भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है ? (भारतेन्दु हरिशचन्द्र) लेखक पर आधारितप्रश्न Show
1–भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए ।
हिन्दी-साहित्य जगत में भारतेन्दु जी का आविर्भाव एक ऐतिहासिक घटना थी । ये ऐसे युग में भारतीय साहित्य गगन के इन्द बनकर उदित हुए, जब प्रायः सभी क्षेत्रों में युगान्तकारी परिवर्तन हो रहे थे । हिन्दी-गद्य के तो ये जन्मदाता समझे जाते हैं । भारतेन्दु जी के पूर्व विभिन्न गद्य-रचनाकार गद्य के विभिन्न रूपों को अपनाए हुए थे । उस समय हिन्दी-गद्य की भाषा के दो प्रमुख रूप थे- एक में संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों की अधिकता थी तथा दूसरे में उर्दू-फारसी के कठिन शब्दों का प्रयोग किया जाता था । भाषा का कोई राष्ट्रीय स्वरूप नहीं था । भारतेन्दु जी का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ । उस समय गद्य-साहित्य विकसित अवस्था में था; अत: भारतेन्दु जी ने बांग्ला के नाटक ‘विद्या सुन्दर’ का हिन्दी में अनुवाद किया और उसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करके भाषा के नवीन रूप का बीजारोपण किया । सन् 1868 ई० में इन्होंने ‘कवि-वचन-सुधा’ और सन् 1873 ई० में ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ का सम्पादन आरम्भ किया । हिन्दी-गद्य का परिष्कृत रूप सर्वप्रथम इसी पत्रिका में दृष्टिगोचर हुआ । तत्कालीन साहित्यकारों ने इनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर सन् 1880 ई० में इन्हें ‘भारतेन्दु’ उपाधि से विभूषित किया । कृतियाँ- भारतेन्दु जी की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैंनाटक- भारतेन्दु जी ने मौलिक तथा अनूदित दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की है, जो इस प्रकार हैं 2. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषा-शैली का वर्णन कीजिए । व्याख्या सम्बन्धी प्रश्न
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘गद्य गरिमा’ के ‘भारतेन्दु हरिश्चन्द्र’ द्वारा लिखित ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है ? ‘ नामक पाठ से उद्धृत है । UP Board Class 11 Samanya hindi chapter 1 भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है ? पाठ का सम्पूर्ण हल
व्याख्या- भारतेन्दु जी का कहना है कि इस वैज्ञानिक युग में; जबकि उन्नति की दिशा में बढ़ना बहुत आसान है; अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि प्रत्येक देश के नागरिक अपनी-अपनी उन्नति के लिए प्रयासरत हैं । सभी का यह प्रयास है कि उन्नति के शिखर पर पहले वहीं पहुँच जाए । यहाँ तक कि जापानी भी, जो कि अधिक शक्तिशाली नहीं होते, वे भी अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील हैं । ऐसी स्थिति में भी हमारे भारतवासी अपने ही स्थान पर खड़े-खड़े केवल पैरों से मिट्टी ही खोद रहे हैं । वे इन लघुकाय जापानियों को प्रगति-पथ पर बढ़ते देखकर भी लज्जित नहीं होते । भारतवासियों को यह समझना चाहिए कि ऐसे क्षणों में यदि वे एक बार पिछड़ जाएंगे तो फिर आगे नहीं बढ़ सकते । लेखक का मत है कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में उन्नति के साधन इतनी सरलता से उपलब्ध हैं, जैसे वे अनायास प्राप्त वर्षा का जल हों । ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो लूट का माल बिखरा पड़ा हो और हमने आँखों पर पट्टी बाँध रखी हो अथवा वर्षा हो रही हो और हमने सिर पर छाता लगा रखा हो । तात्पर्य यह है कि भारतवर्ष के लोग आलस्य अथवा अज्ञानवश उन्नति के सुलभ साधनों का न तो उपयोग ही कर पा रहे हैं और न ही उन्हें उपलब्ध करा पा रहे हैं । साहित्यिक सौन्दर्य- (1) प्रस्तुत अवतरण में भारतेन्दु जी ने कलात्मक ढंग से भारतवासियों को उनके पिछड़ेपन के लिए फटकार लगायी है । (घ) बहुत लोग…. …………………………व्यर्थ न जाए । साहित्यिक सौन्दर्य- (1) लेखक ने भारतीयों में आलस्य के आधिक्य को उनकी उन्नति के मार्ग में बाधक माना है ।
हमारे यहाँ धर्म की आड़ में विविध प्रकार की नीति, समाज-गठन आदि भरे हुए हैं । ये उन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं करते । इसलिए धर्म की उन्नति से सभी प्रकार की उन्नति संभव है । लेखक कहते हैं कि यहाँ एक दो मिसालों के बारे में सुनो । लेखक बलिया के मेले का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यह स्थान इसलिए बनाया गया है कि जिससे दूर गाँवों से आए हुए लोग जो कभी आपस में नहीं मिलते थे, एक-दूसरे से मिलकर एक-दूसरे के सुख-दुःखों को जान सकें तथा गृहस्थी के काम में आने वाली जो चीजें इस मेले में मिलती है, उन चीजों को खरीद सकें । भारतेन्दु जी कहते हैं कि एकादशी का व्रत क्यों रखा जाता है, जिससे महीने में एक-दो व्रत करने से शरीर शुद्ध हो जाएँ । जब हम गंगाजी में नहाते है, तो पहले पानी सिर पर डालकर पैरों तक इसलिए डालते हैं, जिससे पैरों की गरमी सिर पर चढ़कर विकार उत्पन्न न कर पाएँ । दीवाली त्योहार के बहाने वर्ष में एक बार घर की सफाई हो जाती है तथा होली इस कारण मनाई जाती है जिससे इसकी अग्नि से वसंत ऋतु की बिगड़ी हुई हवा स्वच्छ हो जाएँ । लेखक कहते हैं कि ये त्योहार तुम्हारी नगरपालिका का कार्य करते हैं जो वातावरण, तथा शरीर को शुद्ध करते हैं ।
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