1 साल के बच्चे में खून कैसे बढ़ाएं? - 1 saal ke bachche mein khoon kaise badhaen?

खून बढ़ाने के लिए : एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी, यह छोटे-बड़े हर उम्र के लोगों को हो सकता है लेकिन प्रैग्नेंट महिला और बच्चों में खून की कमी ज्यादा देखने को मिलती है। खून का कार्य शरीर के सभी भाग को भोजन और ऑक्सीजन पहुंचाना है। अगर खून में कमी आ जाए तो शरीर की गतिविधियों पर काफी असर पड़ता है। खून को लाल रंग हीमोग्लोबिन नामक पदार्थ से प्राप्त होता है, जब इन लाल कोशिकाओं में कमी आ जाती है तो एनीमिया की समस्या आती है। 

बच्चों में एनीमिया का कारण 

बच्चों में खून की कमी होने का सबसे बड़ा कारण उसके शरीर में आयरन यानि कि  लौह तत्वों की कमी होना। इसके अलावा उन बच्चों में खून की कमी देखने को मिलती है जो समय से पहले जन्म लेते है। 

बच्चों में एनीमिया के लक्षण

नीली और सिकुड़ी हुई आंखें, कमजोर नाखून, भूख में कमी, थकान, सिरदर्द, झुंझलाहट, पीली त्‍वचा और सांस लेने में दिक्‍कत अन्य आदि। इसी के साथ  होंठों की भीतरी त्वचा, आंखों की भीतरी त्वचा, उसकी हथेलियों और नाखूनों का रंग सफेद या पीला दिखाई देने लगता है। 

हीमोग्लोबिन बढाने के घरेलु उपाय

1. टमाटर

टमाटर बच्चे के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा तेजी से बढ़ाने का काम करता है। इसलिए बच्चों को रोज 5-7 टमाटर का रस या सूप बनाकर दें। 

2. सेब

सेब का रस निकालकर उसमें शहद मिला लें और बच्चे को पीने को दें। इस जूस में लौह तत्व अधिक मात्रा में होता है जो खून की कमी को पूरा कर देता है। 

3. अनार

अनार बच्चोें के लिए ही नहीं बल्कि बड़ों के लिए फायदेमंद है। इसलिए बच्चों के घर में अनार का जूस निकालकर पिलाएं। 

4. मुनक्का

मुनक्का शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा तेज़ी से बढ़ाता है। रात को पानी में मुनक्का भिगोकर रख दें। सुबह इसका पानी को बच्चों पीने के लिए दें। 

5. चुकंदर

चुकंदर में आयरन की मात्रा अधिक होती है। यह शरीर में लाल रक्त कणों की सक्रियता को बढ़ाता और खून की कमी पूरा करता है। बच्चे को जूस या इसकी प्यूरी बनाकर खिलाएं। 

बच्चों में न्यूट्रिशयन, फोलिक एसिड, आयरन और विटामिन 12 एन्जाइम की कमी है। उनमें हीमोग्लोबिन पांच ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। जो बच्चे थैलेसिमिया से ग्रसित हैं। उनका हीमोग्लोबिन दस और कार्डियक पल्मोनरी डिजीज में 12 ग्राम जरूरी है। विशेष रूप से आईसीयू में एडमिट है। कई बार ब्लड चढ़ाने के बाद भी बच्चे का हीमोग्लोबिन नहीं बढ़ पाता है। ऐसा 42 दिन से पुराना ब्लड चढ़ाने की वजह से भी हो सकता है। पुराना ब्लड चढ़ाने से इम्युनिटी कम हो सकती है। वहीं, हीमोग्लोबिन मैनेज नहीं होने के कारण एनीमिया का खतरा बढ़ सकता है। ब्रेन तक मलेरिया पहुंचने और डीआईसी डवलप होने पर भी ब्लड चढ़ाया जाता है।

बच्चे में ब्लड कब चढ़ाएं
सामान्य बच्चे में हीमोग्लोबिन का लेवल सात ग्राम से कम होने पर ही ब्लड चढ़ाया जाना चाहिए। आजकल होल ब्लड चढ़ाने का कंसेप्ट खत्म हो रहा है। जरूरत के मुताबिक, कंपोनेट चढ़ाएं जा रहे हैं। ब्लड डोनर में किसी तरह का इंफेक्शन नहीं होना चाहिए।

किन-किन बीमारियों में चढाते हैं ब्लड
हीमोफीलिया में सेक्टर-आठ चढ़ाया जाता है। ब्लड कैंसर, थैलेसिमिया, एनीमिया, बोन मैरो डिसफंक्शन। सेफ ब्लड डोनेशन नहीं होने के कारण कॉम्पिलिकेशन बढ़ सकते हैं। ब्लड प्रेशर लो होने पर आईवी फ्लुइड माइनस कर चाहिए। एक्सट्रा ब्लड चढ़ाने से हार्ट पर दबाब पड़ सकता है।

ताकत के लिए नहीं चढ़वाएं ब्लड
बच्चे को ब्लड तभी चढाना चाहिए। जब बहुत ज्यादा जरूरत है। ताकत के लिए ब्लड नहीं चढवाएं। ब्लड का असर 55-56 दिन तक ही रहता है। फिर वहीं लेवल पर आ जाता है। जिस कंपोनेट की जरुरत है, वो ही चढ़वाएं। आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन बी-12, प्रोटीन या जिस भी तत्व की कमी है, उन तत्वों की पूर्ति डाइट और टैबलेट से करें। चीनी के बजाय गुड़ से बना हुआ हलवा खिलाएं। हरे पत्तेदार सब्जियां, खजूर से बनी डेजर्ट, बाजरे की रोटी खिलाएं। कीड़े पड़ने के कारण भी हीमोग्लोबिन कम हो सकता है। इसलिए पेट में कीड़े नहीं रहने दें। स्टील के बजाय लाेहे के बर्तन में खाना पकाएं। अंकुरित अनाज खिलाएं। बच्चे को सेफ ब्लड चढवाएं, ताकि ब्लड चढ़ाने के बाद किसी तरह का रिएक्शन न हो।

-डॉ. रामबाबू शर्मा पीडियाट्रिशियन, जेकेलोन हॉस्पिटल, जयपुर

इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इस कारण उन्हें सर्दी, जुकाम, बुखार आदि जल्दी हो जाता है। साथ ही कुछ ऐसी समस्याएं भी होती हैं, जो गंभीर रूप ले लेती हैं। इन्हीं समस्याओं में से एक एनीमिया है। अगर समय रहते इस बीमारी के प्रति कोई उचित कदम न उठाया जाए, तो भविष्य में उसके कई घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। विषय की इसी गंभीरता को देखते हुए मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चे में एनीमिया के कारण, लक्षण और इलाज के साथ-साथ इस बीमारी से बचने के उपाय भी बताएंगे।

आइए, सबसे पहले हम यह जान लें कि एनीमिया क्या है। इसके बाद हम इस समस्या से जुड़े अन्य पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

बच्चों में एनीमिया क्या है? | Bachon Mein Anemia

आम भाषा में कहें तो एनीमिया का अर्थ है शरीर में खून की कमी। वहीं, वैज्ञानिक भाषा में खून में मौजूद रेड ब्लड सेल्स की कमी या उनके बनने की प्रक्रिया की गति धीमी होने की स्थिति को एनीमिया कहा जाता है। रेड ब्लड सेल्स शरीर के सभी टिश्यू तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करते हैं। यह बीमारी मुख्य रूप से आयरन की कमी के कारण होती है। दरअसल, मानव शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों में एक आयरन ही है, जिसे रेड ब्लड सेल्स के निर्माण का मुख्य स्रोत माना जाता है। यही कारण है कि बच्चों में आयरन की कमी के चलते एनीमिया की शिकायत देखी जाती है (1)। हालांकि, एनीमिया होने के कई अन्य कारण भी हैं, जिनके बारे में हम लेख में आगे चलकर विस्तार से बताएंगे।

एनीमिया क्या है, यह जानने के बाद अब हम बच्चों में एनीमिया के प्रकार पर भी नजर डाल लेते हैं।

बच्चों में एनीमिया के प्रकार?

बच्चों में एनीमिया के मुख्य रूप से तीन प्रकार हैं (2)।

  1. माइक्रोसाइटिक (microcytic)– माइक्रोसाइटिक एनीमिया बच्चों में होने वाले एनीमिया का सबसे आम प्रकार है। शरीर में आयरन की कमी होने की स्थिति में इसके होने की आशंका प्रबल हो जाती है।
  1. नॉर्मोसाइटिक (normocytic)– बच्चों में एनीमिया का यह प्रकार जन्मजात पाया जाता है। बच्चे में अगर जन्म के साथ ही प्रतिरोधक क्षमता में कमी या रेड ब्लड सेल्स की कमी से संबंधित विकार पाया जाता है, तो इस स्थिति में नॉर्मोसाइटिक एनीमिया होने की आशंका रहती हैं। इस मामले में यह भी कहा जा सकता है कि कुछ विशेष स्थितियों में एनीमिया का यह प्रकार बच्चे में जन्म के साथ ही आ जाता है।
  1. मैक्रोसाइटिक एनीमिया (Macrocytic)– एनीमिया का यह प्रकार मुख्य रूप से विटामिन बी-12 और फोलेट की कमी के कारण होता है। यही वजह है कि एनीमिया का यह प्रकार बच्चों में मुश्किल से देखने को मिलता है।

एनीमिया के प्रकार जानने के बाद आइए अब हम बच्चों में एनीमिया होने के कारण भी जान लेते हैं।

बच्चों में एनीमिया होने के कारण

बच्चों में एनीमिया होने के कारण कुछ इस प्रकार हैं (1) (2)।

  • आयरन की कमी के साथ जन्म।
  • गाय के दूध पर निर्भर रहने के कारण (गाय के दूध में आयरन की कमी होती है)।
  • आंतों में खून का रिसाव।
  • आयरन अवशोषित करने की क्षमता की कमी।
  • प्रतिरोधक क्षमता की कमी के साथ जन्म।
  • हीमोग्लोबिनोपैथीज (hemoglobinopathies) यानी जन्म से रक्त संबंधी विकार के कारण।
  • विटामिन बी-12 की कमी।
  • फोलेट की कमी।

बच्चों में एनीमिया होने के कारणों को जानने के बाद आइए अब हम इसके लक्षणों पर भी गौर कर लेते हैं।

बच्चों में एनीमिया के लक्षण

बच्चों में एनीमिया होने की स्थिति में निम्न लक्षण देखने को मिल सकते हैं (1)।

  • चिड़चिड़ापन।
  • सांस लेने में तकलीफ।
  • पिका रोग (खाने की असामान्य प्रवृत्ति)।
  • बहुत कम खाना खाना।
  • हर समय थकान और कमजोरी का महसूस होना।
  • जीभ में ऐंठन और जलन के साथ घाव।
  • सिरदर्द और चक्कर आना।
  • आंखों में पीलापन या सफेदी नजर आना।
  • कमजोर नाखून।
  • त्वचा पर पीलापन।

लेख के अगले भाग में हम जानेंगे कि किन बच्चों को एनीमिया होने की आशंका अधिक होती है।

किन बच्चों को एनीमिया होने का जोखिम अधिक है?

कुछ विशेष स्थितियां हैं, जो बच्चों में एनीमिया होने की आशंका को बढ़ा देती हैं। आइए, उन स्थितियों के बारे में भी थोड़ा जान लेते हैं।

  1. गाय के दूध पर निर्भर रहने वाले बच्चे : ऐसे बच्चे जो मुख्य तौर पर गाय के दूध पर ही निर्भर रहते हैं, उनमें एनीमिया होने का जोखिम सामान्य के मुकाबले अधिक होता है। कारण यह है कि गाय के दूध में उचित मात्रा में आयरन मौजूद नहीं होता। ऐसे में बच्चों में धीरे-धीरे आयरन की कमी हो जाती हैं, जो आगे चलकर एनीमिया का कारण बन जाता है (1)।
  1. समय पूर्व जन्म : समय पूर्व जन्म यानी प्री-मेच्योर बर्थ के कारण बच्चे पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते। नतीजतन सामान्य के मुकाबले वह देर में ठोस आहार लेना शुरू करते हैं। इस कारण उम्र के साथ जितनी आयरन की आवश्यकता उन्हें होती हैं, वह नहीं मिल पाती। इसलिए, उन्हें एनीमिया होने का जोखिम अधिक रहता है (3)।
  1. कम वजन के साथ जन्म : कम वजन के साथ जन्म यानी लो बर्थ वेट वाले बच्चों में भी एनीमिया होने की आशंका अधिक रहती है। इसलिए, ऐसे बच्चों के पोषण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि एनीमिया के जोखिमों को समय रहते टाला जा सके (4)।

लेख के अगले भाग में हम बच्चों में एनीमिया के निदान के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।

बच्चों में एनीमिया का निदान

बच्चों में एनीमिया के निदान के लिए मुख्य तौर पर कुछ विशेष खून की जांच की जाती हैं, जिनके माध्यम से शरीर में मौजूद आयरन की स्थिति का पता लगाया जाता है। एनीमिया की जांच के लिए निम्न प्रकार के टेस्ट किए जाते हैं (1):

  1. हेमेटोक्रिट (Hematocrit)– इस टेस्ट में चिकित्सक इस बात की जांच करता है कि रोगी का खून लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने में कितना सक्षम है। साथ ही इस टेस्ट में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या और आकार की भी जांच की जाती है (5)।
  1. सीरम फेरिटिन (Serum ferritin)– इस टेस्ट में खून में मौजूद फेरिटिन की मात्रा की जांच की जाती है। फेरिटिन एक प्रकार का प्रोटीन है, जो प्रत्येक कोशिका में पाया जाता है और आयरन को संग्रहित यानी जमा रखने का काम करता है। वहीं, जरूरत होने पर यह शरीर में आवश्यक आयरन की पूर्ति करने में भी मदद कर सकता है (6)।
  1. आयरन टेस्ट- जांच की इस प्रक्रिया में चिकित्सक यह पता लगाने की कोशिश करता है कि रोगी के शरीर में कितनी मात्रा में आयरन मौजूद है (7)।
  1. टोटल आयरन बाइंडिंग कैपेसिटी (Total iron binding capacity)– चिकित्सक शरीर में जरूरत से अधिक या कम आयरन होने की स्थिति में यह टेस्ट करते हैं। इस टेस्ट में ट्रांसफेर्रिन (transferrin) नाम के प्रोटीन की जांच की जाती हैं, जो खून में आयरन के बहाव को नियंत्रित करता है। इससे चिकित्सक को यह जानने में मदद मिलती हैं कि यह प्रोटीन खून में आयरन को ले जाने में सक्षम है या नहीं (8)।

बच्चों में एनीमिया के निदान के बारे में जानने के बाद आइए अब हम इसके इलाज के बारे में भी चर्चा कर लेते हैं।

बच्चों में खून की कमी का इलाज | Bachon Mein Khoon Ki Kami Ka Ilaj

निम्न बिन्दुओं के माध्यम से हम बच्चों में एनीमिया के इलाज की प्रक्रिया को समझ सकते हैं (1) (9)।

  • नवजात बच्चों को डॉक्टर आयरन युक्त फॉर्मूला दूध पिलाने की सलाह दे सकते हैं।
  • वहीं, अधिक आयरन की कमी होने की स्थिति में 3 एमजी प्रति किलो के हिसाब से आयरन ड्रॉप (सप्लीमेंट) देने का सुझाव दिया जा सकता है।
  • ठोस आहार लेने वाले बच्चों को आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ खिलाने पर जोर दिया जा सकता है।
  • एनीमिया के इलाज के लिए ठोस आहार के साथ आयरन युक्त बेबी फूड खिलाने की सलाह दी जा सकती है।
  • अगर गंभीर स्थिति में सप्लीमेंट के बावजूद बच्चे का शरीर लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण नहीं कर पाता, तो ब्लड ट्रांसफ्यूजन यानी खून बदलने की
  • प्रक्रिया को अपनाया जाता है। यह गंभीर स्थिति है, जिसकी आमतौर पर जरूरत नहीं पड़ती (10)।
  • नौ महीने की ब्लड ट्रांसफ्यूजन थेरेपी होने के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं आता, तो डॉक्टर बोनमैरो ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया को अपनाते हैं (11)।

लेख के अगले भाग में अब हम बच्चों में खून बढ़ाने के कुछ घरेलू उपाय बता रहे हैं।

बच्चों में खून बढ़ाने के घरेलू उपाय

जैसा कि हम लेख में ऊपर बता चुके हैं कि दूध पीने वाले बच्चों को आयरन युक्त फॉर्मूला मिल्क देकर एनीमिया के जोखिमों को दूर रखा जा सकता है। वहीं, अगर बच्चा ठोस आहार लेने योग्य है, तो निम्न घरेलू उपायों की सहायता से उसे एनीमिया के खतरे से बचाया जा सकता है।

  1. चुकंदर का प्रयोग : विशेषज्ञों के मुताबिक, चुकंदर में एंटी-एनेमिक प्रभाव पाया जाता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है। साथ ही एनीमिया के जोखिमों को दूर करने में मदद कर सकता है (12) (13)। इस कारण यह माना जा सकता है कि बच्चों के आहार में इसे सलाद या जूस के रूप में शामिल करना एनीमिया से बचाव का एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
  1. पालक का जूस : पालक को आयरन का अच्छा स्रोत माना जाता है और आयरन की कमी को पूरा करने के लिए इसे खाने की सलाह दी जाती हैं (14)। इसलिए, एनीमिया से बचाव के घरेलू उपाय के तौर पर पालक के जूस को इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
  1. अनार का सेवन : एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, अनार एनीमिया के जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है। साथ ही शोध में इस बात का भी जिक्र मिलता है कि इसके सेवन से खून बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इस कारण यह कहा जा सकता है कि खून बढ़ाने के घरेलू उपायों में अनार के जूस का सेवन लाभकारी परिणाम दे सकता है (15)।
  1. तिल का उपयोग : खून बढ़ाने के घरेलू उपायों में तिल को इस्तेमाल में लाया जा सकता है। विशेषज्ञों के मताबिक, तिल में आयरन का अच्छा स्रोत होता है और इसके सेवन से एनीमिया के जोखिमों को दूर रखने में मदद मिल सकती है (16)। दो चम्मच तिल को कुछ देर भिगोकर इसका पेस्ट बना लें। फिर तैयार पेस्ट को शहद के साथ बच्चों को आसानी से दिया जा सकता है।
  1. संतरा करें शामिल : बेयलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि संतरे के जूस में मौजूद एस्कॉर्बिक एसिड लिए जाने आहार में मौजूद आयरन के अवशोषण में मददगार साबित हो सकता है (17)। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि संतरे का जूस शरीर में आयरन की आवश्यक मात्रा की पूर्ति के लिए सहायक साबित हो सकता है।

बच्चों में खून बढ़ाने वाले घरेलू उपाय जानने के बाद अब हम एनीमिया के दीर्घकालिक परिणामों को भी जान लेते हैं।

एनीमिया के दीर्घकालिक प्रभाव

एनीमिया का सही समय पर इलाज न करने की स्थिति में बच्चों में निम्न जटिलताएं देखने को मिल सकती हैं, जो लेड की अधिकता का परिणाम हो सकती हैं (1) (18)।

  • अधिक देर तक किसी काम पर ध्यान लगाने में समस्या।
  • सतर्कता में कमी।
  • सीखने की क्षमता में कमी।
  • पेट दर्द की समस्या।
  • कब्ज की शिकायत।
  • अधिक थकान होना।
  • भूख की कमी।
  • हाथ और पैर में दर्द का बने रहना।
  • अधिक कमजोरी का एहसास।

एनीमिया की जटिलताओं को जानने के बाद अब हम इससे बचाव के कुछ आसान उपाय बताने जा रहे हैं।

बच्चों में एनीमिया को होने से कैसे रोकें?

एनीमिया से बचाव के लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना जरूरी है (9)।

  • जितना संभव हो बच्चे को मां का दूध ही पिलाएं।
  • अगर मां दूध पिलाने में असमर्थ है, तो बच्चे को आयरन युक्त फॉर्मूला दूध का ही सेवन कराएं।
  • ठोस आहार लेने वाले बच्चों को आयरन युक्त खाद्य पदार्थों के साथ आयरन युक्त बेबी फूड दिया जा सकता है।
  • एक साल तक बच्चों को गाय का दूध बिल्कुल न पिलाएं।

एनीमिया ऐसी समस्या नहीं है, जो ठीक न हो सके। जरूरत है, तो बस शिशु के जन्म के बाद उसका अच्छी तरह से ध्यान रखना, समय-समय पर चेकअप करवाना, 6 माह तक सिर्फ स्तनपान करवाना और 6 माह के बाद पोषक तत्व युक्त ठोस खाद्य पदार्थों को उसकी डाइट में शामिल करना। हां, अगर फिर भी बच्चे में आयरन की कमी होती है, तो डॉक्टर से चेकअप जरूर करवाएं। साथ ही इस लेख में बताए गई जरूरी बातों को भी ध्यान में रखें। यह लेख आप अपने मित्रों व परिचितों के साथ भी शेयर करें, ताकि वो भी इस विषय के संबंध में जागरूक हो सकें। अगर आप इस विषय के संबंध में और कुछ जानना चाहते हैं, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए अपनी बात हम तक पहुंचा सकते हैं।

References:

1.Anemia caused by low iron – infants and toddlers By Medlineplus
2.Iron Deficiency and Other Types of Anemia in Infants and Children. By Ncbi
3.Evaluation and Treatment of Anemia in Premature Infants By Ncbi
4.Iron deficiency anemia in infants and toddlers By Ncbi
5.Hematocrit By Medlineplus
6.Ferritin blood test By Medlineplus
7.Serum iron test By Medlineplus
8.Total iron binding capacity By Medlineplus
9.Recommended Guidelines for Preventing and Treating Iron Deficiency Anemia in Infants and Children By Ncbi
10.Red blood cell transfusion in newborn infants By Ncbi
11.Bone marrow transplantation in a young child with sickle cell anemia. By Ncbi
12.Laboratory evidence for the hematopoietic potential of Beta vulgaris leaf and stalk extract in a phenylhydrazine model of anemia By Ncbi
13.FoodToGrowOn By Health
14.Iron deficiency. By Ncbi
15.Effect of pomegranate juice consumption on biochemical parameters and complete blood count By Ncbi
16.Bioavailability of iron from four different local food plants in Jordan. By Ncbi
17.Effect of orange and apple juices on iron absorption in children. By Ncbi
18.LEAD By Cdc

 

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    1 साल के बच्चे का खून कैसे बढ़ाएं?

    इसके लिए बच्चे को भीगी हुई किशमिश जरूर खिलाएं. किशमिश खाने में टेस्टी लगती है और ये खून की कमी, एनीमिया और हीमोग्लोबिन की समस्या को दूर करती है..
    शरीर में खून बढ़ाए- किशमिश आयरन का अच्छा सोर्स है. ... .
    इम्यूनिटी बढ़ाए- भीगी किशमिश खाने और इसका पानी पीने से इम्यूनिटी मजबूत होती है..

    बच्चों को खून बढ़ाने के लिए क्या खिलाएं?

    आंवला विटामिन सी और आयरन जैसे कई पौषक तत्वों से भरपूर होता है. खासतौर से अनीमिया (Anaemia) होने पर व्यक्ति को आंवला खाने की सलाह दी जाती है. आंवला के जूस की बात करें तो बच्चों को इसे दिन में एक बार सीमित मात्रा में पिलाया जा सकता है. आंवला बच्चों की इम्यूनिटी (immunity) बढ़ाने में भी मददगार है.

    सबसे ज्यादा खून बढ़ाने वाला फल कौन सा है?

    इस फल का नाम अनार है. इससे बॉडी में सबसे तेज खून बनता है.