आयरन अथवा लौह तत्व की कमी से होने वाला रोग क्या है? - aayaran athava lauh tatv kee kamee se hone vaala rog kya hai?

आयरन अथवा लौह तत्व की कमी से होने वाला रोग क्या है? - aayaran athava lauh tatv kee kamee se hone vaala rog kya hai?

प्याज

लक्षण

लौह की कमी सबसे पहले नई पत्तियों पर दिखाई देती है। ऊपरी पत्तियों का पीला पड़ना (क्लोरोसिस) जिसमें बीच का हिस्सा और पत्तियों की शिराएं स्पष्ट रूप से हरी रह जाती हैं (अंतःशिरा हरिमाहीनता), इसकी विशेषता है। बाद के चरणों में, यदि कोई उपाय नहीं किया जाता है, तो पूरी पत्ती सफ़ेद-पीली हो जाती है और पत्ती की सतह पर भूरे गले हुए धब्बे उभर आते हैं, जो बाद में अक्सर किनारों पर गले हुए हिस्सों के रूप में विकसित हो जाते हैं। प्रभावित क्षेत्रों को खेत में कुछ दूरी से आसानी से पहचाना जा सकता है। लौह की कमी वाले पौधों का विकास बाधित होता है तथा कम उपज की संभावना होती है।

में भी पाया जा सकता है

यह किससे हुआ

बही हुई उष्णकटिबंधीय मिट्टी में या ऐसी मिट्टी में जिसकी जल निकासी अच्छी न हो, विशेषकर ठंडे और नम वसंत में, लौह की कमी एक गंभीर समस्या हो सकती है। ज्वार, भुट्टा, आलू, और फलियां सबसे गंभीर रूप से प्रभावित पौधों में से हैं, जबकि गेहूं और अल्फ़ा-अल्फ़ा सबसे कम संवेदनशील है।चूना पत्थर से ली गई कैल्शियम युक्त, क्षारीय मिट्टी (7.5 पीएच या उससे अधिक) विशेषकर लौह की कमी के प्रति संवेदनशील है। प्रकाश संश्लेषण के लिए और फलियों में जड़ों की गांठों के विकास के लिए लौह आवश्यक होता है। इसलिए, लौह की कमी गांठों के माप, नाइट्रोजन के स्थिरीकरण और फ़सल की उपज को गंभीर रूप से कम कर देती है। अनुमानित महत्वपूर्ण स्तर है पौधे के सूखे ऊतकों के प्रति किलो का 2.5 मिग्रा। लौह की कमी से पौधे में कैडमियम का अवशोषण और एकत्रीकरण भी बढ़ जाता है।

जैविक नियंत्रण

छोटे किसान बिछुआ का मैल तथा एल्गी के सत से बने पत्तियों के उर्वरक का प्रयोग करें। मवेशी खाद, वानस्पतिक खाद और कम्पोस्ट के उपयोग से मिट्टी में लौह की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। अपने पौधों के समीप सिंहपर्णी लगाएं, क्योंकि यह पास के पौधों, विशेषकर वृक्षों में, लौह उपलब्ध कराता है।

रासायनिक नियंत्रण

- लौह (Fe) युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें। (उदाहरण: फ़ेरस सल्फ़ेट (Fe19%)। - अपनी मिट्टी और फ़सल के लिए सबसे अच्छे उत्पाद और खुराक जानने के लिए अपने कृषि सलाहकार से परामर्श करें। - अपने फसल उत्पादन को अधिकतम करने के लिए फ़सल के मौसम की शुरुआत से पहले मिट्टी परीक्षण करने की सलाह दी जाती है।

निवारक उपाय

  • ऐसी किस्में लगाएं जो लौह न्यूनता के प्रति कम संवेदनशील हों.
  • बोए हुए पौधों के साथ सिंहपर्णी लगाएं.
  • ऐसे उर्वरकों का उपयोग करें जिनमें लौह उपस्थित हो.
  • अगर संभव हो, तो संवेदनशील फ़सलों को कैल्शियम युक्त, क्षारीय मिट्टी में न बोएं.
  • मिट्टी की जल निकासी को बेहतर करें और आवश्यकता से अधिक पानी न दें.
  • चूने के उपयोग से बचें क्योंकि इससे मिट्टी का पीएच स्तर बढ़ जाएगा।.

शरीर के लिए आवश्यक तत्वों प्रोटीन, वसा, कार्बोज, विटामिन, खनिज लवण, जल आदि मेें लोहे का प्रमुख स्थान है। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति में शरीर में तीन से पांच ग्राम तक लोहा पाया जाता है। यह लोहा हीमोग्लोबिन, अस्थि मज्जा, यकृत, गुर्दों, प्लीहा, मांसपेशियों के मायोग्लोबिन, रक्त के तरल भाग और कोशिकाओं के इंजाइम में व्यापक तौर पर फैला रहता है।

लाल रक्त कणों के हीमोग्लोबिन में उपस्थित लोहा मांसपेशियों की गति के लिए ऑक्सीजन संग्रहित करता है। कोशिका के इंजाइमों में पाया जाने वाला लोहा अन्य पोषक तत्वों कार्बोज, प्रोटीन और वसा के उपापचय में सहायता देता है।

शरीर में लोहे की कमी का सीधा संबंध रक्त की कमी से है। रक्त कोशिकाएं लोहे की कमी के कारण पीली और कमजोर बनती हैं। ऐसी कोशिकाएं शारीरिक क्रि याओं के फलस्वरूप उपजी कार्बन डाईआक्साइड को फेफड़ों तक पहुंचाकर शुद्ध आक्सीजन में नहीं बदल पाती। परिणामत: आक्सीजन की मात्रा घट जाने से शरीर की प्रक्रि याएं मन्द पड़ जाती हैं। कार्य क्षमता क्षीण हो जाती है।

इसके लक्षण हैं-जल्दी थक जाना, शिथिलता, थोड़े कार्य के बाद दम फूलना, लगातार थकान, चक्कर आना, धुंधला दिखाई देना, सिर दर्द, नींद न आना, दिल धड़कना, भूख न लगना, खट्टी डकार के साथ अपच, पेट में गड़बड़ी। नाखूनों पर भी इसका प्रभाव दिखाई देता है। नाखून टूटने लगते हैं। उनका आकार चम्मच सा हो जाता है।

गर्भवती स्त्रियों में लोहे की कमी के कारण 'पाइका' रोग हो जाता है। वे खडिय़ा, बालू, कीड़े, कीचड़, मिट्टी, स्लेट आदि खाने लगती हैं। लोहे की यह कमी लगातार विकसित होती रहती है। उपचार न होने की स्थिति में मृत्यु भी हो जाती है।

शरीर में लोहे की कमी प्राय: पर्याप्त आहार न लिए जाने से होती है। बच्चों तथा किशोरों में शरीर वृद्धि के समय उचित आहार न पाने की स्थिति में यह उत्पन्न होती है। मासिक धर्म के समय अधिक खून बहने से स्त्रियों में रक्त की कमी हो जाती है। दुर्घटना अथवा टी. बी. हड्डी का ट्यूमर, जैसी असाध्य बीमारियों के कारण भी रक्त की कमी हो जाती है। हुकवर्म आदि परजीवी कीटाणु भी रक्ताल्पता की स्थिति ला सकते हैं।

शरीर की श्वास प्रश्वास प्रक्रि या को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है कि रक्ताल्पता से बचा जाए। ऐसा करने के लिए आहार की दैनिक आदतों में थोड़ा परिवर्तन करना होगा। जिन परिवारों में खाना लोहे के बर्तनों में पकाया जाता है, लोहे की कमी होने की संभावना कम हो जाती है।

चोकर सहित मोटे आटे की रोटी अधिक पोषक होती है। खाद्य पदार्थों को पकाने अथवा खाने से पूर्व बहुत अधिक पानी से धोना, उनमें लोहे की मात्रा को कम करना है। तीन चार महीने के बच्चे को दूध के अतिरिक्त फल और थोड़ा अनाज भी किसी रूप में खिलाना शुरू कर देना चाहिए।

सोयाबीन, चना, मूंग जैसी साबूत दालों को अंकुरित करके खाने से लोहा बड़ी मात्र में प्राप्त होगा। फलियां, गहरी हरी सब्जियां, बाजरा, साबतु अनाज जैसी वस्तुएं सस्ती भी होती हैं और लोहे का भंडार भी। इनके अतिरिक्त सूखे मेवे, अण्डे की जर्दी, मांस से भी लोहा प्राप्त होता है।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने वयस्कों के लिए बीस से तीस मि. ग्रा. तक लोहे की मात्र का हमारे दैनिक आहार में होना आवश्यक बताया है।

रक्त की कमी के लक्षण शरीर में उपस्थित होते ही डाक्टर की सलाह ली जानी चाहिए। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारे देश में गर्भवती स्त्रियों की एक बड़ी संख्या रक्ताल्पता का शिकार होती है।

रक्त के माध्यम से हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका सांस लेती है। जीवन में जुड़ी सांसों और श्वासों से जुड़ी रक्त कोशिकाओं के स्वास्थ्य के लिए हमें लोहे का महत्त्व स्वीकार करना ही चाहिए।

- अंजना आनन्द

आयरन अथवा लौह तत्व की कमी से कौन सा रोग होता है?

आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया (या आयरन की कमी वाला एनीमिया) एनीमिया (लाल रक्त कोशिका या हीमोग्लोबिन का कम स्तर) का सबसे सामान्य प्रकार है। हीमोग्लोबिन का सामान्य स्तर: हीमोग्लोबिन के स्तर को ग्राम पर डेसीलीटर में मापा जाता है।

आयरन की कमी से होने वाले रोग कौन से हैं?

आयरन की कमी होने पर रेड ब्लड सेल्स कम बनते हैं..
शुरुआत में आयरन की कमी से थकान, सिरदर्द, चक्कर आना हो सकता है..
आयरन की कमी से सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी होने लगती है..
आयरन की कमी से बाल झड़ने की समस्या भी होने लगती है..
आयरन की कमी से चिड़चिड़ापन और स्किन का कलर भी फीका पड़ सकता है..