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Published in JournalYear: Mar, 2019 Article Details
गाड़ी के डिब्बे में बहुत मुसाफिर नहीं थे। मेरे सामनेवाली सीट पर बैठे सरदार जी देर से मुझे लाम के किस्से सुनाते रहे थे। वह लाम के दिनों में बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुके थे और बात-बात पर खी-खी करके हँसते और गोरे फौजियों की खिल्ली उड़ाते रहे थे। डिब्बे में तीन पठान व्यापारी भी थे, उनमें से एक हरे रंग की पोशाक पहने ऊपरवाली बर्थ पर लेटा हुआ था। वह आदमी बड़ा हँसमुख था और बड़ी देर से मेरे साथवाली सीट पर बैठे एक दुबले-से
बाबू के साथ उसका मजाक चल रहा था। वह दुबला बाबू पेशावर का रहनेवाला जान पड़ता था क्योंकि किसी-किसी वक्त वे आपस में पश्तो में बातें करने लगते थे। मेरे सामने दाईं ओर कोने में, एक बुढ़िया मुँह-सिर ढाँपे बैठी थी और देर से माला जप रही थी। यही कुछ लोग रहे होंगे। संभव है दो-एक और मुसाफिर भी रहे हों, पर वे स्पष्टत: मुझे याद नहीं। (शीर्ष पर वापस) अमृतसर आ गया है कहानी का मुख्य विषय क्या है?"अमृतसर आ गया है", भीष्म साहनी द्वारा लिखित एक कहानी है। यह किताब भारत के विभाजन के परिदृश्य पर लिखी गई है। कहानी में शरणार्थियों के एक समूह का पाकिस्तान से भारत के सीमावर्ती शहर अमृतसर की ओर यात्रा के दौरान के भयावहता और विनाश का वर्णन हैं।
कहानी अमृतसर आ गया का मुख्य पात्र कौन है?कहानी में भीष्म जी ने एक रेलगाड़ी का वर्तमान पाकिस्तान के किसी शहर से निकलकर अलग - अलग स्टेशनों से होते हुए अमृतसर पंहुचने तथा इस रेलयात्रा के दौरान होने वाले तनाव , विवाद को छोटी - छोटी घटनाओं के द्वारा दर्शाया है।
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