Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 सआत्मकथ्यRBSE Class 10 Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. (ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7. रचना और अभिव्यक्ति - प्रश्न 8. i. विनयशील-छायावादी कवि प्रसाद अत्यन्त सरल स्वभाव के विनम्र कवि थे। वे महान् कवि होते हुए भी बड़प्पन की भावना से कोसों दूर थे। इसीलिए वे अपने आप को दुर्बलताओं से घिरा भोला-सरल इन्सान कहते थे। इससे उनकी विनम्रता स्पष्ट होती है। ii. गम्भीर और मर्यादित-प्रसादजी गम्भीर और मर्यादित कवि थे। इसीलिए वे अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों को प्रचारित नहीं करना चाहते थे और न निजी जीवन की दुर्बलताओं और अपने प्रेम की बातों को किसी के सामने उद्घाटित करना चाहते थे। iii. सरल स्वभाव के धनी-प्रसादजी सरल-भोले स्वभाव के धनी कवि थे। उन्होंने अपनी सरलता को कभी नहीं त्यागा। उनके मित्रों द्वारा छल-कपट किए जाने पर भी वे अपने स्वभाव की सरलता से दूर नहीं हुए। iv. संघर्षशील-प्रसाद को अपने पारिवारिक जीवन में अनेक आघात झेलने पड़े, दाम्पत्य जीवन कष्टों से घिरा रहा, सम्पन्न परिवार में जन्म लेकर भी अभावों से जूझना पड़ा। परन्तु वे जीवन-भर संघर्षशील बने रहे। प्रश्न 9. प्रश्न 10. पाठेतर सक्रियता - किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए। विपक्ष में विचार-किसी भी चर्चित व्यक्ति का जीवन समाज और राष्ट्र की सम्पत्ति होता है। उसके बारे में जानने के सभी इच्छुक रहते हैं, ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन उसके निजी जीवन में जो उसका परिवार होता है, उसके अपने सुख दुःख होते हैं। वह उनके साथ अकेले ही जीना चाहता है और उसे जीना भी चाहिए, क्योंकि वहाँ वह चर्चित व्यक्ति न होकर सम्बन्धों में बँधा एक सामान्य व्यक्ति ही होता है। उसके निजी जीवन में उसकी कुछ कमज़ोरियाँ भी हो सकती हैं, जो उसकी महानता के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं, क्योंकि मनुष्य कमजोरियों और गलतियों का पुतला होता है। इस दृष्टि से निजता को सार्वजनिक करने की उससे अपेक्षा करना सही नहीं है। बिना ईमानदारी और साहस के आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गाँधीजी की आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं? RBSE Class 10 Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answersअतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न
1. यह ठीक है कि कवि के जीवन में सुखद क्षण आये थे। जिसमें प्रेयसी के साथ हिलमिल कर समय व्यतीत किया था। पर वे क्षण कुछ ही पल टिक पाये। सुख उनके निकट आते-आते चले जाते थे। और कवि उन क्षणों की प्रतीक्षा ही करते रहते थे। वे अपनी प्रियतमा के सौन्दर्य की भी प्रशंसा करते हैं, उसके गालों की लाली उषा के लिए भी ईर्ष्या का विषय थी। पर इन सब बातों को अब कहने का कोई लाभ नहीं है। उसकी कथा में दूसरों को कुछ भी नहीं मिल पायेगा। रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न - प्रश्न 1. 'आँसू', 'लहर', 'झरना', 'कामायनी', 'चित्राधार', 'प्रेमपथिक', 'करुणालय' आदि इनकी कालजयी कृतियाँ हैं। इन्होंने 'चन्द्रगुप्त', 'स्कन्दगुप्त', 'विशाख', 'ध्रुवस्वामिनी', 'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'एक बूंट' आदि नाटक, 'कंकाल', 'तितली', 'इरावती' आदि उपन्यास लिखे। 'आकाशदीप', 'प्रतिध्वनि', 'पुरस्कार', 'आँधी', 'छाया' आदि कहानी संग्रह लिखे। सन् 1937 में इनका निधन हो गया था। आत्मकथ्य Summary in Hindiकवि-परिचय : जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 में वाराणसी में हुआ था। इनके पिता देवीप्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे और तम्बाकू का व्यापार करते थे। प्रसादजी ने अधिकांश अध्ययन घर पर ही रहकर किया। उन्होंने संस्कृत, हिन्दी, फारसी का गहन अध्ययन किया। छायावादी काव्य-प्रवृत्ति के प्रमुख कवियों में से एक जयशंकर प्रसाद का सन् 1937 में निधन हुआ। उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-'चित्राधार', 'प्रेमपथिक', 'करुणालय', 'कानन कुसुम', 'झरना', 'आँसू', 'लहर' और 'कामायनी'। वे कवि के साथ-साथ सफल गद्यकार भी थे। 'अजातशत्रु', स्कंदगुप्त' और 'ध्रुवस्वामिनी' उनके नाटक हैं तो 'कंकाल', 'तितली' और 'इरावती' उपन्यास। 'आकाशदीप', 'आँधी' और 'इन्द्रजाल' उनके कहानी-संग्रह हैं। पाठ-परिचय : 'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने जीवन के यथार्थ एवं अभावों का मार्मिक अंकन किया है। कवि ने अपने जीवन को सामान्य व्यक्ति का जीवन बताया है और उसने उन क्षणों का स्मरण किया है जब कुछ क्षणों के लिए उसके जीवन में सुख आया था। वह सुख टिक नहीं सका। अब वह उस सुख की कल्पना ही करता है। कवि को अपने जीवन में दूसरों से धोखे मिले हैं। वह अपनी जीवन कथा में उनका उल्लेख नहीं करना चाहता है। सप्रसंग व्याख्याएँ
1. मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि ने जीवन के यथार्थ एवं अभाव की बात कही है। जीवन की दुर्बलताएँ जानने को इच्छुक लोगों पर कटाक्ष किया है। व्याख्या - कवि कहता है कि गुंजन करते भँवरे और डालों से मुरझाकर गिर रही घनी पत्तियाँ जीवन की करुण कहानी ही सुना रहे हैं। उनका अपना जीवन भी व्यथाओं की कथा है। कहने का आशय है कि फूल से फूल पर भटकते भौंरे की गुंजार क्या है? कभी न तृप्त होने वाली प्यास की करुण कहानी है। डालों से मुरझाकर गिरने वाली पत्तियाँ जीवन की नश्वरता की कहानी सुना रही है। इस अनंत नीले आकाश के नीचे असंख्य जीवन पल रहे हैं। सबका अलग-अलग इतिहास है, अपनी-अपनी आत्मकथाएँ हैं। इन्हें लिखने वालों ने स्वयं को ही व्यंग्य एवं उपहास का पात्र बनाया है। कवि मित्रों से पूछते हैं कि क्या यह सब देखकर भी वे चाहते हैं कि वह अपनी दुर्बलताओं से युक्त आत्मकहानी लिखें? इस खाली गगरी जैसी महत्त्वहीन आत्मकथा को पढ़कर उन्हें क्या सुख प्राप्त होगा? विशेष :
2. किन्तु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपने मित्रों के आग्रह पर आत्मकथा लिखने के सन्दर्भ में कहते हैं। व्याख्या - कवि प्रसाद कहते हैं कि मित्रों कहीं ऐसा न हो कि मेरे रस शून्य खाली गगरी जैसे जीवन के बारे में पढ़कर तुम स्वयं को ही अपराधी समझने लगो। तुम्हें ऐसा लगे कि तुमने मेरे जीवन से रस चुराकर अपनी सुख की गगरी को भरा है। कहने का प्रतीकात्मक अर्थ है कि मेरे जीवन की खुशियों को चुरा कर तुम अपनी खुशी समझना चाहते हो तो ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि मेरे जीवन की गागर बिल्कुल खाली है। आगे कवि जीवन को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि वह अपनी भूलों और ठगे जाने के विषय में बताकर अपनी सरलता अर्थात् सरल हृदय की हँसी नहीं उड़वाना चाहते हैं। जीवन का यथार्थ यही है कि जीवन-सत्य अगर सबके सामने लाते हैं तो लोग सहानुभूति नहीं जताते वरन खिल्ली ही उड़ाते हैं। इसलिए कवि अपनी भूलें दिखाकर या बताकर दूसरों का सत्य सामने नहीं लाना चाहते हैं। विशेष :
3. उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपने प्रेम व सुख की वे बातें किसी को नहीं बताना चाहते जो उन्हें छलावा देकर भाग गया या उनसे दूर हो गया। व्याख्या - कवि कहता है कि मैं अपनी प्रिया के साथ बिताये जीवन के मधुर क्षणों की कहानी सबके सामने कैसे बताऊँ ? वे तो मेरे प्रेमिल जीवन की निजी अनुभूतियाँ हैं, क्योंकि उस काल में मैंने अपनी प्रिया के साथ जो खिल-खिलाकर हँसते हुए उससे बातें की उन बातों को मैं कैसे लिखू, अर्थात् उन्हें दूसरों को कैसे बताऊँ? अर्थात् उन भूली स्मृतियों को जगाकर मैं अपने मन को व्यथित नहीं करना चाहता हूँ। कवि कहते हैं कि मैंने जीवन में जो सुख के स्वप्न देखे थे, वे कभी साकार नहीं हुए। सुख मेरी बाँहों में आते-आते मुस्कुरा कर भाग गया और मेरा अपने प्रिय को पाने का सपना अधूरा ही रह गया। इस कारण कवि अपना आत्मकथ्य नहीं लिखना चाहते थे, जिससे उनकी वे बातें सबके सामने न आने पाये। विशेष :
4. जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपनी मधुर स्मृतियों को याद कर रहे हैं। व्याख्या - कवि स्मरण कर कहता है कि मेरी प्रिया के लाल-लाल कपोल इतने मतवाले और सुन्दर थे कि प्रेममयी उषा भी अपनी सुगन्धित मधुर लालिमा उसी से उधार लिया करती थी। कहने का भाव यह है कि मेरी प्रिया के लाल-लाल कपोल उषाकालीन लालिमा से भी सुन्दर थे। कवि कहता है कि आज उसी प्रेमिका की स्मृतियाँ मुझ जैसे थके पथिक के लिए संबल बनी हुई हैं और उसी संबल के सहारे मैं जीवन रूपी रास्ते पर चल रहा है। ऐसी स्थिति में हे मित्र! क्या तम मेरी उन मधर यादों की गदडी को उधेड़-उधेड़ कर उनके भीतर झाँकना चाहते हो। अर्थात् तुम मेरी वेदनामयी स्मृतियों को जगाकर देखना चाहते हो कि उसके अन्दर क्या छिपा हुआ है। इसलिए कवि नहीं चाहते कि वे आत्मकथा लिखकर अपनी वेदनामय स्थिति को सबके सामने लाये। विशेष :
5. छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'आत्मकथ्य' से लिया गया है। इसमें कवि अपनी व्यथा न सुनाकर दूसरों की चुपचाप सुनना चाहते हैं। व्याख्या - कवि कहता है कि मेरे इस छोटे से सामान्य जीवन में अनेक घटनाएँ घटी हैं। मैं आज उन घटनाओं की बड़ी-बड़ी कहानियाँ कैसे कह दूं? अर्थात् लिख दूँ। इससे तो अच्छा मेरे लिए यही है कि मैं अपने बारे में चुप रहकर दूसरों संजीव पास बुक्स की कथाएँ सुनता रहूँ। कवि अपने मित्रों से कहता है कि भला तुम मेरी भोली-भाली आत्म-कथा को सुनकर क्या करोगे? उसमें तुम्हारे काम की कोई बात नहीं है और अभी मैंने कोई महानता भी प्राप्त नहीं की है जिसके बारे में मैं अपने अनुभव लिखू। इसके साथ ही एक बात और भी है कि इस काल में मेरे जीवन के सारे दुःख-दर्द और व्यथाएँ शान्त हैं। इसलिए मैं उन व्यथित करने वाली स्मृतियों एवं व्यथा-वेदनाओं को फिर से जगा दूं, इसलिए मैं नहीं चाहता कि आत्मकथा लिख कर मैं उन कटु व्यथित करने वाली स्मृतियों को फिर से जगा दूँ। विशेष :
आत्मकथ्य कविता में प्रयुक्त सा शब्द से क्या तात्पर्य है?आत्मकथ्य कविता का सार
प्रिय-प्रेम की स्मृतियाँ ही उसे सांत्वना देती हैं। इसलिए संसार उसे निस्सार और नीरस लगता है। वह अपनी मनोदशा के अनुरूप ही पत्तियों को मुरझाता, गिरता और ढेर बनकर नष्ट होता देखता है। अपने जीवन में कुछ भी विशेष अथवा सुखद न होने के कारण वह अपनी कथा नहीं कहना चाहता।
आत्मकथा कविता में कथा शब्द से क्या तात्पर्य है?साहित्य में आत्मकथा (autobiography) किसी लेखक द्वारा अपने ही जीवन का वर्णन करने वाली कथा को कहते हैं।
आत्मकथ्य कविता का संदेश क्या है?उत्तर-आत्मकथ्य अभ्यास प्रश्न उत्तर – कवि इस कथन के माध्यम से यह कहना चाहता है कि उसका अतीत अत्यंत मोहक रहा है। तब वह अपनी प्रेयसी के साथ मधुर चाँदनी में बैठकर खूब बातें करता था तथा खिलखिलाकर हँसता था। अब उस गाथा को सुना पाना उसके लिए संभव नहीं है।
आत्मकथ्य कविता का मूल भाव क्या है?अर्थ - इस कविता में कवि ने अपने अपनी आत्मकथा न लिखने के कारणों को बताया है। कवि कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का मन रूपी भौंरा प्रेम गीत गाता हुआ अपनी कहानी सुना रहा है। झरते पत्तियों की ओर इशारा करते हुए कवि कहते हैं कि आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है।
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