दो पाई-आबंध बनाता है। प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34.
प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. इस प्रकार से PCl5 में तीन P – Cl सिग्मा बंध एक तल में होते हैं, इन्हें निरक्षीय बंध तथा दो P – Cl बंध तल के लंबवत् ऊपर तथा नीचे होते हैं, इन्हें अक्षीय बंध कहते हैं। P – Cl विषुवतीय आबंध की लंबाई 2.04Å है जबकि P – Cl अक्षीय आबंध 2.19Å है। अक्षीय आबंध की लंबाई ज्यादा होने का कारण एकल-एकल इलेक्ट्रॉन युग्म में प्रतिकर्षण अधिक होता है। अतः प्रतिकर्षण के कारण अक्षीय आबंध की लंबाई अधिक है। प्रश्न 39. प्रश्न 40. उपर्युक्त सूत्र के आधार पर बंध कोटि के मान N2(3.0), O2(2.0), O2+(2.5) एवं O2– (1.5) होगा। रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नरासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 2.
उत्तर:
प्रश्न 3. उत्तर:
प्रश्न 4.
उत्तर:
रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2.
इसके लिये वह इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान या साझा करता है। इस आधार पर बंध तीन प्रकार के होते हैं –
प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. बंध युग्म = 2, एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म = 2 प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14.
प्रश्न 15. H2S में उपस्थित (S) के बड़े आकार के कारण ऋणविद्युतता कम होती है इसलिये H2S अणु के मध्य हाइड्रोजन बंध का बनना संभव नहीं है इसलिये इनके अणुओं के मध्य केवल दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बल होता है अत: H2S साधारण ताप पर गैस है। प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19.
प्रश्न 20. 2. जलयोजन ऊर्जा: प्रश्न 21.
प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33.
प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37.
p – कक्षक:
प्रश्न 38. प्रश्न 39.
प्रश्न 40. प्रश्न 41. रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. ध्रुवीय सहसंयोजी बंध: जब सहसंयोजी बंध दो ऐसे परमाणुओं के मध्य बनता है, जिनकी ऋणविद्युतता में अंतर है तो साझे के इलेक्ट्रॉन अधिक ऋणविद्युती तत्व की ओर विस्थापित होता है, जिसके फलस्वरूप अधिक ऋणविद्युती तत्व पर आंशिक ऋण आवेश तथा कम ऋणविद्युती तत्व पर आंशिक धन आवेश आ जाता है। इस प्रकार के सहसंयोजी बंध को अध्रुवीय सहसंयोजी बंध कहते हैं। प्रश्न 5.
प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. उदाहरण – O3 का बनना: प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. 1. स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन सिद्धांत: उदाहरण – Mg धातु का प्रत्येक परमाणु 2 इलेक्ट्रॉन दान करके Mg+2 आयनों का जालक बनाता है तथा इसके संयोजी इलेक्ट्रॉनों से इलेक्ट्रॉन समुद्र बनता है। 2. संयोजकता बंध सिद्धांत: प्रश्न 12. अन्तःअणुक हाइड्रोजन बंध: जब एक ही यौगिक के एक ही अणु के भिन्न-भिन्न स्थिति पर भिन्नभिन्न बंधों से जुड़े परमाणुओं के मध्य H बंध बनता है, तो उसे अन्तःअणुक हाइड्रोजन बंध कहते हैं। प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15.
प्रश्न 16. अत: आयनिक व्यवहार का सही क्रम निम्न होगा C – H < N – H < O – H < F – H प्रश्न 17. PCl5 में, फॉस्फोरस spid संकरित है अतः इसकी ज्यामितीय त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय होगी। IF5 – इसमें केन्द्रीय परमाणु आयोडीन (z = 53) है जिसके आद्य (Ground) अवस्था तथा उत्तेजित अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अग्रवत है – IF5 में, आयोडीन spid संकरित है अतः इसकी ज्यामितीय वर्ग पिरामिडीय होगी। विकृति एकाकी इलेक्ट्रॉन के कारण होती है। प्रश्न 18. π बंध: प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. उदाहरण – अमोनिया (NH3) में 3 आबंध युग्म तथा 1 एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं। जल (H2O) में 2 आबंध युग्म तथा 2 एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं। मेथेन (CH4) में केवल 4 आबंध युग्म इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं। प्रश्न 22. प्रश्न 23. उदाहरण – HCl अणु का बनना – Cl का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s22s22p63s23p5 है। HCl अणु के निर्माण के दौरान Cl परमाणु का अर्धपूर्ण pz कक्षक H के अर्धपूर्ण s-कक्षक के साथ सम्मुख अतिव्यापन कर σ बंध बनाता है। प्रश्न 24. ग्रेफाइट में प्रत्येक C, sp2 संकरित अवस्था में है अर्थात् प्रत्येक अन्य तीन C परमाणु द्वारा घिरा रहता है तथा प्रत्येक C की चौथी संयोजकता असंतृप्त रहती है। ग्रेफाइट में विभिन्न परतें होती हैं जो आपस में दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बल द्वारा जुड़ी रहती हैं इसलिये ग्रेफाइट कोमल है तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति के कारण यह विद्युत् का सुचालक है। प्रश्न 25. प्रश्न 26. CH4 अणु में, कार्बन sp3 संकरित होता है जिसके कारण इसकी ज्यामिति चतुष्फलकीय होती है। वर्गसमतलीय ज्यामिति के लिए dsp2 संकरण आवश्यक होता है। परन्तु कार्बन में d – कक्षकों की अनुपस्थिति के कारण यह संभव नहीं है। साथ ही, VSEPR सिद्धान्त के अनुसार, कार्बन परमाणु के परितः चार आबन्ध इलेक्ट्रॉन चतुष्फलकीय ज्यामिति में स्थित होते हैं। चतुष्फलकीय संरचना में, आबंध कोण 109° 28′ तथा वर्गसमतलीय ज्यामिति में 90° का होता है। अतः चतुष्फलकीय ज्यामिति में आबंध इलेक्ट्रॉनों का प्रतिकर्षण वर्गसमतलीय ज्यामिति की तुलना में कम होता है। प्रश्न 27. BeCl2 अणु की आकृति: प्रश्न 28. उदाहरण – CH4 – कार्बन का परमाणु क्रमांक 6 है तथा इसका सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s22s42p2 है। उत्तेजित अवस्था में 2s का एक इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर रिक्त 2pz कक्षक में चला जाता है। इस प्रकार उत्तेजित अवस्था में C के पास चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। कार्बन का 2s कक्षक तथा 2p उपकोश के तीनों कक्षक आपस में ऊर्जा के पुनर्विन्यास द्वारा चार संकरित कक्षकों का निर्माण करते हैं, जो चार हाइड्रोजन परमाणुओं के H साथ सम्मुख अतिव्यापन कर चार बंध बनाते हैं। sp3 संकरण के कारण मेथेन अणु की संरचना समचतुष्फलकीय होती है तथा बंध कोण का मान 109°28′ होता है। प्रश्न 29. प्रश्न 30. 1. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की ऊर्जा समान या लगभग समान होनी चाहिए। उदाहरण के लिए 1s – कक्षक केवल 1s – कक्षक में संयोग करेगा, 25 कक्षक से नहीं क्योंकि 2s – कक्षक की ऊर्जा, 1s – कक्षक की अपेक्षा अधिक होती है। इस प्रकार का संयोग तभी संभव है जबकि संयोग करने वाले परमाणु भिन्न हो (अंतर्नाभिकीय द्विपरमाणुक अणु) 2. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की आण्विक कक्ष के परितः समान सममिति होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी परमाणु का 2pz कक्षक दूसरे परमाणु के 2px कक्षक से ही संयोग करेगा, परन्तु यह 2py तथा 2pz से ही नहीं कर सकता है क्योंकि उनकी सममितियाँ समान नहीं है। 3. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों को अधिकतम अतिव्यापन करना चाहिए। कक्षकों के मध्य जितना अधिक अतिव्यापन होगा, उनके नाभिकों के बीच इलेक्ट्रॉन घनत्व उतना ही अधिक होगा। प्रश्न 31. प्रश्न 32. अणु कक्षक सिद्धांत के मुख्य बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिए। उत्तर: अणु कक्षक सिद्धांत के मुख्य बिन्दु:
इन्हें सामान्यतया अनाबंधी (Non-bonding) आण्विक कक्षक कहते हैं। आण्विक कक्षक का बनना अतिव्यापन के द्वारा होता है। इलेक्ट्रॉनों के भरने में ऑफबाऊ सिद्धांत, हुण्ड के नियम एवं अन्य नियमों का पालन होता है। प्रश्न 33. रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. 2. इसकी सहायता से आयनिक व्यवहार का प्रतिशत निम्न प्रकार से ज्ञात कर सकते हैं – 3. सममित अणुओं का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। यद्यपि उनमें दो या अधिक ध्रुवीय बंध होते हैं। अतः अणु के सममितता के मापन में प्रयोग होता है। 4. इसकी सहायता से समपक्ष (Cis) तथा विपक्ष (Trans) समावयवियों में विभेद किया जा सकता है। सामान्यतः विपक्ष समावयवी की तुलना में समपक्ष समावयवी का द्विध्रुव आघूर्ण अधिक होता है। 5. ऑर्थो (Ortho), मेटा (Meta), तथा पैरा (Para) समावयवियों में विभेद करने में भी इसका प्रयोग होता है। पैरा समावयवी का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है। ऑर्थो समावयवी का द्विध्रुव आघूर्ण, मेटा समावयवी की अपेक्षा अधिक होता है। 6. अणुओं के आकार के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। प्रश्न 2. 1. किसी अणु की ज्यामिति केन्द्रीय परमाणु के संयोजी कोश में उपस्थित बंधी तथा एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म या अनआबन्धी इलेक्ट्रॉन युग्म की संख्या पर निर्भर करती है। 2. अणु के केन्द्रीय परमाणु के संयोजी कोश में केवल बन्धित इलेक्ट्रॉन युग्म होने पर अणु की ज्यामितीय सममित होती है तथा अणु की ज्यामिति संकरण के प्रकार पर निर्भर करती है। यदि संयोजकता कोश में क्रमशः 2, 3, 4, 5, 6 तथा 7 बंधी इलेक्ट्रॉन युग्म हैं तो अणु की ज्यामिति क्रमशः रेखीय, समतलीय त्रिभुजीय, समचतुष्फलकीय, त्रिभुजीय द्विपिरामिडीय, अष्टफलकीय तथा पंचभुजीय द्विपिरामिडीय होती है। 3. यदि अणु के केन्द्रीय परमाणु के संयोजी कोश में बंधी तथा एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित हो तो अणु की ज्यामितीय सममित नहीं रहती है क्योंकि इलेक्ट्रॉन युग्म की उपस्थिति के कारण बंधी तथा एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म में अधिक प्रतिकर्षण होता है, जिसके कारण अणु की ज्यामिति नष्ट हो जाता है, विभिन्न इलेक्ट्रॉन युग्मों में प्रतिकर्षण का क्रम निम्नलिखित होता है, 4. केन्द्रीय परमाणु पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्या में वृद्धि करने पर बंधी इलेक्ट्रॉन युग्मों के मध्य बंध कोण का मान कम हो जाता है। 5. केन्द्रीय परमाणु के संयोजकता कोश में यदि इलेक्ट्रॉन पूर्ण भरा है तो उसके बन्धित इलेक्ट्रॉन युग्मों में प्रतिकर्षण अपूर्ण संयोजकता कोश के बन्धित इलेक्ट्रॉन युग्मों के प्रतिकर्षण से अधिक होता है। सीमायें:
उदाहरण: प्रश्न 3. O2+ में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने के कारण यह अनुचुम्बकीय है। (b) O2+ आयन O2 अणु में से 1 इलेक्ट्रॉन निकलने के कारण बनता है। O2+ में एक इलेक्ट्रॉन अयुग्मित है अत: अनुचुम्बकीय होगा। (c) O2– (सुपर ऑक्साइड) आयन – O2, अणु में 1 इलेक्ट्रॉन के योग से बनता है। O2– आयन में 1 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होने के कारण अनुचुम्बकीय होता है। (d) O2-2 (परऑक्साइड) आयन O2 अणु में 2 इलेक्ट्रॉन के योग से बनता है। O2 में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होने के कारण यह प्रतिचुम्बकीय है। स्थायित्व का घटता क्रम – हम जानते हैं कि आबंध कोटि स्थायित्व अतः स्थायित्व का घटता हुआ क्रम निम्न है – O2+ > O2 > O2– > O2-2 प्रश्न 4. हाइड्रोजन बंध का प्रभाव: 2. विलेयता: प्रश्न 5.
जब कार्यशील आकर्षण बल एवं प्रतिकर्षण बल का परिणामी बल आकर्षण होता है तो ऊर्जा में कमी आती है और इस स्थिति में आबन्धन बनना संभव है। लेकिन कार्यशील आकर्षण बल एवं प्रतिकर्षण बल का परिणामी बल प्रतिकर्षण है तो ऊर्जा में वृद्धि होती है और आबन्धन बनना संभव नहीं होता है। 1. जब दो H परमाणु जिनके इलेक्ट्रॉन का चक्रण एक-दूसरे के समांतर है जब ये एक-दूसरे के निकट आते हैं तो स्थितिज ऊर्जा लगातार बढ़ती है क्योंकि दोनों इलेक्ट्रॉन -ve के मध्य प्रबल प्रतिकर्षण होता है। इसलिये यह आबन्धन अस्थिर होगा। 2. यदि विपरीत चक्रण वाले H परमाणु को पास-पास लाते हैं तो उनके बीच प्रबल आकर्षण बल होता है जिससे ऊर्जा में कमी आती है। विपरीत चक्रण के कारण दोनों नाभिकों के बीच इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाता है जो दोनों नाभिकों को स्थिर वैद्युत आकर्षण बल द्वारा बांध लेता है, यह बंध सहसंयोजी बंध कहलाता है। इस न्यूनतम दूरी के पश्चात् यदि दोनों H परमाणुओं को और अधिक पास लाया जाता है तो नाभिक-नाभिक के मध्य प्रतिकर्षण बल बढ़ने लगता है जिससे ऊर्जा में लगातार वृद्धि होने लगती है और बंध पुनः अस्थिर होने लगता है। प्रश्न 6.
उत्तर: 1. यौगिक – (a) अंतरा-अणुक हाइड्रोजन आबंध बनायेगा। जब एक ही अणु में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणु दो अधिक विद्युत्ऋणात्मक परमाणुओं (O, F, N आदि) के मध्य स्थित होता है तो अंतराअणुक हाइड्रोजन-आबंध बनाता है। ऑर्थो-नाइट्रोफिनॉल (यौगिक a) में, हाइड्रोजन परमाणु दो ऑक्सीजन परमाणुओं के मध्य स्थित होता है। (b) यौगिक (b) अन्तर आण्विक हाइड्रोजन आबंध बनाता है। p – नाइट्रोफिनॉल (ii) में, – NO2 तथा – OH समूह के मध्य रिक्त स्थान है। अतः एक अणु के हाइड्रोजन परमाणु तथा दूसरे अणु के ऑक्सीजन परमाणु के मध्य अंतर-अणुक हाइड्रोजन आबंध बनाता है। 2. यौगिक (b) का गलनांक उच्च होगा क्योंकि इसके अनेक अणु परस्पर H – आबंध द्वारा जुड़ते हैं। 3. अंतरा-आण्विक H – आबंध के कारण, यौगिक (a) जल के साथ, H – आबंध नहीं बना पाता है जिसके कारण यह जल में कम विलेय है। जबकि यौगिक (b) के अणु जल के साथ सरलता से H – आबंध बना लेते हैं। जिसके कारण यह जल में विलेय है। |