ओजोन परत के लिए कौन सी गैस हानिकारक है? - ojon parat ke lie kaun see gais haanikaarak hai?

आज का प्रश्न है कि ओजोन परत को नष्ट करने वाली गैस का नाम क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) है, जो आज के युग में एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि में उपयोग की जाती है। यह गैस ओजोन परत को खत्म कर रही है जिस कारण भविष्य में पराबैंगनी किरणों के कारण त्वचा का कैंसर, श्वास रोग, अल्सर, मोतियाबिंद आदि बीमारियाँ तेजी से सकती है इसीलिए इस परत को बचाने की जरूरत है और क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) गैस का उपयोग कम करने की जरूरत है। अंटार्कटिका , ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड आदि देशों के ऊपर भी वायुमंडल में ओज़ोन परत में छिद्र पाए गये हैं। इसलिए वर्तमान में इस गैस की जगह एचएफसी (हाड्रोक्लोरोफ्लोरो) का उपयोग किया जा रहा है।

ओज़ोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमें ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। ओज़ोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है। यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 90-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। पृथ्वी के वायुमंडल का 91% से अधिक ओज़ोन यहां मौजूद है।[1] यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर(समताप मंडल) के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के ऊपर लगभग 10 किमी से अधिक तथा पृथ्वी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है।

ओजोन की परत की खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी। इनसे पहले भी वैज्ञानिकों ने जब सूर्य से आने वाले प्रकाश का स्पेक्ट्रम देखा तो उन्होंने पाया कि उसमें कुछ काले रंग के क्षेत्र थे तथा 310 nm से कम वेवलेंथ का कोई भी रेडिएशन सूर्य से पृथ्वी तक नहीं आ रहा था.[2] वैज्ञानिकों ने इससे यह निष्कर्ष निकाला कि कोई ना कोई तत्व आवश्य पराबैगनी किरणों को सोख रहा है, जिससे कि स्पेक्ट्रम में काला क्षेत्र बन रहा है तथा पराबैंगनी हिस्से में कोई भी विकिरण दिखाई नहीं दे रहे हैं।[3]

सूर्य से आने वाले प्रकाश के स्पेक्ट्रम का जो हिस्सा नहीं दिखाई दे रहा था वह ओजोन नाम के तत्व से पूरी तरह मैच कर गया, जिससे वैज्ञानिक जान गए कि पृथ्वी के वायुमंडल में ओजोन ही वह तत्व है जो कि पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर रहा है. इसके गुणों का विस्तार से अध्ययन ब्रिटेन के मौसम विज्ञानी जी एम बी डोबसन ने किया था। उन्होने एक सरल स्पेक्ट्रोफोटोमीटर विकसित किया था जो स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन को भूतल से माप सकता था। सन 1928 से 1958 के बीच डोबसन ने दुनिया भर में ओज़ोन के निगरानी केन्द्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया था, जो आज तक काम करता है (2008)। ओजोन की मात्रा मापने की सुविधाजनक इकाई का नाम डोबसन के सम्मान में डोबसन इकाई रखा गया है.[4]

ओज़ोन गंधयुक्त गैस होती है जो हल्के नीले रंग की होती है। ओज़ोन परत में ओज़ोन गैस की मात्रा अधिक पाई जाती है। ओज़ोन ऑक्सीजन का ही एक प्रकार है और इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं। ऑक्सीजन के जब तीन परमाणु(अल्फा पराबैंगनी विकिरण के साथ) आपस में जुड़ते है तो ओज़ोन परत बनाते है। एक ओजोन एक परत है जो पृथ्वी के समताप मंडल के ऊपर मध्य मंडल के नीचे दोनों के बीच में है यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है रक्षा करता है वर्तमान वैज्ञानिक युग में तीव्र गति से चलने वाली वायुयान से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं वातानुकूल लक तथा प्रति शतक आदि में से निकलने वाली क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों से ओजोन मंडल नष्ट हो रहा है यदि समय रहते ओजोन परत को बचाने हेतु कारगर प्रयास नहीं किए गए तो परिणाम भयानक हो सकता हैं से त्वचा का कैंसर आंखों मैं दुष्प्रभाव आदि।

ओजोन (OZONE, O3) आक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमण्डल में बहुत कम मात्रा (०.०२%) में पाई जाती हैं। समुद्र-तट से 30-32km की ऊँचाई पर इसकी सान्द्रता अधिक होती है। यह तीखे गंध वाली अत्यन्त विषैली गैस है। जमीन के सतह के उपर अर्थात निचले वायुमंडल में यह एक खतरनाक दूषक है, जबकि वायुमंडल की उपरी परत ओजोन परत के रूप में यह सूर्य के पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी पर जीवन को बचाती है, जहां इसका निर्माण ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों के प्रभावस्वरूप होता है। ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है। यह समुद्री वायु में उपस्थित होती है।ऑक्सीजन की एक मंद शुष्क धारा नीरव विद्युत विसर्जन से गुजरे जाने पर ओजोन में परिवर्तित होती है।

वॉन मैरम ने सन १७८५ में विद्युत विसर्जन यन्त्रों के पास एक विशेष प्रकार की गन्ध का अनुभव किया जिसका उल्लेख उन्होने अपने लेखों में भी किया। १८०१ में क्रिक शैंक को भी ऑक्सीजन में विद्युत विसर्जन करते समय यही अनुभव हुआ। १८४० में शानबाइन नें इस गंध का कारण एक नयी गैस को बताया और उन्होने इसे ओजोन नाम दिया जो यूनानी शब्द ओजो यानि मैं सूंघता हूं पर आधारित था। सन १८६५ में सोरेट ने यह सिद्ध किया कि यह गैस ऑक्सीजन का एक अपररूप है और इसका अणुसूत्र O3 है।

इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत को इतनी तेज़ी से नुकसान पहुँचा रही हैं कि वैज्ञानिक इसे लेकर काफ़ी चिंतित हैं.

ज़मीन से 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन की परत मनुष्यों और जानवरों को हानिकारक अल्ट्रावायलट (यूवी) किरणों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यूवी किरणों से मनुष्यों में कैंसर होता है. जानवरों की प्रजनन क्षमता पर भी इनका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

ओज़ोन परत में बढ़ते छेद के कारण 1980 के दशक के मध्य से क्लोरोफ़्लोरोकार्बन (सीएफ़सी) गैस के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

सीएफ़सी से मिलती-जुलती इन गैसों की उत्पत्ति का सटीक कारण अभी भी रहस्य है.

सबसे पहले ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने 1985 में अंटार्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत में एक बड़े छेद की खोज की थी.

वैज्ञानिकों को पता चला कि इसके लिए सीएफ़सी गैस ज़िम्मेदार है, जिसकी खोज 1920 में हुई थी. इस गैस का प्रयोग रेफ्रिज़रेटर, हेयरस्प्रे और डिऑडरेंट बनाने वाले प्रोपेलेंट में अधिकता से होता है.

सीएफ़सी पर नियंत्रण पाने के लिए 1987 में दुनिया के देशों में सहमति बनी और इसके उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए मांट्रियल संधि अस्तित्व में आई.

साल 2010 में सीएफ़सी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया.

इमेज स्रोत, BBC World Service

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ओज़ोन परत में छेद का पता सबसे पहले ब्रितानी वैज्ञानिकों ने 1985 में लगाया था.

इन चार नई गैसों की मौज़ूदगी का पता लगाया है ईस्ट एंजिलिया विश्वविद्लय के शोधकर्ताओं ने.

इनमें से तीन गैसें सीएफ़सी हैं और एक गैस हाइड्रोक्लोरोफ़्लोरोकार्बन (एचसीएफ़सी) है, यह गैस भी ओज़ोन परत को नुक़सान पहुँचा सकती है.

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर जॉनसन लाउबे कहते हैं, ''हमारे शोध से पता चलता है कि ये चार गैसें 1960 तक वायुमंडल में नहीं थीं यानी ये मानवनिर्मित गैसें हैं.''

वैज्ञानिक ध्रुवीय बर्फ़ से निकाली गई हवा के विश्लेषण से पता लगा सकते हैं कि आज से 100 साल पहले कैसा वायुमंडल कैसा था.

शोधकर्ताओं ने इनकी तुलना वर्तमान वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों के नमूने से भी की. इसके लिए तस्मानिया के दूर-दराज़ के इलाक़े से नमूने लाए गए.

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वायुमंडल में 74 हज़ार टन ऐसी गैस मौजूद हैं. इनमें से दो गैसें ओज़ोन परत में क्षरण की दर में उल्लेखनीय वृद्धि कर रही हैं.

डॉक्टर लाउबे कहते हैं, ''इन चार गैसों की पहचान बहुत चिंताजनक है, क्योंकि वो ओज़ोन परत के क्षरण में योगदान देंगी.''

वो कहते हैं, ''हम यह नहीं जानते कि इन नई गैसों का उत्सर्जन कहाँ से हो रहा है, इसकी जाँच की जानी चाहिए. कीटनाशक के निर्माण में उपयोग होने वाला कच्चा माल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अवयवों की धुलाई में काम आने वाले विलायक इसके संभावित स्रोत हो सकते हैं.''

वो कहते हैं कि ये तीन सीएफ़सी वायुमंडल में बहुत धीरे-धीरे नष्ट होते हैं. इसलिए अगर इनके उत्सर्जन को तत्काल प्रभाव से रोक भी दिया जाए, तो भी वो कई दशक तक वायुमंडल में बने रहेंगे.

वहीं अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी इन गैसों की मात्रा कम है और इनसे अभी कोई तात्कालिक ख़तरा नहीं है लेकिन इनके स्रोत का पता लगाने की ज़रूरत है.

लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर पाइरस फॉरेस्टर को कहते हैं, ''इस अध्ययन से पता चलता है कि ओज़ोन परत का क्षरण अभी भी पुरानी बात नहीं हुई है.''

वो कहते हैं, ''जो चार गैसें खोजी गई हैं, उनमें से सीएफ़सी-113ए ज़्यादा चिंता पैदा करने वाली प्रतीत हो रही है क्योंकि कहीं से इसका मामूली उत्सर्जन हो रहा है, लेकिन यह बढ़ता जा रहा है. हो सकता है कि यह कीटनाशकों के निर्माण से पैदा हो रही हो. हमें इसकी पहचान करनी चाहिए और इसका उत्पादन रोक देना चाहिए."

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ओजोन के लिए सबसे हानिकारक गैस कौन सी है?

ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है।

ओजोन परत के लिए क्या अत्यंत हानिकारक है?

इस सम्मेलन में यह तय किया गया कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) के उत्पादन एवं उपयोग को सीमित किया जाए। भारत ने भी इस प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर किए। इसका कारण व समाधान एक अत्यंत जटिल एवं गंभीर विषय है।

ओजोन परत में कौन सी गैस पाई जाती है?

ओजोन एक गैस है जो हमारे वातावरण में स्वाभाविक रूप से मौजूद है। ओजोन का रासायनिक सूत्र O3 है क्योंकि एक ओजोन अणु में तीन ऑक्सीजन परमाणु होते हैं।

नुकसानदायक गैसों में प्रमुख गैस कौन सी है?

पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक गैसों में कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख है. इसकी ज्यादा मौजूदगी किसी इंसान की जिंदगी भी खत्म कर सकती है. हमारे घरों के अंदर भी कम मात्रा में इस गैस की मौजूदगी होती है.